अमर प्रेम की पवित्र डोर

 रक्षा बंधन का पर्व ,
      भाई बहन का गर्व ,
 निश्छल पवित्र प्रेम का अमर रिश्ता
बहन भाई की कलाई में राखी.बांधते हुए कहती है, 
भाई ये जो राखी है ,ये कोई साधारण सूत्र नही ,
इस राखी में मैंने स्वच्छ पवित्र प्रेम के मोती पिरोये हैं ,
सुनहरी चमकीली इस रेशम की डोर में ,
भैया तुम्हारे  उज्जवल भविष्य की मंगल कामनाएं पिरोयी है ।
रोली ,चावल ,मीठा ,लड़कपन की वो शरारतें ,
हँसते खेलते बीतती थी दिन और रातें 
सबसे प्यारा सबसे मीठा तेरा मेरा रिश्ता 
भाई बहन के प्रेम का अमर रिश्ता कुछ खट्टा कुछ मीठा ,
सबसे अनमोल मेरा भैय्या,           
कभी तुम बन जाते हो मेरे सखा , 
और कभी बड़े  भैय्या ,  भैय्या मै जानती हूँ ,तुम बनते हो अनजान 
पर मेरे सुखी जीवन की हर पल करते हो प्रार्थना।
 भैय्या मै न चाहूँ ,तुम तो मुझको दो सोना ,चांदी ,और रुपया 
दिन रात तरक्की करे मेरा भैय्या ,
ऊँचाइयों के शिखर को छुए मेरा भैय्या 
रक्षा बंधन  की सुनहरी चमकीली राख़ियाँ 
सूरज ,चाँद सितारे भी मानो उतारें है आरतियाँ 
काश कभी हम भी किसी के भाई बने,    और कोई बहन हमें भी बांधे राखी 
 थोड़ा इतरा कर हम भी दिखाएँ कलाई देखो इन हाथों में भी है राखी

सत्यम शिवम् सुंदरम्

वतन की मिट्टी से जब शहीदों के शौर्य की खुशबु आती है ,
            आँख नाम हो जाती है ,जुबाँ गुनगुनाती है ,
वन्दे मातरम् ,वंदे मातरम्   ,सारे जाहाँ से अच्छा दिन्दुस्तान हमारा ,
माँ सी ममता मिलती है ,रोम रोम प्रफुल्लित हो जाता
            जब  भारत  को भारत माँ  कह के बुलाता हूँ
भिभिन्न परम्परा में रंगा हुआ हूँ ,पर जब जब देश पर विपत्ति आती
                 एक रंग में रंग जाता हूँ ,
हिंदुत्व की पहचान ,हिंदी हमारी मात्र भाषा ,हिंदी में जो बिंदी है,
वह भारत माता के माथे का श्रृंगार,बिंदी की परम्परा वाला मेरे देश की
विशव में है विशिष्ट पहचान ,प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ता
           उन्नति के शिखर को छूता, मेरा भारत महान
भारत माँ की छाती चौड़ी हो जाती ,जब शून्य डिग्री पर
खड़े सिपाही बन देश का रक्षा प्रहरी भारत माँ की खातिर
मर मिटने को अपने प्राणों की बलि चढ़ाये
नाज है, मुझे सवयं पर जो मैंने भारत की धरती पर जन्म लिया
जीवन मेरा सफल  होगा ,हिदुस्तान में फिर से राम राज्य.होगा
हिदुस्तान फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा।
इतना पावन है ,देश मेरा यहां नदियों में अमृत.बहता है ,
इंसान तो क्या पत्थर भी पूजा जाता है ।

रंग मंच

कारण  तो बहुत  हैं , शिकवे  शिकायतें करने  के 
 मगर  जब  से हमने हर  मौसम  में लुत्फ़ लेना सीख  लिया ,
जिंदगी के सब शिकवे बेकार हो गए ।
ज़िन्दगी  तो  बस एक नाटक  है , दुनियाँ के  रंगमंच में हमें अपने किरदार को बखूबी निभाना है ।
फिर क्यों रो _रो कर दुखी होकर गुजारें जिंदगी 
जीवन के हर किरदार  का  अपना एक अलग अंदाज़ है क्यों अपना-अपना किदार बखूबी निभा लें हम 
इस नाटक की एक विशेष बात है , क़ि हमने जो परमात्मा से मस्तिक्ष की निधि  पायी है ,
बस उस निधि का उपयोग  ,करने की जो छूट है ,उससे  हमें खुद के रास्ते बनाने होते हैं 
हमारी समझ हमारी राहें निशिचित करती हैं ,
परिश्रम ,निष्ठा, और निस्वार्थ कर्मों का मिश्रण जब होता है,
तब मानव  अपने किरदार में सूंदर रंग भारत है,और तरक्की की सीढियाँ चढ़ता है ,
भाग्य  को कोसने वाले अभागे होते हैं ,
वह अपने किदार में शुभ  कर्मों का पवित्र रंग तो भरते नहीं ,
फिर भाग्य को कोसते हैं , और परमात्मा को दोषी ठहराते हैं 

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...