चिकित्सक भी डर गया है ... सहम गया है

आज एक चिकित्सक भी डर गया है 

सहम गया है .....अब एक चिकित्सक बनने  की  बजाय  कुछ और बन्ना पसंद कर रहा है असमंजस  में है चिकित्सक की जब कोई  रोगी दर्द में करहाता, ज्वर की पीड़ा में उसके पास आए ,वो क्या करे ,रोग की जड़ में जाने की बजाय उसे तत्काल इलाज की सुविधा और दवा देकर भेज दे,फिर कुछ दिन ठीक रहने के बाद वो मरीज फ़िर उसी रोग में तड़फता चिकित्सक के पास आएगा और कहेगा डॉक्टर साहब आपने ये कैसी दवा दी मैं तो फिर से  बीमार हो गया ।

अगर चिकित्सक किसी बीमारी का कारण जानने के लिए ,रक्त जांच ,या आवयश्कता पड़ने पर एक्सरे या और कोई जांच करवाता भी है तो इसलिए की रोगी का इलाज सही से हो सके ।

आज विज्ञान के युग में किसी भी क्षेत्र में नए-नए शोध हो रहे हैं ।

चिकित्सा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है नए - नए शोधों ने जटिल से जटिल रोगों का इलाज संभव कर दिया है,जिसके लिए खर्चा भी बहुत आता है

महंगी -महंगी मशीनों की देख-रेख के खर्चे भी बहुत होते हैं, जिससे रोगी के लिए इलाज का खर्चा भी बढ़ जाता है इसमें एक चिकित्सक का क्या कसूर.......


सरकारी अस्पतालों में आवश्यकता से कम चिकित्सक का होना, और मरीजों का आव्यशकता  से अधिक होना आप ही बताइए अगर दो सौ मरीजों का एक ही डॉक्टर इलाज करेगा तो क्या होगा आखिर इतना अधिक बोझा और काम का प्रेशर उस पर मरीज और मरीज के घर वालों का डर एक डॉक्टर जितना डरता होगा शायद उतना कोई और नहीं डरता होगा क्योंकि उस पर कई रोगियों की उनकी जिंदगियों की जिम्मेदारी होती है । 

सरकारी अस्पतालों इलाज में सही से इलाज   नहीं होता ।

अब मरीज हार के  अच्छे इलाज के लिए प्राइवेट डॉक्टर के पास जाता है अब प्राइवेट डॉक्टर क्या करें उसे तो अपना खर्चा निकालना है ना ...ज्यादा बिल बनता है तो उसका क्या कसूर 

मशीनों और जांचों का खर्च तो आएगा ही ना अब एक चिकित्सक के पास रुपए का पेड़ तो नहीं जो वह सब का इलाज सस्ते में कर दे दोष किसी का नहीं दोष हमारी मानसिकता का है कभी भी कोई अच्छा इंसान अपने पेशे के साथ गद्दारी नहीं करता और कोई यह नहीं चाहता कि उसका नाम और पेशा बदनाम हो इतना तो सब समझते हैं अपने काम के प्रति ईमानदारी ही एक चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिलाती है। सिर्फ अपनी मजबूरी ना समझिए एक चिकित्सक की में मजबूरी समझिए अगर हम अपनी जगह सही है तो वह भी अपनी जगह सही हो सकती हैं तुरंत प्रतिक्रिया हमेशा जंग को जन्म देती है माना कि संवेदनाएं मनुष्य को कमजोर कर देती हैं फिर भी  स्थिति कैसी भी हो सम रहना और किसी बात की तह तक पहुंचना एक अच्छे इंसान की पहचान होती है

मैं यह नहीं कहूंगी की दुनिया में सब लोग बहुत अच्छे ही हैं कुछ लोग हैं जो लोभी और स्वार्थी और अनभिज्ञ प्रवृत्ति के होते हैं। मैं कहना चाहूंगी कम से कम किसी की जिंदगी का सवाल हो तो उन्हें अपनी गलत प्रवृत्तियों को छोड़ देना चाहिए क्योंकि जीवन एक बार मिलता है बार-बार नहीं ......

कहते भी हैं ना कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है।  एक के गलत होने से  सबको गलत कहना उचित नहीं...






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...