*उजाले की ओर......

संध्या का आना
देवालयों में दियों
की लौ का जगमागाना
घंटा ध्वनि और शंखनाद की गूंज
प्रार्थनाओं के स्वर
करते मन को पवित्र
आंगन ,मोहल्ले ,चौराहे
सभी उजाले से जगमगाए
मेरे मन का दीप अभी भी बुझा था
उसमे ना कोई आस बची थी
आशा का ना तेल कभी डला था
ना विश्वास की डोर बची थी
मेरे सूने मन का कैसे दीप जलाऊं
कैसे निराशा में आशा की किरण लाऊं
आखिर फिर एक बार उम्मीद का दिया जलाया
उसे नकारात्मक विचारों के भंवर से बचाया
तूफ़ान तो बहुत आया,
आंधियों ने मेरा हौंसला बहुत आजमाया ,
पर इस बार ना मैंने उम्मीद के
दिए को बुझने दिया अब जाकर
कहीं मेरे मन का अंधेरा दूर हो पाया
सकारात्मक विचारों का जब उजियारा फैलाया।






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...