* बरकत का चूल्हा *



 *हर घर में रोज जले बरकत का चूल्हा
 प्रेम ,अपनत्व का सांझा चूल्हा **

 मां तुम जमा लो चूल्हा
 मैं तुम्हें ला दूंगा लकड़ी
 अग्नि के तेज से तपा लो चूल्हा,
 भूख लगी है ,बड़े जोर की
 तुम मुझे बना कर देना
 नरम और गरम रोटी।
 मां की ममता के ताप से
 मन को जो मिलेगी संतुष्टि 
 उससे बड़ी ना होगी कोई
 खुशी कहीं ।
 चूल्हे की ताप में जब पकता
 भोजन महक जाता सारा घर
* हर घर में रोज जले बरकत
 का चूल्हा ,प्रेम प्यार का सांझा चूल्हा *



*अग्नि जीवन आधार*

 जीवन का आधार अग्नि
 भोजन का सार अग्नि
 जीवन में , शुभ --लाभ
 पवान ,पवित्र,पूजनीय अग्नि
 ज्योति अग्नि,हवन अग्नि
नकारात्मकता को मिटाती
दिव्य सकारात्मक अग्नि

 सूर्य का तेज भी अग्नि
 जिसके तेज से धरती पर 
 मनुष्य सभ्यता पनपती
 अग्नि विहीन ना धरती
 का अस्तित्व ।

 अग्नि के रूप अनेक 
 प्रत्येक प्राणी में जीवन
 बनकर रहती अग्नि।

 प्रकाश का स्वरूप अग्नि 
 ज्ञान की अग्नि,विवेक की अग्नि
 तन को जीवन देती जठराग्नि 
अग्नि का संतुलन भी आव्यशक
ज्वलंत ,जीवन , अग्नि स्वयं प्रभा ।


  

मैं वसुंधरा

* मैं वसुन्धरा*
    ऐ मानव, सुन मेरी करुण पुकार
 मेरा दम घुट रहा है ,हवाओं में फैला है जहर
 ये कैसी हाहाकार ये कैसा कहर,
ऐ मानव,
 तुमने मेरे द्वारा दी गई स्वतंत्रता का किया
 बहुत दुरुपयोग किया,

 बस - बस अब और नहीं अत्याचार......
 बहुत दूषित किया तुमने मेरे आंचल को
 बहुत आरियां चलाईं ,छलनी किया मेरी छाती को
 मेरे धैर्य मेरी सहनशीलता का बहुत मज़क उड़ाया ,
 बस अब और नहीं........
 ऐ मानव, तुमने तो मेरी ही अस्तित्व को
खतरे में डाल दिया ,मेरी समृद्धि भी विपदा में पड़ी
ऐ मानव, दिखावे के पौधारोपण से ना मैं समृद्ध होने वाली ,तुमने तो मेरी जड़ों को ही जहरीला किया।
ऐ मानव , अब मुझ वसुन्धरा को स्वयं ही करना होगा स्वयं का उद्धार .....
ऐ मानव सुन मेरी करुण पुकार,
कर मुझ पर उपकार बन्द कर अपने घरों के द्वार
अब तक मुझे स्वयं ही करना होगा स्वयं का उद्धार ।



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...