विचार,एहसास और भाव

सीमा पर तैनात रक्षप्रहरी की भांति
विद्यालय में शिक्षक की तरह ,घर में माता और
गुरुजन की तरह तैयार करके समाज के समक्ष 
प्रस्तुत करती हूं।
मेरे विचार मेरी निजी संपत्ति है ।
मेरा मेरे विचारों पर पूर्ण अधिकार है ।
अगर मेरे विचार किसी के कहने देखने और बहकाने 
से भड़कते हैं तो इसका तात्पर्य  मैं कमजोर हूं 
गुलाम हूं ,मुझे अपने विचारों पर अपना नियंत्रण करना ही नहीं आया ।
अतः मेरा तो यही मानना है पहले स्वयं के विचारों पर नियंत्रण करना सीखिए । किसी अन्य को दोष देने से कुछ नहीं होगा ।
अपने विचारों को इतना श्रेष्ठ बनाइए की बदल जाए  
दुनियां आपके विचारों से प्रेरित होकर ।


*लेखनी भाव सूचक*

"लेखनी"अक्सर यही कहा जाता है ,की लेखनी लिखती है
जी हां अवश्य लेखनी का काम लिखना ही है ।

या यूं कहिए लेखनी एक साधन एवम् हथियार की भांति अपना काम करती है।
लेखनी सिर्फ लिखती ही नहीं ,लेखनी बोलती है ,लेखनी कहती है ,लेखनी अंतर्मन में छुपे भावों को शब्दों के रूप में पिरोकर कविता,कहानी,लेख के रूप में परोस्ती है।
समाजिक परिस्थितियों से प्रभावित दिल के उद्गारों के प्रति सम भावना लिए लेखक की लेखनी -- वीर रस लिखकर यलगार करती है,लेखनी प्रेरित करती है देश प्रति सम्मान की भावना जो प्रति जन-जन में छिपी  देश प्रेम की भावनाओं को जागृत कर देश के शहीदों के प्रति सम्मान और गर्व का एहसास कराती है ।
वात्सल्य रस, प्रेम रस,हास्य रस,वीर रस ,लेखनी में कई रसों के रसास्वादन का रस या भाव होते हैं ।
महापुरुषों के जीवन परिचय को उनके साहसिक एवम् प्रेरणास्पद कार्यों को एक लेखक की लेखनी स हज कर रखती है ,और समय -समय महापुरुषों के जीवन चरित्र पड़कर जन समाज का मार्गदर्शन करती है ।
लेखनी का रंग
जब एहसासो के रूप में
भावनाओं के माध्यम से
काग़ज़ पर संवरता है
और जन-मानस के हृदय को
झकझोर कर मन पर अपनी छाप छोड़ता है ,
तब समझो एक लेखक की लेखनी का रंग अमिट होता है अमर होता है ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...