*विशाल जड़ें*

बंजर पथरीली सुखी पड़ी राहों पर
पड़ गई है दरारें अब इन राहों पर
कोई बड़ा वृक्ष नहीं जिसकी बड़ी- बड़ी
विशालकाय जड़े धरती पर
नमी को अपने अंदर समा सकें
और धरती की प्यास बुझा सके उसे पोषित कर सके

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...