लोभ ,कपट अब व्यसन रोग से
मुक्ति की युक्त
आंखे मूंद कर बैठा हूं
कर रहा हूं प्रभु सिमरन।

संसार प्रलोभन में
क्यों उलझ जाता है मन
बड़ा ही निष्ठुर ,और प्रलोभी
है यह मन।मुक्ति की युक्ति को
करू लाख जतन ।


मुक्ति के द्वार कब खुलेंगे
युक्तियों में मैं उलझा
कर्मकांड मुझ को भरमाया
जप-तप नियम सब किए
मन का द्वार खोल ना पाया

मुक्ति द्वार पर भिक्षा मांगू
हे प्रभु अन्तर्मन के चक्षु खोलो
भाग्य मेरे का मार्ग दिखाओ
रहस्य खोलो, युक्ति की
परिभाषा बोलो।

मुक्ति की युक्ति को
लोभ,कपट,सब व्यसन है छोड़े
मन के नैना में प्रभु बसाए
सब और बस प्रभु नजर आए

यूं ही मैं भटका बेघर होकर
प्रभु मिले मुझे मेरे ही अंदर
नयनों में दरिया ,दिल में समुन्द्र
द्वार मुक्ति का मन मन्दिर के अंदर।







अनसुनी चीख


जीवन पंक्ति के पन्नों में
कुछ पन्ने रहे अधूरे
सटीक उत्तर की चाहत में
प्रश्न मेरे रहे निरुत्तर
शब्द व्यंगों के तीखे तीर
कमल हृदय में अनसुनी चीख
हृदय पीर से शब्द पिघलते
वर्ण वर्ण आकार लिए
विचारों समुंदर बीच भवंडर
लहरों का आना-जाना
तूफानों का तबाही मचाना
बिछड़न का नासूर दे जाना
दर्द ए दिल का नया बहाना
अद्भुत प्रकृति रीत विधाता
परखे वक़्त कसौटी
घात हृदय विरह गीत गाता
मन ही मन को स्वयं समझाता
गंभीर पीर पर भारी पीड़
रक्तिम अधर पर बंसी रीत
मेघ-मल्हार राग भैरवी
पाषाण प्रहार ओलावृष्टि
हृदय पीर संग अश्रु द्रव्य
राख आत्मजा भाव तरलता
हृदय पीर पिघलते शब्द
वर्ण आकार लिए दर्द
व्यंग शब्द तीखे तीर
कमल हृदय अनसुनी चीख  ।

















आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...