*जहर उगलने वाला नहीं, ज़हर पीने वाला हमेशा महान होता है*
* बनना है तो उस कड़वी दवा की तरह बनिये जो शरीर में होने वाले रोगों रुपी ज़हर को नष्ट करती है ,ना कि उस ज़हर की तरह जो विष बनकर किसी को भी हानि ही पहुंचता रहता है*
* शब्दों का उपयोग बड़े सोच समझ कर करना चाहिये
कुछ लोग कहते हैं ,हम तो दिल के साफ हैं ,जो भी कहते हैं ,
साफ-साफ कह देते हैं ,हम दिल में कुछ नहीं रखते ।
अच्छी बात है ,आप सब कुछ साफ-साफ बोलते हैं ,दिल में कुछ नहीं रखते ।
दूसरी तरफ आपने ये भी सुना होगा कि ,शब्दों का उपयोग सोच-समझ कर करिये । "मुँह से निकले हुए शब्द "और "कमान से निकले हुए तीर"वापिस नहीं जाते ,कमान से निकला हुआ तीर जहाँ पर जा कर लगता है ,अपना घाव कर जाता है ,अपने निशान छोड़ ही जाता है ,माना कि घाव ठीक हो ही जाता है,परंतु कड़वे शब्दों के घाव जीवन भर दिलों दिमाग पर शूल बनकर चुभते रहते हैं ।
हमारे प्राचीन, ग्रन्थ,इतिहास इस बात के बहुत बड़े उदाहरण हैं,कि देवताओं और दानवों की लड़ाई के समय *समुद्र मंथन हुआ *उस समय समुद्र से *अमृत और *विष दोनों निकले ,कहते हैं समुद्र मंथन से निकला हुआ विष एक जलजले के रूप में था ,अगर उस जलजले को यूं ही छोड़ दिया जाता तो वो सम्पूर्ण विश्व को जहरीला कर देता और युगों-युगों तक उसका असर आने वाली नस्लों को जहरीला करता रहता । सम्पूर्ण विश्व को उस जहरीले विष रूपी जलजले से बचाने के लिये ,*परमात्मा शिव शंकर ने उस विष को अपने कंठ में धारण किया ,और भगवान शिव तब से *नीलकंठ *कहलाये । तातपर्य यह कि, कई बार इस तरह के विष रूपी शब्दों के जहर से अपने कुटुम्ब, व समाज को जहरीला होने से बचाने के लिये कड़वे जहर रूपी विष को पीना पड़ता है ।*जहर उगलने वाला नहीं ,जहर पीना वाला ही हमेशा पूजनीय होता है*
जहाँ बात सत्य की है,सत्य कुछ समय के लिये झूठ के काले घने बादलों के बीच छुप जरूर सकता है ,पर जैसे ही काले घने बादल हटते हैं ,सत्य सामने होता है ,जिस तरह साफ-स्वच्छ निर्मल जल सब कुछ साफ-साफ दिखायी देता है ,चाहे वो कंकड़ हो या हीरा ।