Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
परोपकार
प्रकृति
जिन्दगी को नये मायने मिले हैं
जब से सूकून के पल मिल हैं
पत्थर सी हो गई थी ज़िन्दगी
पत्थर के मकानों में रहते
एक अनजानी दौड़ में शामिल
बन बैठे स्वयं के ही जीवन के कातिल
फिर क्या हुआ हासिल
हवाओं
चेहरों पर मुस्कान खिल जाती है
जब प्रकृति के समीप जाती हूं
घने वृक्षों की शीतल छाया में
तनाव रहित जीवन का सुख पाती हूं
मन हर्षित हो जाता है पक्षियों के
चहकने की आवाज से कानों में
मीठा एहसास हो जाता है
आओ अच्छा बस अच्छा सोचें
आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...
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*ए चाॅंद* कुछ तो विषेश है तुममें जिसने देखा अपना रब देखा तुममें ए चाॅद तुम तो एक हो तुम्हें चाहने वालों ने जाने क्यों अलग-अलग किया खुद ...
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