*मंजिले राह इतनी आसान नहीं **



*क्योंकि मेरी मंज़िल का रास्ता यहीं से होकर गुज़रता है *


“ डर जाता हूँ , अक्सर टेड़े - मेड़ें रास्ते देखकर
क्योंकि मेरी मंज़िल का रास्ता यहीं से होकर
जाता है , चलता रहता हूँ , चोट खाता हूँ ,
ज़ख़्मी भी होता हूँ ,
पर ठहरता नहीं ....
कभी विशाल पर्वत, तो कभी गहरी खायी ,
क्योंकि मेरी मंज़िल का रास्ता ऐसी ही राहों से
होकर गुज़रता है , चलना पड़ता है ,
कभी सोचता हूँ , लौट जाऊँ , राहें बड़ी कँटीली हैं
मंज़िल भी दूर तक नज़र नहीं आती .........
ऐसा नहीं कि मैं डरपोक हूँ ...
परन्तु फिर भी ...
कभी - कभी ऐसा सोचता हूँ
क्यों मेरे ही हिस्से में तमाम मुश्किलें आयी
एक समय था , मैं था और गहरी खायी
ज़िन्दगी और मौत की हो रही थी लड़ाई
तभी किसी की कही बात याद आयी
गहरायी में ही मिलते हैं , हीरे जवाहरात
तू करता रह खुदायीं ,जितनी अधिक होगी
गहरायी , उतनी ही उन्नत होगी तेरी ज़िन्दगी की
मंज़िलों की ऊँचाई।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...