**कविता**

 --------------क्या आप मेरी बात से सहमत है ?
** * * एक अनपढ़ भी कविता रच सकता है
क्योंकि कविता आत्मा की आवाज है **

** कविता आत्मा की आवाज है
समाजिक समावेश के सुन्दर भाव हैं ।
कविता विचारों की सुमधुर झंकार है
कविता मात्र शब्द नही ,कोई छन्द नही।

कविता कभी समाजिक कुरीतियों के
प्रति उठने वाली आवाज है ,तो कभी
वीर,हास्य,श्रृंगार रस में बंधे शब्दों का सार है ।

कविता अन्तर्मन में उठने वाले द्वन्दों की पुकार है
कविता किसी भी भावपूर्ण मन मे उठने वाले
भावों का सार है । कविता तारीफों की मोहताज नही
कविता स्वयं ही तारीफे अन्दाज है **

** हौंसले **


** अच्छा हुआ मेरी परवरिश
 तूफानों के बीच हुयी ।
 जब मेरी परवरिश हो रही थी
 बहुत तेज आँधियाँ चल रही थीं ,
तूफानों ने कई घर उजाड़ दिये थे ।

क्या कहूँ तूफ़ान ने मेरा घर भी उजाड़ा
मेरा सब कुछ ले लिया ,
मुझे अकेला कर दिया ,
ना जाने तूफ़ान की मुझसे क्या दुश्मनी थी
मुझे अपने संग नहीं ले गया ,
मुझे दुनियाँ की जंग लड़ने को अकेला छोड़ गया ।
बताओ ये भी कोई बात हुई ,मैं अकेला दुनियाँ की भीड़
मे बहुत अकेला ,कोई अपना न मिला
पर मेरी परवरिश तो आँधियों ने की थी
मैं कहाँ टूटने वाला था । जहाँ रास्ता मिला चलता रहा
धीमे थे कदम मेरे पर कभी रुके नहीं
पर मेरा हौंसला मेरे साथ था ,हमेशा से मेरा सच्चा साथी
मेरे हौंसलों ने कभी हार नहीं मानी ,
शूलों पर चलकर फूलों की राह थी पानी
आज बहुत खूबसूरत है ,मेरी जिन्दगानी
क्योंकि मेरे हौंसलों ने कभी हार नहीं मानी ।।*****



**अक्षय पात्र**

 
 गाँव में हर किसी को यह ख़बर थी ,कि, "राम सिंह " के घर मे *अक्षय पात्र*है ,जो उनके पास बहुत प्राचीन काल से है ।

लेकिन किसी ने भी उस "अक्षयपात्र" को देखा नही था ।

यहाँ तक कि राम सिंह के अपने परिवार के सदस्यों ने भी उस अक्षय पात्र को नही देखा था ।किसी को इजाज़त नही थी उस *अक्षयपात्र*को देखने की ।
राम सिंह का परिवार भरा पूरा था ,दो बेटे ,उनकी दो बहुयें ,दोनों बेटों के दो-दो बच्चे ।
रामसिंह ने अपने परिवार में यह घोषणा कर रखी थी ,कि मरने से पहले वह यह *अक्षयपात्र*उसे देगा जो उसकी कसौटी पर खरा उतरेगा ।
कौन नही चाहता कि, "अक्षयपात्र"उसे मिले ,इस कारण से परिवार में सबका व्यवहार परस्पर प्रेम के था ,सब एक दूसरे का यथायोग्य सम्मान करते थे ।
"रामसिंह"बहुत खुश था कि उसके परिवार के सभी सदस्य संस्कारी,और गुणवान हैं ।
घर मे हमेशा सुख-शांति का माहौल रहता सब ही बड़े धार्मिक स्वभाव वाले भी थे  ।
रामसिंह जी का सबसे छोटा बेटा थोड़ा चंचल था ,उसके बहुत मित्र थे जिनके साथ घूमना-फिरना खेलना लगभग लगा रहता था।
अपने पौते के इस व्यवहार से रामसिंह जी थोड़े चिंतित रहते ।
और दिन-रात अपने पौते को समझाते रहते ।एक दिन राम सिंह जी जब अपने पौते जिसका नाम अक्षय था ,समझा रहे थे, बेटा पड़ो लिखो कुछ बन जाओ । मैं चाहता तुम किसी ऊँचे पद के अधिकारी बनो ,पौते अक्षय के मन मे भी न जाने क्या आया बोला,दादा जी फिर आप मुझे जो आपके पास अक्षय पात्र पड़ा है देंगे ,दादाजी ने पौते के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ,*हाँ*पर ये बात किसी को नही बताना,पौते ने कहा जी दादा जी बिल्कुल । उस दिन से तो अक्षय मानो बिल्कुल बदल गया ,अपनी मेहनत और लगन से वह कलेक्टर बन गया । अब तो अक्षयपात्र की तरफ अक्षय का ध्यान भी नही था बस तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ना उसका लक्ष्य था ।
आखिर दादा जी यानि रामसिंह जी की भी उम्र हो चली थी ,
कमजोरी की वजह से उन्होंने खटिया पकड़ ली थी ।
एक दिन दादा जी ने परिवार के सभी सदस्यों को अपने पास बुलाया अपनी सम्पत्ति का बँटवारा सबमे बराबर कर दिया ।
लेकिन सबकी निगाहें तो* अक्षय पात्र*पर थी ,दादा जी का बड़ा बेटा बोला दादा जी "अक्षयपात्र"तो आप मुझे ही देंगे मैं आपका सबसे बड़ा बेटा हूँ और आपके खानदान की परम्परा भी यही रही है, दादा जी मुस्कराये बोले तुम्हे किसने कहा कि ये परम्परा है कि अक्षय पात्र सबसे बड़े बेटे को मिलेगा ।
ये *अक्षयपात्र उसे मिलेगा जो परिवार में सबसे होनहार होगा ,परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे को देखने लगे आखिर दादाजी की नजरों में कौन सबसे ज्यादा होनहार है ।
दादा जी ने अपने सबसे छोटे पौते को अपने पास बुलाया और कहा मैं "अक्षयपात्र* इसे सौंपूंगा ,सब हैरान !

अक्षय बोला नही दादा जी मैं क्या करूँगा अक्षय पात्र मेरे पास आपके आशीर्वाद का साथ है और क्या चाहिये ,इतने में परिवार के अन्य सदस्य बोले हाँ-हाँ ये क्या करेगा अक्षय पात्र इसके पास तो बहुत अच्छी नौकरी है ,अक्षय ने भी हां में हाँ मिलाते हुए कहा जी दादा जी आप किसी और को दे अक्षय पात्र ।

दादाजी बोले नही बेटा ,मैने दोनों बेटों से कहा खूब पड़ो कुछ बनो दूसरे पौतों से भी कहा किसी ने भी ढंग से पढ़ाई नही की किसी ने दसवीं करके किसी बीच में पढ़ाई छोड़ दी सबकी नजरें मेरी सम्पत्ति पर थीं ।
एक तुम ही हो जिसने जीवन मे वास्तविक सम्पत्ति पायी ,
अक्षय बेटा तुम्हारे पास विद्या धन है ,जिसका कभी क्षय नही होता ।तो फिर अक्षय पात्र भी तुम्हे ही मिलेगा ।
अक्षय बार-बार कह रहा था नही दादा जी मुझे नही चाहिएअक्षय पात्र आप इसे परिवार के अन्य सदस्यों में बाँट दो ।
दादा जी ने अक्षय पात्र अपने पौते को पकड़ाते हुए कहा ये लो आज से तुम इसे संभालोगे ।
चलो खोलेकर तो  देखो इसमें कितना धन है ।अक्षय ने अक्षय पात्र के ऊपर बंधा हुआ कपड़ा हटाया उसकी आँखों की चमक मानो बढ़ गयी ,दादा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कहते हुए अक्षय ने दादा के चरण स्पर्श किये ।

परिवार में सभी को उत्सुकता थी कि आखिर *अक्षय पात्र में कितना धन है ,सब कहने लगे दिखाओ अक्षय मुझे दिखाओ
सबने एक -एक करके *अक्षय पात्र*को देखा सबकी आँखे खुली की खुली रह गयीं ,फिर रामसिंह जी जा बड़ा बेटा बोला अक्षय वास्तव मे तुम ही इस *अक्षयपात्र*के हकदार हो ।
दादा जी ने एक-एक करके उस अक्षय पात्र में से सब कुछ निकाला सबसे पहले * रामायण*  फिर  *भगवतगीता*चारों वेद * अन्य कई धार्मिक पुस्तकें ,अन्त में दादा जी ने उस पात्र में से एक कागज़ निकाला जिस पर कुछ लिखा हुआ था ,दादा जी ने वह सबके सामने जोर-जोर से पढ़ा , उसमे लिखा था
 तुम सोच रहे होंगे इस पात्र में क्या है ?

 तुम जानते हो मैंने
 इसका नाम *अक्षय पात्र*क्यों रखा ?

इस पात्र मे तुम्हे कोई धन दौलत या सोने -चाँदी की अशर्फियाँ नही मिलेंगी ,फिर भी ये अक्षय पात्र है ।
हाँ बच्चों अक्षय धन है इस पात्र में ।
क्योंकि इस पात्र में विद्या धन है ।
जो कभी नष्ट नही होता विद्या धन के बल पर तुम कहीं पर कुछ भी पा सकते हो
विद्या धन एक ऐसा धन है ,जो अक्षय है जिसका कभी क्षय नही होता ।व्यवहारिक धन रुपया पैसा धन-दौलत सोना-चाँदी तो खर्च होने वाला धन है ।
इसलिए जीवन मे अग़र धन अर्जन करना है तो सर्वप्रथम विद्या धन ग्रहण करो जिसके द्वारा तुम संसार के समस्त धन प्राप्त कर सकते हो ।
 "विद्याधन ही वास्तव में जीवन का *"अक्षय पात्र"* है



**शुभ संकेत**

   * शुभ संकेत*

 पथरीली राहें,मिट्टी की गोद,

  कभी चिलचिलाती धूप ,

 कभी आँधी-तूफान में रहकर

 ही एक वृक्ष है फलता-फूलता

तभी तो कहते है ,धैर्य रख ऐ बन्दे

कठिनाइयों  को सहकर एक परिपक्व

मानव है बनता ।।

 सादगी से सौंदर्य निखरता है,
 
  व्यवहार में हो सरलता, विचारों
 
  में  हो निर्मलता ,तभी तो कोई
 
   सफलता की सीढ़ियाँ है चढ़ता ।

   हवाओं में आज मीठी सी महक है,
 
   शायद फिर से कोई नेकी की राह चला है ।

  किसी के मन मे सर्वजनहिताय का भाव जगा है ।
 
  तभी तो आज हर दिल को सुकून है

 स्वर्ग धरा पर बना देने का जनून है ।

क्या वो कोई जादूगर है , या तिलसमिया दुनियाँ से आया है ।

 वो तो बहुत शुभ संकेत लाया है ।

उसने निस्वार्थ भाव से सबको अपनाया है ।

   
   

** विचारों की खेती**

 
 *****आजकल मैं विचारों की खेती करता हूँ ।
 शब्दों के बीज बोते रहता हूँ ।

 कई क्यारियाँ बन गयी हैं 💐
 उनमे अब फ़सल लहलहाने लगी है ।💐💐

किसी क्यारी में ,कविताएं हैं ,किसी मैं कहानियाँ ,
किसी मे गज़ल ,किसी में कोई लेख, आदि हैं।

बाग हरा-भरा हो गया है ,कभी कविता गुनगुनाती है ,
कभी कोई कहानी मुस्कराती है ।

जिन्दगी बड़ी शान से बीत रही है ।
किसी का मनोरंजन हो रहा है
किसी को प्रेरणा मिल रही है ।

किसी की उदासीनता दूर हो रही है
मैं खुश हूँ, मेरे विचारों की खेती फल-फूल रही है ।।


"*वसुन्धरा**

वसुन्धरा**
जिस धरती पर मैंने जन्म लिया ,
उस धरा पर मेरा छोटा सा घर
मेरे सपनों से बड़ा ।।
बड़े -बड़े अविष्कारों की साक्षी वसुन्धरा
ओद्योगिक व्यवसायों से पनपती वसुन्धरा ।

पुकार रही है वसुन्धरा
,कराह रही है वसुन्धरा ।

देखो तुमने ये मेरा क्या हाल किया
मेरा प्राकृतिक सौन्दर्य ही बिगाड़ दिया ।

हवाओं में तुमने ज़हर भरा
में थर-थर कॉप रही हूँ वसुन्धरा
अपने ही विनाश को तुमने मेरे

दामन में फौलाद भरा
तू भूल गया है ,ऐ मानव

मैंने तुझे रहने को दी थी धरा ।
तू कर रहा है मेरे साथ जुल्म बड़ा

मेरे सीने में दौड़ा -दौड़ा कर पहिया
मेरा आँचल छलनी किया ।

मै हूँ तुम्हारी वसुन्धरा
मेरा जीवन फिर से कर दो हरा -भरा

उन्नत्ति के नाम पर धरा पर है प्रदूषण भरा
जरा सम्भल कर ऐ मानव प्राकृतिक साधनों का तू कर उपयोग जरा
तुमने ही मेरा धरती माता नाम धरा
ये तुम्हारी ही माँ की आवाज है ,सुन तो जरा ।।

* धरती पर स्वर्ग जैसा है *ऋषिकेश*


      *ऋषिकेश* यह वास्तव में देवों की धरती है
       गौ मुख से प्रवाहित ,गंगोत्री जिसका धाम ,
       अमृतमयी ,निर्मल गँगा माता को मेरा शत-शत
             प्रणाम *

        
 *  देवों की भूमि है,अमृतमयी गँगा की अमृत धारा है *
       " ये जो शहर हमारा है "
  * इसका बड़ा ही रमणीय नज़ारा है ,
 *  हिमालय की पहाड़ियों का रक्षा कवच है ,*
  *  नीलकण्ठ महादेव का वास है 
   
   * बदरीनाथ, केदारनाथ,का आशीर्वाद है,*
      लक्ष्मण झूला का भी प्रमाण है।
   * मन्दिरों में गूँजते शंखनाद हैं ।

    महात्माओं के मुख से सुनते सत्संग का प्रसाद है ।
    निर्मल,शान्त,अध्यात्म से परिपूर्ण सत्संगी वायुमंडल सारा है
   
   वास्तव में प्रकर्ति,और परमात्मा ने इसे खूब सवांरा  है
    अद्भुत अतुलनीय ,स्वर्गमयी ये *ऋषिकेश*शहर हमारा है।।
    
    

**सुप्रभात**

सुप्रभात **
********
💐वन्दन परमात्मा ,💐
एक और नयी सुबह
नयी-नयी अभिलाषाएं
नव निर्माण को एक और क़दम
नयी पीढ़ी की नयी सोच संग ,
नव सपनों को सच करने की
नयी तरंग ,नया ढँग है ,नयी उमंग
नये इरादे, नयी सीढ़ियाँ ,
नयी दुनियाँ की ,नयी इबारत लिखने को
नयी पीढ़ी के नये क़दम
इस नयी पीढ़ी को ,
नव नूतन समाज की,
बुनियाद रखने को दो
परमात्मा तुम अपने आशीर्वाद
का संग, जीवन की सरगम
फले-फूले नव -नूतन समाज
चाहे नया रूप हो,नया-नया ढँग
सज्जनता संग , प्रग्रति के पथ पर
अग्रसर उन्नति की ऊंचाइयाँ ,छुये
मेरे देश का जन-जन ,
समृद्धि से परिपूर्ण हो मेरे देश
का कण-कण ।

**स्वास्थ्य धन**


 * स्वास्थ्य यानी तन-और मन दोनों की सुदृणता *
जहाँ *शारीरिक स्वास्थ्य के लिये पौष्टिक आहार ,व्यायाम ,योगा लाभदायक है।
वैसे ही मन की स्वस्तथा के लिये मैडिटेशन,योगा ,साथ ही साथ विचारों की सकारात्मकता क्योंकि* ज़िंदगी की दौड़ में अगर जीत है तो हार भी है* मुश्किलें भी हैं ,बस हमें अपनी हार और नाकामयाबी से निराश नही होना है ,ये नही तो दूसरा रास्ता अपनाये अपने मन की सुनिए ।

    *हमारे विचार बहते हुए पानी की तरह हैं, और पानी का काम है बहते रहना रुके हुए पानी मे से दुर्गन्ध आने लगती है ।*
 *  जहाँ तन का स्वस्थ होना आवयशक है वहीं मन मस्तिष्क का स्वस्थ होना भी अनिवार्य है *
आज की भागती दौड़ती जिन्दगी में हम मन के स्वास्थ्य पर बिल्कुल भी ध्यान ही नही देते मतलब कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ते- चढ़ते हम मनुष्य अपने दिमाग़ पर एक बोझ बना लेते हैं, बोझा कामयबी और काम के दवाब का ;

कामयाबी तो मिलती है धन भी बहुत कमाते हैं ,परन्तु अपना सबसे बड़ा धन अपना स्वास्थ्य बिगाड़ देते हैं, किस काम की ऐसी कामयाबी और दौलत जिसका हम सही ढंग से उपयोग भी न कर सकें।
दुनियाँ का सबसे बड़ा धन क्या है ।आम जन तो यही कहेंगे रुपया, पैसा, धन-,दौलत गाड़ी, बंगला ,और बैंक बैलेंस
   परन्तु मुझे अपने एक मित्र की बात हमेशा याद रहती है जो       हर -पल परमात्मा से कहती है, कि मेरा स्वास्थ्य ठीक रखना, कभी-कभी मन मे सवाल उठता की कैसी है यह , हम तो भगवान से इतना सब कुछ मांगते है सुख -शांति, धन-दौलत वगैरा-वगैरा और ये सिर्फ मेरा स्वास्थ्य ठीक रहे ,जब मैंने उससे पूछा तुझे और कुछ नही चाहिये भगवान से बस स्वास्थ्य,इस पर मेरी मित्र मुस्करा के बोली हाँ ,यार सबसे बड़ा धन तो स्वास्थ्य है ,अगर स्वास्थ्य सही रहेगा तो मैं किसी भी उमर में खुद काम कर के खा लूँगी धन भी कमा लूँगी ,किसी की मोहताज़ नही होऊँगी, जब किसी बीमार को मेरी आव्यशकता होगी तो उसकी सहायता भी कर दूँगी, मुझे अपनी मित्र की सोच बहुत अच्छी लगी ।
वाकई स्वास्थ्य से बड़ा कोई धन नहीं। अगर कोई भी मनुष्य स्वस्थ है ,तो वह आजकल के युग में सबसे बड़ा धनवान है।

बिल्कुल सही रुपया पैसा भी धन ही हैं
,परन्तु इस धन से हम सुख -सुविधाओं के साधन तो खरीद सकते हैं ,यह धन हमारे जीवकोपार्जन के लिये आवयशक भी है ।       परन्तु क्या धन-दौलत से आप स्वास्थ्य खरीद सकते हैं ,आप कहेंगे हम डॉक्टर के पास जायेंगे और अपना इलाज करायेंगे ,बिल्कुल ठीक ।  परन्तु ? ऐसा भी धन क्या कमाना जो जीवन भर डॉक्टरों की फीस भरने में चला जाये ।

ये तो वही बात हुयी की* पहले धन कमाने के लिये स्वास्थ्य धन खोया फिर ,?  स्वास्थ्य धन को पाने के लिये वही  अपनी मेहनत से कमाया हुआ धन खर्च किया* ।
*कहाँ की समझदारी है ये आप ही बताइये ।
स्वस्थ तन और स्वस्थ मन दोनों ही आवयशक हैं ।
कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ो ,बहुत आवयशक है स्वयं के लिए समाज और देश की प्रग्रति के लिये परन्तु ध्यान रहे कि शरीर की गाड़ी के सारे पुर्जे ठीक रहें *।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...