विधा :- नवगीत प्रदत पंक्तियां

ऊर्मिया घूंघट उठाकर
फिर मचलती आ रही है


 मन की आंखों के घूंघट से
 नयनों में पलकों के पर्दों से
 मेरे दिल के दरवाजों से
 मेरा सपना कहता है मुझसे

 जैसे सीप में मोती
 नयनों में ज्योति 
घूंघट की आड़ में
पगली क्यों रोती

तारों की बारात है सजी
चन्दा को चांदनी जमीं पर उतरी
सपनों के सच होने में अब ना होगी देरी
देख उर्मीया घूंघट उठाकर
फिर मचलती आ रही हैं ।

स्वरचित, ऋतु असूजा







युग परिवर्तन


 निसंदेह युग परिवर्तन ने
दी है दस्तक ,चार पहियों
की रफ्तार थम गई है ।

 बहाना चाहे कोई भी हो
घरों में रिश्ते जीवंत हो रहे हैं
जीवन कल भी था जीवन आज
भी है, बचपन संस्कारित हो रहा है ।

ना जाने इससे पहले क्या कर
रहे थे,भाग रहे थे,जी कल भी
रहे थे जी आज भी रहे हैं
 क्या ज्यादा पाने के लालच में
अपना आज भी दांव पर लगा
रहे थे, कल जो देखा नहीं उन
खुशियों की खातिर अपना आज
भी गंवा रहे थे ।
आज कारण चाहे कोई भी हो
आज में जी रहे हैं ,खुश हैं की
सब साथ में हंस बोल रहे हैं ।
कल जीने की खातिर नए सपने
संजो रहे हैं ,सम्भल कर चल रहे हैं ।




आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...