जागृति की मशाल

कविता मात्र शब्दों का मेल नहीं

वाक्यों के जोड़ - तोड़ का खेल भी नहीं

कविता विचारों का प्रवाह है

आत्मा की गहराई में से 

समुद्र मंथन के पश्चात निकली 

शुद्ध पवित्र एवम् परिपक्व विचारो के 

अमूल्य रत्नों का अमृतपान है 

धैर्य की पूंजी सौंदर्य की पवित्रता

प्रकृति सा आभूषण धरती सा धैर्य

अनन्त आकाश में रोशन होते असंख्य  सितारों के 

दिव्य तेज का पुंज चंद्रमा सी शीतलता का एहसास 

सूर्य के तेज से तपती काव्य धारा 

स्वच्छ निर्मल जल की तरलता का प्रवाह

काव्य अंतरिक्ष के रहस्यमयी त्थयों की परिकल्पना 

का सार  है, साका रत्मक विचारो के जागृति की  मशाल होती है।







मनमर्जीयां

इस उम्र मैं यह सब अच्छा नहीं लगता तुम पर मां ...
     .. लोग क्या कहेंगे मां.. 
 मां हैरान थी, अपनी बेटी की बातें सुनकर , सोच रही थी क्या यही क्या यह वही बेटी है जिसे कल मैंने उंगली पकड़कर चलना सिखाया था सही और गलत में भेद बताया था आज यही बेटी मुझे सही और गलत का भेद बता रही है यूं तो मां मन ही मन गर्व महसूस कर रही थी कि उसकी बेटीअब इतनी समझदार हो गई है कि वह अपनी मां को अच्छा और बुरा समझा सकें, परंतु आज मां स्वयं को जीवन के एक ऐसे मोड़ पर खड़ा पा रही थी जहां मनुष्य जीवन में एक बदलाव जरूर आता है।

     मांअपने बच्चों की बातें सुनकर कुछ पल के लिए अतीत की यादों में खो गई, उसे याद आने लगे वह पल जब उम्र के एक पड़ाव में उसके बच्चों में एक बदलाव आने लगा था जिसे देख कर मां के मन में भी कुछ विचार उमड़-घुमड़ करने लगे थे।

    आज इस स्थिति में मां को महसूस हो रहा था की जिंदगी के कुछ पड़ाव ऐसे होते हैं ,  जब इंसानी प्रवृत्ति में बदलाव आता है यही बदलाव मां ने अपने बच्चों में उस वक्त देखा था जब वह बचपन से जवानी की और बढ़ रहे थे मां अपने बच्चों के क्रियाकलापों पर हर पल ध्यान रखती थी उसका ध्यान रखना भी आवश्यक था क्योंकि,  कोई भी मां अपने बच्चों का हर पल भला चाहती है।
      मां को याद आ रहा था ,जब उसके बच्चों को स्कूल की पिकनिक में जाना था और बच्चों ने जिद्द की थी की उन्हें भी पिकनिक जाने की मंजूरी मिल जाए ।
यूं तो मां को कोई चिंता नहीं थी पर दो दिन घर से बाहर कैसे रहेंगे उसके बच्चे मां को चिंता हो रही थी घर में तो बच्चे एक गिलास पानी भी अपने आप लेकर नहीं पीते वहां जाकर क्या करेंगे, पर मन ही मन सोच रही थी की चलो बाहर जाएंगे तो कुछ सीखेंगे ही, मां ने बच्चों को उनकी जरूरत का सामान देकर और अच्छे से समझा कर ,स्कूल की पिकनिक जाने की मंजूरी दे दी।
 लेकिन जब दो दिन बाद बच्चे वापिस लौटे तो बेटे के घुटनों पर पट्टी बंधी हुई थी ,मां देखकर घबरा गई बच्चों को तो नहीं जताया ,लेकिन दिल ही दिल  सोचने लगी देखा लगा ली ना चोट कहा था ध्यान से रहना और मेरा क्या! कौन मानता है हम माएं तो होती ही बुरी हैं , टोकती जो हैं ।
मां का चेहरा देखकर बेटा बोला मां यह तो छोटी सी चोट है मां ने आव देखा ना ताव बोली क्या किया होगा किसी से झगड़ा ... इतने में बेटी बोली नहीं मां तुम गलत सोच रही हो, मां बोली हां हां मैं तो हमेशा गलत ही होती हूं बेटी बोली नहीं मां आप गलत सोच रही हो ,मां भैया का पैर फिसल गया था और उसके घुटने में चोट लग गई मां सभी ने बहुत मदद की और टीचर तो बहुत अच्छी थी जल्दी जल्दी भैया राजू की पट्टी वगैरह कराई और दवाई खिलाई पूरे रास्ते टीचर ने राजू को अपने साथ रखा , और पूरा ध्यान रखा ।
मां ने प्यार अपने दोनो बच्चों को गले लगा लिया।

  और फिर स्कूटी से दोस्तों के साथ जाना और अपनी मनमर्जियां करना... मां कैसे भूल सकती थी वह दिन जब पहली बार उसकी बेटी अमायरा को स्कूटी से चोट लगी थी ,मां का तो कलेजा ही निकल के आने को था अपनी बेटी की चोट देखकर आ...चोट ज्यादा गहरी नहीं थी जल्दी ही जख्म भर गया था ।

   मां को रह-रहकर बीते दिनों की याद आ रही थी ,बच्चों की परवरिश भी कोई खेल नहीं होता ,जैसे पौधों की देखरेख की जाती है ,वैसे ही बच्चों में भी संस्कार रूपी पौष्टिक खाद और स्नेह रूपी नीर से सिंचाई करते रहने पड़ती है
 और उस दिन जब बेटी अमायरा को अपने किसी स्कूल की मित्र की बर्थडे पार्टी में जाना था और उसकी जिद्द के आगे उसकी मां की एक नहीं चली थी मॉडर्न ड्रेस देर से लौट के आना .....मां का बस नहीं चल रहा था अमायरा का कहना था मां अब जमाना बदल चुका है मेरे साथ और भी मेरे स्कूल की फ्रेंड्स है हम सब अपना ध्यान अच्छे से रख सकते हैं और वक्त आने पर अपनी सुरक्षा भी कर सकते हैं मां आप चिंता मत करो... माना कि बेटी अपनी जगह सही थी लेकिन मां का चिंता करना भी जायज था.....

   बच्चों ने कॉलेज की दहलीज पर कदम रखा था और मां ने उन्हें बहुत कुछ  नसीहतें दी थी बच्चे भी समझदार थे बोले मां आप चिंता मत करो आपके बच्चे कभी अपनी राहों से भटकेगें नहीं ।
कभी कभी इस भागती दौड़ती जिंदगी से बच्चे भी हताश निराश हो जाते थे ,और मां उन्हें कई तरीके से प्रेरणा दे दे कर किस्से कहानियां सुनाकर प्रेरित करती रहती थी आखिर गिरते -संभलते बच्चों ने अपनी-अपनी राह चुन ली थी ।

    आज उम्र की इस दहलीज पर मां अपने को हल्का महसूस कर रही थी वह भी अपनी जिंदगी जीना चाहती थीं ।
     परंतु हमारे समाज की यह विडंबना तो देखो क्या साठ की उम्र पार करते ही... जिन्दगी ख़तम हो जाती है सपने तो चल रहे होते हैं ना ,क्या आप किसी भी उम्र में सपनों को कह सकते हैं कि तुम मेरे सपनों में मत आया करो सांसों को कह सकते हो तुम रुक जाओ जब तक सांसे चल रही हैं तब तक जिंदगी भी चलेगी ...... कहते भी हैं ना *जब तक सांस है तब तक आस *
 हम अपनी जिंदगी क्यों जीना छोड़ देते हैं क्या यहां आकर हमारा जीवन खत्म हो जाता है सांसे तो फिर भी चल रही होती है ना ..
  फिर क्यों हम साठ की उम्र के पार वाले अपनी मनमर्जियां नहीं कर सकते क्या इस उम्र में पंख कट जाते हैं मनुष्य विचार शून्य हो जाता है उसके सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है क्या उसे सपने देखने का हक नहीं होता क्या वह अपनी मर्जी से खा पी पहन नहीं सकता ...
 हां साठ की उम्र में शरीर में इतनी ताकत नहीं रहती लेकिन कहते हैं ना *मन के हारे हार है मन के जीते जीत*
मेरा तो मानना है , कि साठ की उम्र में बुद्धि इतनी परिपक्व तो अवश्य हो जाती है , कि हम अपना भला बुरा समझ सकते हैं ,अगर थोड़ी बहुत मस्तियां करने का मन होता भी है तो अपनी नीरसता दूर करने के लिए .... किसी का अट्टहास करने के लिए नहीं ।
खुलकर हंसना छोटे-मोटे खेलकूद करना ट्रैक सूट पहनकर जोगिंग पर जाना योगा करना बच्चों के साथ मौज मस्ती करना यह सब मन को तनावमुक्त रखते हैं और शरीर को स्वस्थ बनाते हैं और बुढ़ापे में चिकित्सक के यहां चक्कर भी कम लगते हैं और रसायनिक दवाई भी कम खानी पड़ती हैं।
 इस उम्र में मनुष्य इतना कुछ देख चुका होता है की उसके शौंक सारे पूरे हो चुके होते हैं वो कुछ नया करता भी है तो इसलिए की जो गलतियां या कमियां पहले उससे हुई या कमियां रह गई, उससे वो प्रेरणा लेकर सीख लेकर दुनियां को कुछ सीखा सके बता सके ...
 कुछ सोचने के बाद आखिर कुछ देर बाद बेटी बोली मां बहुत काम कर लिया तुमने जाओ ,जी लो अपनी जिंदगी .....अभी तक तो तुमने अपनी जिम्मेदारियां संभाली, तुम्हें अपने लिए समय ही कहां मिला ,मां दुनियां का क्या है वो कल भी कहती थीं आज भी कहेगी।
 तुम्हें जो अच्छा लगता है वो ही करो मां तुम तो समाज की नींव ,समाज की मार्गदर्शिका हो तुम हमेशा सही थी और रहोगी ।

मां तुमको और तुम जैसे तुम्हारे हम उम्र लोगों को आवश्यकता है खुलकर जीने की खुलकर हंसने की मां तुम हमारे समाज की नींव हों जड़े हों अगर जड़े मजबूत होंगी तभी तो उस पर सुंदर सुंदर फूल खिलेंगे सुंदर पौध तैयार होगी और समाज समृद्ध बनेगा ,मां कर लो मनमर्ज़ी का अभी तक बहुत जिम्मेदारी से संभाली हैं जिम्मेदारियां ।

लेखिका :- ऋतु असूजा ऋषिकेश

मित्र मेरी फिक्र

 मेरे आने की आहट भी वो पहचानता है 

वो मेरी फिक्र करता है 

वो अक्सर दिन रात मेरा ही जिक्र करता है

मुझे बेझिझक डांटता है 

मुझ पर ही हुक्म चलाता है 

मेरी कमियां गिन गिन कर मुझे बताता है 

कभी कभी वो मुझे मेरा हम मीत मेरा दुश्मन सा लगता है मगर वो मुझे अपने आप से भी अजीज है

वो मेरा मित्र मेरे जीवन का इत्र जिसका मैं अक्सर और वो मेरा अक्सर करता है जिक्र 

मेरा मित्र मेरे जीवन का है इत्र ।

उसे मेरी और मुझे उसकी हरपल रहती है फिक्र ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...