**मै इंसान **

 ना जाने क्यों भटक जाता हूँ ,
 अच्छा खासा चल रहा होता हूँ," मैं"
 पर ना जाने क्या होता है ,
 ना जाने क्यों राहों के बीच मे ही उलझ जाता हूँ" मै"
जानता हूँ ,ये तो मेरी राह नहीं ,
मेरी मंजिल का रास्ता यहाँ से होकर तो नहीं जाता,
फिर भी न जाने क्यों ?आकर्षित हो जाता हूँ "मैं "
भटक जाता हूँ ,"मैं" हासिल कुछ भी नहीं होता
बस यूँ ही उलझ जाता हूँ "मै"फिर निराश -हताश
वापिस लौटकर अपनी राहों की और आता हूँ "मैं"
फिर आत्मा को चैन मिलता है ।
अपनी राह से कभी ना भटक जाने की सौगंध लेता हूँ।"मैं"
जीवन एक सुहाना सफ़र है ।
"मैं"मुसाफिर"अपने किरदार में सुंदर -सुंदर रंग भरना चाहता हूँ "मैं" बस हर दिल मैं प्यार भरना चाहता हूँ" मैं"
          बस जिन्दगी के नाटक मे अपना किरदार बखूबी निभाना चाहता हूँ "मै"

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...