गीली मिट्टी



चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यूं आकार प्रिए
नव सृजन की नव रचना
कोमल,प्यारी नन्हीं कलियां
मन हर्षित होकर अपना
सुन्दर जीवन और शुभ सपना।

चाक चले जब गीली मिट्टी
कच्ची मिट्टी का नव आकार
व्याकुल मन के सपने हजार
देने को नव रंगो का संसार
आतुर हो रहा चित्रकार।

चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार
दुनियां में पहचान बनेगी
मेरी कृति महान बनेगी
दूंगा मैं तुझे दिव्य संस्कार
उच्च आदर्शों का व्यवहार।


चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार
अग्नि परीक्षाओं का संसार
ठोक पीट का व्यवहार
तू संवरेगा तू निखरेगा
चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार










जिन्दगी कोई रेस तो नहीं

जिन्दगी है साहब 
कोई रेस नहीं
इतना दौड़ कर जाओगे 
कहां ? जिन्दगी कोई प्रतिस्पर्धा
नहीं ,जीवन के आरम्भ और अंत
 का खेल है सारा

भागना सिर्फ भागना
ही तो नहीं जिन्दगी 
थोड़ा संभलकर चलें
जिन्दगी स्वयं की है 
सीमित रफ्तार से चलें

यात्रा पर हो
सफ़र का आनंद लो
यात्रा पर यात्रा
ना दो स्वयं को यातना
स्वयं ही स्वयं की प्रताडना
मनुष्य की विचित्र विडम्बना

सिलसिला है, सफ़र का
बेहतरीन यादों का सिलसिला
संग ले जाईए
कुछ लाज़वाब दे जाइए
कुछ सर्वश्रेष्ठ कर्मों के कर्मफल
का मुनाफा ले जाइए ।








लोभ ,कपट अब व्यसन रोग से
मुक्ति की युक्त
आंखे मूंद कर बैठा हूं
कर रहा हूं प्रभु सिमरन।

संसार प्रलोभन में
क्यों उलझ जाता है मन
बड़ा ही निष्ठुर ,और प्रलोभी
है यह मन।मुक्ति की युक्ति को
करू लाख जतन ।


मुक्ति के द्वार कब खुलेंगे
युक्तियों में मैं उलझा
कर्मकांड मुझ को भरमाया
जप-तप नियम सब किए
मन का द्वार खोल ना पाया

मुक्ति द्वार पर भिक्षा मांगू
हे प्रभु अन्तर्मन के चक्षु खोलो
भाग्य मेरे का मार्ग दिखाओ
रहस्य खोलो, युक्ति की
परिभाषा बोलो।

मुक्ति की युक्ति को
लोभ,कपट,सब व्यसन है छोड़े
मन के नैना में प्रभु बसाए
सब और बस प्रभु नजर आए

यूं ही मैं भटका बेघर होकर
प्रभु मिले मुझे मेरे ही अंदर
नयनों में दरिया ,दिल में समुन्द्र
द्वार मुक्ति का मन मन्दिर के अंदर।







अनसुनी चीख


जीवन पंक्ति के पन्नों में
कुछ पन्ने रहे अधूरे
सटीक उत्तर की चाहत में
प्रश्न मेरे रहे निरुत्तर
शब्द व्यंगों के तीखे तीर
कमल हृदय में अनसुनी चीख
हृदय पीर से शब्द पिघलते
वर्ण वर्ण आकार लिए
विचारों समुंदर बीच भवंडर
लहरों का आना-जाना
तूफानों का तबाही मचाना
बिछड़न का नासूर दे जाना
दर्द ए दिल का नया बहाना
अद्भुत प्रकृति रीत विधाता
परखे वक़्त कसौटी
घात हृदय विरह गीत गाता
मन ही मन को स्वयं समझाता
गंभीर पीर पर भारी पीड़
रक्तिम अधर पर बंसी रीत
मेघ-मल्हार राग भैरवी
पाषाण प्रहार ओलावृष्टि
हृदय पीर संग अश्रु द्रव्य
राख आत्मजा भाव तरलता
हृदय पीर पिघलते शब्द
वर्ण आकार लिए दर्द
व्यंग शब्द तीखे तीर
कमल हृदय अनसुनी चीख  ।

















* कर्मवीरों के पदचिन्ह*

महान विभूतियां
सत्य मार्ग की
जागृति हैं आज सभ्य
समाज की, सत्य धर्म
के कर्मवीर के पदचिन्हों का
अनुसरण सफल जीवन
का प्रथम उद्देश्य
इतिहास गवाह है
जिन पदचिन्हों का।
उन पद चिन्हों की छापों
का अनुसरण मातृ भूमि की शान
बड़ेगी युगों युगों तक
उच्च संस्कारों के आदर्शों
का अनुसरण जीवन का
महानतम उद्देश्य
त्याग,दया,तपस्या
निस्वार्थ प्रेम एवं
नित संघर्षों संग सत्यता
की मशाल का उजाला
नैतिक संस्कारों की
दिव्य मशाल  रहेगी
युगों -युगों तक प्रकाशित
जब तक धरती पर
शाश्वत सत्य के दीप जलेंगे
अन्धकार के द्वेष को भस्म करेंगे।
उजालों में मार्गदर्शक की
भूमिका  निभाते सत्य पथ के
महा नायकों के पदचिन्हों का अनुसरण
जीवन की सफलता का सूत्र बनेगा




दीपक तो हम जलाएंगे ही


*दीपक तो हम जलाएंगे ही
अंधेरा भी दूर भी भगाएंगें ही
 विरासत में जो हमें उच्च
 नैतिक संस्कारो की सम्पदा
 की वसीयत मिली है *

*हम विचारों को उच्चतम स्तर पर
पहुंचाकर मन के अन्धकार को दूर
करने को उच्च संस्कारों के बीज बोते हैं
आने वाले समाज को प्रकशित करने की
जो हमने ठानी है।

परस्पर प्रेम की ज्योति से
उच्च संस्कारों की तरलता से
अमन ,शांति के दीपक से
धरती को हम स्वर्ग बनाएं ।

भारतीयों की विरासत में
रामायण ,भागवतगीता ,वेद,उपनिषद्
आदि ग्रंथ प्रदान किए जाते है
भारतीय परम्परा लेने में नहीं देने में विश्वास करती है
और देता वही है जो स्वयं में बड़ा हो वृक्ष हो
जिसे अपनी जड़ों पर सम्पूर्ण विश्वास हो
ध्रुव,प्रहलाद की दृढ़ इच्छाशक्ति
विवेकानंद जैसी आत्मशक्ति
घर घर प्रेम की ज्योत जलेगी
वसुंधरा तब स्वर्ग बनेगी





अपना घर

दिखावे की दुनियां से दूर
मेरा घर शहर से बहुत दूर
लौट कर आए अपने वतन
मिला बड़ा सुकून
जैसा भी है
महल ना सही
छोटी सी झोपड़ी
में भी मिलता है
सुख-चैन भरपूर
तंग गलियां
कच्ची मिट्टी से बनी
उबड़- खाबड़ सड़कें
घर के आंगन में पड़ी
वो पुरानी चारपाई
पुराने जमाने की कुर्सी
सुकून तो वहीं बैठ गए
मिलता है ,ना खराब होने का
डर ना टूटने की चिंता
जैसे चाहो वैसे लुढ़क जाओ
घर में मां के हाथों से बने
भोजन का स्वाद,सच में भूख
तो मां के हाथों बने खाने से ही
मिटती है ,घर का खाना यानि पेट
भर के तृप्ति ।
दिखावे की दुनियां से दूर
मेरा घर शहर से बहुत दूर
परंतु फिर भी मुझे मेरे घर
पर है गुरूर ,पैसा ना सही
यहां खेतों में अन्न होता है
भरपूर ,मेरे घर में नहीं
सताती है किसी को भूख ।


क्षितिज एक चित्रकला

 अरुणोदय क्षितिज दृश्य
  प्रकृति निपुण चित्रकार
 सौम्य अलौकिक दिव्यता
 संग समर्पण और विश्वास

 मन दर्पण पनपते प्रश्न
 रंगों के अद्भुत सामंजस्य का संगम
 इंद्रधनुषी रंगों की कतार
 स्वर्णिम सपनों का सुन्दर संसार

कैनवास में कूची का विस्तार
नयनों के छाया चित्र का आधार
सटीक, चित्र पर रंग बिखेरता चित्रकार

क्षितिज के उस पार
मधुर मिलन की संपूर्णता
का एहसास ,सत्यता पर
पूर्ण विश्वास .....

दो किनारों का मिलन 
मानों नभ करता धरा का वंदन 
अद्भुत आभास 
दूर होकर भी निकट
विस्तृत ,विराट 
आकार ,गोलाकार कहीं तो
संभव होगा मिलन  
दोनों ही अस्तित्व का आधार.....
  

मौन की भी भाषा होती है .....

मौन की भी भाषा होती है 
सत्य,सटीक और निर्भीक 
मौन की भी भाषा होती है
आंखे भी बोलती है
शब्दों की भी जुबान होती 
किन्तु जो शब्द बोलते नहीं 
वो बहुत कुछ कह जाते हैं
कभी कोई वाक्य बनकर 
जब गीत ,कभी गजल,
या कभी कोई कविता या कहानी 
बनकर दिलों दिमाग़ पर अपनी 
अमिट छाप छोड़ अमर हो जाते
हैं ,कागज पर अंकित शब्द ......

मौन भी बोलता है ,सत्य ही तो है
कभी कोई सजीव सा चित्र भी बहुत कुछ कह 
जाता है, एक अनकही कहानी 
कभी कोई संदेश 
कभी किसी का दर्द, 
प्रेम,सुंदरता,भाव,बंगीमा सब क
जाता है एक सजीव चित्र भी
अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा बन उभरता है
जब किसी चित्रकार का चित्र 
तब कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ जाता है एक चित्र। मौन रहकर भी बोलती है प्रकृति 
कभी पतझड, बसंत , सावन, और समृद्धि के रूप में
हरियाली बनकर ,रंग-बिरंगे पुष्पों की सौगात बनकर ........


करोना योद्धा


वारियर्स यानि योद्धा
योद्धा के भी कई रूप होते हैं
क्योंकि जीवन में कई
पड़ाव ऐसे आते हैं
जब हमें उन परिस्थितियों का सामना
एक योद्धा की तरह करना पड़ता है
यानि ऐसी परिस्थिति जिससे
हमें बहुत क्षति हो सकती है
हमें जीवन और मृत्यु के
बीच की जंग लड़नी होती है
जंग में क्या होता है ,की हमें
स्वयं को सुरक्षित रखकर
अपने दुश्मन से या  फिर यूं कहिए
उस विषम परिस्थिति से बचकर
उस शत्रु को सबक सिखाते हुए
अपने मार्ग से हटाना होता है।

अमृत रस


नए युग का नया सवेरा
स्वर्णिम सपनों का
अद्भुत मेला
मन अलबेला
देखे स्वर्णिम युग का
नित्य नूतन सवेरा।

मन में भावनाओं
का गहरा समुंदर
जिसमे विचारों का
अद्वितीय खजाना
जीवन का तराना
सरगम की धुन पर
जीवन के उतार-चढ़ाव का
आना जाना ।

जीवन के हर राग
पर मधुर संगीत बजाना
अनुभूतियों के प्रवाह मध्य
बहती नदिया बीच मझधार
विवेक ज्ञान ही जिसका आधार

विचारों की कश्मकश का सागर
सागर में लहरों का उठना
कुछ अनकहा उछाल जाना।

गागर में जो सागर
छलक-छलक जाए
कभी गद्य कभी पद्य
विचारों के मंथन का अमृत रस
काव्य रस का अद्वितीय खजाना
मेरे सपनों में
स्वर्ग से सुन्दर
समाज का सपना
सत्यता की मशाल
लिए विचारों के द्वंद
से नित -प्रतिदिन युद्ध करना
हे परमात्मा मुझमें मेरी प्रतिज्ञा को
बुद्ध करना ,विचारों को नित्य शुद्ध करना ।








*दोहे संस्कृति और सभ्यता*

*भारतीय संस्कृति
का घोर पतन
देवालय बंद
मदिरालय खुले *

*लोभ का प्रचण्ड
तांडव नशे में
धुत मानव*

*चूल्हा ठंडा
बाल नयन अश्रु
भोजन ताकते चक्षु*

*उच्च संस्कारों की
धरती पर नग्न नृत्य
हाय! निंदनीय
संस्कृति का चीरहरण*

 *आधुनिकता के नाम पर
सभ्यता का ढोंग
मनुष्यता को लगाते
भद्दा दाग  *

" शोहरत का नशा *

( शोहरत का नशा जब चड़ता है,तब मनुष्य ऊपर बस ऊपर की और देखता है उसे यह भी ज्ञात नहीं होता की एक ना एक दिन यह नशा जब उतरेगा तब वह चित होकर धरती पर गिरेगा )

   रमन और मयंक दो मित्र थे ,बचपन से एक साथ एक ही विधालय में पड़े ,दोनों में अच्छी मित्रता थी ।
लेकिन जैसे -जैसे उम्र बड़ रही थी ,दोनों में एक अलग सी दूरियां पैदा होने लगी थी ।
रमन और मयंक यूं तो बहुत अच्छे मित्र थे और भावात्मक सम्बन्ध था रमन और मयंक में ।

  रमन को विरासत में अपने पिता का कारोबार ,जमीन जायदाद की हिस्सेदारी मिली थी ।

 वहीं मयंक एक मधयम परिवार से था ,मयंक पिताजी नौकरीपेशा थे ,और मयंक भी किसी कम्पनी में नौकरी करने लगा था ।

 रमन के रहन -सहन का स्तर ,बहुत बड़ गया था ,मंहगी, लम्बी गाड़ियों में घूमना उसे बहुत अच्छा लगता था । रमन ने अपने व्यापार में भी बहुत तरक्की कर ली थी ,शोहरत रमन के कदम चूम रही थी।

यहां मयंक अपने आफिस के काम काज में व्यस्त रहता था ।
एक दिन मयंक को आफिस के काम से रमन के पास जाना पड़ा ,कुछ कागजों में साइन करने थे , मयंक ने रमन के कमरे के बाहर खड़े वाच मेन से कहा ,की साहब को कहें की उनका मित्र मयंक आया है,आफिस के काम से, वॉचमैन अन्दर गया रमन ने का जवाब था ,की कागज दे दिए जाएं ,उन्हें पड़कर उनपर साइन हो जायेंगें ,यहां कोई किसी का मित्र नहीं सब कर्मचारी हैं ।
 थोड़ी देर में वॉचमैन ने साइन किए हुए कागज लाकर मयंक को दे दिए थे।
 मयंक ने वॉचमैन से कहा ,की वह रमन से निजी रूप से मिलना चाहता है ,आखिर वह उसका मित्र है ,यह संदेशा रमन जी को दिया जाए ।
 रमन ने वॉचमैन से कहलवा कर मयंक से मिलने को मना के दिया था ।
रमन उदास मन से वहां से जाने लगा ,अब मयंक समझ गया था की रमन की आंखों पर उसकी धन-दौलत और शोहरत का पर्दा चड़ चुका है ।
  तभी रमन ,अपने आफिस से बाहर जाते हुए चाल में तेजी थी ,और शोहरत का अहंकार था ।




आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...