इंसान होना भी कहां आसान है

 इंसान होना भी कहां आसान है    

कभी अपने कभी अपनों‌ के लिए 

रहता परेशान है मन‌ में भावनाओं ‌‌‌‌‌का  

उठता तूफान‌ है कशमकश रहती सुबह-शाम है

बदनाम होताा‌‌ इंसान है, इच्छाओं का सारा काम है 

कभी हंसता कभी रोता कभी गिरता,कभी सम्भलता

इच्छाओं का पिटारा कभी खत्म नहीं होता 

दिल में भावनाओं का रसायन मचाता कोहराम है 

सपनों के महल बनाता सुबह-शाम है 

बुद्धि विवेक से चमत्कारों से भी किया अजूबा काम है 

चांद पर आशियाना बनाने को बेताब विचित्र परिस्थितियों 

में भी भी मुस्कराता मनुष्य नादान है ......

अरे पगले ! पहले धरती पर जीवन जीना तो सीख ले 

धरती तुम मनुष्यों के ही नाम है,धरती पर जन्नत बनाना 

तेरा ही तो काम है जो मिला है उसे संवार ले 

प्रकृति का उपकार है ,जीना तब साकार है 

जब प्रत्येक प्राणी संतुष्ट मुस्कुराता निभाता सेवा धर्म का काम है ।



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