संतुष्ट हूं,हर्षित हूं, गर्ववानवित हूं ,आत्मसम्मान से भरपूर हूं
आज लिखने को खुला आसमान है ,पड़ने को सारा जहां ...आज जब स्वयं को देखता हूं
लिखते -लिखते कितने आगे निकल आया हूं
आत्मसम्मान से भरपूर हूं, आज मेरे साथ इतना बढ़ा कारवां है
में लिख रहा हूं लोग पड़ रहे हैं
अपनी राय दे रहे हैं जब मैंने लिखना शुरू किया था
तब कोई पड़ने वाला नहीं था
मैं में एक आस थी
मुझे लिखना था अपने लिए समाज के लिए
आज में लिख रहा हूं लोग पड़ रहे हैं
संतुष्ट हूं हर्षित हूं गर्वान्वित हूं,आत्मसम्मान
से भरपूर हूं ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...