'' खुला दरवाजा ''
आज मैं कई महीनों बाद अपने दूर के रिश्ते की अम्मा जी से मिलने गयी। ना जाने क्यों दिल कह रहा था ,की
ऋतु कभी अपने बड़े -बुजर्गों से भी मिल आया कर। आज कितनी अकेली हैं वो अम्मा , कभी वही घर था ,
भरा पूरा , अपने चार बच्चे , देवर -देवरानी उनके बच्चे , सारे दिन चहल -पहल रहती थी , ये नहीं की मन मुटाव नहीं होते थे , फिर भी दिलों मे मैल नहीं था। दिल लगा रहता था मस्त।
मुझे याद है , जब उनके बडे बेटे की शादी हुई थी , बहुत खुश थी अम्मा की बहू आएगी ,चारों तरफ खुशियाँ होगी ,पोते -पोतियों को खिलाऊँगी ,कुछ महीने तो सब ख़ुशी -ख़ुशी चलता रहा , परन्तु अचानक एक दिन
बेटे की नौकरी का तबादला हो गया , वह तबादला ट लने वाला नहीं था ,बस क्या था बहू बे टा दूसरे शहर बस गए।
एक एक करके चारों बेटों की शादियाँ हो गयी। सब कुछ ठीक से चलता रहा ,परन्तु आज वो सयुंक्त परिवार में रहने वाली अम्मा जिसके सवयं के चार बेटे -बहुएँ पोते -पोतियाँ हैं ,सब अपने अलग -अलग मकानों में अलग जिंदगियाँ बिता रहें हैं।
बूढ़ी अम्मा के घर का दरवाजा यूँ ही बंद रहता है। कोई कुंडा या ताला नहीं लगाती हैं अम्मा जी , बस यूँ ही बंद रहता है , मैंने दरवाजा खोला और बोला , अम्मा कुंडा तो लगा लिया करो कोई चोर आ गया तो ,अम्मा अपने दिल के दर्द को छुपाते हुए बोली ,और कैसी है तू ठीक है ,मीठी सी मुस्कान लिए मैंने भी सि र हिल दिया।
मैंने कहा अम्मा रात को भी कुंडा नहीं लगाती हो क्या ,अम्मा बोली कोई क्या चोरी कर के ले जाएगा अब कुछ
नहीं है मेरे पास अपने आँसूओं को दबाते हुए बोली ,…। मुझसे नहीं रह गया मैंने प्यार से अम्मा को गले लगा लिया ,अम्मा अपने आँसूओं में अपनी जैसे कई अम्मॉँ के दिल का दर्द ब्यान कर गयी। ……
आज मैं कई महीनों बाद अपने दूर के रिश्ते की अम्मा जी से मिलने गयी। ना जाने क्यों दिल कह रहा था ,की
ऋतु कभी अपने बड़े -बुजर्गों से भी मिल आया कर। आज कितनी अकेली हैं वो अम्मा , कभी वही घर था ,
भरा पूरा , अपने चार बच्चे , देवर -देवरानी उनके बच्चे , सारे दिन चहल -पहल रहती थी , ये नहीं की मन मुटाव नहीं होते थे , फिर भी दिलों मे मैल नहीं था। दिल लगा रहता था मस्त।
मुझे याद है , जब उनके बडे बेटे की शादी हुई थी , बहुत खुश थी अम्मा की बहू आएगी ,चारों तरफ खुशियाँ होगी ,पोते -पोतियों को खिलाऊँगी ,कुछ महीने तो सब ख़ुशी -ख़ुशी चलता रहा , परन्तु अचानक एक दिन
बेटे की नौकरी का तबादला हो गया , वह तबादला ट लने वाला नहीं था ,बस क्या था बहू बे टा दूसरे शहर बस गए।
एक एक करके चारों बेटों की शादियाँ हो गयी। सब कुछ ठीक से चलता रहा ,परन्तु आज वो सयुंक्त परिवार में रहने वाली अम्मा जिसके सवयं के चार बेटे -बहुएँ पोते -पोतियाँ हैं ,सब अपने अलग -अलग मकानों में अलग जिंदगियाँ बिता रहें हैं।
बूढ़ी अम्मा के घर का दरवाजा यूँ ही बंद रहता है। कोई कुंडा या ताला नहीं लगाती हैं अम्मा जी , बस यूँ ही बंद रहता है , मैंने दरवाजा खोला और बोला , अम्मा कुंडा तो लगा लिया करो कोई चोर आ गया तो ,अम्मा अपने दिल के दर्द को छुपाते हुए बोली ,और कैसी है तू ठीक है ,मीठी सी मुस्कान लिए मैंने भी सि र हिल दिया।
मैंने कहा अम्मा रात को भी कुंडा नहीं लगाती हो क्या ,अम्मा बोली कोई क्या चोरी कर के ले जाएगा अब कुछ
नहीं है मेरे पास अपने आँसूओं को दबाते हुए बोली ,…। मुझसे नहीं रह गया मैंने प्यार से अम्मा को गले लगा लिया ,अम्मा अपने आँसूओं में अपनी जैसे कई अम्मॉँ के दिल का दर्द ब्यान कर गयी। ……