*ख्वाबों का सच *

  ख्वाबों में ख्वाबों को
 सच करने की गलती
 हर रोज करता हूं
  ख्वाबों के सच होने
 की हकीकत जानता हूं की
 हर रोज ख्वाब टूटते हैं
 फिर भी ये गलती
 मैं हर रोज  करता हूं ।

 हर रोज एक ख्वाब
 पूरा करने को
हजारों ख्वाहिशों की
 बलि चढ़ाता हूं।

कल किसने देखा
जानता हूं
फिर भी आज को जीना
छोड़कर कल जीने के लिए
आज मर-मर कर जीता हूं ।

ख्वाबों में रेत के महल
बनाता हूं फिर फिसल जाने पर
अफसोस मनाता हूं ।

 खुशनसीब कहूं
 या अपनी बदनसीबी
 बेमिसाल महलों का मालिक हूं
फिर भी झोपड़ियों में दिन गुजरता हूं ।





आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...