*काजल भागों वाला*

* काजल जो बिखर 
जाए तो कालिख 
बन जाता है *
काजल तू काला है
फिर भी भाग्य वाला है 
तेरा रूप निराला है 
यकीनन किस्मत वाला है
सौंदर्य का तू प्रेमी है
बनकर काला टीका नज़र से बचाता है
सौंदर्य को निहार स्वयं भी आकर्षण का केंद्र बन जाता है , काजल तुम वास्तव में भागों वाले हो
तुम्हें ही नयनों में सजाया जाता है
सौंदर्य का प्रसाधन भी माना जाता है
ऐ काजल तुम नयनों की शोभा बढ़ाना
नज़र से भी बचाना परंतु कभी ना किसी के
जीवन में कालिख बनकर मत आना
आना तो सौंदर्य ही बढ़ाने के लिए आना
नज़र से बचाने के लिए आना ।

वक़्त लौटता है*
धारावाहिक सीरियल रामायण 1987में जब पहले दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था उस समय रामायण देखने के लिए भारत वर्ष के सभी अपने जरूरी काम छोड़कर ,यहां तक की सड़कों पर यातायात भी यदाकदा रामायण धारावाहिक देखने के लिए जहां टेलीविजन पर रामायण चल रहा हो रुक जाता था ...... आज समय ने कैसी करवट ली ,आज वैश्विक संक्रमण के कारण भारत के लोग अपने -अपने घरों में रुके हैं ...... और आज इस समय में रामानंद निर्देशित रामायण सीरियल फिर से दिखाया जा रहा है ,कौन कहता है प्रतिफल नहीं मिलता
(कल जिनके लिए हम रुके थे, आज हम रुके हैं तो वो हमारे लिए चल पड़े ) उदाहरणार्थ *रामायण ,महाभारत*

*आग और धुआँ *

*आग और धुआँ *


  *मैं ज्योति उजाले के साथ आयी
सब और उजाला छा गया
मैं ज्योति जलती रही चहुँ और
उजाला ही उजाला  ........
सबकी आँखे चुंध्याने लगीं
जब आग थी ,तो उजाला भी था
उजाले की जगमगाहट भी थी
जगमगाहट में आकर्षण भी था
आकर्षण की कशिश मे, अँधेरे जो
गुमनाम थे  झरोंकों से झाँकते
धीमे -धीमे दस्तक दे रहे थे।
  उजाले मे सब इस क़दर व्यस्त थे कि
ज्योति के उजाले का कारण किसी ने नहीं
जानना चाहा, तभी ज्योति की आह से निकला दर्द सरेआम हो गया
  आँखों से अश्रु बहने लगे
काले धुयें ने हवाओं में अपना घर कर  लिया जब तक उजाला था
सब खुश थे उजाले के दर्द
को किसी ने नहीं जाना
जब दर्द धुआँ ,बनकर निकला तो सब
उसे कोसने लगे।
बताओ ये भी कोई बात हुई
जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे
आज हमारी राख से धुआँ उठने लगा तो
सब हमें ही कोसने लगे
दिये तले अँधेरा किसी ने नहीं देखा
आग तो सबने देखी पर आग का की तड़प
उसका दर्द धुआँ बनकर उड़ा तो उसे  सबने कोसा
उसके दर्द को किसी ने नहीं जाना ।

मेरा धर्म इंसानियत है ****

* शर्मसार होती इंसानियत*
    नहीं- नहीं -नहीं , मैं नहीं करूंगा जो तुम मुझसे करवाना चाहते हो ,चाहे मैं और मेरे बच्चे भूख से मर जाएं पर हम ऐसा काम कभी नहीं करेंगे ।
 इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं और हम अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेंगे।
   अब्बा जान जरा दिमाग़ लगा कर सोचो ,सरकार ने नागरिकता बिल पास कराया है ,और सरकार का कहना है की सभी को नागरिकता लेनी पड़ेगी ....
 अब्बा जान - तो क्या हुआ ले लेंगे नागरिकता हमारा तो जन्म यहीं का है हमारी हमारा निकाह भी यहीं और यहीं के परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ा अब कोई हम कहीं और थोड़े जाने वाले हैं , ले लेंगे यहीं को नागरिकता और यहीं के होकर रहेंगे इसमें दिक्कत क्या है।

 अब्बा जान ,आप भी ना बहुत सीधे हैं ये हिन्दुस्तान है,यहां हिन्दुओं का राज रहेगा ।

अब्बा जान अपने पड़ोसी मित्र पर झल्लाते हुए तो लल्लन हमें कौन सा राज करना है ,हमसे अपना घर परिवार सम्भल जाए वो ही काफी है ।
लल्लन, अब्बा जान से तुम्हें कोई नहीं समझ सकता  जब धक्के मार कर बाहर निकाल  जाओगे ना तब
पता चलेगा ।
अब्बा जान मैं आज ही यहां की नागरिकता लेता हूं फिर कौन निकलेगा हमें बाहर जब हम यहीं के हो जाएंगे ।

 बहुत अच्छे से ट्रेनिंग दी गई थी इन युवाओं को

जानवर ,भेड़िए,आस्तीन के सांप ,जैसे कितने भी अपशब्द कम थे ऐसे देश के गद्दारों के लिए ,जिस थाली में खा रहे थे उसी में छेद कर रहे थे ।

भटके हुए प्राणी कुछ पैसों के लालच और गलत शिक्षा के कारण भटके हुए थे ये हिंसक युवा .....

जब नोटों का लालच दिखाया जाता है ,तब बड़े- बड़ों का ईमान डोल जाता है ।

और जब पापी पेट का सवाल हो तो ...

अपना पेट तो छोड़ो बच्चों की जरूरतों की खातिर ।

  अगले ही दिन टेलीविजन पर आज  कुछ उपद्रवियों ने किसी पुलिस चौकी के समीप पथराव किया ,

फिर एक और ख़बर उपद्रव की बड़ी खबरें  शहर में जगह -जगह हिंसा पथराव,कई लोग घायल .....

लगातार कई दिनों से हिंसा की घटनाएं चल रही थीं अब्बा जान मन ही मन बहुत परेशान थे कुछ कर भी नहीं पा रहे थे । आखिर अपने ही सगों के खिलाफ आवाज उठान इतना आसान नहीं था ,लेकिन अब्बा जान का जमीर इस बात की गवाही नहीं दे रहा था ।

 शहर के कई इलाके नफरत की आग में झुलस रहे थे ।

 अब्बा जान क्योंकि लल्लन के पड़ोसी मित्र थे ,और उम्र में भी बड़े तो सब उन्हें अपने अब्बा सामान ही समझते थे ,लेकिन सुनता कौन था उनकी ।

बस अब और नहीं अब्बा जान की आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी ,हर अगले दिन कौन सी वारदात होनी है उन्हें ख़बर होती  ,माना की वो उस वारदात का हिस्सा नहीं थे और ना ही चाहते थे परन्तु  हिंसा

या किसी वारदात की खबर होना और कुछ ना कर पाना यह भी किसी हिंसा से कम नहीं था ।

अब्बा जान स्वयं को दोषी मानने लगे थे ,अल्लाह तो सब जानता है ,क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का पाठ कभी नहीं पढाता  ।

अब्बा जान जब आल्लाह से मुलाकात होगी तो दोषी मैं भी ठहराया जाऊंगा ।

 अब्बा जान नहीं मुझे कुछ करना होगा कैसे रौंकू इस उपद्रव की गन्दगी को ....

अब्बा जान कश्मकश में थे उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी अब्बा जान अचानक कहीं चले गए ।

 पूरी रात बीत गई थी अब्बा जान घर नहीं पहुंचे थे घर वालों को चिंता हो रही थी ,आखिर अब्बा जान किधर गए ,कई जगहों से पता लगाया परंतु अब्बा जान का कुछ भी पता नहीं चल रहा था ।

 इधर दंगाइयों का उपद्रव सिर चड़ कर बोल रहा था ,शहर में आगजनी की वारदातें भी बड़ रही थीं ।

  पुलिस फोर्स भी इन दंगों पर काबू नहीं कर पा रही थी ।

 आखिर बढते हुए दंगे जान- माल का भारी नुकसान । अगले दिन ही समाचार सुनने को मिला की सरकार ने दंगा पीड़ित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है । शहर के हालात दो -चार दिन सामान्य होने लगे थे ।

   थोड़े दिनों बाद छब्बीस जनवरी थी ।

 आज अब्बा जान अच्छे से तैयार होकर कहां चले लल्लन ने व्यंग कसते हुए कहा ।

 गले में सम्मान प्रतीक मेडल और हाथ में राष्ट्रपति सम्मान का प्रमाण पत्र लिए अब्बा जान अपनी गली से अपने घर के लिए जा रहे थे अब्बा जान की चाल में  सवभिमान की साफ झलक रहा था ।

 गली के और घर के लोग बाहर खड़े मन ही मन अब्बा जान का स्वागत कर रहे थे ,खुश थे की अब्बा जान ने कुछ बेहतरीन काम किया है जो आज उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है ।
 अपने घर की  चौखट पर अभी अब्बा जान ने कदम बढाया ही था की अचानक जोर की आवाज हुई ,अब्बा जान की पीठ लहूलुहान थी ,सब लोग अब्बा जान कि तरफ दौड़े , अब्बा जान ने आखिरी सांसे लेते हुए ,वंदेमातरम कहते हुए अपने प्राण छोड़ दिए और सबकी आंखें नम हो गईं थीं।

*काफिला*

 परिचय,

पिताजी:- नाम चमनलाल उम्र ६५ वर्ष

बेटा:- अमन उम्र २५ वर्ष

टेलीविजन,समाचार वाचिका

शर्मा जी- पड़ोसी

पवन:- अमन का मित्र

भीड़,में शोर मचाते,नारे लगाते लोग

भीड़ में एक व्यक्ति

पुलिस की गाड़ी :- सायरन की आवाज


(पहला दृश्य)  भीड़ का दृश्य


कुछ लोग भीड़ के पीछे आंखे बंद करके चल देते हैं उनसे पूछा जाए की तुम कहां और क्यों जा रहे हो तो जवाब मिलता है,जिस और सब जाएंगे वहीं तो जाएंगे, हम कोई अपनी डफ़ली अपना राग थोड़े अलापेंगे ।
  लोग कहते हैं कि देश देश बदल रहा है ,कुछ लोगों का कहना है की बड़े -बड़े बदलावों के होने से थोड़ी परेशानी तो होगी ही ।

        दूसरा दृश्य


पिताजी :-  खादी के कपड़े और चमड़े के सस्ते से जूते पहनने वाले पिताजी को उनके बेटे अमन ने ब्रैंडेड कपड़े और महंगे जूते लाकर दिए फिर क्या हुआ देखिए ।

पिताजी:-    आजकल देखो कुछ भी बदल जाता है कल तक मैं खादी का कुर्ता पाजामा और

सस्ते से कपड़े के जूते पहनता था । और अब...
हे भगवान कैसा जमाना आ गया है ....बदल रहा है मेरा देश बदल रहा है।
पिताजी जूतों को अपने सीने से लगाए हुए
पिताजी नाम चमनलाल  - :   मेरे तो अच्छे दिन आ गए पूछो वो कैसे देखो सब लोग ये मेरे जूते पूरे हजार के हैं। मे
बेटे ने मंगवाकर दिए हैं कहता है अब मैं कमाता हूं पिताजी आप चिंता ना करो मेरा स्टैंडर्ड बड़ गया है ।
पिताजी चमनलाल अपने आप से बतियाते हुए अब आप लोग ही बताइए मैं क्या करूं इतने मंहगे जूते पहनने में मानों डर लगता है अगर गंदे हो गए तो,
ऐसा करता हूं इन जूतों को संभाल कर अलमारी में रख देता हूं ,बेटे की शादी में पहनूंगा
 पिताजी अपना जूते सम्भाल कर रख देते हैं ।

    पिताजी बैठक में प्रवेश करते हुए ...


 चमनलाल का बेटा नाम अमन टेलीविजन पर समाचार सुनने में इतना खोया हुआ था की उसको पता भी नहीं चला की उसके पिताजी ने उससे कुछ कहा है ।

पिताजी -: अपने बेटे अमन को हिलाते हुए

अमन:- अरे पिताजी इतनी जोर से क्यों हिलाया आवाज लगा देते मैं सुन लेता क्या पिताजी आपने तो मेरा सारा मूड खराब कर दिया ।

पिताजी:- मैं बोला था सबसे पहले मैंने तुम्हें आवाज ही लगाई थी पर तुम्हारे कान और आंखे तो टेलीविजन देखने और सुनने में खोए हुए थे ।
 पिताजी:- अच्छा ये बताओ क्या चल रहा है अब हमारे देश में कौन सा नया कानून आ रहा है कहीं अब तो कोई नोट बन्द नहीं हो रहे.....
 अमन:- टेलीविजन की तरफ देखते हुए ,पिताजी अब लगता है कुछ बड़ा होने वाला है इस देश में जब देखो तब नारेबाजी हड़ताल ।
  पिताजी :- बेटा तुझे क्या करना है ,तू क्यों इन चक्करों में पड़ता है तेरी अच्छी सी नौकरी उस पर ध्यान दे ...
तभी टेलीविजन :- से न्यूज रिपोर्टर और:-आज की सबसे बड़ी खबर ,बस वही तोड़-फोड़ पथराव आदि
पिताजी चमनलाल:- ये समाचार वाले कभी कोई अच्छी खबर नहीं देते

अमन:- नहीं पिताजी जरूर कुछ बड़ा होने वाला है  तभी इतना विरोध हो रहा है ।


 तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी ,अमन दरवाजा खोलते हुए पड़ोस के शर्मा जी को नमस्कार करते हुए  जाते शर्मा जी आ जाते थे घर पर कभी-कभी कोई नयी- ताजी सुनने -सुनाने  ।

चमनलाल :- और शर्मा जी कैसे हो आज बहुत दिनों में आए ।

शर्मा जी :- हां आजकल बस स्वास्थ्य भी ऐसा ही रहता है ।

चमनलाल :- जा अमन मां को बोल दो कप चाय बना दे

शर्मा जी और चमनलाल चाय की चुस्कियां लेते हुए ।
शर्मा जी अपनी बात कहते हुए घर से बाहर निकल कर देखो जगह-जगह दंगे फसाद हो रहे हैं ,तुम्हे पता भी है तुम्हारे देश में क्या चल रहा है ।
पिताजी क्या चल रहा है, मजाक करते हुए फाग चल रहा है ....और क्या दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे

शर्मा जी:- आज हमारे घर के आगे चौराहे पर कुछ लोग प्रदर्शन करेंगे , नगर पालिका के बाहर भी धरना होगा, चमनलाल मेरे साथ चलना ।

चमनलाल  :- देख शर्मा कहीं घूमने जाना हो तो मैं चलता तेरा कोई जरूरी काम होता तो भी मैं चलता पर इन फालतू के चक्करों में मैं नहीं पड़ता ।

मुझे तमाशा देखने का कोई शौंक नहीं

अगर मैं अपने देश के लिए कुछ कर नहीं सकता तो कोई दुःख नहीं परंतु इस तरह बिना सोचे-समझे नहीं
शर्मा मेरी आत्मा गवाही नहीं देती
शर्मा जी टेड़ा सा मुंह करके लौट गए

अमन:- थोड़ी देर बैठने के बाद कुछ सामान लेने के बहाने पिताजी मैं बाजार से सामान लेकर आता हू ...


(दूसरा दृश्य)


 अमन घर से सामान लेने के बहाने निकल गया था ।
थोड़े आगे ही चला था की अमन को उसका मित्र जिसका नाम मदन मिल गया ।

 अमन और अमन का मित्र मदन दोनो में हाय ,हेलो हुई ।

अमन :- यार मदन आजकल तुम कहां रहते हो


मदन :- यार अमन मुझे गुड़गांव में अच्छी नौकरी मिल गई है ,अब मां ,पिताजी मेरी शादी की तैयारियां कर रहे हैं थोड़ा शर्माते और सिर खुजलाते हुए ...

अमन:- यार मेरी होने वाली भाभी कैसी है,कब मिलवा रहा है भाभी से ..

मदन :- जल्द ही अगले महीने की पांच तारीख को शादी है मेरी , मां ,पिताजी कार्ड देने आएंगे तुम जरूर आना
अमन :- हां यार तेरी शादी में तो जरूर आऊंगा क्या पता मुझे भी कोई अपने लायक लड़की मिल जाए
 हंसते हुए ...
अमन:- मदन चल थोड़ा आगे तक चलते हैं देखते हैं वहां क्या हो रहा है।
पवन:- नहीं यार मुझे कुछ सामान लेना है जल्दी है घर जाकर और भी काम हैं तू जा मैं सामान लेता हूं।

(तीसरा दृश्य )

    भीड़ का दृश्य  भीड़ का आक्रोश , हाय-हाय मुर्दाबाद की आवाजें


अमन थोड़ी दूर से खड़ा भीड़ को देख रहा था


अमन थोड़ा आगे बड़ा और एक व्यक्ति से पूछने लगा ,यार ये भीड़ क्यों लगा रखी है तुम्हारी कौन से मांग दृश्यया फिर कौन सी ऐसी जातती हो रही है तुम्हारे साथ, जो तुम सब इतना आक्रोश दिखा रहे हो

भीड़ वाला व्यक्ति:-  बोला साहब जी हम तो कल भी मेहनत मजदूरी करके रोटी खाते थे और हर रोज यही करेंगें।   हमें तो हमारे ठेकेदार जो कहते हैं  वहीं करते हैं

हमसे कहा गया की जाकर ऐसे ऐसे नारे लगाओ शोर मचा ओ हम वहीं कर रहे हैं ।
 अमन:- तो तुम्हें यह काम करने यानि नारे लगाने के पैसे मिलते हैं
व्यक्ति:-  और क्या बिना पैसे के कोई पागल ही होगा जो यह सब करेगा
अमन को इतना तो समझ आ गया था इस आक्रोश को दिखाने वाली किसी धर्म जाति के नहीं यह तो किसी के मोहरे है जिन्हें जैसे चला जा रहा था वह चल रहे थे ।

   तभी पुलिस की गाड़ियां सायरन की आवाज करती हुई भीड़ के समीप पहुंच गई ,

पुलिस:- एक -एक कर सबको गाड़ियों में भरने लगी और डंडे भी चलाने लगी ।
पुलिस का एक डंडा अमन को भी लगा तभी एक पुलिस  वाला अमन को पकड़ कर गाड़ी में बैठाने लगा ,अमन चिल्ला रहा था में इस भीड़ का हिस्सा नहीं हूं । मैं तो यहां भीड़ क्यों लगी है देखने आया था ।

पुलिस वाला: अमन से अच्छा तमाशा देखने आए थे चलो तुम्हारा तमाशा तो हम पुलिस स्टेशन में ही देखेंगे ।

 (पुलिस स्टेशन का दृश्य)

इतने में अमन का मित्र मदन जो वहीं से होकर गुजर रहा था अमन को पुलिस को ले जाता देख मदन चिल्लाया सर ये निर्दोष है यह तो यहां भीड़ में क्या हो रहा है  ये देखने आया था पुलिस वाले यह कहते हुए आगे बड़ गए जो कहना है पुलिस स्टेशन में कहना ।

मदन पुलिस स्टेशन पहुंच गया था ,अमन को देखकर मदन ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई ।

पुलिस :- अरे भाईसाहब ये इमोशनल ड्रामा आप बाहर जाकर करिएगा चलिए इन कागजों पर साइन कीजिए और आगे से इन्हें समझा कर रखिएगा।

भीड़ के पीछे भागने में समझदारी नहीं होती
अच्छे काम करने वालों की भीड़ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तोड़-फोड़ नहीं करती किसी को पत्थर नहीं मारती ।
 मदन अपने मित्र अमन को समझाते हुए देख अमन पहले देखो समझो की तुम्हे कहां जाना है सिर्फ भीड़ के पीछे चल देना कोई समझदारी नहीं
जिस तरफ सब चल रहे हैं भेड़ों की तरह उसी तरफ चल देना बेवकूफी है भगवान ने इंसान को ही दिमाग दिया की अपनी बुद्धि से वो अपना रास्ता खुद चुन सके ।

( भीड़ हिस्सा बनने से अच्छा है तुम अकेले ही अपना बेहतरीन रास्ता बनाओ जिससे भीड़ का काफिला तुम्हारे पीछे चल दे )


स्व रचित :- ऋतु असूजा ऋषिकेश

निवास स्थान :- उत्तराखंड ऋषिकेश 

जन्म तिथि:- 11-6-1968

शिक्षा:- स्नातक इंटरनेट पर अपना ब्लपोस्ट 

"ऊंचाईयां शीर्ष की आसमानी फ़रिश्ते

बेस्ट ब्लॉगर सम्मान I blogger द्वारा

इसके अतिरिक्त लेखन की कई प्रतियोगिताएं में हिस्सा लिया और सम्मान पत्र प्राप्त किया । 

एक सक्रिय लेखक 






























 पवन अब अपने पिताजी द्वारा चलाई जा रही पंखों ,फ्रिज आदि सामान की दुकान संभालने लगा था ।
पवन:- सुबह के साढ़े ग्यारह बज रहे थे ,कुछ कमाई धंधा कर ले अपनी दुकान पहुंचा, दुकान पहुंचते ही इतनी तेज पंखा क्यों चला रखा है सुबह से कमाई धंधा कुछ हुआ नहीं और ये चले बिजली का बिल बढ़ाने ,पवन चिल्ला रहा था अपनी दुकान पर काम करने वालों पर।
 पिताजी:-  बोले आ गए साहब जी
जरा फर्श को देखो अभी सफाई हुई है फर्श गीला था इसीलिए पंखा चला रखा था हमें कोई शौंक नहीं है इतनी ठंड में पंखा चलाने का, जोर से बोलने की वजह से पिताजी खांसने लगे ।
पवन:- क्या पिताजी कितनी बार कहा है दवा ले लिया करो और आप भी ना जब तक मैं आकर अपने हाथ से दवा नहीं दूंगा ,आप लोगे नहीं लो चलो दवा पी लो पवन पिताजी को दवा पिला ते हुए ....पिताजी अब आपकी उम्र हो गई है घर पर आराम करा करो ,में हूं ना सब संभाल लूंगा ।
पिताजी :-हां देख लेंगे दस बजे तक तो सोकर नहीं उठता ,बारह बजे भी कोई दुकान आने का समय है क्या ......पता नहीं मेरे बाद क्या होगा ।

तभी कुछ लोगों का झुंड :-  बहुतजोर -जोर से चिल्लाते हुए दुकान के आगे से निकला
दुकान के सभी लोगों :- की नजरें उस भीड़ को ताकने लगी ,आस-पास सब ही बतिया रहे थे जरूर कुछ बड़ा कांड हुआ है बहुत आक्रोश था भीड़ में ...

  दुकान के थोड़ा आगे एक चौराहा था जहां से सब लोगों के जोर-जोर से नारे लगाने की आवाज आ रही थी ।
पवन:- पवन के मन में उत्सुकता हो रही थी की आखिर क्या हुआ इतना शोर किसलिए पवन ने अमन को फोन मिलाया
 अमन:-  अमन की चौराहे के पास ही किराने की दुकान थी पवन का फोन आते ही हां बोल पवन क्या काम है जल्दी बोल ग्राहक खड़े हैं बोनी का समय है जरूरी काम है तो बोल नहीं तो बाद में बात करेंगे
अमन फोन पर पवन की बात सुनकर यार यह तो यहां रोज होता है रोज ही कोई ना कोई हंगामा इं लोगों की तो आदत ही है शोर मचाना यार इन लोगों को दंगा करने के पैसे मिलते हैं तुझे चाहिए तो तू भी हो जा इस भीड़ में शामिल।
पवन:- अपने पिताजी से कहते हुए पिताजी कुछ बड़ा हुआ है तभी इतनी भीड़ थी ।
पिताजी: पवन बेटा तुम क्यों बेकार में परेशान हो रहे हो ,जाओ उड़ के चले जाओ वहीं इतनी बैचेनी हो रही है तो ।
ग्राहक :- पवन ग्राहकों से हां जी आप कौन सा पंखा देखना चाहेंगे सबसे टॉप मॉडल दिखाऊं
दुकान में काम करने वाले ग्राहकों को पंखों के बारे में समझाने लगे ।
 भीड़ :- भीड़ में कुछ लोग फिर चिल्लाते हुए आगे बढ गए नहीं चलेगी ,नहीं चलेगी गुंडागर्दी नहीं चलेगी ।
पवन:- के मन में बैचेनी हो रही थी आखिर मामला क्या है वह जानना चाहता था ।
पवन पिताजी से  ब हाना करके पिताजी मैं अमन के पास जा रहा हूं उसकी दुकान  से कुछ सामान लेना है मां मुझे तीन दिन से कह रही है ।
पिताजी :-हां बेटा जा तीन दिन से सो रहा था आज जागा है जा जल्दी सामान ला और फिर आ मुझे खाना खाने घर जाना है ।
पवन :- ने अपनी बाइक से अमन की दुकान के लिए
चल दिया।
अमन:- अमन अपने काम में व्यस्त था ,पवन को देखकर यार तुझे भी चैन नहीं है मुझे पता था तू आएगा और देखा आ गया ।
पवन :- अरे यार ये बता क्या हुआ इतना शोर किसलिए ....
अमन:- देख पवन मैं तो इन चक्करों में पड़ता नहीं तुझे देखना है तो तू देख ले मुझे तो बहुत काम है।
पवन:- अमन की दुकान के बाहर खड़ा काफी देर तक देखता रहा आखिर मामला क्या है....
एक दो कदम आगे बढाते हुए एक दो से पूछताछ करते हुए अमन आगे बढ़ गया अब तो पवन भीड़ के बिल्कुल समीप चला गया था  .....
भीड़ में शोर मचाने वाले लोगों में ज्यादातर अठारह ,से बीस पच्चीस के उम्र के ही लोग थे ,साफ अंदाजा हो रहा था था की ये दंगा करने वाले लोगों का किसी भी मुद्दे से कोई मतलब नहीं है ,किसी के बहकावे में आकर या पैसे के लालच में ये लोग यह सब कर रहे हैं ।
पवन साथ ही खड़े एक व्यक्ति से कुछ पूछ ही रहा था की अचानक
पुलिस की कुछ गाडियां आ गई ,और पुलिस वालों ने सबको अपनी जीप में भरना शुरू कर दिया ।
पवन को भी पुलिस वाले खींचकर अपनी गाड़ी में के गए ,पवन चिल्ला रहा था मेरा इस भीड़ से कोई वास्ता नहीं मैं तो भीड़ देखने आया था ।
पवन पुलिस वालों से बहुत विनती कर रहा था की उसे छोड़ दिया जाए ,परंतु पुलिस वालों का एक ही जवाब था अब पुलिस स्टेशन पहुंचकर ही कहना अपनी बात .....बेचारा पवन बिन बात में फंस गया था भीड़ देखने आया था भीड़ में ही फंस गया ।
इधर अमन को किसी ने ख़बर दी कि तुम्हारे मित्र अमन को पुलिस ले जा रही है ,अमन सारा काम छोड़कर भागा पुलिस ने अपनी गाड़ी के गेट बंद कर दिए थे अमन पुलिस वालों से विनती करने लगा कि वो पवन को छोड़ दें उसका इस दंगे से कोई लेना देना नहीं है पर पुलिस वाले बस यही क रहे थे अब तो पुलिस स्टेशन आकर ही मिलोऔर पुलिस की जीप चल दी ।

पवन पुलिस स्टेशन पहुंच गया था ,अमन को देखकर पवन ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई ।

पुलिस :- अरे भाईसाहब ये इमोशनल ड्रामा आप बाहर जाकर करिएगा चलिए इन कागजों पर साइन कीजिए और आगे से इन्हें समझा कर रखिए

भीड़ के पीछे भागने में समझदारी नहीं होती
अच्छे काम करने वालों की भीड़ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तोड़-फोड़ नहीं करती किसी को पत्थर नहीं मारती ।
 पवन अपने मित्र अमन को समझाते हुए देख अमन पहले देखो समझो की तुम्हे कहां जाना है सिर्फ भीड़ के पीछे चल देना कोई समझदारी नहीं

जिस तरफ सब चल रहे हैं भेड़ों की तरह उसी तरफ चल देना बेवकूफी है भगवान ने इंसान को ही दिमाग दिया की अपनी बुद्धि से वो अपना रास्ता खुद चुन सके ।
भीड़ का हिस्सा बनने से अच्छा है तुम अकेले ही अपना बेहतरीन रास्ता बनाओ और तुम्हारे पीछे भीड़ का काफिला चल दे ....*****
















 पवन पुलिस स्टेशन पहुंच गया था ,अमन को देखकर पवन ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई ।

पुलिस :- अरे भाईसाहब ये इमोशनल ड्रामा आप बाहर जाकर करिएगा चलिए इन कागजों पर साइन कीजिए और आगे से इन्हें समझा कर रखिए

भीड़ के पीछे भागने में समझदारी नहीं होती
अच्छे काम करने वालों की भीड़ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तोड़-फोड़ नहीं करती किसी को पत्थर नहीं मारती ।
 पवन अपने मित्र अमन को समझाते हुए देख अमन पहले देखो समझो की तुम्हे कहां जाना है सिर्फ भीड़ के पीछे चल देना कोई समझदारी नहीं

जिस तरफ सब चल रहे हैं भेड़ों की तरह उसी तरफ चल देना बेवकूफी है भगवान ने इंसान को ही दिमाग दिया की अपनी बुद्धि से वो अपना रास्ता खुद चुन सके ।
भीड़ का हिस्सा बनने से अच्छा है तुम अकेले ही अपना बेहतरीन रास्ता बनाओ और तुम्हारे पीछे भीड़ का काफिला चल दे ....*****

स्वरचित :- ऋतु असुजा ऋषिकेश



*घर वास *

आग लगी है बाहर वैश्विक संक्रमण की महमारी की
कुछ दिनों के लिए इस आग से दूर हो जाओ
आग स्वत: ही बूझ जायेगी ।

रुक जाओ थोड़ा ठहर जाओ
कुछ दिन घरों के अंदर कैद हो जाओ,
बाहर वैश्विक संक्रमण महामारी का राक्षस बैठा है
जिसको छूने से ही संक्रमण फैल जाता है

तोड़ दो कुछ दिनों के लिए समाजिक संपर्क
घरों में रहकर... लड़ना है एक महायुद्ध
अपने-अपने घरों में रहकर क्योंकि इस युद्ध के
क्रम को तोड़ना है ।

बाहर बैठा संक्रमण का शत्रु अकेले रहकर
समयावधि में स्वत:ही मर जाएगा
करोना का कहर
बन फैल रहा है जहर
थोड़ा ठहर ।

इधर-उधर मत भटको
हाथों को बार-बार धोओ
स्वच्छता पर विशेष ध्यान दो
थोड़ी दूरी बनाओ
समाजिक व्यवस्थाओं से
दे स्वयं को आराम ।

लगी है एक आग
वैश्विक संक्रमण महामरी की
इस आग की चिंगारी को संग अपने
ना ले जाना ,वरना तुम अकेले नहीं
समस्त मानवजाति खतरे में पड़
जायेगी तबाह हो जाएगी ।

बहुत निभाए समाजिक सम्पर्क हमने
अब समय मिला है, किसी बहाने से ही सही
परिवार के संग परिवार को
समझने का खुशियां बांटने का उन्हें जीने का ।

*चेहरे से उदासी का पहरा हटाओ*

मेरे नयनों का लगा
मुझ पर ही पहरा
आइने में जो देखा
स्वयं का चेहरा ।

मासूम से मुखड़े पर
उदासी का पहरा
भाता नहीं हमको
उदास चेहरा।

मुस्कराहट का थोड़ा सा
चेहरे पर मल दे गुलाल
करणों में कर्णफूल तो डाल

घुंघराली लटों को
संवार
कर थोड़ा श्रृंगार
मृग नयनी इन नयनों
 में काजल तू डाल।

पैरों में पायल की खनक
तू डाल, हिरनी सी मतवाली
तेरी है चाल ।

गौरी तुम वैसे ही लगती कमाल
उस पर श्रृंगार की आदत तू डाल

तुझसे ही दुनियां में रंग बेहिसाब
उस पर तुम बातें भी करती बेमिसाल

शब्दों के मंथन से विचारों का
अमृत निकाल इस दुनियां को
दे फिर मालामाल ।
अपने औचित्य का डंका बजा
दुनियां में अपने अस्तित्व का झण्डा फहरा।






Covid 19 करोना (याद आया गुजरा जमाना)

*याद आता है वो
दादा-दादी,नाना-नानी
चाचा-चाची बुआ-फूफा
का वो गुजरा जमाना *

 *अस्वच्छ हाथ ना हमें लगाना
हाथ ,पांव मूंह ,धोकर ही घर के
अंदर आना  तद  उपरांत ही किसी चीच को
हाथ लगाना *

*समझ छुआ -छूत उनका हमनें खूब मजाक उड़ाया*
आज करोना जैसी महामारी के संकट में अपने
बड़ों का कहा याद आया *

पादुका अपनी बाहर ही उतार कर आना
नहीं किसी बाहरी संक्रमण को घर के अंदर लाना।

पंच स्नान और स्वच्छ वस्त्रों को
धारण करके ही
भजन और भोजन करना ।

 झूठे हाथ ना कहीं और लगाना
बार-बार हाथ धोकर ही आना ।

उद्देश्य एक था संक्रामक रोगों से हमें बचाना।

*सौ प्रतिशत मिलावट का सच*

सौ प्रतिशत सच का  ,
मिलावटी सच
पक्के वादों का,
मिलावटी सच

दुग्ध में जल या जल में दुग्ध
मिलावट का अदृश्य सच

कहने में,करने में होने में,
मोहब्बत में,प्यार में ,
इरादों में,वादों में
सब में लगाया जाता है
स्वार्थ का मक्खन।

रंगों का बाजार
आकर्षण का संसार
तस्वीर के रंग हजार
मुखौटे लगा चल रहा है व्यापार
मिलावट की दुनियां के चर्चे हजार
फिर भी मिलावट का ही होता करोबार ।

सौ प्रतिशत सच का ,मिलावटी सच
चेहरे पर हंसी का मिलावटी पहरा
मिलावट का सौंदर्य, नायक -नायिकाओं के
आकर्षण का केंद्र

मिलावट की दुनियां के चर्चे हजार
मिलावट का रचता बसता संसार

बस एक ही विनती है और है मेरी
कुछ मिलावट कर लो नफरत में कुछ मिलावट
कर लो प्रेम की, स्वार्थ में कुछ मिलावट कर लो
निस्वार्थ प्रेम की ,
क्यों ना कर दें अब हम सब मिलकर मिलावट का ही
का काम तमाम।










*अति उत्तम हाथ जोड़ नमस्कार करो
लेन-देन कर्म एवं भोजन पूर्व
हाथ धोकर स्वच्छ करो
*घातक संक्रमण करोना* को दूर करो ना *




**दूर रहेगा घातक करोना **

**भारतीय परम्परा का अद्भुत
परिचय हाथ जोड़ नमस्कार करें **


भोर लालिमा हरी घास पर टहले
तन को भी सूरज की किरणों से 
सहलाएं,सूरज की गर्मी से रोग -
प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाएं ।

योगाभ्यास व्यायाम दिन चर्या बनाएं
जीवन रक्षक प्राकृतिक संपदाओं को
अपनाएं ।

दैनिक कार्यों के अंतराल
स्वच्छता के नियमों को अपनाकर
स्वच्छ हाथों करें जीवन यापन करें।

प्राकृतिक सम्पदाओं का भरपूर उपयोग करें 
नीम ,गिलोय तुलसी ,एलोवीरा का 
सेवन कर कई रोगों को दूर भगाएं ।

सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी ना मचाएं
स्वच्छता के नियम अपनाकर स्वस्थ जीवन अपनाएं

 **करोना के संक्रमण से डरोना
स्वस्थ जीवन के गुण अपनाकर
दूर रहेगा घातक करोना **


**मेरा धर्म तो इंसानियत है **

   नहीं- नहीं -नहीं , मैं नहीं करूंगा जो तुम मुझसे करवाना चाहते हो ,चाहे मैं और मेरे बच्चे भूख से मर जाएं पर हम ऐसा काम कभी नहीं करेंगे ।
 इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं और हम अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेंगे।
   अब्बा जान जरा दिमाग़ लगा कर सोचो ,सरकार ने नागरिकता बिल पास कराया है ,और सरकार का कहना है की सभी को नागरिकता लेनी पड़ेगी .....
 अब्बा जान - तो क्या हुआ ले लेंगे नागरिकता हमारा तो जन्म यहीं का है हमारी हमारा निका ह भी यहीं और यहीं के परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ा अब कोई हम कहीं और थोड़े जाने वाले हैं , ले लेंगे यहीं को नागरिकता और यहीं के होकर रहेंगे इसमें दिक्कत क्या है।
 अब्बा जान ,आप भी ना बहुत सीधे हैं ये हिन्दुस्तान है,यहां हिन्दुओं का राज रहेगा ।
अब्बा जान अपने पड़ोसी मित्र पर झल्लाते हुए तो लल्लन हमें कौन सा राज करना है ,हमसे अपना घर परिवार सम्भल जाए वो ही काफी है ।
लल्लन, अब्बा जान से तुम्हें कोई नहीं समझ सकता  जब धक्के मार कर बाहर निकाल  जाओगे ना तब
पता चलेगा ।
अब्बा जान मैं आज ही यहां की नागरिकता लेता हूं फिर कौन निकलेगा हमें बाहर जब हम यहीं के हो जाएंगे ।

     दूसरा दृश्य.....

 बहुत अच्छे से ट्रेनिंग दी गई थी इन युवाओं को
जानवर ,भेड़िए,आस्तीन के सांप ,जैसे कितने भी अपशब्द कम थे ऐसे देश के गद्दारों के लिए ,जिस थाली में खा रहे थे उसी में छेद कर रहे थे ।

भटके हुए प्राणी कुछ पैसों के लालच और गलत शिक्षा के कारण भटके हुए थे ये हिंसक युवा .....


जब नोटों का लालच दिखाया जाता है ,तब बड़े- बड़ों का ईमान डोल जाता है ।
और जब पापी पेट का सवाल हो तो ...
अपना पेट तो छोड़ो बच्चों की जरूरतों की खातिर ।
 
  अगले ही दिन टेलीविजन पर आज  कुछ उपद्रवियों ने किसी पुलिस चौकी के समीप पथराव किया ,
फिर एक और ख़बर उपद्रव की बड़ी खबरें  शहर में जगह -जगह हिंसा पथराव,कई लोग घायल .....

लगातार कई दिनों से हिंसा की घटनाएं चल रही थीं अब्बा जान मन ही मन बहुत परेशान थे कुछ कर भी नहीं पा रहे थे । आखिर अपने ही सगों के खिलाफ आवाज उठान इतना आसान नहीं था ,लेकिन अब्बा जान का जमीर इस बात की गवाही नहीं दे रहा था ।
 शहर के कई इलाके नफरत की आग में झुलस रहे थे ।
 अब्बा जान क्योंकि लल्लन के पड़ोसी मित्र थे ,और उम्र में भी बड़े तो सब उन्हें अपने अब्बा सामान ही समझते थे ,लेकिन सुनता कौन था उनकी ।

बस अब और नहीं अब्बा जान की आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी ,हर अगले दिन कौन सी वारदात होनी है उन्हें ख़बर होती  ,माना की वो उस वारदात का हिस्सा नहीं थे और ना ही चाहते थे परन्तु  हिंसा
या किसी वारदात की खबर होना और कुछ ना कर पाना यह भी किसी हिंसा से कम नहीं था ।
अब्बा जान स्वयं को दोषी मानने लगे थे ,अल्लाह तो सब जानता है ,क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का पाठ कभी नहीं पढाता  ।
अब्बा जान जब आल्लाह से मुलाकात होगी तो दोषी मैं भी ठहराया जाऊंगा ।
 अब्बा जान नहीं मुझे कुछ करना होगा कैसे रौंकू इस उपद्रव की गन्दगी को ....
अब्बा जान कश्मकश में थे उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी अब्बा जान अचानक कहीं चले गए ।
 पूरी रात बीत गई थी अब्बा जान घर नहीं पहुंचे थे घर वालों को चिंता हो रही थी ,आखिर अब्बा जान किधर गए ,कई जगहों से पता लगाया परंतु अब्बा जान का कुछ भी पता नहीं चल रहा था ।
 इधर दंगाइयों का उपद्रव सिर चड़ कर बोल रहा था ,शहर में आगजनी की वारदातें भी बड़ रही थीं ।
  पुलिस फोर्स भी इन दंगों पर काबू नहीं कर पा रही थी ।
 आखिर बढते हुए दंगे जान- माल का भारी नुकसान । अगले दिन ही समाचार सुनने को मिला की सरकार ने दंगा पीड़ित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है । शहर के हालात दो -चार दिन सामान्य होने लगे थे ।
   थोड़े दिनों बाद छब्बीस जनवरी थी ।
 आज अब्बा जान अच्छे से तैयार होकर कहां चले लल्लन ने व्यंग कसते हुए कहा ।
 गले में सम्मान प्रतीक मेडल और हाथ में राष्ट्रपति सम्मान का प्रमाण पत्र लिए अब्बा जान अपनी गली से अपने घर के लिए जा रहे थे अब्बा जान की चाल में  सवभिमान की साफ झलक रहा था ।
 गली के और घर के लोग बाहर खड़े मन ही मन अब्बा जान का स्वागत कर रहे थे ,खुश थे की अब्बा जान ने कुछ बेहतरीन काम किया है जो आज उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है ।
 अपने घर की  चौखट पर अभी अब्बा जान ने कदम बढाया ही था की अचानक जोर की आवाज हुई ,अब्बा जान की पीठ लहूलुहान थी ,सब लोग अब्बा जान कि तरफ दौड़े , अब्बा जान ने आखिरी सांसे लेते हुए ,वंदेमातरम कहते हुए अपने प्राण छोड़ दिए और सबकी आंखें नम हो गईं ।






*मैं प्रकृति अत्यंत दिलदार हूं मैं *

*मैं प्रकृति अत्यंत दिलदार हूं मैं*
प्रकृति प्रदत अमिय
जीवन का सार हूं मैं
स्वच्छंद निर्मल जलधार हूं मैं
हां मैं प्रकृति, देवस्थान अनन्त
निस्वार्थ सेवा की रसधार हूं मैं।

मैं प्रकृति बहुत दिलदार हूं मैं
अन्न, कंद - मंद फल, फूल का भंडार हूं मैं।

ममत्व का सरस-सरल अद्भुत, संसार हूं मैं
पूज्य धरती माता, उठाती दुनियां का भार हूं मैं।

उस पर भी सहती अत्याचार हूं मैं
मैं वसुंधरा मुझ पर ही बनते सपनों के महल
और पाती खंजर से वार हूं मैं
मेरे द्वारा ही पोषित , मैं ही पालना
मैं प्रकृति प्राणियों का संसार हूं मैं
मैं प्रकृति प्राणियों से समृद्ध,
प्राणियों से ही संसार का अस्तित्व....


*मेरी भूमिका *

**हम महिलाओं की भूमिका पर्दे के पीछे के सच्चे और अथक
पुरूषाथ का परिदृश्य होती है **
समाज की नींव ,संस्कारों की उर्वरा
विचारों की समृद्धि मेरे द्वारा ही रोपी जाती है
मैं एक नारी हूं ,जो अबोध को सुबोध बनाती हूं
एक स्वस्थ शिशु की पालना में अपना सर्वस्व लुटाती हूं
मैं एक नारी ही हूं जो  मकान  को घर बनाती हूं
सकारात्मक ऊर्जा से मनुष्यों के मन मस्तिष्क को शुभ भावनाओं से पोषित करती हूं ,संस्कारों के बीज अंकुरित कर समृद्ध समाज की नींव रखने की पहल करती हूं *
*हम नारी है *
हमारी भूमिकाएं अदृश्य हैं
परंतु नींव की बुनियाद हम ही होती है
समृद्ध समाज की कर्णधार भी हम ही होती हैं
समाज की तरक्की और उन्नति के सूचक
की प्रथम भूमिका हम महिलाओं की होती है
दुर्गा है , काली हैं,अन्नपूर्णा है सरस्वती हैं
फिर भी सहनशक्ति और प्रेम का सागर हैं
हम महिलाएं क्या करती हैं कह कर भी ,
समाज की नींव में मील का पत्थर बनकर खड़ी रहती हैं
कांधो पर समृद्ध समाज की नींव का भार लिए स हन शक्ति की अद्भुत मिसाल होती हैं।
 नींव से छेड़छाड़ समाज के पतन का कारण बनती है।
नींव हिलती है तो सारी सृष्टि हिल जाती है
हम महिलाओं की भूमिका पर्दे के पीछे के सच्चे और अथक
पुरूषाथ का परिदृश्य होती है ।

* मुख्य भूमिका *

 महिलाएं समाज की नींव हैं ,महिलाओं की भूमिका के बिना समाज का कोई औचित्य ही नहीं ,इसलिए नींव पर मत प्रहार करना ,प्रहार किया तो इसकी तह में समा जाओगे मिट जाओगे ढेः जाओगे ।
 * महिलाओं को महिला दिवस की बधाई हो
,महिलाओं को सम्मान देनें की बात हुई यह भी अपने आप में बहुत बड़ी बात है ।
 चलिए कुछ सोचा तो गया महिलाओं के बारे में की महिलाओं भी कुछ कर सकती हैं ।

बस आज थोड़ा सा व्यंग करने को मन कर रहा है ,..किन्तु व्यंग में भी सच ही है ।

अरे भई क्यों ?   महिलाओं के लिए सिर्फ एक दिन का सम्मान साल के 365 दिन में से एक दिन महलिआओं को सम्मान दिया जाएगा , और  बाकी के364 दिन किस को सम्मान दिया जाएगा ...... चलो छोडिए ।
महिलाओं को किसी विशेष दिवस की आवयश्कता नहीं ..... महिला दिवस हर दिन होता है हर रोज होता है और प्रतिपल होता है ,और सदा सर्वदा होता रहेगा ।
हां अगर सम्मान की बात है तो हम महिलाओं को एक दिन का ही सम्मान ...  अरे वाह ! ऐसा नहीं चलेगा
महिलाओं को सम्मान देना है तो जीवन पर्यन्त दो।
 महिलाओं को किसी विशेष दिवस को देनेकी आवयश्कता कैसे और क्यों पड़ी?
  ओहो अच्छा तो बात यह है कि पुरुष प्रधान समाज को जब एहसास होने लगा की महिलाओं को सम्मान दिए बिना जीवन में तरक्की संभव नहीं है, उनके घर,परिवार और कुटुम्ब ,समाज ,और देश की नींव को पालित पोषित और उनके शिशुओं में सभ्य संस्कारों के गुण रोपित करने वाली महिलाएं ही हैं तब महिलाओं को सम्मान देने की आवश्यकता महसूस हुई ।
 अब आप सब बताईए , अगर इस दुनियां में सिर्फ पुरुष ही रह जाएं तो समाज की  स्थिति कैसी होगी क्या समाज आगे बड़ पाएगा ,ऐसा ही महिलाओं के साथ भी है ।
जब इस दुनियां की नींव के दो स्तम्भ ,महिला और पुरुष हैं तो किसी एक भी स्तम्भ के कमजोर होने से या ना होने पर समाज का समाज रहना ही सम्भव नहीं तो फिर क्यों?
  महिलाओं और पुरुषों को दोनों का समानता का  ,यही अधिकार हुआ ना।
 सिर्फ कहना नहीं है इसे जीवन में अपनाना भी है ,तभी समानता आएगी
किसी एक में अगर एक ताकत है ,तो दूसरे में कुछ और विशेषता होगी और यहीं प्रकृति का नियम भी है ।

  चलिए फिर आज से एक दिन पुरुष दिवस के रूप में भी मनाया जायेगा दिन पुरुष स्वयं तय कर लेंगे।

महिलाएं अपने नन्हे शिशुओं में बाल्यकाल से सभ्य ,सुसंस्कृत आचरण , समाजिक एवं व्यवहारिक ज्ञान की शिक्षा देकर समाज में जीने के काबिल बनाती है महिलाएं ही अपने बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना परिपक्व बनाती हैं की जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों का धैर्य पूर्वक सामना कर सकें।
साल में 365 दिन होते हैं ,और 365 दिन महिलाओं के लिए होते है ।
बाकी दिन महिलाएं कहां जाती है ?
यहीं रहती हैं ना इस धरती पर ।
क्या यह धरती सिर्फ पुरुषों से चलती है ?  नहीं ना
महिला और पुरुष यह धरती ना तो सिर्फ पुरुषों से ही चल सकती है ,और नए ही सिर्फ महिलाओं से ।
जब धरती में समाज की स्थापना के लिए स्त्री और पुरुष दोनों की आवश्यकता है तो सिर्फ ,महिला दिवस ही क्यों?

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...