*अस्तित्व मेरा समुंदर*

**पूर्ण से शून्य की यात्रा
शून्य से फिर पूर्णता की
यात्रा ,शून्य का शून्य हो जाना ही
पूर्णता की यात्रा है...

कोयले की खान से
हीरे चुन कर लाने हैं
ये जिन्दगी बारूदी
सुरंग है, संभलकर चलना ज़रा ....

बहुत भटका बूंद बनकर
अस्तित्व मेरा समुंदर था
मैं अनभिज्ञ था समुंदर ही
मुझमें था ....

भटकता फिरता हूं दुनियां
 के मेले में,स्वयं की खोज में और
स्वयं का ही अस्तित्व मिटा बैठता हूं....

आया था दुनियां के
मेले में मौज -मस्ती करने को
मेले के आकर्षण में कुछ इस
कदर खोया की घर वापिसी
 का रास्ता ही भूल गया....



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...