जब मैं निकला था , मौसम बड़ा सुहाना था,
कुछ पल बहुत हँसे मुस्कराए ,सुंदर -सुंदर ख्वाब सजाये ,
कुछ ख्वाब पूरे हुए ,कुछ अधूरे धूप तेज निकली ,गर्मी से मेरे होंठ सूखने लगे थे।
ख्वाब अभी पूरे भी नहीं हुए थे ,राहों में कंकड़ आ गये ,कंकड़ हटाये फिर चलना शुरू कर दिया ,फिर बाधाओं पर बाधा मैं कुछ पल रुका ,फिर चल दिया ,मैं चल ही रहा था ,तेज आँधी आ गयी फिर तूफ़ान पर
तूफ़ान मैं डरा सहमा , टूट सकता था ,और बिखर भी सकता था , पर मैं टिका रहा , माना की वक़्त मेरा साथ नहीं दे रहा था। परन्तु मेरा हौंसला भी कम्बखत मेरा साथ नहीं छोड़ रहा था ।
थोड़ा वक़्त तो जरुर लगा ,मैं निराश भी हुआ ,परन्तु मेरे हौंसलों ने मरहम का काम किया तूफानों की चोटें अब भरने लगीं थी । सफ़र अब भी जारी था मेरा विश्वास मेरा हौंसला ही कम नहीं होने दे रहा था ।
मौसम फिर से बदला ,सावन आया बादल बरसे खुशियों की बरसात हुई ।
मौसम फिर से बदला ,सावन आया बादल बरसे खुशियों की बरसात हुई ।
मेरी आत्मशक्ति ने मेरी पीठ थपथपाई ! क्योंकि मेरी आत्मा का विश्वास कभी टूटा नहीं ,उस दृण निश्चय विश्वास ने मुझे मेरी मंजिल तक पहूँचाया। जिन्दगी की दौड़ का एक फलसफा ही समझ आया उतार -चढाव तो आयेंगे ही धूप से पैर भी झुलसेगें , आँधियों से सपने भी बिखरेंगें पर ऐ मानव तुम ना बिखरना कभी ना टूटना मंजिले तो मिल जायेंगी ,परन्तु अगर तुम बिखरे तो सब खत्म हो जाएगा ।।।।।।