🌍🚶♀️🏃🏻♀️जीवन - मनुष्य और संसार ............
ये सृष्टि , सृष्टि में अनेकों ग्रह ....🌕🌝🌒🌏
इस सृष्टि का सबसे सुंदर ग्रह "पृथ्वी "
परमात्मा ने जब इस सृष्टि की रचना की ,हम मनुष्यों के लिये जो परमात्मा के ही अंश हैं यानि परमात्मा की संताने .....जिस प्रकार एक माता -पिता अपनी संतानों के सुंदर जीवन के लिए व्यवस्था करते हैं ..........
परमशक्ति ,परमात्मा द्वारा पृथ्वी नाम के इस ग्रह को असंख्य सुविधाओं से भर दिया गया ,प्रकृति में
इतनी सुन्दर व्यवस्था की गयी है ,कि प्रकृति की अनमोल सम्पदाओं के भण्डार कभी ख़ाली नहीं हो सकते ।
सोचने -समझने की अनुपम भेंट ,जिसे हम बुद्धी कहते हैं ।
अच्छा और बुरा परखने की शक्ति .....
प्रकृति की अनमोल सम्पदा, धरती पर परमशक्ति द्वारा असंख्य खनिज पदार्थों की देन ......
"अविष्कार आव्य्श्क्ता की जननी है "प्रग्रति उन्नति का सूचक है ।
परंतु उन्नति के नाम पर प्रकृति से इतनी अधिक छेड़छाड़ भी उत्तम नहीं कि प्रकृति का स्वरूप ही बिगड़ जाये ।
मेरा आज का विषय है , जबकि प्रकृति द्वारा इस सृष्टि पर सम्पूर्ण व्यवस्था की गयी है इसके बावजूद आज का मानव
असंतुष्ट है क्यों ?
क्या जो है ? पर्याप्त नहीं है ? ऐसा तो नहीं मनुष्य की भूख बड़ गयी है शायद ......नहीं भूख नहीं लोभ बड़ गया है
भण्डार तो ऐसे भरता है आज का मानव ......मानो धरती पर अमरता का वरदान लिखा के लाया हो ..,..
चाहे भण्डारों में पड़ा हुआ सब सड़ जाये परन्तु किसी और को नहीं खाने दूँगा चलिए आपातकाल की स्तिथी के लिए थोड़ा बहुत भंडारण उत्तम है परंतु सड़ने की हद तक अपराध है ।
दूसरी तरफ़ आज समाज में देख -दिखावा भी आव्यशकता से अधिक बड़ गया है .......
किसी का भी सम्मान करना अच्छी बात है ...यही भारतीय संस्कृति की परम्परा भी है .......
सम्मान का तात्पर्य कभी भी देख -दिखावा तो नहीं ...,
सम्मान तो हमेशा भावों से होता है व्यवहार में निहित होता है ...
दूसरी तरफ़ रीति -रिवाजों के नाम पर दिखावा ....दिखावा भी ऐसा की .....मानो गले की फाँसी ...
हमारे यहाँ तो रीति -रिवाजों के नाम पर लोग अंधों की तरह सिर्फ़ होड़ में लगे रहते हैं ,सिर्फ़ दिखावा ...
शादी -ब्याह आदि आयोजनों में अंधाधुंध ख़र्चा करना ....
आव्य्श्क्ता से अधिक तो दूर की बात ,व्यंजनों की अति अधिकता
जितना खाना खाया नहीं जाता उससे कहीं अधिक भोजन की बर्बादी ...ऐसा दिखावा किस काम का
जिस देश की आधी आबादी को भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता ,और जहाँ की जनता कभी -कभी एक समय खाना खाकर भी अपना गुज़ारा करती हैं और कई मासूम बेचारे जूठन खाकर अपना पेट भरने को मजबूर है ...
आप बताइये ये कहाँ की समझदारी है ।
बस -बस करो ......दिखावा इस धरती पर कुछ शाश्वत नहीं ....फिर क्यों इतनी आप धापि
सम्मान ऐसा हो जो भावों में हो निहित हो ...
दिखावा करना है तो मुस्कराहट संग सभ्य व्यवहार का करो ।
प्रकृति द्वारा अक्षय सम्पदा सृष्टि में व्याप्त है
मनुष्य को चाहिये कि परमात्मा द्वारा प्राप्त अनुपम भेंट अपनी बुद्धि ,सोचने समझने की शक्ति
द्वारा अपने तन कभी सदुपयोग करते हुए समाज को एक सुन्दर स्वरूप प्रदान करे ।
व्यर्थ की उलझनो में उलझ कर स्वम का जीवन बोझिल ना बनाएँ
प्रकृति स्वयं में सम्पूर्ण है इसका दुरुपयोग ना करें ।
दिखावों से बचें ,प्रकृति का संरक्षण के प्रकृतिक सम्पदा की अनमोल भेंट सबको समर्पित करें .....
वास्तविक ख़ुशी का आदान -प्रदान करें .,,.,,😆😃😀😀🍀🌲☘️🍀🌲😃😀
ये सृष्टि , सृष्टि में अनेकों ग्रह ....🌕🌝🌒🌏
इस सृष्टि का सबसे सुंदर ग्रह "पृथ्वी "
परमात्मा ने जब इस सृष्टि की रचना की ,हम मनुष्यों के लिये जो परमात्मा के ही अंश हैं यानि परमात्मा की संताने .....जिस प्रकार एक माता -पिता अपनी संतानों के सुंदर जीवन के लिए व्यवस्था करते हैं ..........
परमशक्ति ,परमात्मा द्वारा पृथ्वी नाम के इस ग्रह को असंख्य सुविधाओं से भर दिया गया ,प्रकृति में
इतनी सुन्दर व्यवस्था की गयी है ,कि प्रकृति की अनमोल सम्पदाओं के भण्डार कभी ख़ाली नहीं हो सकते ।
सोचने -समझने की अनुपम भेंट ,जिसे हम बुद्धी कहते हैं ।
अच्छा और बुरा परखने की शक्ति .....
प्रकृति की अनमोल सम्पदा, धरती पर परमशक्ति द्वारा असंख्य खनिज पदार्थों की देन ......
"अविष्कार आव्य्श्क्ता की जननी है "प्रग्रति उन्नति का सूचक है ।
परंतु उन्नति के नाम पर प्रकृति से इतनी अधिक छेड़छाड़ भी उत्तम नहीं कि प्रकृति का स्वरूप ही बिगड़ जाये ।
मेरा आज का विषय है , जबकि प्रकृति द्वारा इस सृष्टि पर सम्पूर्ण व्यवस्था की गयी है इसके बावजूद आज का मानव
असंतुष्ट है क्यों ?
क्या जो है ? पर्याप्त नहीं है ? ऐसा तो नहीं मनुष्य की भूख बड़ गयी है शायद ......नहीं भूख नहीं लोभ बड़ गया है
भण्डार तो ऐसे भरता है आज का मानव ......मानो धरती पर अमरता का वरदान लिखा के लाया हो ..,..
चाहे भण्डारों में पड़ा हुआ सब सड़ जाये परन्तु किसी और को नहीं खाने दूँगा चलिए आपातकाल की स्तिथी के लिए थोड़ा बहुत भंडारण उत्तम है परंतु सड़ने की हद तक अपराध है ।
दूसरी तरफ़ आज समाज में देख -दिखावा भी आव्यशकता से अधिक बड़ गया है .......
किसी का भी सम्मान करना अच्छी बात है ...यही भारतीय संस्कृति की परम्परा भी है .......
सम्मान का तात्पर्य कभी भी देख -दिखावा तो नहीं ...,
सम्मान तो हमेशा भावों से होता है व्यवहार में निहित होता है ...
दूसरी तरफ़ रीति -रिवाजों के नाम पर दिखावा ....दिखावा भी ऐसा की .....मानो गले की फाँसी ...
हमारे यहाँ तो रीति -रिवाजों के नाम पर लोग अंधों की तरह सिर्फ़ होड़ में लगे रहते हैं ,सिर्फ़ दिखावा ...
शादी -ब्याह आदि आयोजनों में अंधाधुंध ख़र्चा करना ....
आव्य्श्क्ता से अधिक तो दूर की बात ,व्यंजनों की अति अधिकता
जितना खाना खाया नहीं जाता उससे कहीं अधिक भोजन की बर्बादी ...ऐसा दिखावा किस काम का
जिस देश की आधी आबादी को भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता ,और जहाँ की जनता कभी -कभी एक समय खाना खाकर भी अपना गुज़ारा करती हैं और कई मासूम बेचारे जूठन खाकर अपना पेट भरने को मजबूर है ...
आप बताइये ये कहाँ की समझदारी है ।
बस -बस करो ......दिखावा इस धरती पर कुछ शाश्वत नहीं ....फिर क्यों इतनी आप धापि
सम्मान ऐसा हो जो भावों में हो निहित हो ...
दिखावा करना है तो मुस्कराहट संग सभ्य व्यवहार का करो ।
प्रकृति द्वारा अक्षय सम्पदा सृष्टि में व्याप्त है
मनुष्य को चाहिये कि परमात्मा द्वारा प्राप्त अनुपम भेंट अपनी बुद्धि ,सोचने समझने की शक्ति
द्वारा अपने तन कभी सदुपयोग करते हुए समाज को एक सुन्दर स्वरूप प्रदान करे ।
व्यर्थ की उलझनो में उलझ कर स्वम का जीवन बोझिल ना बनाएँ
प्रकृति स्वयं में सम्पूर्ण है इसका दुरुपयोग ना करें ।
दिखावों से बचें ,प्रकृति का संरक्षण के प्रकृतिक सम्पदा की अनमोल भेंट सबको समर्पित करें .....
वास्तविक ख़ुशी का आदान -प्रदान करें .,,.,,😆😃😀😀🍀🌲☘️🍀🌲😃😀