**चिराग था फितरत से**

*******चिराग था फितरत से
              जलना मेरी नियति
               मैं जलता रहा पिघलता रहा
               जग में उजाला करता रहा
               मैं होले_होले पिघलता रहा
               जग को रोशन करता रहा *****
               "जब मैं पूजा गया तो ,

                जग मुझसे ही जलने लगा ,
                मैं तो चिराग था ,फितरत से
                मैं जल रहा था ,जग रोशन हो रहा था
                कोई मुझको देख कर जलने लगा
                स्वयं को ही जलाने लगा
                इसमें मेरा क्या कसूर"
               
                **चल बन जा , तू भी चिराग बन
                थोड़ा पिघल , उजाले की किरण
                का सबब तू बन ,देख फिर तू भी पूजा
                जाएगा ,तेरा जीना सफ़ल हो जाएगा **

****रोना बंद करो ****

      *"*मेरे मित्र तुम्हें क्या हो गया है, आजकल ....,तुम तो ऐसे नहीं थे ।   तुम रोते हुए अच्छे नहीं लगते ।
 **अमन याद है , तुम्हें ,जब में अपने जीवन से निराश और हताश होकर अपना जीवन ही समाप्त करने चला था, तब तुम ढाल बनकर मेरे आगे खड़े हो गए थे । तुमने मुझमें  मेरा आत्म विश्वास वापिस जगाया था । वरना में तो अपनी जिंदगी से हार मान चुका था।  अब तुम्हारा आत्मविश्वास कहां गया , अमन तुम तो इतने कमजोर नहीं हो  ,अच्छा नहीं लगता,  तुम्हारे मुंह से नकारात्मक बातें सुनना , तुम तो वो   सोच हो जो अंधेरे में भी जगमगाए ..... पत्थरों को भी जीवंत कर दे । वीराने में भी मंगल दीप जला दे ।

   ** हां मेरे मित्र "सजग" कई दिनों से ना जाने क्या  हो गया है मुझे ,
 मैं भी बस रोना ही रो रहा हूं ।
 रोना ...... हा _हा,  हां रोना .....
बस हालातों को दोष दे रहा हूं । मैं भी बस जन सामान्य की तरह ,अगर ऐसा होता तो मैं ऐसा होता , मैं ये कर पाता वो कर पाता । कुछ मेरे जैसा ही नहीं ,तो मैं क्या करूं मैं तो  किस्मत को ही  दोष
 दूंगा । अगर मेरे हक में सब होता तो सही होता।
 मेरी किस्मत ही ऐसी है ......
    तुम्हारा स्वास्थ्य ही बिगड़ा है ,मेरे दोस्त अमन .............   आज रसायन विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है ,तुम बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे ।
 अभी तुम्हें बहुत से आशा के दीप जलाने हैं । नकारत्मक विचारों की कंटीली झाड़ियों को नष्ट कर सकारात्मक विचारों के बीज बोने हैं ।
     हां मेरे मित्र "सजग"तुम्हारी बात  सही है ,परंतु यह बात भी तो सत्य है कि जीवन एक सफ़र है ।
मेरे जीवन का सफ़र बहुत बेहतरीन रहा , मैंने जीवन के हर _ पल को भरपूर जिया , हताश होना तो मानों मैंने सीखा ही नहीं था ,बहुत से हताश लोगों को आशा की राह भी दिखाई ।
बस मैं तो यही चाहूंगा ,की सब अपने जीवन को जाने समझे ,देखो साधारण सी बात है ,जब हम गाड़ी चलाते हैं ,तो सफ़र में कई तरह के मोड़ आते हैं ,सफ़र है ,रास्ते कैसे भी हों ,चलना तो पड़ता ही है । तो क्यों ना हंसी खुशी अपने सफ़र को पूरा करे ।
"सजग "ने अपने मित्र "अमन" को अपने गले से लगा लिया ,दोनो मित्रों के नेत्रों से प्रेम की अश्रु धारा बह निकली .....

** पैग़ाम मोहब्बत का **

 
*दिल के कोरे काग़ज़
 पर कुछ शब्द ,गुमनाम से लिखता हूं *

* मैं तो हर शब्द में मोहब्बत का पैग़ाम लिखता हूं
आगाज़ दर्द से ही सही पर ,
खुशियों के पैग़ाम लिखता हूं *

मोहब्बत करना कोई फ़िज़ूल का शौंक नहीं
ये तो फरिश्तों की नियामत है
सारी कायनात ही मोहब्बत की
बदोलत है , मोहब्बत ही तो सच्ची इबादत है *

**हां मैं नफरतों की वादियों से
तंग आकर मोहब्बतें
पैग़ाम भेजता हूं **

**जितनी तोहमत लगानी है ,लगाओ
हां _ हां मैं इससे _उससे हर शकस
से मोहब्बत करता हूं **

**तोहफा ए मोहब्बतें के लिए
मैं ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करता हूं
इतने सुंदर किरदार को निभाने की
कला जो मुझको मिली ,
अपने किरदार को निभाने की
भरकस कोशिश करता हूं *



”मंजरी”

 
    “  मंजरी को शहर आकर बहुत अच्छा लग रहा था ।
  अभी कुछ ही दिन पहले वो अपनी मौसी के साथ गाँव से शहर घूमने आ गयी  थी ।
  शहर की भागती दौड़ती चकाचौंध से भरी ज़िन्दगी मंजरी को लुभा रही थी ।
 घर में मौसी -मौसा उनके चार बच्चे तीन  लड़कियाँ और एक चौथा भाई जो अभी पाँच ही साल का था सभी लगभग आठ  दस बारह साल के थे ,मंजरी की उम्र भी बारह वर्ष ही थी ।सभी बच्चे मिलकर ख़ूब मस्ती करते थे ।
मौसा मज़दूरी करते थे ,मौसी भी चार पाँच घरों में सफ़ाई का काम करती थी ।
 कुछ दिन तो मौसी -मौसा को मंजरी बहुत अच्छी लगी परन्तु अब मंजरी मौसा की आँखो को खटकने  लगी ।मौसी -मौसा अपने ही परिवार को मुश्किल से पाल रहे थे ,अब ये मंजरी का खर्चा और बड़ गया था ।
अब मौसी मंजरी को गाँव वापिस लौट जाने की सलाह देने लगी ।

लेकिन मंजरी गाँव जाने को बिलकुल भी तैयार नहीं थी ।

एक दिन की बात है ,मौसी की तबियत अच्छी नहीं थी उस दिन काम का बोझा भी ज़्यादा था ,और आज तो मौसा भी ज़्यादा पीकर आये थे ,घर में बहुत हंगामा हुआ ,मौसी बोल रही थी एक तो घर में वैसे ही खाने वाले ज़्यादा और कमाने वाले कम ऊपर से तुम शराब पीकर पैसा उड़ा रहे हो ,घर में तो ख़र्चा देते वक़्त हाथ तंगी है और तुम्हारी अय्याशी के लिये कोई तंगी नहीं ......इतने में मौसी की नज़र मंजरी पर पड़ी .....और एक तू इतने दिन से मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ रही है ,यहाँ कोई टकसाल नहीं लगी अगर  रहना है तो मेहनत करो मज़दूरी करो या फिर गाँव वापिस जाओ......
आज मंजरी के कानों को मौसी की बात चीर रही थी .....
मंजरी गाँव वापिस जाकर क्या करती ...थोड़ा सा खेत का टुकड़ा ज़रूर है गाँव में धान ,गेहूँ ,की कोई कमी नहीं थी पेट तो किसी तरह भर ही जाता है , लेकिन पेट के अलावा और भी ज़रूरतें होती हैं जिनके लिए पैसे की आव्य्श्क्ता होती है ।
अच्छे कपड़े ,टेलेविजन ,फ़्रिंज इत्यादि सभी देखकर मंजरी की इच्छा होती थी की गाँव में उसके घर में भी ये सब कुछ हो ,वो मौसी से बोली मुझे कुछ काम दिलवा दो , मैं कुछ पैसे कमा कर गाँव ले जाऊँगी और टी॰वी॰ ,फ्रिज ख़रीदूँगी ।
मौसी को हँसी आ गयी बोली बेटा काम करना इतना आसान नहीं है ,चल फिर भी तू कह रही है तो कल से तुझे काम पर लगवाती हूँ आज ही कोई कह रहा था ,सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक उन्हीं के घर रहना होगा ,खाना पीना वही होगा रात को घर वापिस .....
मंजरी अगले ही दिन काम पर लग गयी ,चार हज़ार रुपया एक महीना तय हुआ था अच्छा काम मिलने पर दो महीने बाद पैसे बड़ा देने की बात हुई ।
मंजरी पूरे दिल से उस घर में सुबह से शाम करती ,सब सुविधा थी मंजरी को मंजरी ख़ुश थी ,काम करते -करते मंजरी को छः महीने बीत गये थे ,मंजरी हर महीने के पैसे अपनी मौसी को दे देती थी मौसी भी यह कहती की तेरे पैसे मेरे पास सुरक्षित पड़े हैं ।अब छः महीने हो गये थे मंजरी ने मौसी से कहा मौसी वो थोड़े दिन के लिए गाँव जाना चाहती है , उसके जो पैसे हैं वो गाँव लेकर जायेगी और घर पर देगी ....
मौसी बोली कौन से पैसे घर का किराया और ख़र्चे और तू भी तो सुबह का नाश्ता और कभी -कभी तू रात का खाना भी तो खाती है ।
मंजरी का मन बहुत उदास हो रहा था ,अब उसने सोच लिया था कि वो अगले महीने सिर्फ़ एक हज़ार रुपया ही मौसी को देगी बाक़ी गाँव जाने के लिये जमा करेगी ।
अगले महीने मंजरी ने ऐसा ही किया , मौसी -मौसा में बहुत कोशिश करी पैसे निकलवाने की लेकिन इस बार मंजरी ने भी जिद्द ठानी थी । चार महीने बीत गये थे मौसी -मौसा की पैसे देने वाली मुर्ग़ी मंजरी ने भी अब पैसे देने बंद कर दिए थे ।
अब तो मौसी मानों ऐसे हो गयी जैसे मंजरी उसकी बहन की बेटी ही ना हो , कहने लगी यहाँ रहना है तो पाँच हज़ार किराया देना होगा .मंजरी अब पूरी तरह समझ गयी थी की जब तक पैसा हो जेब मैं कोई पूछता है ,वरना धक्का मार निकालते हैं ।
अकेली लड़की को कोई किराये पर मकान देने को भी तैयार नहीं था , उधर से मौसी -मौसा के आँख में चुभने लगी थी मंजरी । उसके गाँव में फ़ोन करके बहुत कोशिश की गयी की मंजरी महीने में जो कमाती है ,वो उन्हें देती रहे तो ....मंजरी  उनके  घर रह सकती है वरना मंजरी अपना अलग ठिकाना करे ,मंजरी को सारे महीने की कमायीं देनी मंज़ूर ना थी क्योंकि वो सारे दिन तो काम के घर में रहती थी खाना खाती थी फिर किस बात के पैसे दे मौसी को और मौसी भी माँगने पर कहती थी पैसे ख़र्च हो गये ।नहीं मंजरी अब अपनी मेहनत की कमायीं नहीं देगी उसके भी कुछ अरमान हैं जिन्हें वो पूरा करना चाहती थी ।
इधर मौसी ने मंजरी को उसके गाँव भेजने की पूरी तैयारी कर ली थी ।
मंजरी उदास थी ,पर उसे यक़ीन था वो फिर शहर लौट कर आयेगी और अपने सपने सच करेगी ......
क्योंकि वो जान चुकी थी की मेहनत से सब कुछ मिलता है ।



**सच्चा मित्र **

 **** 
          **सच्चे मित्र से मिलने की खुशी और मन में
          कशमकश करते , कई प्रश्न ,कई बातें ,यूं ही             बयान हो जाती है ,जब लगता है ,कोई अपना मिल गया है ,अब कुछ कहना इतना जरूरी नहीं,क्योंकि वो मेरा मित्र है, वो मुझे देख कर ही मेरे  दिल में क्या चल रहा  है सब जान जाएगा ।
     
       ** हर बार सोचता हूं
            आज उसे दिल के सारे
            हाल बता दूंगा ,शब्द जुबान
            पर होते हैं ,मैं बोल भी नहीं पाता
            वो मुझे देखकर यूं मुस्कराता है
                *जैसे सब समझ गया *
            वो  मेरा मित्र, कुछ अलग है दुनियां से ।
            मेरा सहयोगी तो है ,पर जताता नहीं
            मैं जानता हूं,वो प्रेरणा बनकर मुझे
            प्रेरित करता रहता है, क्योंकि वो मुझे ही
            योग्य और समझदार बनना चाहता है ।

         **घंटों बैठ कर मैं उससे बातें करता रहा,ना जाने   क्या _ क्या.......
   आज पता नहीं  उससे बातें करने के लिए मेरे पास इतना समय कहां से आ गया था ।
वरना , मेरे कितने काम यूं ही रुके रहते थे कि आज समय नहीं है कल करूंगा, प्रतिदिन का यही बहाना, आज समय नहीं है कल करूंगा ।
मैं स्वयं हैरान था ,चार घंटे उसके साथ बैठकर ऐसे बीते जैसे चार पल ।
   परंतु आज दिल पर पढा सारा बोझ हल्का  हो गया था ,मैंने अपने दिल की सारी बातें उसको कह  सुनाई थी।  मैं सुनाता रहा वो सुनता रहा मैं हैरान था ,      मैंने कहा आज तक मेरी इतनी बातें किसी ने नहीं सुनी जितनी तुमने सुनी ,वो बोला मैं तो कब से इंतजार में था कि तुम मुझसे बातें करो ,तुम ही मेरे पास नहीं आए ,तुमने सोचा होगा कि मैं भी औरों की तरह हूं ।
 ऐसा ही होता है जिसे हम अपना समझते हैं वो अपना नहीं होता ,और जो अपना होता है उसे हम अपना नहीं समझ पाते ।
हमें जो मिलता है उससे हमें खुशी नहीं मिलती, और हमारे पास जो नहीं होता उसमें हम खुशी ढूंढ़ते हैं ,और पागलों की तरह अपना जीवन कष्टदाई करते रहते हैं ।
 जो मिला है ,वो पर्याप्त है ,और आवयश्कता से बहुत अधिक है ,यह हम जान के भी अनजान बने रहने का नाटक करते रहते हैं ,ना जाने क्या ढूंढ़ते रहते हैं हम मनुष्य अपने इस जीवन में .....
  सत्य भी है,जीवन आगे बड़ने का नाम है ।
   एक जगह एकत्र रुका हुआ जल भी कुछ समय बाद दुर्गन्ध देने लगता है । जीवन बड़ा हो अती उत्तम ,परंतु जीवन बड़ा होने के साथ ही साथ उपयोगी होना भी आवश्यक है ।
  सभी रिश्ते _नाते ,मित्र माना कि सब अपने हैं ,परंतु हर किसी की स्वयं की उलझनें हैं ,प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में उलझा हुआ है ,किस को अपनी उलझन बताएं ,जिसको बताओ ,वो अपना ही रोना लेकर बैठ जाता ।
आखिर समझ आया किसी को भी अपनी उलझन बता कर कोई फायदा नहीं  यहां सभी उलझे पड़े हैं    परन्तु इस बार मुझे जो मित्र मिला ,वो मेरा बड़ा सहयोगी निकला , उसे मैंने दिल के सारे हाल बताएं ,उसने बहुत अच्छे उपाय,और हल बताए ।
वास्तव में मेरी उलझन मेरे ही मन की उपज थी ,अब मैं उलझता नहीं ,उलझन भी मेरे पास आने से डरती है क्योंकि उलझन को मैं उलझनें ही नहीं देता ।
वो मेरा मित्र मेरे मन का सहयोगी हर पल मेरे साथ रहता है ।
बड़ी मुश्किल से पहचान पाया हूं ,मैं अपने मित्र को अब उसे अपने से दूर कभी नहीं जाने दूंगा ।
मेरा मित्र मेरी अंतरात्मा की आवाज ,मेरे परमपिता परमात्मा हैं । सच कहूं उससे बड़ा दुनियां में किसी का कोई मित्र नहीं ,अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनिए वही आप सब का सच्चा मित्र है ।





















**हां मुझे आगे बढ़ने का शौंक है ***

  *****हां मुझे आगे बढ़ने का शौंक है **
  **परंतु किसी को पीछे करके नहीं
  *आगे बढ़ना प्रकृति का नियम है।
  और अपने जीवन के अंतिम क्षण
  तक मैं आगे बढ़ने का प्रयास करती रहूंगी **

  **जीवन प्रतिस्पर्द्धा नहीं ,
  प्रतिस्पर्द्धा कीजिए स्वयं से
  स्वयं के परिश्रम से,संयम से**
 
  परंतु किसी को धक्का देकर करके नहीं
  मुझे स्वयं की जगह स्वयं बनानी है ।
 
   मैं किसी का स्थान लूं ये मुझे
   मंजूर नहीं
   मेरा स्थान मेरे कर्म ,मेरे धर्म
  ओर मेरे प्रयास पर निर्भर है ।

  ना मुझे किसी से कोई प्रतिस्पर्द्धा है
  ना किसी से वैर ,मेरी अपनी मंजिल
  मेरा अपना सफर,
 **मैं अगर अपने कर्मो के बल पर आगे बढ़ती हूं
  तो यह कदापि नहीं की मैं किसी का स्थान लेना      चाहती हूं **
 **या मै किसी को पीछे करना चाहती हूं
 मेरा तो हरदम यही प्रयास रहेगा कि,
 सब आगे बढ़े ,सब अपनी मंजिल स्वयं बनाएं 
 सब समृद्ध हों ,सबका विकास हो ।

  ****मैं सूरज की तरह चमक सकता हूं
  पर सूरज की जगह ले पाना असम्भव ही ,
  नहीं ,नामुमकिन हैं।
  माना कि मैंने बहुत बड़ी बात कह दी ।


  मैंने अक्सर देखा है ,कुछ बढ़े व्यक्ति
  स्वयं से पद में छोटे व्यक्तियों को ,
  पीछे करके स्वयं आगे
 आगे बढ़ने की कोशिश में लगे रहते हैं ,
  परंतु बढ़े व्यक्तियों  की महानता इसमें है की
  वह उन्हें  को आगे बढ़ाने का प्रयास करें
  क्योंकि जो बढ़ा है, वो तो बढ़ा ।
   ऐसा करके वो
   और बड़ा और सम्मानित होगा ***



***इस दीपावली *****

**************
**
प्रत्येक वर्ष की भांति ,
इस वर्ष भी दीपावली से पूर्व
स्वच्छता अभियान जोरों से चला
घर ,आंगन भरपूर सुसज्जित हुआ
भगवान विष्णु मां लक्ष्मी,के स्वागत में
आंगन में  रंगोली सजाई
पुष्पों की माला बनाई
चमचमाती झालरें जगमगाई
खील ,पतासे और मिठाइयां भी आयीं
इस बार घर के संग संग मन के मैल भी साफ किये जिन घरों के द्वार कई वर्षों से नहीं खटखटाए थे ,
उन सब के द्वार खटखटाए ,दिल के सारे शिकवे मिटाए ,पुराने मित्रों से मिलकर ,प्रेम केअश्कों की धारा से एक दूजे के गम मिटाए ।
कीमती उपहारों के आदान प्रदान की बजाए ,कुछ मिठाइयां,कुछ कपड़े,फल,उपहार ,निर्धन जरूरतमंद बच्चों में बांट आए।
इस दीपावली हम मिट्टी के दीपक ही खरीद कर लाये
आमावस्या की रात में ,
भगवान विष्णु और लक्ष्मी के स्वागत में कुम्हार की
मेहनत से बने दीपक ही सजाए,
दीपकों की माला से सुशोभित आंगन देख
भगवान विष्णु ,लक्ष्मी जैसे  हमारे घर अाए
वैसे ही सबके घर अाए यही कामना लिए हम सबको शुभ दीपावली के कह अाये ।
सबके मंगल कामना की दुआ भी कर अाए ।******







       

**नया दौर, नयी सोच **

*****
 "आज फिर से ये सवारी किधर चली बन -ठन के .......  ओहो ! अम्मा जी किसी को टोकते नहीं जब वो किसी जरूरी काम से जा रहा हो ।
अम्मा जी ,व्यंग करते हुए बोली,जरूरी काम -
अब तुम्हे क्या जरूरी काम है , तुम्हारे सारे काम तो तुम्हारे बच्चे कर देते हैं ,ऑनलाइन घर पर बैठे - बैठे ,तुम्हे  क्या काम है ,मै जानती हूं ।
 क्या काम है,जरा  बताओ आप तो अन्तर्यामी हो अम्मा, मुझे पता है,आपको मेरा अच्छे से तैयार होने पर शंका होती है। अम्मा बोली नहीं बेटा शंका क्यों होगी ,तेरी बेटी की शादी हो गई,और चार पांच साल में बेटे की भी हो जाएगी ,तेरी बहू आएगी , बेटा बोला मैं समझ गया की आप क्या कहना चाहती हो की मेरी उम्र हो गई है , मैं बूढ़ा हो गया हूं ,नहीं अम्मा मैं बूढ़ा नहीं हुआ हूं और ना होंगा अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है ..... हंसते हुए बोला ।
अम्मा बोली जा जो तेरी मर्जी वो कर मेरा क्या ,
जब बहू - बेटा हंसेंगे ना तब अक्ल आयेगी .....
बेटा अम्मा के पास आकर बैठ गया ,और बोला अम्मा ,लोग क्या कहेंगे ,लोग तो कुछ होने पर भी कहेंगे और कुछ ना होने पर भी कहेंगे ।
अम्मा नवीनता आव्यशक है ,नवीनता हमारे जीवन में नया उत्साह लाती है ,और हमें जीवन में आगे बढने को प्रेरित करती है ।
और अम्मा मनुष्य का मन हमेशा जवान रहना चाहिए ,क्योंकि मन ही स्वस्थ जीवन का संदेश देता  है ,तन का क्या है।
अम्मा मुझे नये- नये  कपड़े पहनने का शौंक है ,क्योंकि नवीनता हमारे जीवन से नीरसता को नहीं पनपने देती , हमें आगे बड़ने को प्रेरित करती है । जीवन में नया उत्साह और स्फूर्ति भरती है ।
अम्मा रुकी हुई ,या एक जगह ठहरी हुई चीज में धूल, जंक और काई लग जाती है ।
अम्मा मैं अपनी उम्र की आखिरी अवस्था तक आगे बड़ने का प्रयास करता रहूंगा ।
अम्मा अब आप बताओ आपकी उम्र क्या होगी ,अम्मा बोली यही कोई सत्तर से तो ऊपर ही होगी ,अम्मा आपकी समय में लोग अपने को बूढ़ा मैंने लगते थे , बच्चों का ब्याह क्या हुआ,आप सब प र बुढ़ापे की मोहर लग गयी,अपने सारे शौंक आप लोग समर्पित कर देते थे उम्र हो गई कहकर..... ,क्यो ?अम्मा सही के रहा हूं मैं ,अम्मा बोली  तू कह तो सही रहा है ,परंतु हमारे जमाने में तो ऐसे ही होता था ,आखिर समाज दारी भी कोई चीज होती है ।
अम्मा समाज तो हमेशा से" भेड़ चाल "चलता आया है ,समाज का क्या ।
 अम्मा मैं तो कभी बूढ़ा नहीं होना चाहूंगा , भले ही मेरा शरीर बूढ़ा हो जाए,परंतु मैं अपने मन  कभी बूढ़ा नहीं होने दूंगा ।
अम्मा हर रोज में बन-ठन के जो नया फैशन होगा वो करूंगा और कुछ नया अपनाने से नहीं डरूंगा ।
अम्मा कुछ नया नया करते रहने  से नीरसता नहीं आती ,जीवन को सकारात्मक ऊर्जा मिलती रहती है । अम्मा नवीनता आविष्कारों को भी जन्म देती है ,और प्रग्रती का भी सूचक है ।







“पुष्प और तितलियाँ “

  🌺🌸🌺🌸👌🌺💐💐🌸🌺🎉🌸🌺🌹🌸🌺🌸🌹🌸🌺🌸🌺🎊🎊🎊🎊
        मेरे सुन्दर संसार की बगिया में,
        विभिन्न रंग - बिरंगे पुष्पों की फुलवारी है
        मेरी फुलवारी में तितलियों का भी बसेरा होता है
        फुलवारी , आकर्षक ,मस्त , सुन्दर रंग - बिरंगी तितलियों को
        बहुत भाती हैं , वो प्यारी तितलियाँ , एक पुष्प से दूसरे पर इठलाती हैं
        मानों गीत - हँसी -ख़ुशी के गाती हैं , और कहती हैं ,
        तुम्हारे और हमारे जीवन में बहुत समानता है
        तुम भी अपने छोटे से जीवन काल में सबके जीने का सबब बनते हो
        और हम भी अपने छोटे से जीवन में , किसी की बगिया को महकाते हैं ,
        कभी किसी के दिल को भाते हैं , कभी कोई हमें तोड़ के ले जाता है
        कोई हार बना गले में पहनता है , कोई मंदिर में चढ़ाता है ,
        दुख में हो या सुख में मेरा तो भरपूर उपयोग हो जाता है ,
        अपने छोटे से जीवन में मेरा तो सम्पूर्ण उपयोग हो जाता है
        मैं “ईत्र “बनकर हवाओं को महकाता हूँ ,
        और धरती पर वायुमण्डल में अपना असर छोड़ जाता हूँ ।
        मैं पुष्प हूँ , में मरकर भी अमर हो जाता है
        सफल है जीवन मेरा ,जो किसी ना किसी उपयोग में आ जाता हूँ ।

“हौसलों का दामन पकड़ “ “

“हौसलों का दामन पकड़ “

“ तिमिर घोर तिमिर
वो झिर्रीयों से झांकती
प्रकाश की किरण
व्यथित , व्याकुल ,
पराजित मन को ढाढ़स बँधाती
हौंसला रख ए बंदे
उम्मीदों का बना तू बाँध
निराशा में मत अटक
भ्रम में ना भटक
वो देख उजाले की झलक
कर्मों में जगा कसक
नाउम्मीदी को ना जकड़
उजियारा दे रहा है तेरे द्वार
पर दस्तक
तेरा हौसला ही तेरे आगे बढ़ने का सबब
हौसलों ने उम्मीद के संग मिलकर
रचे हैं कई आश्रयजनक अचरज
तेरे हौसलों ने दिखाने हैं अभी कई बड़े- बड़े करतब ।

🌸🎉ख़ुशियाँ बाँटो 🎉🌺

     🌸🎉🌟🌟🌟🌟

         “अपनी ख़ुशियाँ  तो सब चाहते हैं
            परन्तु जो दूसरों। को ख़ुशी देकर ख़ुश होते हैं
          उनकी ख़ुशियाँ दिन - प्रतिदिन बढ़ती रहती हैं “
         
 गाँव में दशहरे के पर्व के उपलक्ष्य  में मेला लगा था  ।
   🌟🌟गाँव वालों में बहुत उत्साह था , मेला देखने जो जाना था , सभी अपने - अपने ढंग से तैयार होकर सज -धज कर कर मेले में जाने के लिये तैयार हो रहे थे ।
 बच्चों में भी उत्साह था , आख़िर गाँव में  कभी -कभार ही ऐसे मौक़े आते थे , की सब एक साथ मिलकर कहीं जायें।

    😊😃 वैदिक और बैभव भी मेले में घूमने जा रहे थे ,दादी का पंखा टूट गया था , दादी को अब मच्छर काटेंगे ,गर्मी भी लगेगी , वैदिक को बहुत चिंता हो रही थी .. दादी का पंखा मिल जाए मेले में वैदिक की दिली  इच्छा थी .....
   साथ में दोनो के माता -पिता भी थे , वैभव और वैदिक की माओं ने सिर पर बड़े-बड़े घूँघट ओड़ रखे थे , की अचानक आगे गड्ढा आया , और दोनो माताओं के पैर लड़खड़ाये और वो गड्ढे में जा गिरी , बच्चे ज़ोर -ज़ोर के हँसने लगे .... तभी दोनो माताओं के सिर से घूँघट हटे , और दोनो झट से उठ खड़े हुई , एक दूसरे को देखते हुए हँसने लगी , पिताजी बोले अरे भगवान अब मेले घूमने जा  रही हो घूँघट हटा दो .....,

 वैदिक और बैभव भी मस्ती में चले जा रहे थे दिल उमंग और उत्साह था ... मेले में क्या - क्या होगा ,
इतने में वैभव बोला वैदिक मैं तो सारे झूलों में झूलूँगा , और तुम वैदिक , तुम्हें तो बड़े झूलों से डर लगता है , तुम तो छोटे वाले  झूलों में ही झूलना ।  वैदिक स्वभाव से सरल और भावुक था , वह लड़ाई - झगड़े से कोसों दूर रहता था ।
जबकि वैभव चंचल स्वभाव का था , दोनों के स्वभाव बिल्कुल अलग थे । वैभव तेज़ हवा का झौंका और वैदिक शान्त , शीतल समीर .....
    🌟🌟 वैभव और वैदिक  मेले में पहुँच चुके थे , मेले में जगह - जगह खिलौनों और खाने -पीने की चीज़ों की दुकाने थी ,कभी पकोड़े , कभी जलेबी , कभी भेलपूरी , और सबसे बाद में 🍧🍨आइसक्रीम की बारी आयी , खाना - पीना तो बहुत हो गया था । अब जब तक बच्चे खिलौने ना लें तब तक सब अधूरा रहता है ।

बच्चे जाकर खिलौने की दुकान पर रुके , इधर वैदिक की नज़रें तो दादी माँ के लिये पंखा मिल जाये ,बस वही ढूँढ रही थी .....,...दशहरा का पर्व था दुकानों पर तीर -कमान ,तलवार आदि,
वैभव को  “सुनहरा तीर -कमान बहुत पसंद आ रहा था , उसने अपनी पसंद का तीर - कमान लिया कह रहा था मैं इस तीर - कमान से रावण के दस सिर काट दूँगा ... इतने में वैभव की माँ बोली अपनी छोटी बहन के लिये भी जो दादी के साथ घर पर है उसके लिये भी कुछ ले लेते हैं , वैभव की बहन के लिये गुड़िया , बाजा और खाने की चीज़ें ली गयी ।

   इधर वैदिक अपनी धुन में सरलता से दुकान दार से हर चीज़ का दाम पूछ रहा था , तभी वैदिक ने श्री राम जी की तस्वीर उठा ली और कहा भैय्या जी ये दे दो ,तभी वैदिक की नज़र आगे वाली दुकान पर पड़ी वहाँ उसे पंखा दिखायी दिया , दुकानदार को दो मिनट रुको कहकर वैदिक आगे वाली दुकान पर पंखा लेने चला गया , इतने में वैभव आया उसने दुकानदार से पूछा भाई वो लड़का जो यहाँ खड़ा था कहाँ  गया , दुकानदार ने आगे की और इशारा करते हुए कहा बच्चा है ओर कुछ पसंद आ गया होगा , तभी वैभव ने देखा वैदिक अपने हाथ में पंखा लिये आ रहा है ,वैभव बोला ये मेरा दोस्त सबको ख़ुशी देकर ख़ुश होता है .... ये देखा अपनी दादी के लिए पंखा लाया है ...
और अपनी बहन के लिये रंगों वाली पेन्सल और कापी ली वैदिक ने  , और अपनी दादी के लिये हाथ से चलाने वाला पंखा ......
संध्या का समय हो चला था सब अपने घर की और लौट रहे थे ... रास्ते में चलते-चलते वैभव , वैदिक से बोला , तुमने अपने खेलने के लिये तो कुछ लिया नहीं , वैदिक बोला , खेलने के लिये जब मैं अपनी बहन को ये रंगो वाली पेन्सल और कॉपी दूँगा तो वो इससे सुन्दर -सुन्दर चित्र बनायेगी , मैं वो देखकर ख़ुश हो जाऊँगा ,और मेरी दादी जब बाहर बरामदे में बैठती है ,तब उन्हें गर्मी लगती है , और उन्हें मच्छर भी काटते हैं ,अब पंखे से गर्मी और मच्छर दोनो भाग जायेंगे ,और राम जी हमारे सारे दुःख दूर कर देंगे .....

















“  ये धरती अपनी है , नीला आसमान भी अपना है “
  खेलने को खुला मैदान है ,आओ मित्रों खेल खेलें
  हम बन्द कमरों में नहीं रहते , हमारे खेल बड़े-बड़े हैं
  हमें रहने को खुला मैदान चाहिए , सपने देखने को
  चाँद , सितारों का जहाँ चाहिये ।

😊भीड़ 🌟

       
        😊भीड़ 🌟

     “भीड़ बहुत भीड़ है ,
       मैं जानता हूँ ,मैं भी
       भीड़ का ही हिस्सा हूँ
       पर मैं चाहता हूँ ,
       मैं भीड़ ,में रहूँ
       पर भीड़ मुझमें ना रहे
      भीड़ में “मैं” अपनी अलग
      पहचान बनाना चाहता हूँ ।
     भीड़ में अजनबी , अकेला बनकर
     रहना मुझे मंज़ूर नहीं ......
     मैं भीड़ संग भीड़ को अपनी पहचान बनाना चाहता हूँ
     मैं भीड़ में एक सितारा बनकर चमकना चाहता हूँ “
     
     
     

🙏🌺श्री गणेश प्रियं भक्त हृदयेश विशेष 🌺🌺🎉🎉


   🙏🙏💐💐“गणेश चतुर्थी”का  पुण्य दिन था , सभी एक दूसरे को शुभकामनायें दे रहे थे ।
    शहर में जगह - जगह पंडाल सज गये थे , “विघ्न हरण ,मंगल करन , गजानन , लम्बोदर ,
     विनायक , गणेश महाराज की मूर्ति स्थापना की सुन्दर बेला , गणेश जी के भजनों से सारा परिवेश भक्तिमय हो रहा      था , सबके दिलों  में हर्षोल्लास की उमंग नज़र आ रही थी ,
गणेश जी की सुन्दर से सुन्दर विशालतम सुसज्जित प्रतिमाओं की स्थापना के वो पल ,
दिन , मन में बस सिद्धि विनायक गणेश जी का ही ध्यान , गणेश जी का श्रिंगार , सेवा , मोदक,प्रसाद , फल, फूल आदि

😊🙏🎉इस बार मेरा बेटा भी जिद्द पर अड़ गया कि वो भी इस “गणेश चथुर्ती”पर  गणेश जी को अपने घर लायेगा । मैं भी हर बार यही कह कर उसे समझाती बेटा “भगवान गणेश जी “तो हमेशा से हमारे साथ है  ।उनकी प्रतिमा भी है हमारे मंदिर में हमारे गणेश जी हमेशा हमारे घर पर ही रहते हैं ।
कहने लगा माँ तुम हर बार कहती हो अगले साल लायेंगे , तुम थोड़े और बड़े हो जाओ , माँ अब इस बार तो गणेश जी घर में आकर रहेंगे , मैं उनकी सेवा करूँगा , मोदक खिलाऊँगा , भोग लगाउँगा भोजन कराऊँगा , भजन गाऊँगा भी , आप देखना माँ मैं बहुत बड़ा भक्त हूँ ...अपने गणेशा का ....🌹🌹🌹🌹🌺🌺
🌸🌸 “गणेश चतुर्थी “ का शुभ अवसर , मेरा बेटा , जिसका नाम विनायक , अपने दोस्तों ,और परिवार संग बड़ी धूम - धाम से लेकर आया सिद्धि विनायक को घर ...गणेश जी प्रतिमा को विधिवत स्थापित किया गया , आरती ,  धूप ,दीप, 🌸🌺💐🌹💐फल ,फूल हर सामग्री जो पूजा विधि विधान के लिये चाहिये होती विनायक पूरी करता , संध्या आरती में तो ख़ूब धूम होती , सभी मित्र , पड़ोसी , आदि मीठे सुरीले भजनों से श्री गणेश जी को ख़ुश करते ।

       🎉⭐️🌟🌟🌸 उत्सव का माहौल था उन दिनों ... जिस तरह हमारे घर कोई हमारा सबसे प्यारा अथिति आता  है और हम ख़ुशी -ख़ुशी उसकी सेवा में व्यस्त हो जाते हैं , मेहमान की पसन्द के व्यंजन बनाना , मेहमान को कोई तकलीफ़ ना होने देना , हँसना , खेलना गीत , संगीत जिससे किसी का मनोरंजन हो वही करना बहुत ही हर्षोल्लास पूर्ण माहौल होता है ...

     💐💐 पर कहते हैं ना .... अथिति को एक दिन जाना होता है , तभी तो वो अथिति  होते हैं  ... दस दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला , अब “गणेश विसर्जन “ का दिन आ गया ... ऐसा लग रहा था मानो घर से कोई हम से हमारा सब कुछ छिन रहा हो ,दिल बहुत उदास हो रहा था ,आख़िर गणेश जी विसर्जन की तैयारी पूरी हुई , नदी किनारे गणेश जी की मूर्ति को लाया गया , मेरा बेटा विनायक तो दहाड़े मार के रोने लगा .. कहने लगा माँ मैं नहीं विसर्जित कर पाऊँगा अपने गणेश जी को .. अगर गणेश जी को विसर्जित करोगे तो ... मैं भी विसर्जित होने जाऊँगा उनके साथ ,किसने बनायीं ये रीत
आज से एक नयी रीत शुरू करते है मैं भी विसर्जित हो जाता हूँ गणेश जी के साथ अगले साल मेरी भी मूर्ति बना कर मेरी भी पूजा करना ...
      गणेश विसर्जन का दिन था नदी किनारे बहुत से ऐसे लोग थे जो गणेश विसर्जन  कर रहे थे बड़ा ही , भक्तिमय ,भाव विभोर कर देने वाला था  वो दृश्य .... विनायक की आँखों से अश्रु नहीं रूक रहे थे , विनायक ने गणेश जी का विसर्जन करने के लिये अपने क़दम आगे बड़ाये और स्वयं को भी नदी के जल में बहने के लिये ढीला छोड़ दिया , तभी साथ खड़े लोगों को समझ आया की अरे ये तो विनायक भी जल संग आगे की ओर बह रहा है , सब चिल्लाये अरे इस लड़के को पकड़ो , तब दो लोंगो ने जल्दी से आगे बड़कर विनायक को जल से बाहर निकला , विनायक कह रहा था  क्यों निकाला मुझे जल से बह जाने दिया होता गणेशा संग , अगले साल  मेरी प्रतिमा बनाते पूजा करते फिर जल में बहा देते , और फिर सालों -साल यही परम्परा चलाते रहते , नदियों का जल प्रदूषित होता रहता। तो क्या , बस अंधी श्रद्धा है ...सब लोग विनायक के दर्द को समझ रहे थे  पर क्या करते चुप थे ।
     वहीं नदी किनारे एक वृद्ध बैठा हुआ सब दृश्य देख रहा था , उससे रहा नहीं गया , और विनायक और उसके मित्रों आदि के पास आकर बोला यूँ तो यहाँ हर दिन परम्पराओं के नाम पर बहुत कुछ होता है , और मैं चुप-चाप देखता रहता हूँ , कौन किस की सुनता है यहाँ ... पर इस बच्चे की भावना देख कर मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ , तुम जानते हो इस पीछे का कारण ...

🌺🌸लेखक केशव कुमार और पुष्प वाटिका 🌺💐🌹


🌺🌹🌺💐😊
       प्रकृति प्रेमी , घण्टों दरिया किनारे बैठना , आती - जाती लहरों से मानों बातें करना , कभी किसी पहाड़ की चोटी पर     चढ़ जाना , ऊँचाइयों से अपनी धरती माँ को निहारना ........वृक्षों और वनस्पतियों तो मानो , लेखक केशव कुमार की प्रेरणा थे ,उनका तो कहना था की भगवान अगले जन्म में उन्हें वृक्ष बनायें , क्योंकि वृक्ष हर हाल में उपयोगी होता है , कभी
छांव बनता है ,फल देकर किसी की भी भूख मिटाता है , प्राणवायु देता है वृक्ष , उसकी लकड़ी भी उपयोगी होती है , मानो वृक्ष पूर्ण रूपेण उपयोगी व समर्पित होते हैं

    हर दिन की तरह केशव कुमार ,आज भी अपने शहर की मशहूर पुष्पों की दुकान जिसका नाम “पुष्प वाटिका “था , जाकर रूक गये और , रंग-बिरंगे खिले - खिले पुष्पों को निहारने लगे ।  हर दिन की तरह उस फूलों की दुकान पर काम करने वाले एक लड़के ने आकर केशव कुमार को बैठने के लिये एक कुर्सी आगे बड़ा दी , केशव कुमार मुस्कुराते हुए उस लड़के “लम्बू “से से बोले तु अपना काम कभी नहीं भूलता जा दुकान पर , भाई जी का हाथ बँटा ,
वरना वो तुझे ग़ुस्सा करेंगे , हाँ बाबूजी आप सही कहते हैं , मैं जाता हूँ  , तभी एक ग्राहक आया , उसने सभी पुष्पों के दाम पूछे , और आगे बड़ गया , तभी दुकान मालिक ने अपने यहाँ काम करने वाले लड़के लम्बू को आवाज़ दी ,और बोले तेरे से एक भी ग्राहक तो पटता नहीं , बस बातें करा लो इधर- उधर की , लम्बू क्या करता वो तो मालिक का ग़ुलाम था ,उसे तो कड़वी बातें सुनने की आदत हो गयी थी ।
    अरे ओ “लम्बू” अन्दर आ , नाम का ही लम्बू है , बस ...अक़्ल छोटी रह गयी तेरी .....
 केशव बाबू बाहर बैठे सोच रहे थे , काम तो पुष्पों का ज़ुबान  में कड़वाहट भरी है ....कैसे बिकेंगे पुष्प इसके .....
 केशव बाबू थे प्रकृति प्रेमी , शिमला की हसीन वादियों में उन्हें स्वर्ग से नजारों का आनन्द आता था ,
प्रकृति को निहारना , पक्षियों संग उड़ने के सपने देखना , उनकी बोली समझने के कोशिश करना , उन्हें बहुत सुहाता था वृक्षों की लताएँ , उन पर फल, फूल , इत्यादि , पर्वत शृंखलायें, झरने ,झील , प्रकृति की सारी कारीगरी मानों  उन्हें हर पल प्रेरित करती रहती थी ,  और उनकी भावनायें कविता , कहानी, आदि का रूप ले लेती थीं , और उनमे छिपी लेखक प्रथिभा का प्रकट करती थी ।
 
     इतने में उस पुष्प वाटिका में एक ग्राहक आया , सामने केशव कुमार बैठे थे , उन्हें दुकानदार समझ वो ग्राहक पुष्पों के दाम पूछने लगा , केशव कुमार लगभग हर रोजही वहाँ बैठा करते थे तो , उन्हें लगभग सभी के दामों का अंदाज़ा रहता था , उन्होंने दाम बता दिया , ग्राहक ने रुपये निकाले केशव कुमार को पकड़ाये और अपने पुष्प लिये और चलता बना ,
इतने में दुकानदार की नज़र केशव कुमार पर पड़ी , केशव कुमार ने रुपये आगे बड़ाते हुए कहाँ लो तुम्हारे रूपय
तुम कहते हो मैं किसी काम का नहीं , देखो मैंने तुम्हारे पुष्प बिका दिये ... दुकानदार ख़ुश होते हुए .. पता है तुमने मेरे दस रुपये का नुक़सान कर दिया , नुक़सान वो कैसे पता है ,आज ये फूल महँगा आया है , चलो कुछ तो किया तुमने केशव कुमार , आगे से किसी ग्राहक को पुष्प देते समय दाम पूछ लिया करो...,,,
 
    इतने में पुष्प वाटिका दुकान का मालिक , केशव कुमार के पास आकार बैठ गया , केशव कुमार के काँधे पर हाथ रखते हुए बोला चलो आज तुमको चाय पिलाता हूँ , चल लम्बू दो चाय लेकर आजा ,और तू वहीं पी आना चाय .....
केशव कुमार तो हमेशा पुष्प वाटिका के पुष्पों को ही निहारता रहता था , दुकान मालिक भी हमेशा की तरह आज भी केशव कुमार को टोकने लगा , बोला तुम तो मेरे पुष्पों को नज़र लगा कर रहोगे ,
केशव कुमार बोला अरे भाई मैं क्या नज़र लगाऊँगा तुम्हारे पुष्पों को ....
चलो तुम्हें पुष्पों पर कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ ।
   🌺🌺🌹🌹🌸🌸💐💐
“ मैं पुष्प हूँ “
 मैं जो खिलता हूँ ,
घर आँगन की शोभा बड़ाता हूँ
सारा आँगन महकाता हूँ ,
मेरी सुगन्ध समीर संग सारे वायुमंडल
को महकाती है , ख़ुशी हो या ग़म
मैं हर जगह काम आता हूँ , “मैं पुष्प “
अपने छोटे से जीवन को सार्थक कर जाता हूँ ।
बहुत अच्छी पंक्ति लेखक जी .... आपको और कोई काम है या नहीं तुम्हारे घर का ख़र्चा कैसे चलता है , केशव कुमार बोले , अरे तुम्हें तो पता है मेरी प्रिंटिंग प्रेस है , घर ख़र्च तो उसी से चल जाता है ।
परन्तु तुम तो जानते हो मुझे लिखने का शौंक है , मेरी एक किताब छप चुकी है दूसरी आने वाली है ।
इतने में चाय आ गयी , दोनो ने चाय पी ।

“🌺🎉पुष्प वाटिका के मालिक के मन में एक बात खटक रही थी ,बोला ये जो तुम अपना दिमाग़ लिखने में लगाते हो यही दिमाग़ किसी और काम में लगाओ तो जानते हो केशव कुमार ..तुम आसमान की ऊँचाइयाँ छू सकते हो ..... केशव कुमार  बोला भाई मैं जानता हूँ, तुम्हें क्या पता मैं आज भी आसमान की ऊँचाइयाँ ही छू रहा हूँ ।
पुष्प वाटिका वाला बोला तुम लेखकों से बातें करा लो बड़ी - बड़ी  “जेब में कोड़ी नहीं , चले विश्व भ्रमण पर”..........
केशव कुमार बोले , तुम लोगों को लेखकों के बारे में अपनी सोच बदलनी होगी .......


“जैसे तुम्हारी पुष्प वाटिका है , तुम सुन्दर -सुन्दर रंग -बिरंगे पुष्पों का कारोबार करते हो और उन पुष्पों से सुन्दर साज सज्जा कीजाती है ।       “वैसे ही हम लेखक ,विचारक ,कवि आदि , इस दुनियाँ को इस समाज को अपने सुन्दर विचारों से सजाने की इच्छा रखते हैं ,कुछ मनमोहक , प्रेरक और ज्ञानवर्धक लिखकर समाज को सुन्दर सभ्य ,विचारों से सजाना चाहते है और सजाते भी हैं ।
एक सच्चा लेखक , सुन्दर , सभ्य ,समाज  की कल्पना करता है , वहीं समाज को वर्तमान परिवेश का आइना भी दिखाता है , सही मायने में वो एक लेखक एक समाजसुधरक क़लम सिपाही होता  है ।
🌺🎉🌺🎉🌹🙏💐🌹🙏💐








दे

एर

“ मेरे मीठे सपने “

⭐️⭐️ “वो जो मेरे अपने थे ,
  “  मेरे सपने थे “⭐️⭐️
 वो जो मेरे सबसे अज़ीज़ थे
 कब से छुपा के रखा थे
दुनियाँ की नज़रों से
पलकों के दरवाज़ों में बंद करके ।
आज आँखो से छलक पड़े अश्रु बनकर
देख दुनिया का व्यभिचार , आतंकवाद का
घिनौना तांडव ...
मेरे सपने रुदन करने लगे
दर्द में कराहते हुए , कहने लगे
बस - बस करो ,
हमारे पूजनीय , गौतम , राम , रहीम , कबीर ,
विवेकानंद आदि महान विभूतियों ... की धरती पर
ये अहिंसक व्यवहार ....
मुझमें तो सिंचित थे , भारत भूमि के
महान विभूतियों ,दधिचि  ,ध्रुव ,
एकलव्य आदि के चरिथार्थ
मैं हूँ अपने पूर्वजों की , कृतार्थ

⭐️🌸“यूँ तो मेरे सपनों की किताब खुली थी
फिर भी दुनियाँ की नज़रें ना उन पर पड़ी थी ।
“मेरे सपनों का ज़हाँ बहुत ही  हसीन है 🌺🌺
सन्तुष्टता के धन से सब परिपूर्ण हैं
धर्म सबसे बड़ा इंसानियत है
भेदभाव की ना कोई जगह है
सभी सुसंस्कृत , सभ्य आचरण वाले ,
कभी किसी का दिल ना दुखाने वाले
सब सबके प्रिय , मुस्कुराते चेहरों वाले
ख़ुशियों के सौदागर
एक दूजे की त्रुटीयो को माफ़ करने वाले
सबको इंसानियत की राह दिखाने वाले
हिंसा और वैर ,विरोध की झड़ियाँ काटने वाले
अप्नत्व की फ़सल उगाने वाले
सतयुगी दुनियाँ की चाह रखने वाले
धरती पर स्वर्ग की दुनियाँ बसाने वाले हैं ।


“ चैन की तलाश “

        “  चैन की तलाश “

ज़िन्दगी भर भटकता रहा , चैन की तलाश में
ठहराव की चाह में , कुछ पल का चैन ,
फिर बैचेनी , ख़ुशियाँ अनगिनत ,
पर सब एक -एक कर
यादों के बक्से में बंद
कहने को सब कुछ
उसी पल का
सब नश्वर
ऐसी ज़िन्दगी
सिर्फ़ भटकाव
क्या करूँ ?
कहाँ से लाऊँ
शाश्वत सुख
कभी ना ख़त्म
होने वाला चैन
“मैं बेचैन “
तभी एक राह दिखायी दी
एक आवाज सुनायी दी
मेरा कनेक्शन परमात्मा से जुड़ा
वहाँ तो शान्ति का सागर था
अभी तो शुरुआत थी मेरी आत्मा
को असीम शान्ति का अनुभव होने लगा
अब वहाँ से आने को मन ना करा
अचानक मानो परमात्मा ने सन्देश दिया
जा औरों को भी ये राह दिखा
वो शान्ति का सागर है , दया का भण्डारहै
वहीं से तु आया है , वहीं से तुझको सब कुछ मिलेगा
तु दुनियाँ में ना भटक इस तरह
बस दुनियाँ  में जी इस तरह
तू बन जाये सबके मुस्कुराने की वजह ......  
भगवान ने दो हाथ दिये हैं , किसी के आगे फैलाते नहीं , मेहनत करते हैं गंगा किनारे बैठ फूल बेचते है , ना शिकवा करते हैं ना शिकायत ,बस दो वक़्त की रोटी के लिये दिन भर जुगाड़ करते रहते हैं ,गंगे माता का आशीर्वाद बना रहे , यूँ ही ज़िन्दगी कट जाये , बच्चे पड़ लें कुछ बन जाये बस बहुत है ....

🌺🌼🌸मेरा मीत 🌸🌸🌺🌺

 🌹🌹🌻🌻🌼🌸💐💐🌸🌸
🌺🌺“मेरा मीत , मेरा गीत ,
मेरे जीवन का संगीत
मेरे मन का मीत ,
तुम से ही मेरे जीवन का गीत
सात सुरों की सरगम मेरा मीत
मीठी धुन में जब बजता है कोई 🎼🎼
गीत , चेहरे की मुस्कराहट में दिखता है मेरा मीत “🌸🌺

🌻🌹🌸🎉🌹“प्रकृति की सुन्दरता में भी मेरा मीत
🌻🌻🌺🌺ख़ूबसूरत बहुत ख़ूबसूरत है मेरा मीत
गुलाब , चम्पा , चमेली ,कमल ...
हवाओं में ख़ुशबुओं  की तरह है 🌈
मेरा मीत .......🌟🌟✨
मेरे सुर , मेरे संगीत ,तुम मेरे
संग -संग रहना .....
मैं जाऊँगी जग जीत .....”⚡️✨🌟🌟⭐️





🌧 “मेघों ने मल्हार जब गाया”⛈

⛈⛈⛈⛈⛈⛈⛈⛈⛈⛈
 “तड़फत दिन -रैन
       बैरी मन”
  कैसी लगन लगा बैठा ये दिल
  भी बेचैन...
  हारी मैं समझा -समझा ,पर
  प्रियतम के विरह में
  बरसते दिन -रात नयन💦💦
  कहीं ना लगता मन
  पागल मन
  पलकें भी ना झपकाते नयन “
  कहीं से आ जाये उसका सजन...
  राह निहारे पल -पल नयन ...

 “ मैं द्वार पर थी खड़ी
   अचानक ,लगी सावन की झड़ी थी🌧🌧🌧🌧🌧
   आँखों में नमी थी💦💦
   दिल में कसक थी
   आकाश ने काली घटाओं की    🌫🌫
   चादर ओढ़ी थी ,
   मेघों ने मल्हार जब गाया  🌨☔️
  “ जी भर आया ....दिल का दर्द
   नयनों से बाहर आया
  आकाश भी रोया , जी भर के रोया “🌧⛈🌩🌨
   वर्षा की बौछारों में ,
   मैंने भी भिगोये , जी भर नयन
   अब दिल का बोझ हल्का हुआ
   आत्मा का आत्मा से मिलन हुआ
   बिन देखे , बिन बोले मेरा तो मिलन हुआ
   मेघों ने मल्हार जब - जब गाया   ⛈💨🎼🎼🎤🎤
   मैंने भी अपना सुर उसके सुर में मिलाया .........🌧🌨🎼🎼🌬🌩☔️☔️🎤🎤

   
 
 
 





  

🤩आँखे सच बोलती हैं 🤩

      “ आँखें ही तो हैं , जो सुन्दरता को
       पढ़ती हैं , सुन्दर - सुन्दर विचारों को
       गढ़ती हैं “
        “कवि, लेखकों की आँखें
       प्रकृति की सुन्दरता को निहारती हैं
       मन मंदिर में पनपते सुन्दर विचारों को
       सुन्दर ,प्रेरक कहानियों
       कविताओं के रूप में रचती हैं “
     
      “ आँखे बोलती नहीं
        फिर भी बहुत कुछ कहती हैं “
   
     
      “आँखें इंसान को प्राप्त
        नायाब  तोहफ़ा हैं “

     “  मैंने अपनी दोनो आँखो को
       ख़ूबसूरत देखने की आदत डाली है “

     “  लोग कहते हैं आँखे सिर्फ़ देखती है
       मैं तो कहूँगी “आँखे “पड़ती भी हैं
       आँखे ना होती तो सुन्दरता भी ना होती
       प्रकृति की सुन्दरता को निहार सुन्दर-सुन्दर
       विचार गढ़ती हैं आँखे “
     “आँखों की भी भाषा होती है ,
       आँखे बोलती हैं , कोई पढ़ने
       वाला होना चाहिये “
       आँखे सिर्फ़ देखती ही नहीं , बोलती भी है
       बस कोई आँखों की भाषा समझने वाला होना चाहिये ।

       “आप जानते हैं आँखे क्या -क्या करती हैं
       आँखें देखती हैं ,  आँखें बोलती हैं , आँखे पढ़तीं हैं ,
       आँखे रोती हैं , आँखे हँसती हैं ,आँखे डराती भी हैं
       आँखे सपने भी दिखाती हैं ........
       वास्तव में आँखे ना होती तो , मनुष्य जीवन बेरंग होता
       ख़ूबसूरत ना होता “
     

     
       

“माँ का आँचल “


“ शोर -शोर बहुत शोर था
मैं सुकून की तलाश में कहीं दूर निकल
आया था “
मैं खवाहिशों से भरमाया था
बस अब और नहीं..........
“अब अकेला बहुत अकेला था
दुनियाँ का ख़ूब झमेला था
दुनिया तो बस मेला था
मेले में हर श्क्स अकेला था “

“मैं रोया बहुत ही रोया था
उसका आँचल पकड़ मैं
जी भर सोया था ,
वो मेरी माँ का आँचल था ,
जिसमें सुकून मैंने पाया था
दुनिया का हर ग़म भुलाया था “


☔️⛈“सावन के झूले “⛈☘️🌿

   🌧🎡“सावन के झूले पड़े थे 
    मन्त्रमुग्ध सब झूल रहे थे 
   वसुन्धरा से अम्बर की ओर पींगे भर रहे थे “
   तभी .......
“अम्बर ने “वसुन्धरा”को जब निहारा 🌎
🌧मेघों से घिर गया अम्बर सारा “
मेघों ने सुन्दर - सुन्दर आकृतियाँ बनायीं ☁️⛈
जो सबके मन को लुभायीं “
बिजली भी चमकी .....
फिर छम के बरसा छम -छम के बरसा 
🌧⛈अम्बर से मेघों का बन ,वर्षा का जल सारा 
वसुन्धरा  भी प्यासी तृप्त हुईं 
हरी-भरी धरती प्रफुल्लित हुई ,
कोयल ने भी सुमधुर संगीत सुनाया 
मयूर ने भी नृत्य से मन लुभाया ।

वृक्षों की डालियों ने बाँहें फैलायी 🌴
प्रकृति ने आवाज लगायीं 
सावन की रिमझिम वर्षा है आयीं ☔️
चलो सखियों झूलन की ऋतु है आयी 
सुख -समृद्धि और सम्पन्नता का संदेशा लायी ।🎄🌴🍃🍀
धरा ने अम्बर कीओर निहारा 
और कहा तुमने तो भिगो दिया 
मेरा आँचल सारा,सुखी पड़ी धरती
को तुमने तृप्त किया ।
तुमसे ही मेरा जीवन समृद्ध हुआ 
सम्भव नहीं है , तुम बिन जीवन हमारा 
जबकि तु एक किनारा मैं एक किनारा 
हमसे ही तो सृष्टि का अस्तित्व सारा ।☔️☔️🌧







“काग़ज़ की कश्ती “

🎉” अच्छा हुआ कोई दिल की 🎉”
सुनने वाला नहीं मिला
जो दिल में आया वो
काग़ज़ पर लिख दिया
जो लिख दिया तो,सबने
पढ़ लिया “

“ सबने कहाँ तुमने तो हमारे दिल
का हाल लिख दिया
मैंने तो अपने दिल का हाल लिखा था
सबके दिल का फसाना
आशिके तराना एक ही सा था .....
सबका सवाल एक ही था ......
विचारों का तूफ़ान भी एक ही था ....
फिर सबने मिल बैठ कर अपने दिल का .....
बोझ हल्का कर लिया “🎉🎉🎉

“काग़ज़ की कश्ती बनायीं
स्याही में क़लम डुबाई
दिल की बात शब्दों के
माध्यम से विचारों में परिवर्तित
हो आख़िर दिल से बाहर आयी
सभी उस कश्ती में सवार थे जो थी
मैंने बनायीं “


“आध्यातम और वास्तविकता “

                          “ भक्ति श्रद्धा है , आस्था है ,शुभ भावनायें हैं “
                             भक्ति को अन्धी दौड़ ना बनाये ,परमात्मा तो सर्वत्र है”

 🎉🎉🎉🎉🎉 भारतीय संस्कृति ,विभिन्न रंगों में रंगी ,अद्भुत ,अतुलनीय है ।
                            इन्द्र्ध्नुष के रंगो में रंगा ,विभिन्न संस्कृतियाँ भिन्न -भिन्न रूप -रंगो से रंगे प्रत्येक प्रान्त की अपनी एक अलग पहचान है ।
 विभिन्न रूप हैं ,भाषायें अनेक हैं , फिर भी “हम भारतीय एक हैं “
वास्तव में भारत में हर एक प्रान्त अपना जीवन जीता है ,अपने -अपने प्रान्त की अतुलनिय ,अद्भुत छ्टा लिए हर प्रान्त इन्द्रधनुष के रंगो की भाँति भारत में सतरंगी छ्टा बिखेरता है ।
भारतवर्ष प्राचीन काल से ही ,भक्ति प्रधान देश रहा है ।
आस्था उस “परमसत्ता परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण , विश्वास ...,

 हमारी भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से आध्यात्मिक रहस्यों से प्रेरित है ,और इसका प्रमाण हमारे प्राचीन वेद ,ग्रन्थ,पुराण इत्यादि हैं । आध्यात्मिकता के कई गूढ़ रहस्यों को हमारे आध्यात्मिक  गुरुओं ने अपनी तपस्या के प्रताप से जाना है । आध्यात्मिकता के क्षेत्र में आज भी भारतवर्ष को विश्वगुरु का ही स्थान प्राप्त है ।

जैसा कि सब जानते हैं कि भारत धर्म निरपेक्ष देश है , हमारा भारत देश विभिन्न रंगो में सिमटा विभिन्न धर्मों में में रंगा हुआ है । “ धर्म चाहे अनेक हैं , तरीक़े भी भिन्न -भिन्न है ,हमारे ईष्ट देवी -देवता हम भारतियों की आस्था भिन्न -भिन्न प्रान्तों का पूजा ,उपासना करने का तरीक़ा भी भिन्न -भिन्न है ,परंतु मंज़िल सबकी एक है ,उस परम सत्ता से एकीकार होना ।

“कोई भी पूजा -पाठ ,व्रत, नियम इत्यादि किसी भी देश की परिस्थिति ,समय , वातावरण के अनुरूप बने होंगे “
परन्तु हम भारतीय ठहरे भोले भक्त जैसा कि आज कल सावन का महीना चल रहा है शिव भोले बाबा को प्रसन्न करने का महीना , कहते है सावन के मास में जो भगवान  शिव की पूजा -अर्चना रुद्राभिषेक ,व्रत नियम इत्यादि करता है उसके सब मनोरथ पूरे होते हैं ,वो मोक्ष का भी अधिकारी होता है ।
बहुत उत्तम परमात्मा से जुड़ना अच्छी बात है ,जैसा कि मान्यता है कि शिव बाबा को जल ,दधि,दुग्ध भेलपत्र ,पुष्प आदि से अभिषेक कराने वाला पुण्य का भागी बनता है  ।  और  हम तो ठहरे भोले भक्त भगवान को प्रसन्न करना है ,बिना विचार किए हम भोले भक्त शिव लिंग पर जल व दुग्ध चड़ाए जाते हैं , आप जानते हैं जो आप भगवान शिव को अर्पित कर रहे हैं वो ,क्या भगवान शिव स्वयं ग्रहण कर रहे है ?
नहीं ना फिर ये अंध श्रद्धा क्यों ?
भगवान तो सिर्फ़ भाव के भूखे हैं , वो हमारे पूजनीय हमारे माता -पिता हैं , उन्हें हमसे क्या चाहिये सिर्फ़ आदर ,प्रेमपूर्ण व्यवहार ,वो ही तो हमें सब दे रहे हैं ,जो वस्तुएँ अर्पण करके हम उन्हें ख़ुश करना चाहते हैं उन वस्तुओं के अन्नत भण्डार उनके पास भरे पड़े हैं वो दाता हैं ......वृक्ष अपने फल कभी नहीं खाता ,नादिया अपना नीर कभी नहीं पीती ,क्योंकि ये इनका स्वभाव है इन्हें इसी में संतोष है ..... बस अपनी प्राकृतिक सम्पदा का संरक्षण कीजिये उनका सही और यथयोग्य उपयोग कीजिये
चलिये मान लेते है की आपको कोई चीज़ बहुत प्रिय है , चलिये दुग्ध और फल ही सही ,
किसी को पता चला कि आपको दुग्ध और मीठा खिलाने से किसी एक को कोई लाभ हो गया ,चलो अच्छी बात है ।
अब किसी दूसरे को यह पता चला वो भी आपको प्रसन्न करने के लिये दुग्ध और मीठा ले आया  एक बार फिर आ गया परन्तु अब तो यह सिलसिला बहुत बड़ा रूप ले चुका है ,माना कि ये आपको पसन्द है परन्तु इतने अधिक मात्रा में ...

अब तो आपको इन सब चीजों से ऊब होने लगेगी .....

 ज़रा सोचिये .......
अरे ज़रा सोचिये .........तो सही शिवरात्रि का पर्व हो  या सावन का महीना दे धड़ा -धड़ अभिषेकआख़िर कितना जल ग्रहण करेंगे शिवजी .. बेचारे शिवजी ....पर्याप्त मात्रा में अभिषेक करके भेल पुष्प इत्यादि भगवान को समर्पित करें ....,.
किसी ग़रीब बच्चे को दूध पिलाये , फल खिलायें , पर्याप्त मात्रा में भोजन कराएँ ...यक़ीन मानिये भगवान भोले बाबा बहुत प्रसन्न होंगे और किसी ग़रीब की दुआयें आपका जीवन सार्थक कर देंगी ।
परमात्मा को प्रसन्न करना मतलब कभी किसी का बुरा नहीं सोचना , जो काम करो किसी की भलायी के लिये करो ।
जीते जी यह जीवन किसी के काम आ जाये ,धरती पर जीवन सार्थक हो जायेगा ।
आध्यात्मिकता का तात्पर्य है ,आत्मा का परमात्मा शिव ,से एकीकार होना ।
प्यार से आप अपने भगवान को जिस भी नाम से पुकारोगे वो ,तुम्हारी पुकार अवश्य सुनेगा जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चे की तोतली भाषा भी समझती है ।



“एक आवाज़”

  “जब से मैंने अन्तरात्मा की आवाज सुनी 
  उसके बाद ज़माने में किसी की नहीं सुनी “

“सभ्य, सुसंस्कृत -संस्कारों”से रहित 
  ज़िन्दगी कुछ भी नहीं —-“सभ्य संस्कारों “
  के बीज जब पड़ते हैं , तभी जीवन में नये-नये 
  इतिहास रचे जाते हैं ।

“आगे बहुत आगे निकल आया हूँ “मैं”
ज़िन्दगी के सफ़र में चलते-चलते “

“डरा-सहमा ,घबराराया ,
थका -हारा ,निराश 
सब कोशिशें, बेकार 
मैं असाहाय ,बस अब 
और नहीं , अंत अब निश्चित था 
जीवन के कई पल ऐसे गुज़रें “
“ज़िन्दगी की जंग इतनी भी आसान ना थी 
जब तक मैंने अन्तरात्मा की आवाज़ ना सुनी थी 
         “तब तक “
जब से अन्तरात्मा की आवाज़ सुनी 
उसके बाद ज़माने में किसी की नहीं सुनी “

“कर्मों में जिनके शाश्वत की मशाल हो 
उस पर परमात्मा भी निहाल हो “
“नयी मंज़िल है ,नया कारवाँ है 
नये ज़माने की , सुसंस्कृत तस्वीर 
बनाने को ,’नया भव्य , सुसंस्कृत 
खुला आसमान है “
                       
“एक आवाज़ जो मुझे हर -पल
दस्तक देती रहती है , कहती है
जा दुनियाँ को सुन्दर विचारों के
सपनों से सजा , पर ध्यान रखना
कभी किसी का दिल ना दुखे
संभल कर ज़रा .......
सँभल कर ज़रा..,.,



“ बहारें तो आज भी आती हैं “

    रौनक़ें बहार तो हमारे आँगन
    की भी कम ना थीं , चर्चा में तो हम
     हमेशा से रहते थे
   “बहारें तो आज भी आती हैं
    वृक्षों की डालों पर पड़ जाते है झूले ,
    झूलों पर बैठ सखियाँ हँसी -ख़ुशी के
    गीत जब गाती हैं , लतायें भी अँगड़ायी
    लेकर इतराती हैं
 
“  आँगन भी है ,
  क्यारियाँ भी हैं
 हरियाली की भी ख़ूब बहार है
 पर मेरे आँगन के पुष्पों ने
 अपनी -अपनी अलग -अलग
 क्यारियाँ बना ली हैं
 वो जो पुष्प मेरे आँगन की रौनक़ थे
 वो आज किसी और आँगन की शोभा
 बड़ा रहे हैं , अपनी महक से सबको लुभा रहे हैं

 कभी -कभी उदास बहुत उदास हो जाता हूँ
 पर फिर जब दूर से मुस्कुराते देखता हूँ
 अपने पुष्पों को तो ,ख़ुश हो जाता हूँ
 आख़िर उनकी भी तो चाह है
अपनी दुनियाँ बसाने की
ख़्वाब सजाने की
चलो उन्हें भी तो अपनी दुनियाँ बसाने का हक़ दो
दूर से ही सही ,
अपने पुष्पों को मुस्करता देख
मीठे दर्द की दवा ढूँढ लेता हूँ
जीने की वजह ढूँढ लेता हूँ ।



 
 
    

🎉🎉“निशान “🎉🎉

  “ आऊँगा बहुत याद आऊँगा
   सफ़र में कुचैले निशान छोड़ जाऊँगा “
   सफ़र हो तो ऐसा ,
   राह भी अपनी है,
   मंज़िल भी अपनी
  कारवाँ की तलाश भी अपनी
  तलाश में चाह भी अपनी
  आह भी अपनी .....
  वाह भी अपनी ........
  जब बहारों के जश्न भी अपने
  तो पतझड़ और तूफ़ान भी अपने
  जज़्बातों के हालात भी अपने
  सफ़र भी अपना ।।
“  सफ़र करते -करते मुसाफ़िर हूँ
 भूल गया हूँ , अपने कारवाँ में
 घुल - मिल गया हूँ
 बेशक ये सफ़र है
 मैं मुसाफ़िर हूँ जाने से पहले
अपने निशान छोड़ जाऊँगा
आऊँगा बहुत याद आऊँगा
सफ़र में कूछ ऐसे निशान छोड़ जाऊँगा ।।

 

      

✍️“प्रयास”✍️

  🎉🎉🎉🎉✍️✍️
                               नियमाते ज़िन्दगी में लुटाता है ,वो हर पल
                               ए मानव तुम सही राह तो चलो ,
                               रास्ते मुश्किल ही सही ,
                               मंज़िल पर पहुँचाता है वो ही
                               वो हमारे हर प्रयास में
                               हमारे विश्वास में है
                              हर मुश्किल हालात में है
                              मंज़िल दूर सही ,पर नामुमकिन
                              कुछ भी नहीं ,
                              चाँद पर पहुँचाता है वो ही
                             अन्तरिक्ष में नक्षत्र गिनवाता है वो ही
                             तू थोड़ा विश्वास तो रख
                             तेरे अन्दर से आवाज़ लगाता है वो ही
                             धरती पर आया है ,तो जीवन सुधार
                             मत रो - रो कर जीवन गुज़ार
                             तुम  धरती पर जीवन का आधार हो
                             अपने जीवन को सुधार तो सही
                             ये धरती हम मनुष्यों की है
                             इस धरती पर मनुष्य जीवन को सँवार तो सही ।
                             विश्वास की डोर को थाम तो सही।

“योग दिव्य योग शुभ संजोग “

“योग दिव्य योग शुभ संजोग “  ।।
—।।—————।।—————-।।
“संजोग से बनता है जब दिव्य योग
तब कट जाते हैं जीवन के सारे रोग”

योग ,यानि स्वयं पर नियंत्रण
मानसिक योग —-शारीरिक  योग

शारीरिक योग शरीर को स्वस्थ करता है ।
शारीरिक योग का स्वयं में बहुत महत्व है ।

स्वस्थ तन हो तो मन भी स्वस्थ रहता है ।
शरीर रूपी मिट्टी के दिये में ,दिव्य प्रकाश तभी
सुरक्षित रहेगा ,जब उसमें कोई खोट ना हो ।

“सहयोग यानि संग का योग 
जब बनते हैं संजोग 
कारण होता है ,योग 
संग रहने का योग

योग भारतवर्ष को प्रदत्त
स्वयं सृष्टिकर्ता द्वारा प्राप्त
दिव्य प्रकाशमयी अनुपम भेंट है
शारीरिक एवम् मानसिक योग
संजीवनी अक्षय सम्पदा

तन और मन का संतुलन
है ,मनुष्य जीवन का शुभ संजोग
निरोगी तन ,संतुलित मन
यही है मनुष्य जीवन का शुभ संजोग ।
दिव्य खोज ,दिव्य योग ।

“सुनहरे पंख”

    “ पिंजरों से निकल कर पंछी
     जब आजाद हुए ,सुनहरे अक्षरों में
        अपनी तक़दीर
     लिखने को बेताब हुए.....
     छूने को आसमान हम इस क़दर
     पंख फड़फड़ायेंग़े राहों की हर बाधा
     से लड़ जायेंगे ,आसमान में अपने घरौंदे
     बना आयेंगे ,नये इतिहास की नयी इबारत
     लिख जाएँगे किसी के जीने का मक़सद
     बन जायेंगे ।
 
   “अभी तो पंख फड़फड़ाये हैं थोड़ा इतराएहैं
   खिलखिखिला रहा है बचपन
  मुस्कराता बचपन”
 👫बचपन मीठा बचपन ,
       सरल बचपन
       सच्चा बचपन 👯‍♂️
 
  “ वो गर्मियों की छुट्टियाँ
    बच्चों के चेहरों पर खिलती
        फुलझड़ियाँ”

 “घरों के आंगनो में लौट आयी है रौनक़
सूने पड़े गली -मोहल्ले भी चहकने लगे हैं ।
बूडे दादा -दादी भी खिड़कियों से झाँक-झाँक कर
देखने लगे हैं , सुस्त पड़े चहरे भी खिल गये हैं
मन ही मन मुस्काते हैं , पर बड़पन्न का रौब दिखाते हैं
आइसक्रीम और क़ुल्फ़ियों की होड़ लगी है
ठंडाई भी ख़ूब उछल रही है
पानी -पूरी भी ख़ूब डुबकी लगा रही है
पिज़्ज़ा ,बरगर ,पस्ता भी सबको लुभा रहे हैं
चिंटू ,चिंकी ,सिद्धु ,निकी भी सब मस्त हैं
सपनों को सच करने को
बड़े बुज़र्गों से ख़ूब दुआएँ कमा रहे हैं “









“ झगड़ा ताक़त नहीं कमज़ोरी है “

  “झगड़ा ताक़त नहीं कमज़ोरी है जनाब “
सत्य,प्रेम ,करुणा सबको बाँध रखती है ,और एक जादूयी शक्ति है “।
“झगड़ा करने वाला हमेशा यह सोचता है कि,झगड़ा उसकी ताक़त है ।वह झगड़ा करके सबको चुप करा देगा और कर देता भी है ।
हाँ सच भी कुछ समय के लिये कुछ लोग झगड़े से बचने के लिये चुप भी हो जाते हैं ।
अब तो झगड़ा करने वाले की यह आदत ही बन जाती है ,वो सोचता रहता है यह जो मेरा हथियार है “झगड़ा “बहुत ताक़तवर है सबको चुप कर देता है ।

परन्तु जाने -अनजाने वो ग़लत सोच पल रहा होता है ,झगड़ा कभी भी ताक़त नहीं बन सकता ,झगड़ा एक ऐसा हथियार है जो दूसरे सेज़्यादा स्वयं का ही नुक़सानकर रहा होता है ।

झगड़े को छोड़कर ,अगर अपनी बात को नम्रता से और पूर्ण विश्वास से किसी के समक्ष रखते हैं तो उसका प्रभाव ही अलग होता है
वह प्रेमपूर्ण व्यवहाएक अमिट छाप छोड़ता है सामने वाले की मनःसितिथी पर ...
“ अतः झगड़ा एक ऐसा हथियार है ,जो दूसरे से ज़्यादा स्वयं का ही नुक़सान करता है ,फिर क्यो ना ऐसे हथियार का उपयोग किया जाये
जो सबसे पहलेस्वयं को सुरक्षित रखे ।
सच मानिये प्रेम से कही बात झगड़े से ज़्यादा प्रभावपूर्ण होती है “

“ झगड़ा ताक़त नहीं कमज़ोरी है “

  “झगड़ा ताक़त नहीं कमज़ोरी है जनाब “
सत्य,प्रेम ,करुणा सबको बाँध रखती है ,और एक जादूयी शक्ति है “।
“झगड़ा करने वाला हमेशा यह सोचता है कि,झगड़ा उसकी ताक़त है ।वह झगड़ा करके सबको चुप करा देगा और कर देता भी है ।
हाँ सच भी कुछ समय के लिये कुछ लोग झगड़े से बचने के लिये चुप भी हो जाते हैं ।
अब तो झगड़ा करने वाले की यह आदत ही बन जाती है ,वो सोचता रहता है यह जो मेरा हथियार है “झगड़ा “बहुत ताक़तवर है सबको चुप कर देता है ।

परन्तु जाने -अनजाने वो ग़लत सोच पल रहा होता है ,झगड़ा कभी भी ताक़त नहीं बन सकता ,झगड़ा एक ऐसा हथियार है जो दूसरे सेज़्यादा स्वयं का ही नुक़सानकर रहा होता है ।

झगड़े को छोड़कर ,अगर अपनी बात को नम्रता से और पूर्ण विश्वास से किसी के समक्ष रखते हैं तो उसका प्रभाव ही अलग होता है
वह प्रेमपूर्ण व्यवहाएक अमिट छाप छोड़ता है सामने वाले की मनःसितिथी पर ...
“ अतः झगड़ा एक ऐसा हथियार है ,जो दूसरे से ज़्यादा स्वयं का ही नुक़सान करता है ,फिर क्यो ना ऐसे हथियार का उपयोग किया जाये
जो सबसे पहलेस्वयं को सुरक्षित रखे ।
सच मानिये प्रेम से कही बात झगड़े से ज़्यादा प्रभावपूर्ण होती है “

“मोहब्बत खुदा है “




“मोहब्बतों की डोर से बँधे हैं
        हम सब
मोहब्बत ना होती तो हम बिखर
 जाते तितर-बितर हो जाते “

“चाहतों की भी एक फ़ितरत है
चाहता भी उसे है ,जो नसीब में
     नहीं होता”

कहते हैं की मोहब्बत में इंसान खुदा हो जाता है
    खुदा हो जाता है शायद इसीलिए सबसे
             जुदा हो जाता है ।

“ना जाने क्यों लोग मोहब्बत को बदनाम
किया करते हैं ,मोहब्बत तो दिलों में पनपा करती है
         मोहब्बत के नाम पर क्यों ?
        क़त्ल ए आम किया करते हैं “

“मोहब्बत तो रूह से रूह का मिलन है
मिट्टी का तन सहता सितम है “

“मोहब्बत तो जलते हुए चिराग़ों
     में शमा बनकर रहती है ,
जितनी जलती है उतनी ही पाक
        हुआ करती है “

“मोहब्बत के चिराग़ों के हौसलें भी
क्या ख़ूब होते है , आँधियाँ आती हैं
तूफ़ान आते हैं सब स्वाहा हो जाता है
पर मोहब्बत के चिराग़ रूहों में बड़े शान से जलते
रहते हैं “

मोहब्बत ख़ुदा है तभी तो ज़माने से जुदा है
मोहब्बत खुदा की बखशी हुई नियामत है
जो हर किसी को नसीब नहीं होती ।

मोहब्बत की आग से जो ख़ुद को रोशन करता है
वो आबाद है ,परन्तु जो आग संग खेलता है
 उसको जलकर राख हो ही जाना पड़ता है ।









आओ अपने -अपने घरों की रौनक़ें बड़ायें “

   👶👧🏼आओ अपने -अपने घरों
   की रौनेकें बड़ायें
   दीवारों पर लगे जाले हटायें
   धूल मिट्टी की परतें हटाएँ ।”

    🧚‍♀️खिलौनों से घर भर जाएँ
    गुड्डे-गुड़िया ,राजा -रानी की
    कहानियाँ सुने सुनायें🧜‍♀️
    कहीं रेडू चलाएँ ,
   लट्टु घुमाये ,लट्टु घुमा-घुमा कर
   सारी दुनिया के चक्कर लगायें
   धरती पर रेंगते -रेंगते बड़े हो जायें
   जिस धरती पर गिर -गिर के सम्भले
    सम्भलते -सम्भालते आज समाज को
   सम्भालने लगे ,आसमा की ऊँचाइयाँ छूने
   लगे हैं ,उस धरती माँ से जुड़े रहें
   आगे बड़े ,परन्तु आगे बड़ने की होड़ में
   अपनी माओं को ना भूल जायें
   एक जन्म देने वाली ,पालना करने वाली
   और एक धरती माँ
  इनका ना अपमान करें ,
  जिनकी ऊँगली पकड़ तुमने
  सम्भालना सीखा ,जिनकी शिक्षाओं
  ने तुम्हें अच्छे संस्कारों से सींचा
 उस माली को ना भूल जाना जिस धरती माँ
की गोद में गिर -गिर के सम्भले
उस माँ से जुड़े रहना
जाओ बच्चों आसमान की ऊँचाइयाँ छूना
परन्तु लौट के घर को आना
ये मतायें आज भी तुम्हारी राह देखती है
कोई फिर से मिट्टी के घर बनायें
माँ के हाथ की सुखी रोटी भी प्रसाद बन जाये ।












“ कन्या दान ,अभिमान ,सम्मान “


 🎉💫घर में शादी का माहौल था , चार दिन बाद बहन की शादी है ,भाई को चिंता हो रही थी कहीं कोई कमी ना रह जाये ,
जबकि भाई अपनी बहन से दो साल छोटा था ,लेकिन बहन की शादी के समय था ,इसलिये शायद थोड़ा ज़्यादा समझदारी की बातें करने लगा था ।

  🎉🎉  घर पर दिन  भर मेहमानों का आना जाना लगा रहता था,कभी कोई चाचा ,मौसा ,ताऊजी सभी को अलग -अलग ज़िम्मेदारी सौंप दी गयी थी  ,सभी पूरी तन्मयता से बेटी की शादी की तैयारियों में लगे हुए थे ।
रात्रि का भोजन हुआ था ,सभी बैठे थे , कौन क्या पहनेगा सभी अपनी -अपनी पसन्द बता थे ।
तभी पापा जी बोले ,तुम सबको अपनी -अपनी पड़ी है ,और भी बहुत काम हैं , कितने लोगों को बुलाना है ,फ़ाइनल लिस्ट तैयार करो ,किसको क्या देना है सब लिखो , तभी भाई बोला किसको क्या दोगे बस देते रहो।
पापा जी बोले बेटा बात देने की नहीं होती ,बात तो शगुन की है ,ये सब रीत -रीवाज हैं इन्हें निभाना ही पड़ता है ।
भाई थोड़ा भावुक हो गया ,बोला पापा नहीं पापा  हम अपने जीवन की अनमोल चीज़ अपने दिल का टुकड़ा दे रहे हैं
,मैं अपनी बहन आप और मम्मी अपनी बेटी दे रहे हैं ,अपना सब कुछ तो दे रहे हैं ,अपना सब कुछ अपने कलेजे का टुकड़ा  दे दिया ,पापा  जी बोले बेटा कन्यादान बहुत पुण्य का काम हैं ।
बेटा बोला वाह पापा वाह बेटी पैदा करो फिर उन्हें दान दे दो ..,.
हमेशा कन्यादान ही क्यों ?

      अब ये रीत बदल दो ,हम तो वर दान करावाएँगे ...पापा जी बोले तुम चुप हो जाओ अभी छोटे होतुम ....
 भाई बोला नही -नहीं पापा जी और आप सब देखना मैं ये रीत बदल दूँगा  , माँ बोली क्या करोगे तुम ........
 मैं वर -दान  कराऊँगा  मैं आप देखना हम लोग अपने होने वाले जीजू को अपने घर में ही रखेंगें  ....
सब लोग समझ रहे थे कि भाई बहन की विदाई के बारे में सोच कर उदास हो रहा है , तभी घर पर आयी हुयी मौसी बोली
चलो -चलो अब इसकी भी शादी कर दो ,पर ये तो अपने ससुराल जायेगा क्योंकि इसका तो वर-दान होगा ...
सब लोग ठहाका लगाकर हँसने लगे .....

   👍“कन्या दान का नहीं
अभिमान का युग है “🎉🎉🎉🎉🎉
कन्यायें समाज की नींव होती हैं
कन्याओं को शिक्षित करें जिससे वह📖

“आग है लगी हुयी “

 जिधर नज़र दौड़ायी
 नज़र आया बस कूड़ा ही कूड़ा
 कूड़े के ढेर पड़े हुए हैं
 जगह -जगह ......
 आग लगी हुई है
 चमकते चेहरों पर जब
 नज़र टिकती है ........
तब नज़र आती है एक आग
आग विचारों रूपी
कूड़े के ढेरो की आग
कूड़ा बस कूड़ा ही कूड़ा
जब गहरायी में उतरा तो
नज़र आयी गंदगी ही गंदगी
गन्दगी में पनपते ज़हरीले जीवाणु .....
कीचड़ !कीचड़ में खिलते हुए नक़ली कमल
दिखावटी कमल ,सुगन्ध रहित, पुष्प
उजले वस्त्र,मैले मन
खिलते बगीचों की गहरायी में दलदल
का अन्धा कुआँ
अंतहीन ,लोभ ,भ्रष्टाचार का दलदल
चंद पलों की आनन्द की चाहत में
अँधेरी गुमनाम गलियों में भटकता मानव
बाहर भी कूड़ा , मन के अंदर भी कूड़ा
सिर्फ़ तन को चमकाता ,सजता ,सँवरता
आज का मानव ,बस -बस करो
साफ़ करो ये गन्दगी,
अमानवीयता के अवग़ुणो को जला कर राख करो
बाहर  और भीतर सब साफ़ करो ।



“ ना जाने क्यों भटकता रहता हूँ “

 
दिन भर दौड़ता रहता हूँ
सुकून की तलाश में ....

सुख की चाहत में
दर्द से सामना करता रहता हूँ
दुखों से लड़ता रहता हूँ

आधी उम्र बीत गयी
सुखों को सहेजने की कोशिश में
जो सुख -शान्ति मिली भी
उन्हें भी ढंग से जी नहीं पाया

सारी उम्र सहेजता रहा ख़ुशियाँ
उन्हें जीने की चाह में
मैं दर्द जीवन में जीवन जीता चला गया

ये मुस्कराहट भी कितने सुन्दर भाव है
चेहरे पर आते ही सारे दर्द छिपा लेती है

अब मैं आज जो है ,उसको जीना सीख गया हुआ हूँ
जो वर्तमान है वही ख़ूबसूरत है ,सत्य है
भविष्य की चिंता में अपना आज खराब नहीं करता
अपने आज को ख़ूबसूरत बनाओ
कल ख़ुद ब ख़ुद ख़ूबसूरत ख़ुशियों भरा हो जाएगा ।



🥀"अक्षय अनन्नत सम्पदा "🥀☘️🌳🌳

🌍🚶‍♀️🏃🏻‍♀️जीवन - मनुष्य और संसार  ............
          ये सृष्टि , सृष्टि में अनेकों ग्रह ....🌕🌝🌒🌏
   इस सृष्टि का सबसे सुंदर ग्रह "पृथ्वी "
परमात्मा ने जब इस सृष्टि की रचना की ,हम मनुष्यों के लिये जो परमात्मा के ही अंश हैं यानि परमात्मा की संताने .....जिस प्रकार एक माता -पिता अपनी संतानों के सुंदर जीवन के लिए व्यवस्था करते हैं ..........
परमशक्ति ,परमात्मा द्वारा पृथ्वी नाम के इस ग्रह को असंख्य सुविधाओं से भर दिया गया  ,प्रकृति में
इतनी सुन्दर व्यवस्था की गयी है ,कि प्रकृति की अनमोल सम्पदाओं के भण्डार कभी ख़ाली नहीं हो सकते ।

सोचने -समझने की अनुपम भेंट ,जिसे हम बुद्धी कहते हैं ।
अच्छा और बुरा परखने की शक्ति .....
प्रकृति की अनमोल सम्पदा, धरती पर परमशक्ति  द्वारा असंख्य खनिज पदार्थों की देन ......

"अविष्कार आव्य्श्क्ता की जननी है "प्रग्रति उन्नति का सूचक है ।
परंतु उन्नति के नाम पर प्रकृति से इतनी अधिक छेड़छाड़ भी उत्तम नहीं कि प्रकृति का स्वरूप ही बिगड़ जाये ।

मेरा आज का विषय है , जबकि प्रकृति द्वारा इस सृष्टि पर सम्पूर्ण व्यवस्था की गयी है इसके बावजूद आज का मानव
असंतुष्ट है क्यों ?
क्या जो है ? पर्याप्त नहीं है ? ऐसा तो नहीं मनुष्य की भूख बड़ गयी है शायद ......नहीं भूख नहीं लोभ बड़ गया है
भण्डार तो ऐसे भरता है आज का मानव ......मानो धरती पर अमरता का वरदान लिखा के लाया हो ..,..
चाहे भण्डारों में पड़ा हुआ सब सड़ जाये परन्तु किसी और को नहीं खाने दूँगा चलिए आपातकाल की स्तिथी के लिए थोड़ा बहुत भंडारण उत्तम है परंतु सड़ने की हद तक अपराध है ।

दूसरी तरफ़ आज समाज में देख -दिखावा भी आव्यशकता से अधिक बड़ गया है .......
किसी का भी सम्मान करना अच्छी बात है ...यही भारतीय संस्कृति की परम्परा भी है .......
सम्मान का तात्पर्य कभी भी देख -दिखावा तो नहीं ...,
सम्मान तो हमेशा भावों से होता है व्यवहार में निहित होता है ...

दूसरी तरफ़ रीति -रिवाजों के नाम पर दिखावा ....दिखावा भी ऐसा की .....मानो गले की फाँसी ...
हमारे यहाँ तो रीति -रिवाजों के नाम पर लोग अंधों की तरह सिर्फ़ होड़ में लगे रहते हैं ,सिर्फ़ दिखावा ...
शादी -ब्याह आदि आयोजनों में अंधाधुंध ख़र्चा करना ....
आव्य्श्क्ता से अधिक तो दूर की बात ,व्यंजनों की अति अधिकता
जितना खाना खाया नहीं जाता उससे कहीं अधिक भोजन की बर्बादी ...ऐसा दिखावा किस काम का
जिस देश की आधी आबादी को भर  पेट खाना भी नसीब नहीं होता ,और जहाँ की जनता कभी -कभी एक समय खाना खाकर भी अपना गुज़ारा करती हैं और कई मासूम बेचारे जूठन खाकर अपना पेट भरने को मजबूर है ...
आप बताइये ये कहाँ की समझदारी है ।

बस -बस करो ......दिखावा इस धरती पर कुछ शाश्वत नहीं ....फिर क्यों इतनी आप धापि
सम्मान ऐसा हो जो भावों में हो निहित हो ...
दिखावा करना है तो मुस्कराहट संग सभ्य व्यवहार का करो ।
प्रकृति द्वारा अक्षय सम्पदा सृष्टि में व्याप्त है
मनुष्य को चाहिये कि परमात्मा द्वारा प्राप्त अनुपम भेंट अपनी बुद्धि ,सोचने समझने की शक्ति
द्वारा अपने तन कभी सदुपयोग करते हुए समाज को एक सुन्दर स्वरूप प्रदान करे ।
व्यर्थ की उलझनो  में उलझ कर स्वम का जीवन बोझिल ना बनाएँ
प्रकृति स्वयं में सम्पूर्ण है इसका दुरुपयोग ना करें ।
दिखावों से बचें ,प्रकृति का संरक्षण के प्रकृतिक सम्पदा की अनमोल भेंट सबको समर्पित करें .....
वास्तविक ख़ुशी का आदान -प्रदान करें .,,.,,😆😃😀😀🍀🌲☘️🍀🌲😃😀





" प्रकृति अनमोल सम्पदा "

     
 🥀🥀  ☘️🍀🌲☘️
    मीठी -मीठी सी शीतल हवाओं का झोंका
    सर्दी के मौसम को अलविदा कहती
    सूर्य की तेज़ ,तपिश का एहसास
    प्रातःक़ालीन शांत वातावरण में
    प्रकृति का आनंद लेता मन
    हरी-भरी घास का श्रृंगार
    करती ओस की बूँदे
    शांत वातावरण
    पक्षियों के चहकने
    की मीठी आवाज
    मानों वातावरण में
    गूँजती संगीत की मधुर तान
    प्रकृति स्वयं में ही सम्पूर्ण
    स्वयं का शृंगार करती 🎉🎉
    दिल कहे बस यहीं ठहर जाये पग
    भागती-दौड़ती ज़िन्दगी से अब थक गया है मन
    हरी -भरी घास पर बैठ कर यूँ ही बीत जाए जीवन
   जाने क्यों भगता -दौड़ता रहता है मन
   प्रकृति में निहित है जीवन का सम्पूर्ण आनंद
   प्रकृति से ना छेड़-छाड़ करो
   उसमें ना ज़हर घोलो
   प्रकृति है अमुल्य सम्पदा
  अनमोल धरोहर प्रकृति का संरक्षण करो ।🌸🌹🥀🥀☘️🍀

 
   
    
🎉🎉🎉🌺🌺 🎉" हाँ मैं औरत हूँ 🎉🌺🌺🏡☕️🏡📖📖🌹🌹🎉🎉

🌺 हाँ मैं औरत हूँ 🌺
मुझ बिन धरती का
अस्तित्व अधूरा है ,
कोई मुझे कुचलता है
तो इसमें मेरा क्या दोष .......
निर्दयी हैं वो ,पापी हैं वो 🌺
क्रूर हैं वो ,
रावण या कंस से भी घिनौने हैं वो
जो अपने ही बाग़ों में खिले गुलाबों
को , कलियों को कुचलते हैं
हाँ मैं औरत हूँ मुझसे ही महकता
सरा जहाँ है ,मैं ही तो सारे जहाँ की 🌺
रौनक़ हूँ ।🌺
मैं स्वयं सिद्धा हूँ ,स्वयं में सम्पूर्ण हूँ ।🌸
मुझमें आत्म बल की सम्पूर्णता है 🎉🎉

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आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...