*अनुभव*

 
  *मानव पहुंच गया आज चांद पर
 तुम खटिया पर बैठे दिन -भर 
 क्या बड़बड़ाती रहती

   इंटरनेट है ,हम सब का साथी
 उसके बिना ना हम सब को जिंदगी भाती

   तुम क्यों बेवजह अम्मा बड़बड़ाती 
 तेरी बात ना कोई समझना चाहता
 सारा ज्ञान इंटरनेट से मिल जाता

 अम्मा बोली हां मैं अनपढ़, ना अक्षर ज्ञानी
 उम्र की इस देहलीज पर आज पहुंची हूं
क्या दे सकती हूं मैं तुम सबको 
अपना काम भी ना ढंग से कर पाती

मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
जीवन के उतार-चाढाव के कुछ 
किस्से सुनाती कई बार गिरी ,गिर-गिर 
के संभली यही तो मैं कहना चाहती 
बेटा चलना थोड़ा संभलकर 
तुम ना करना मेरे जैसी नादानी

मैं तो सिर्फ अपने अनुभव बांटती
जो आता है जीवन जीने से देखो
तुम नाराज़ ना होना मेरे बच्चों 
आज जमाना इंटरनेट का
चन्द्रमा तक तुम पहुंच चुके हो
अंतरिक्ष में खोजें कर रहे हो 
आशियाना बनाओ चन्द्रमा पर अपना 
पूरा हो तुम सब के जीवन का सपना
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
ना मैं ज्ञानी ,ना अभिमानी।







कलम के सिपाही को कोटि-कोटि नमन



**कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी
 को शत -शत नमन **
   गबन, गोदान, नमक का दारोगा ,
कफ़न,ईदगाह ,आदि महान साहित्य
के राचियता की लेखनी
समाजिक विडंबनाओं और कुरीतियों
को देख तलवार की भांति चल पड़ती थी
जीवन का यथार्थ चित्रण कर
मानव जीवन का गहन दर्शन
उनकी गतिविधियों पर कठोर प्रहार
करती कलम के सिपाही जी की लेखनी
अपना इतिहास रच 
युगों -युगांतर तक लोगों के दिलों
में राज कर रही हैं और करती रहेंगी
समाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती
कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी की
कहानियां आज भी एक सजीव चित्रण
के रूप में समाज को आईना
दिखाने में सक्षम हैं
और अमर है जीवन के
अनुभव परिवेश का सत्य
मुंशी प्रेमचन्द जी का लेखन
सत्य की मशाल लिए
समाज को आज भी प्रेरित
कर मार्गदर्शन कर रहा है
मुंशी जी कलम के सिपाही
को कोटि -कोटि प्रणाम

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...