जिंदा रहने का शौंक

जिंदा है वो जो जीने 
का शौंक रखता है 
शख्सीयत मेरी मिट्टी 
ही सही,लेकिन भव्य
किले,महल बनाने के 
बुलंद हौसले रखता हूं।

मैं अजनबी निकला हूं
अजनबी शहर में
कुछ पाने को 
दिल को समझाने को 
किसी को अपना बनाने को 

मुसाफिरों की भीड़ में
मैं भी एक मुसाफ़िर
सजा रहा हूं आशियाने को
जानता हूं लौट जाना होगा
फिर ना आना होगा 
इसी लिए तो छोड़ जाने को
बेताब हूं कुछ अमिट अनमोल 
निशानियों को ....

जाने से पहले कुछ ऐसी
 छाप छोड़ जाऊंगा याद 
आता रहूंगा अपने द्वारा 
रची कहानियों से कर्मों की 
निशानियों से ....




आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...