क्यों रोता है मानव अंधेरे को क्यों कोसता है
अंधेरा यानि विश्राम की रात्रि आयी है
रात्रि में सतर्कता के गुणों की भरपाई है
रात्रि का अंधकार पश्चाताप की
पीड़ा को कम करने की गहराई है
हर रात के बाद सवेरे की घड़ी आयी है
आज तबाही का मंजर देख आंसुओं से
अपना दामन भीगोता है
भूल को सुधार यह तेरे ही
कर्मों का लेखा-जोखा है
सम्भल जा अभी भी ए मानव,
वही पायेगा जो तूने रौपा है
हारना नहीं हराना है
माना की मुश्किलें भी बड़ी हैं
किन्तु हमारे हौसलों के आगे
पर्वतों की चोटियां भी झुकी हैं
एक वाईरस ने तबाही मचाई है ।
लगता है राक्षस योनि फिर से
जीवंत हो आयी है ।्
सम्भल जा अभी भी ए मानव ,
वहीं पायेगा जो तूने रौपाहै ।