तुम ना बदलना मेरे अपनों


   बदलेंगी तिथियां बदलेंगे वर्ष
बदलेंगे दिन बदलेंगी रातें
पर तुम ना बदलना
मेरे अपनों तुमसे मेरे जीवन
में प्रेमरस ...
शाश्वत प्रेम की धाराओं में
जीवन की नव नूतन आशाओं
से रोशन रहे जीवन का हर पल
सहर्ष ...
नई खुशियों की नई तारीखें
लेकर आए यह वर्ष

शुभ हो सबके लिए नववर्ष ...

नई तारीखें*******

अब वक़्त आ गया है
 बदल ही दूंगा मैं पुराने
ख्वाबों को नए ख्वाबों में
पुरानी तारीखों को नई तारीखों में
नए इतिहास की नई तस्वीर बनाने को
सुलझा देना है  पुराने सुस्त पड़े
कई मुद्दों को आजाद करने के लिए....

**वक़्त तो वक़्त है
जैसा है उसमें ही
शुभ कर्मों के अंकुर उगा लो
वक़्त के इंतजार में वक़्त जाया ना करो
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए
वक़्त रहते वक़्त की कदर करो
गिनती की सांसों पर कुछ तो रहम करो
बीते वर्षों की और उम्र की
वापिसी नहीं होती
ये तो बस बड़ती हैं
और पल-पल घटती हैं
और अलविदा कहकर
नयी तारीखें लिखती हैं।


स्मरणीय यात्रा

यात्रा यानि जीवन को एक नई ऊर्जा नया उत्साह प्रदान करना।
रोजमर्रा की भागती -दौड़ती जिन्दगी ैऔर वही हर दिन ैएक जैसे जीवन प्रक्रिया ,कभी -कभी नीरसता और थकान का कारण बन जाती है।
याद है मुझे मेरी वो यात्रा जब हम सब परिवार वाले एकत्र होकर माता वैष्णानों देवी के दर्शनों को गए थे ,लगभग बीस लोग थे हम सब परिवार वाले ।
हेमकुंड एक्सप्रेस ट्रेन से हम लोग जम्मू पहुंचे ,जम्मू से हम कटरा तक के लिए एक बस में बैठ गए रात भर ट्रेन का सफ़र किया था कटरा तक का रास्ता भी थोड़ा पहाड़ी और घुमाओ दार था हम लोगों को नींद पूरी ना होने के कारण सभी लोग ट्रेन में नींद के झोंकों में एक दूसरों के ऊपर गिर रहे थे कभी कोई एक को जगाता कभी कोई दूसरे को लगभग डेढ़ घंटे के बाद हम कटरा पहुंच गए ।
कटरा पहुंच कर हमने एक होटल में कमरे लिए अपना सारा समान कमरों में पहुंचाया थोड़ी देर आराम करने के बाद हम सब तैयार होकर हम लोग होटल से निकले ,आखिर भूख भी लग रही थी
एक अच्छे से रेस्टोरेंट में बैठकर हमने नाश्ता किया सबने अपने मनपसंद का खाना खाया मैंने तो वहां के राजमा और परांठा खाया जम्मू के राजमा का स्वाद बहुत ही लजीज होता है ।
अब हम सब के पेट भर चुके थे हम लोग तैयार थे ,अब माता के भवन तक जाने के लिए चढ़ाई च ढ ने के लिए सभी भक्त मतांके जयकारे लगा रहे थे जय माता की जय माता की ...
सबसे पहले बाड़ गंगा के दर्शन किए कहते हैं यहां रुककर माता वैष्णो देवी ने अपने केश धोए थे तभी इस नदी का नाम बाड़ गंगा पड़ा ,थोड़ा आगे चलकर चरण पादुका ,के दर्शन किए हम सबने ।
आते बोलो कीमत दी जाते बोलो जय माता दी आगे वाले है माता दी पीछे वाले जय माता दी सब और माता रानी के जयकारों की गूंज थी ,जगह -जगह पीने के पानी की व्यवस्था, चाय ,खाने का सामान सभी जरूरत के सामानों की व्यवस्था सम्पूर्ण थी ।
यहां तक की किसी के बीमार होने पर चिकित्सा व्यवस्था की भी पूर्ण व्यवस्था थी ।
अब हम आर्धकुमारी के मंदिर के पास पहुंच गए थे कभी लम्बी लाइन लगी थी यहां भी हम भी लाइन में खड़े हो गए कहते हैं इस गुफा पर मां ने आर्धकुमारी रूप में नौ महीने विश्राम किया था तभी इस पवित्र स्थल का नाम आर्धकुमा री पड़ा । बहुत छोटी सी और सकती गुफा थी यह बस माता के विश्वास की डर पकड़े हमने भी यह गुफा पार कर ली मां के प्रति श्रद्धा की कोई कमी ना थी ।
अब तो अर्धकूमार से हमारे तकनीकी विशेषज्ञों ने एक ने बहुत ही सीधा सरल रास्ता बना दिया है माता के भवन तक के लिए ।
कुछ बुजुर्गों ,निर्बल तन से कमजोर लोगों के लिए वहां से ऑटो की भी व्यवस्था कर दी गई है ।
कई लोग घोड़ों पर बैठकर भी यात्रा कर रहे थे ।
लेकिन हमारे ग्रुप में से कोई भी घोड़े पर बैठने को तैयार नहीं हुआ जबकि हमारे साथ जो बच्चे थे हमने उन्हें बहुत खा घोडॉन्नप्र बैठ जाओ परंतु वह तैयार नहीं हुए।
मन में माता रानी के प्रति श्रद्धा हमारा मनोबल कम नहीं होने दे रही थी
पौड़ी पौड़ी चड़ते जा जय माता दी करदे जा .....चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है माता के भजन और नाम गाते हुए हम माता के भवन की ओर बड रहे थे ,अब भवन के बहुत निकट पहुंच गए थे मन को बहुत शांति मिल रही थी कुछ ही पल की दूरी पर था अब माता रानी का भवन , भवन में माता के दर्शन करने से पहले सभी लोग स्नान कर रहे थे ।
सर्दी का मौसम था ठंड भी थी परन्तु मन माता के भवन में माता के दर्शन का जोश भरपूर था सभी ने एक एक करके ठंडे पानी में स्नान किया ।
थोड़ी देर में सभी लोग माता वैष्णव देवी के भवन में माता रानी के साक्षात दर्शन करने को तैयार थे ।
माता के भवन में जाने के लिए बहुत श्रद्धालु दर्शनों के लिए पंक्ति में लगे थे हम भी पंक्तियों में खड़े हो गए लगभग एक घंटे में हमारा नंबर आना था सभी श्रद्धालु माता रानी की जय माता रानी जय की माता की बोल रहे थे ।
आखिर हमारे भी पाप मानों पंक्तियों में खड़े इंतजार में कट रहे थे
धीरे - धीरे हम भवन की और बड रहे थे दिल में एक अजीब सी शांति थी ,आखिर हम माता के दर्शन कर रहे थे हमने माता के पिंडी रूपो के दर्शन करने का सुक पाया मां काली ,मां सरस्वती और माता वैष्णदेवी के पिंडी रूप दर्शन करने का सुख अद्भुत ,अतुलनीय था ।
भीड़ अधिक होने और सुरक्षा व्यवस्था के कारण हम ज्यादा देर तो भवन में ना खड़े हो सके ,परंतु माता ने मानों हम मन ही मन संदेशा दिया बेटा मन से श्रद्धा से तुम मुझे याद करोगे तुम मुझे अपने पास पाओगे ।
जय माता दी जय माता दी माता वैष्णव देवी जाना आज भी मन में उत्साह भर देता है ।

*जीवन मूल्य*

जीवन मूल्यों के उच्च संस्कारों
के आदर्शों को धारण करके
व्यक्तित्व में निखार आता है।

लेबल लगे उत्पादों से कोई बड़ा नहीं होता
यह सिर्फ भ्रम पैदा करता है बड़ा होने का
लेबल लगे मंहगे उत्पादों तो पुतले की भी
शोभा बढ़ाते हैं।

व्यक्तित्व में निखार आता है
सादगी से, सत्यता से ,विनम्रता से
परस्पर प्रेम से....
चेहरे पर मेकअप लगा कर तो
सिनेमा में लुभाया जाता है।

धन -दौलत को सर्वोपरि समझने वालों
सम्मान दो उस शिक्षकों को, शिक्षा को
जिसके ज्ञान से तुम्हें ऊंचे पदों प्राप्त हुए।

सम्मान तो वास्तव में उच्च जीवन मूल्यों
और उच्च आदर्शों का और नैतिक मूल्यों
का ही होता है ,जो जीवन को सर्वसंपन्न कराती है
मनुष्य को देखो साधनों को औकात समझ कर
इतराते फिरते हैं।

* भारतीय संस्कृति *

*भारतीय संस्कृति एक अमूल्य धरोहर*
    भारत मेरी जन्म भूमि मेरे लिए मां तुल्य पूजनीय है विविध संस्कृतियों विविध धर्मों को स्वयं में समेटे हुए भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता का प्रतीक है।
हिन्दू ,सिख,जैन,मुस्लिम,ईसाई आदि कई धर्मों का पालन अपनी -अपनी परम्पराओं से करते हुए भी हम सब हिन्दू हैं हिदुस्तानी हैं ।
भारतीय संस्कृति हमें हर धर्म का सम्मान करना सिखाती है।
रंगों का त्यौहार होली हर रंग में घुलमिल जाने का त्यौहार है ।
दीपावली का त्यौहार प्रकाश उत्सव यानि जीवन के अन्धकार को दूर करना अन्धकार जो मनुष्य मन के भीतर अज्ञान का अन्धकार का अंधेरा है उसे दूर करके सब और ज्ञान का प्रकाश फैलाने का त्यौहार है ।
हम भारतीय जितने उल्लास से होली, दीवाली मनाते हैं उतना ही उत्साह ,अन्य धर्मों के त्यौहारों के मौके पर भी दिखाते हैं ,क्योंकि हम भारतीय प्रस्पर प्रेम और अपनत्व की खेती करते हैं ,भेदभाव, छल -कपट से हम कोसों दूर रहते हैं ।
हम भारतीयों के लिए हर दिन उत्सव है ।
 हां आधुनिक समाज को संदेशा है जितना मर्जी आप पाश्चात्य संस्कृति को अपनाओ  परंतु अपना भला ,बुरा देखकर अपनी भारतीय संस्कृति और सभ्यता को कभी मत भूलना
अपनी भारतीय संस्कृति जो तुम्हारी जननी है उसे कभी अपमानित मत होने देना ।
क्योंकि अगर तुम अपने नहीं तो किसी और के क्या होगे।
भारतीय संस्कृति हमें प्रकृति में परमात्मा के दर्शन करवाती है ,हमारे यहां वृक्षों को देवता मानते हैं ,पूजनीय तुलसी का पौधा जिसके बिना परमात्मा का भोग अधूरा माना जाता है   । गंगा का जल अमृत और यह सिर्फ नदी नहीं गंगा माता कहलाती है ।
मेरी भारतीय संस्कृति के विशेषताओं के भंडार असीमित हैं ।
भारतीय संस्कृति जीवन जीने की कला सिखाती है ......

डर किस बात का ....

अमन:- अरे भाई क्या कर रहे हो ,इतना दंगा, फसाद 
तोड़-फोड़ क्यों और किस लिए .....

 अमान :- देश में नागरिकता बिल आया है सुना है उससे देश की जनता को बहुत परेशानियां झेलनी पड़ेगी देश को नुकसान होगा ।

अमन:- देश को नुकसान वो भी नागरिकता बिल से ऐसे कैसे हो सकता है सरकार तो चाहती है जितने भी शरणार्थी हैं उनको यहां की नागरिकता दे दी जाए और जो नहीं लेना चाहते नागरिकता तो वो यहां रहने के नियमों का पालन करें ...

अमान:- नहीं -नहीं देश में इतनी हिंसा हो रही है कोई तो वजह होगी ।

अमन:- वजह है ,जानकारी का अभाव ,पहले अच्छे से समझो इस बिल में है क्या फिर ......करना जो ठीक लगे ,कुछ विपक्षी लोगों के भकने मात्र से चिंगारी लगाई जाती है ,और वो हिंसा की चिंगारी इतने बड़ी हिंसा का रूप ले लेती है।

अमन :-अच्छा ये बताओ तुम क्या चाहते हो।

अमान:-मैं कुछ नहीं बस सब लोग अच्छे से अमन और चैन से रहें ।

अमन :-अच्छा ये बताओ क्या तुम स्वयं को भारत का नागरिक मानते हो।

अमान:- हां बिल्कुल मैं भारत में जन्मा ,मेरे दादा, पिताजी सब पहले से ही यहीं पर रहते हैं ,उनका पुश्तैनी कारोबार है और शहर में लोग हमारे परिवार की बहुत इज्जत भी करते हैं ।

  अमन :- तो फिर एक जिम्मेदार नागरिक बनो अपने ही घर को नुकसान पहुं चाने से बचो ये देश तुम्हारा है तो इसका सम्मान करो तुमसे तुम्हारी नागरिकता कोई नहीं छीन रहा ।
यह अभियान तो उन सब के लिए है हो कई वर्षों से यहां हैं और उन्होंने इस देश की नागरिकता नहीं ली
सरकार का कहना है की इस देश में रहना है तो इस देश की पहचान के साथ रहो उन्हें सरकार सम्मान देना चाहती है सरकार किसी से कुछ छीन नहीं रही ।
अगर फिर भी कोई विद्रोह करता है तो फिर इसका मतलब उसके दिल में देश के लिए सम्मान हो नहीं ।
जब हम किसी को अपना मानते हैं ना तब हम उसे नुकसान नहीं पहुंचाते बल्कि उसकी सुरक्षा करते हैं।

अमान:-हां भाई तुमने मेरी आंखे खोल दी ।

*दिखावा*

  नए में  शुनभागमन करना था तो कोई शुभ कार्य भी करना था, इसलिए हमने *मां जगदम्बा माता रानी* के जागरण का आयोजन किया था ।
 सभी रिश्तेदारों सगे-संबंधियों को और मित्रों को न्योता दिया गया था ।
 रात्रि जागरण सर्दियों का मौसम सभी व्यवस्था यथोचित हो आखिर हमारे अतिथि हमारे देव होते हैं  
और उनका ध्यान रखना हमारा कर्तव्य, अपनी और से हमने सभी व्यवस्थाएं अच्छे से सुनियोजित की थीं।
 लगभग सभी अतिथि मातारानी के जागरण में उपस्थित हुए जिन्हें हमने बुलाया था सभी ने बहुत उत्साह पूर्वक हिस्सा लिया सब बहुत प्रसन्नचित्त थे की उनका स्वागत अच्छे से हुआ और नए घर की बधाइयां देते हुए घर सुन्दर बना है उपमा देते रहे ।
 अगला दिन था सब कुछ मातारानी का जागरण सभी कुछ अच्छे से हो गया था मैंने मातारानी को शुक्रिया अदा किया ।
 आखिर एक परम्परा और निभानी थी कौन -कौन लोग आए थे क्या-क्या उपहार लाए थे देखने का सिलसिला शुरू हुआ ,लगभग सभी मेहमान आए थे जिनको हमने बुलाया था ।
तभी एक एक कीमती उपहार पर नजर पड़ी ... अरे ये मेरा बचपन का मित्र है आज बहुत बड़ा आदमी बन गया है,फिर भी इसका बड़पन्न है ये हमारे घर  आया ये मेरा मित्र बचपन से ही दिल का बहुत अच्छा है, तभी तो इतने आगे निकल गया आज क्या नहीं है इसके पास हम तो इसके आगे कुछ भी नहीं... ये ना जाने कितनी दौलत का मालिक है ,वास्तव में इसकी अच्छाई और सादगी ही इसे इतने आगे लेकर गई है ।   सके घर जाकर कुछ उपहार देना चाहिए और इसका शुक्रिया भी अदा करूंगा की ये हमारे घर अपना कीमती समय लेकर आया,कल ही जाऊंगा इसके घर ।
 अगले दिन मैं अपने मित्र के घर जाने के लिए अच्छे से तैयार हो गया और एक सुन्दर सा उपहार भी लिया उसके लिए ...
 मैं खुश था और स्वयं में गर्वानवित महसूस कर रहा था की शहर का इतना बड़ा आदमी मेरे घर के मुहूर्त में आया ,आखिर रास्ता तय हुआ मैं अपने मित्र के घर के बाहर खड़ा था जहां पहले से ही दो सुरक्षाकर्मी मौजूद थे ,उन्होंने मुझे मेरा नाम ,पता और वहां आने का कारण पूछा ,मैंने कहा वो मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं ,और कल वो मेरे घर के मुहूर्त पर माता का जागरण था वहां भी आए थे ,और तुम्हें तो सब पता होगा ,वो सुरक्षाकर्मी बोले हां पता है वो गए थे अच्छा तो वो तुम हो बड़े भाग्यशाली हो जो साहब तुम्हारे घर आए वो ऐसे ही किसी के घर नहीं जाते ,अब बोलो तुम्हे उनसे क्या काम है ।
मैं उनसे बोला उनका मित्र हूं उनसे मिलना है ।
एक सुरक्षा कर्मी ने अपने कैबिन म से फोन किया ।
फोन पर उत्तर मिला वो आज बहुत व्यस्त हैं जरूरी काम हो तो या तो शाम तक इंतजार करे या फिर किसी दिन आये।
अब मैं थोड़ा सकुचाया धनी सेठ का मिजाज समझ आया मैंने सुरक्षा कर्मी को बोला कि वो बोले मैं उनका बचपन का मित्र रमेश हूं ।
सुरक्षाकर्मी देखो हमें पता है अगर साहब ने मना कर दिया तो समझो मना कर दिया फिर चाहे उनका कोई भी रिश्तेदार हो....
फिर भी तुम कहते हो तो देखता हूं एक बार फिर फोन करके ,सुरक्षाकर्मी ने फोन किया ,उत्तर मिला मैं कोई कृष्ण नहीं हूं और ना ही वो सुदामा ।
मन में हजारों प्रश्न थे अगर कुछ नहीं तो फिर वो मेरे घर उस आयोजन में क्यों आया ....
 सुरक्षाकर्मी अच्छे स्वभाव का व्यक्ति था उसने मुझे पानी पिलाया ,फिर बात करने लगा ,अच्छा तो आप और साहब बचपन में साथ पड़ते थे बहुत अच्छे मित्र थे ,मैंने सिर हिला कर उत्तर दिया हां ....
सुरक्षाकर्मी बोला तुम एक सज्जन व्यक्ति हो इसलिए तुमसे कह रहा हूं ,जब इंसान के पास पैसा आ जाता है ना तब उसका सब कुछ उसका पैसा उसकी हैसियत होता वो किसी का नहीं होता बस वो को भी करता है ना दिखावे के लिए  ऐसे वो कई जगह जाते हैं समाज को दिखाने के लिए और तुम्हारे घर भी आए समाज को दिखाने के लिए की देखो मैं कितना समाजिक और व्यवहारिक हूं सब कुछ अपना रुतबा बढ़ाने के लिए ।
कल को ये भी हो सकता है ,की अगर तुम कहीं रास्ते में दिखो तो वो तुम्हे पहचानने से भी इंकार कर दें
ये दिखावे की दुनिया है भैय्या इनके लिए पैसे बड़ा कुछ भी नहीं ।
दिखावे की दुनिया से बेहतर मैंने अपने घर लौट जाना समझा और मैं उल्टे पांव घर लौट आया।




*मानवता की पुकार*

बहुत फैल चुका है
समाज में जंगलराज
जंगली जानवरों का साम्राज्य
खूंखार भेड़ियों की दरिंदगी
तबाह हो रही है
कई बेटियों की जिंदगी
असहनीय है यह दर्द
मानवता का निभाना होगा फर्ज
सर पर चढ़ रहा है बहुत कर्ज
अब पूरी करनी होगी अर्ज
जंगली भेड़ियों का करना होगा अंत
उठाओ तलवार और कर दो वार
मानवता की पुकार
इंसानियत कर रही है ललकार 😠😡

*मीठा,सरल ,सीधा बचपन*

मीठा,सरल,सीधा बचपन
बच्चे थे तो अच्छे थे
आसमान से भी ऊंचे सपने थे
दादी,नानी से किस्से सुनते थे
वीरों के पराक्रम और
महापुरूषों प्रेरक प्रसंग
नैतिकता का देते परिचय
बन जीवन का प्रेरणास्रोत
उन जैसा बनने को करते प्रेरित ..... 
स्वर्ग से अप्सराएं आती थीं
परियां जादू की झडियों
 से मन की मुरादी बातें पूरी करती थीं
चंदा को मामा कहते थे 
पक्षियों की तरह चहचहाते थे
ऊंची -ऊंची उड़ाने भरते थे
खेलकूद ही अपना जीवन था
भविष्य तो बड़ों का सपना था
दोस्ती भी खूब निभाते थे 
कट्टी-अप्पा से रूठते मनाते थे
बचपन में बड़प्पन दिखाकर
सबको खूब हंसाते थे 
सबके मन को भाते थे 
शायद तब हम सच्चे थे 
अक्ल के थोड़े कच्चे थे 
पर बच्चे थे तो अच्छे थे 
मैं मुझमें मेरा बचपन बेफिक्र
 होकर जीवन भर जीना चाहता हूं

**आत्मविश्वास**

आत्मविश्वास
आत्मविश्वास
© Ritu Asooja
Inspirational
 1 Minutes    206     5

प्रतिस्पर्द्धा
प्रतिस्पर्द्धा के युग में दौड़ता भागता मनुष्य
सुधारने को अपना भविष्य
अपना वर्तमान दाव पर लगाता
कल किसने देखा
सर्वप्रथम अपने वर्तमान को संवार

जी ले जरा
हार और जीत जीवन के दो पहलू
जीवन की सबसे बड़ी पूंजी आत्मविश्वास
हारता वो है जिसने प्रयास ही नहीं किया
जिसने प्रयास किया और कर्म किया
वो नसंदेह जीत गया

प्रथम, द्वितीय या अन्य कोई भी स्थान
ये सबकी अपनी-अपनी कार्य क्षमता का प्रारूप
इसका संबंध नहीं जीत या हार से
अपने आत्मविश्वास को जगाए रखो
कार्यक्षमता में वृद्धि करो

जीवन में कभी अपने विश्वास को निराश मत करना
स्वयं पर पूर्ण रूपेण विश्वास से
बढ़ती है ही आत्मा की शक्ति
आत्म विश्वास यानि स्वयं पर विश्वास
विश्वास ही मनुष्य की सबसे बड़ी जीत है

और स्वयं की ही आत्मशक्ति पर 'अविश्वास '
निराशा को जन्म देताहै यहीं से प्रारम्भ होती है
अपनी सबसे बड़ी हार
आत्मविश्वास यानि स्वयं का स्वयं पर विश्वास भरोसा
जिससे वृद्धि को पाता है किसी भी मनुष्य का आत्मबल

अतः आत्म शक्ति को कभी
कमजोर नहीं होने देना
यही है जीवन का सबसे बड़ा गहना।

उपहार में अपनी मुस्कान दे आया 😀😄😀😃😀😀😃 .......

उपहारों की होड़ लगी थी
कीमती से कीमती उपहारों
का आदान -प्रदान हो रहा था
मुझे भी देना था कोई उपहार
साधारण नहीं ,सामान्य भी नहीं
अद्भुत,अतुलनीय ,बेशकीमती
उपहारों की खोज बीन में मैंने बहुत
समय गवांया फिर भी मुझे कुछ ना
समझ में आया
अब कहां से और
क्या लाता उपहार
उपहार ने बिगाड़ा मेरा व्यवहार
मैं तो भूल बैठा अपना संस्कार
अब कहां से लाऊं अनोखा उपहार
सब कुछ लग रहा था बेकार
अब किसी चमत्कार का था इंतजार
आखिर जश्न का समय आ गया
मैंने शुभकामनाओं का टोकरा
लुटाया , गले लगाया
 उपहार में अपनी मुस्कान दे आया
सारा माहौल खुशनुमा बना आया
उपहार में अपना सर्वश्रेष्ठ दे आया ।





*शब्दों ने मुझे संवारा*




*दिलों में प्रकाशित परस्पर प्रेम की दीपावली * शुभ दीपावली*

*इस दीपावली दिलो में भी
 सकारात्मक सोच का दीपक जलाएं
 दीपोत्सव
दीपों का उत्सव
दीपों के प्रकाश का
भव्य भ्व्यतम था नज़ारा
मानों स्वर्ग को धरती पर हो उतारा

प्रकाश ही प्रकाश
तिमिर का अंश मात्र भी नहीं
स्वछता नवीनता और प्रकाश
का अद्भुत जलवा
फिर भी मेरे मन के कोने
में कहीं कोई कश्मकश थी बाकी
मन में छुप कर बैठी थी उदासी
शिकवे -शिकायतों का संसार
तभी दीपावली पर स्वच्छता
नवीनता और प्रकाश का तात्पर्य
ज्ञात हुआ
 मैंने मन को ना किया था स्वच्छ
पुरानी चीजों यानि पुराने शिकवों को
ना था बाहर  निकाला, तत - क्षण
मन से पुरानी शिकायतों को बाहर
 निकाल कूड़े दान में दे डाला
नए शुभ सकारात्मक विचारों से
मन में किया उजाला
अब दीपावली का तात्पर्य समझ में आया
अब मन के भीतर और बाहर सब और था उजाला बस उजाला .....




* फितरत*

**इंसान की फितरत ही ऐसी है
चाहता भी उसे ही है जो उसे
नसीब नहीं होता
चांद की दूरियां उसकी और अपनी
मजबूरियां सब जानता है फ़िर भी रब से
दुआओं में उसको को ही मांगता है
दिल में आस का दीपक जलाए
जिन्दगी भर जलता सिर्फ जलता और
सुलगता ही रहता है **

 *अक्सर देर हो जाती है
कुछ मिनटों का रास्ता
घंटों में तय होता है
नहीं चाहता कहीं रुकना
फिर भी ना जाने क्यों घंटों रुक जाता हूं
उलझ जाता हूं भटक जाता हूं
शुक्र है देर से ही सही लौट कर
घर पहुंच ही जाता हूं **

प्रेम की महक

प्रेम की महक
भी होती है
प्रेमियों के चेहरों पर
मुस्कराहट के रूप
में खिलती है
लब ख़ामोश
ख़ामोश निगाहें
बोलती हैं
ख़ामोश अदाएं
बहुत की वफ़ायें
कभी तो बोलो
कुछ तो राज खोलो
लबों को थोड़ा हिलाओ
लबों की पंखुड़ियों से
कुछ तो पुष्प ए गुलाब
बिखराओ ,जो दिल में
है उसे कभी तो जुबान पर लाओ
यूं नहीं ख़ामोश रहा करते
दिल के राज नहीं छुपाया करते
ये जो गंभीरता की छवि
बनाए बैठे हो दर्दे दिल को
दबाए बैठे हो  इसपर से
पर्दा हटाओ थोड़ा मुस्कराओ
दिल में जो पर परवाह के रूप में
प्रेम छिपाए   बैठे हो
उसमें थोड़ी मिश्री मिलाओ
प्रेम के इत्र से माहौल को
मेहकाओ .....






*अनोखा प्यार *

    *आव्यशक नहीं जो सामने है वो सत्य ही है किसी भी फल की पहचान ऊपरी परत हटाने पर ही पता चलती है *

    
     यार तू रहने दे ,मैं इस दुनियां में अकेला था ,और अकेला ही ठीक हूं मेरा इस दुनियां में कोई नहीं।
   मेरी मां तो पहले ही इस दुनियां से चली गई थी और मेरा पिता वो तो जीते जी ही मेरे लिये बहुत पहले ही  मर गया था ।
जब मैं आठ साल का था मेरे बाप को शौंक चड़ा था मुझे तैराकी सिखाने का ......
क्या कोई पिता अपने बच्चे को ऐसी तैराकी सिखाता है , धकेल दे दिया था मुझे स्विमिंग पुल में और छोड़ दिया था अकेला मरने के लिए,मैं चिल्ला रहा था पापा मुझे निकालो मैं मर जाऊंगा मुझे तैरना नहीं आता है पर मेरा पापा टस से मस नहीं हुआ ,आखिर दस मिनट बाद बहुत मशक्त करने के बाद मैंने हाथ -पैर मार के तैरना ही सीख लिया।
  वैभव बोला हां और आज तू तैराकी चैंपियन भी है और कई अवार्ड भी ले चुका है,जानता है इसके पीछे कौन है ,तेरे पिताजी अगर उस दिन तेरे पिताजी तुझे अकेला ना छोड़ते तो तू आज तैरना ना सीख पाता और इतना बड़ा चैंपियन ना बनता ।
 अरे विशिष्ट अपनी आंखो से देख, अपने चाचा की बनाई बातों की झुठी पट्टी हटा ,गांधारी मत बन आंखें खोल और सच को पहचानने कि कोशिश कर....

   विशिष्ट अपने मित्र वैभव से कहने लगा ,नहीं वैभव मैं आज जो कुछ भी हूं अपने हुनर और प्रयासों के कारण मेरे पिता का मुझे कोई सहयोग नहीं है तू रहने मेरे पिता की तारीफ करना छोड़ दे ।

  मेरे चाचा भी कहते हैं कि मेरा पिता बहुत कठोर है और पत्थर का कलेजा है मेरे पिता का
  मेरे चाचा के साथ भी मेरे पिता ने यही किया था मेरे चाचा ने मुझे बताया है मेरे चाचा मेरे पिता अपने बड़े भाई को पिता समान मानते थे ,और मेरा पिता पत्थर का कलेजा है उसका ,मेरे चाचा को भी घर से बेघर कर थोड़े से पैसे देकर घर से अलग कर दिया था मेरे पिता ने कहा था जा अपना काम खुद कर कमा खा जो भी कर मेरा चाचा बताता है इतने थोड़े पैसों में क्या होता है ,बस मेरे चाचा की तो हिम्मत थी और मेहनत जो आज मेरे चाचा इतने बड़े व्यपारी हैं ।

  वैभव वाह विशिष्ट वाह तू और तेरा चाचा तो बहुत बड़े आदमी बन गए हो ,पैदा होते ही तुम दोनो अपना काम खुद करना शुरू कर दिया था तुम तो भगवान हो तुम महान हो बाकी सब बैकार........

 इतने में विशिष्ट की चाची आ गई उसने सबको शांत करते हुए कहा दोनो चुप हो जाओ ,विशिष्ट तुम्हारा मित्र वैभव जो कह रहा है सही कह रहा है ।
तुम्हारे पिताजी चाहते थे कि उनका भाई यानी चाचा अपने बल भूते पर कुछ करे आगे बड़े इसलिए तुम्हारे पिताजी ने अपने छोटे भाई को एक मौका दिया आगे बढ़ने का तुम्हारे पिताजी तुम्हारे लिए और तुम्हारे चाचा के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं तुम आजमा के देख लो ।
  उन्होंने मुझे सब बताया है ,बस तुम्हारे पापा का तरीका थोड़ा अलग है ,उन्हें अपना प्यार जताना नहीं आया उन्हें अपनापन समझाना नहीं आया ।
 आज तुम बड़े हो गए हो समझदार हो ,मैंने तुम्हे जो समझाया वो सच है ,अब तुम्हारी मर्जी ....आगे तुम खुद समझदार हो ।
 विशिष्ट बगीचे में रखी कुर्सी पर जाकर बैठ गया ,दिमाग में विचारों की कश्मश थी ...
जीवन का बीता एक-एक लम्हा जो विशिष्ट का उसका पापा के साथ बीता था आंखो के आगे घूमने लगा ..... आंखो से अश्रुओं की धारा बह रही थी
उठकर गाड़ी में जाकर बैठ गया गाड़ी जाकर पापा के घर के आगे रोकी , पापा थोड़े अस्वस्थ थे आराम कुर्सी पर बैठे थे , विशिष्ट पापा के पास जाकर बैठा शब्द निशब्द थे ,पापा बैठे थे पापा के घुटनों पर सिर रखकर आज विशिष्ट ने अपना दिल हल्का किया
पापा ने भी बेटी के सिर पर हाथ फेरा और खा बेटा खुश रहो .... विशिष्ट पापा मुझे माफ कर दो मैं आज जो भी हूं आपकी वजह से .....
पापा ,नहीं बेटा मैंने तो तुम्हारे हुनर को पहचानने में तुम्हारी मदद की ,तुम्हारे प्रयासों के बल पर ही आज तुम जो हो वो सब कुछ हो ।
 आज शायद दिन  ब हुत अच्छा था छोटा भाई भी आ गया था , अपने बड़े भाई के प्रोत्साहन और और जीवन में आगे बड़ने का श्रेय अपने छोटे भाई को दिया ।

* कई बार स्थितियां जो होती हैं उन्हें ही सच मान लेना ठीक नहीं  होता उनके आगे जो छिलन रूपी परत का सच होता है ,उसे हटाकर देखना चाहिए असली फल तभी ंनजर आता है   *


कुछ तो है ( कश्मकश)


  या तो मैं किसी को समझ नहीं पाता
या कोई मुझे समझ नहीं पाता
कुछ तो खामियां होंगी
हममें भी यूं ही कोई किसी
को ंनजरअंदाज नहीं करता
या तो वो मेरी पहुंच से बहुत ऊपर हैं
या फिर मैं उनकी समझ से बाहर
ये समझने ना समझने के खेल में
बड़ी कश्मकश है ,किस के मन में
क्या चल रहा है समझ नहीं आता
किसी को समझो कुछ
और असली चेहरा कुछ और ंनजर आता है
आईने के सामने तो हर कोई
स्वयं को स्वांरता है
जो आईने में ंनजर नहीं आता
किसी भी मनुष्य का चरित्र
उस पर क्यों नहीं ंनजर डालता
जाने क्यों मनुष्य स्वयम के चरित्र
को नहीं निखारता
कहते हैं मन के भाव चेहरे पर
झलक जाते हैं , फिर भी मनुष्य
आत्मिक सौंदर्य पर क्यो नहीं ंनजर डालता
या तो मैं किसी को समझ नहीं पाता
या मुझे कोई समझ नहीं पाता
इसी समझने ना समझने की कश्मकश
में जीवन गुजर जाता है ।


यूं ही कोई महात्मा नहीं हो जाता ********

   *अहिंसा परमोधर्म* *जय जवान जय किसान*

मोहन दास करमचंद गांधी  कुछ तो विशेषता अवश्य रही होगी इस शक्सियत में यूं ही कोई महात्मा नहीं कहलाता ।
दे दी हमें आजादी बिना खड़क बिना ढाल साबरमती के संत तुमने कर दिया कमाल ।
हिंसा से हिंसा को मिटाने का प्रयत्न सभी करते हैं ,
और वह काल जब देश में अंग्रेजों का आधिपत्य था ,उस समय की स्थितियों को देखते हुए ,भारतीयों पर हो रहे जुल्म ,उस पर अपने देश के प्रति भारत वासियों का स्वभिमान आत्मसम्मान,  शीश कटा देंगे परंतु शीश झुकाना कदापि मंजूर नहीं था।
गांधीजी की दार्शनिक दृष्टि ने जिसको समझा आखिर कितने और कितने फांसी की सूली पर चड़ते,नहीं मंजूर हुआ होगा .....गांधी ने जाना हम भारत वासियों की सबसे बड़ी पूंजी है आत्मविश्वास, सत्य , अहिंसा की ताकत जिसके बल पर दुश्मनों को भी झुकाया का सकता है पहचाना और उसमें जोश भरना शुरू किया ।
अहिंसा परमोधर्म
 कहते हैं गांधी जी कहते थे कोई  आपके गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो
आज के युग में जब उग्रता सिर चढ़ कर बोल रही है एक हास्य का विषय है , परंतु इसके पीछे का दार्शनिक सत्य समझ पाना एक महात्मा की सोच हो सकती है ।
 आज दो अक्टूबर को दो महान विभूतियों का जन्म दिवस महात्मा गांधीजी और लाल बहादुर शास्त्री जी को मेरा शत- शत नमन ।
लाल बहादुर शास्त्री जी कहते हैं तरक्की अभावों की मोहताज नहीं होती ,किसान परिवार में जन्में अभावों के बीच बड़े हुए शिक्षा अर्जित की ।
क्योंकि लाल ब हादुर शास्त्री जी स्वयं एक किसान परिवार से थे तो वह जानते थे एक किसान की अहमियत और एक जवान हो देश की रक्षा करता है और उनकी देश के प्रति की गई सेवाओं से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है ।
इन दो महान विभूतियों को मेरा शत* शत नमन*****

शुभम करोती कल्याणम


**यहां मेरी भावनाओं की कोई कदर नहीं .....

प्रेरणास्पद, भावात्मक, काल्पनिक,हास्यास्पद,

( नाटक)

श्रीमान जी :- सुनो श्रीमती जी बाहर से 

किसी रद्धि वाले की आवाज आए तो उसे रोक लेना।

और मुझे बुला लेना  मुझे कुछ बेचना है ।


श्रीमती जी:- अब क्या बेचना है ,अभी परसों ही तो सारा रद्दी  सामान दिया था ,जबकि मैंने कहा था एक दो अखबार बचा लेना अलमारी में बिछाने के लिए चाहिए थे ,तुमने तो एक भी अखबार नहीं छोड़ा था, अब क्या रह गया है कुछ, जो बेचना है ।


श्रीमान जी:- अरे भाग्यवान बस कुछ बेचना है ,बहुत कीमती है, परंतु कोई उनका मोल नहीं जानता ।


श्रीमती जी :- कीमती है और बेचना है,ऐसा क्या है कहीं मेरे गहने तो नहीं ....


श्रीमान जी:- तुम्हारे गहने वो तुम्हारे हैं अभी इतने भी बुरे दिन नहीं आए ,की मुझे ऐसा  कुछ बेचना पड़़े ।

 

श्रीमती जी:- अनमोल अजी मुझे तो घबराहट हो रही है आप ऐसा  क्या है जो रद्दी वाले को बेचने वाले हैं ,कहीं आप मुझे तो रद्दी वाले लो तो नहीं दे देंगे ......


श्रीमान जी:- राम -राम..... रद्दी वाला तुम्हें लेकर क्या करेगा , तुम्हें तो मैं ही झेल लूं इतना ही बहुत है.... व्यंग करते हुए श्री मान जी .....


श्रीमती जी:- हां -हां मेरी कीमत तो मेरे जाने के बाद ही पता चलेगी ।


श्रीमान जी :- आवाज सुनो रद्दी वाले की है शायद ....


श्रीमती जी:- दरवाजा खोल कर देखती हैं इधर-उधर ताकने के बाद ,कोई नहीं है यहां ...


श्रीमान जी :- चलो तो फिर एक कप चाय ही पीला दो


थोड़ी देर में चाय भी बनकर तैयार थी श्रीमानजी चाय की चुस्कियां ले ही रहे थे ,तभी श्रीमती जी ने थोड़ा साहस करके प्रेम से श्रीमान जी से पूछा  ,अच्छा ये बताईए आपको रद्दी वाले को क्या सामान बेचना है।


श्रीमान जी :- कुछ डायरियां निकाल कर रखी थीं कुछ पेपर कुछ पत्रिकाएं   बोले इन्हे बेचना है 


श्रीमती जी :- परंतु ये तो आपकी भावनाएं हैं आपकी धरोहर हैं आपकी अमानत हैं 

आपको तो ये बहुत प्रिय हैं।


श्रीमान जी :- हां ये मेरी भावनाएं हैं ,मेरी आत्मा की आवाज हैं ,ये मेरे द्वारा लिखे गए वो भाव हैं जिनमें विचारों की गहराई है ।


श्रीमती जी मैंने आज तक जो लिखा समाज के हित में प्रेरणादायक लिखा और प्रयास किया , परंतु श्रीमती जी कौन कदर करता है इन भावनाओं की ,आज विज्ञान के युग में तकनीकी दुनियां में कोमल भावनाओं का तो मानों अंतिम संस्कार हो चुका है । श्रीमती जी तुम सही कहती थी जिसके पास समय है आज के युग में ये सब पड़ने का कोई मोल नहीं मेरी लिखी रचनाओं का .....श्रीमती जी दे दो इन्हें किसी रद्दी वाले को .....


श्रीमती जी:- आप निराश न हों श्रीमान जी हम तो बस यूं ही कह देते हैं , हमें बहुत कदर है आपकी भावनाओं की ,हम जानते हैं आप लिखते हैं क्योंकि आप समाज को कुछ अच्छा सिखाना ,और बताना चाहते हैं ,आप निराश न हों एक दिन आएगा जब आपकी भावनाओं की लोग कदर करेंगे ,आपका लिखा हुआ पड़ने के लिए प्रतीक्षा की पंक्तियों में खड़े होंगे ,

और वो क्या कहते हैं आपसे आपके हस्ताक्षर यानी ऑटोग्राफ लेने  शानमें अपनी समझेंगे ।

तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी ,श्रीमती जी ने द्वार खोला डाकिए था कोई पत्र था पकड़ा कर चला गया.....

श्रीमान जी :- हाथ में पत्र लेते हुए अब ये क्या है ,पत्र हाथ में था श्रीमान जी के चेहरे पर आत्मसम्मान की लहर दौड़ पड़ी 

श्रीमती जी :- ऐसा क्या है कोई मनी ऑर्डर आया है क्या , श्रीमान जी चुप थे ,श्री मती जी ने श्रीमान जी के हाथ से पत्र ले लिया और पड़ने लगी श्रीमती जी के चेहरे पर भी   खुशी की लहर दौड़ पड़ी ।

श्रीमती जी :-क्या अभी भी ये सब रद्दी वाले को देना है 


श्रीमान जी :- तुम सही कहती थी श्रीमती जी ,एक दिन ऐसा आएगा जब मेरी भावनाओं को भी कोई समझेगा और आज वो सच हुआ ।


श्रीमती जी :-चलिए सबसे पहले परमात्मा को नमन कीजिए ,शुक्रिया कीजिए ।


फिर मैं सारे शहर को बता कर आती हूं कि मेरे श्रीमान जी को उनके उत्कृष्ट लेखन के लिए राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है ।




**दफन**

** कल मुझे कुछ संस्कार मिले 

     कफ़न में लिपटे हुए

      पड़े थे  मृत के समान  मूर्छित अवस्था में,मानों कोमा में 

      सांसे ले रहे थे ,

      पर मरे नहीं थे,तैयार थे ,

      शव शैय्या पर

      स्वाहा होने के लिए

      क्योंकि मृत के सामान पड़े थे 

      ले जाया जा रहा था उन्हें अंतिम संस्कार

      के लिए .......

      तभी कुछ हलचल हुई,

      एक आस जो बची थी

      जीवंत हो उठी ,संस्कारों ने 

       लम्बी सांस ली...... इंसानियत 

        भी मुस्करा उठी ,खिलखिलाने लगी....

         शुभ मंगल संस्कारों की सांसे चलते देख....

       

 

*बेटियां *


  बेटियां इन कलियों की

अहमियत तो उन बागवानों से पूछो ,

जिन बागों में यह खिलती हैं



घर आंगन महकाती हैं 

रौनकें बढ़ाती हैं 

बेटियां दो घरों की आन-बान 

और शान होती हैं

 एक घर की जड़ों में 

फलती -फूलती और संस्कारित होती है 

दूजे घर की इज्जत नींव और जड़ों को पोषित करने की जिम्मेदारियां निभाती हैं 

बेटियां एक नहीं दो -दो घरों की रौनक और शान बढ़ाती हैं ।

बेटे वंशज होते हैं तो

बेटियां उपजाऊ धरती होती हैं 

भूमिका में दोनों की अहमियत सामान होती है ।




*विचार शून्य जीवन का क्या आधार *

**

*किसी अद्वितीय असीमित,
  शक्तिशाली विचार से ही प्रारम्भ
  हुआ होगा धरती पर जीवन

  विचारों का खेल है सारा
  विचारों से ही संसार का
  अद्भुत नजारा......
  विचारों से ही सृष्टि की सभ्यता विकसित
   मनुष्य में विद्यमान विचारों ने धरती को खूब
   संवारा ......

   मेरा तो मानना है कि विचारों की नींव
   पर ही टिका ही संसार सारा
   विचार ही तो हैं जीवन का आधार ......
   जीवन का सार ,विचार ना होते तो तब
   कहां सम्भव था धरती पर प्रेम और सौहार्द.....

  विचार माना की अद्वितीय शक्तियों का
  सार ,शक्ति का आधार ,जैसे मनुष्य जीवन
  में प्राण रक्त का संचार,हृदय गति का आधार ....
  विचारों के भी दो प्रकार :-
  जहां असुर विचार :- संहारक विनाशकारक
  सुर विचार शुभ दैवीय विचार :-उत्थान करक
 
 *विचारों के द्वंद्व में उलझा  
   तब समझा ,विचार शून्य 
 सब निरर्थक ,निराधार ,
 विचार ही जीवन का आधार

  विचारों के चयन की ना होती महिमा
  तो क्यों कहते ,शुभ और अशुभ विचार
  नकारात्मक और साकारात्मक सोच
  जब मनुष्य की सोच ही उसके काम
  बनाती और बिगाड़ती है तो विचारों
  का ही तो हुआ खेल सारा....



सोचना पड़ा

*मैं वो भाषा हूं जो सबको समझ आ जाती हूं

मैं ना कुछ बोलती हूं ,ना कुछ कहती हूं

फिर भी लोगों के दिल में उतर जाती हूं *


*सोचना पड़ा

खुदा को भी सच्ची मोहब्बतों के कुछ चिरागों को नफरतों की आंधियों के आगे भी ना बुझते देख अपने चक्षुओं को अश्कों से भिगोना पड़ा सोचना पड़ा खुदा को भी मोहब्बत के नाम पर फ़ना होना पड़ा*


*भावनाएं भी क्या चीज हैं

जीवन का आधार ,जीवन का सार है

भावनाओं से रहित जीवन निराधार हैं

भावनाएं नदिया का बहता जल

लहरें उतार -चढ़ाव,

 फंसना यानी भंवर में फंसना

भावनाओं की लहरों संग सामंजस्य बिठा कर

जीवन नैय्या पार करना ही जीवन यात्रा की सफलता ....*

    

*हिंदी हिन्दुस्तान की आत्मा उसका गौरव*

🙏🙏🎊🌹हिंदी मेरी मात्रभाषा अन्नत है,शाश्वत है, सनातन है , हिंदी किसी विशेष दिवस की मोहताज नहीं जब तक धरती पर  अस्तित्व रहेगा तब तक हिंदी भाषा का अस्तित्व रहेगा 🙏🌹🌹🎊🌸🌺🙏

“ हिंदी  मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय ''       🙏🙏

  😊😃जिस भाषा को बोलकर  मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ   ,                            उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।

भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
 भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विश्व के साथ जनसम्पर्क को जोड़ रखा है जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही  भाषा आती है वह है,  भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है।  संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है।  अपनी मातृभाषा का प्रयोग  करते समय मुझे अपने  भारतीय होने का गर्व होता है।  मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं।   मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी  की  सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं  ,और भारतमाता    माँ  सी  ममता। 
आज का मानव स्वयं को  आधुनिक कहलाने की होड़ में  'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण  शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को  आधुनिक समझता  है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है।  किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं   अंग्रेजी  अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को  गौरवान्वित  महसूस करें।   मातृभाषा का सम्मान  माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से  विश्वस्तरीय  ज्ञान की  निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं।   भाषा ने ही ज्ञान  की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी  को मेरा  शत -शत  नमन  आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।
श्री राधे -राधे

श्री राधे नाम की रस धारा हो
और कृष्ण नाम का सहारा हो
 अमृत्मयी विचारधारा तो उसके
जीवन का अद्भुत ,अतुलनीय स्वर्ग सा नजारा हो

फ़िक्र का क्यों जिक्र करूं
जब श्री  कृष्ण मित्र हमारा हो
श्री राधे नाम के इत्र से महकने
लगी है मेरे जीवन की बगिया
अब मेरे संग मेरे अंतर्मन में रहने
लगे हैं कृष्ण कन्हैया

श्री राधे रानी,जब से मैंने तुम्हारे नाम
का सहारा लिया है ,कृष्ण नाम के अमृत
से पवित्र होने लगी है मन मन्दिर की बगिया
हे कन्हैया , मैं जानता हूं तेरे नाम की रसधारा
में डूबकर ही पार लगेगी जीवन की नैया
श्री राधे -राधे


**शिक्षकों का स्थान सर्वोच्च **



कभी सिर पर हाथ फेर कर
कभी डांट कर,
कभी दुत्कार कर
कभी मूर्ख, कभी मंदबुद्धि
कहकर , माना की मेरा दिल
बहुत जलाया ......
परंतु उसी आग ने मेरे अंदर
के स्वाभिमान को जगाया
उस चिंगारी से सर्वप्रथम
मैंने स्वयं को जगाया एक
बेहतर इंसान बनाया
फ़िर समाज के लिए कुछ
कर गुजरने के जनून ने
मुझे मेरे कर्म मार्ग में निरंतर
आगे की और बड़ने को प्रेरित किया
मैं आज जो कुछ भी हूं
मेरे शिक्षकों द्वारा दी गई शिक्षा के फलीभूत....
या यूं कहिए मेरे अंदर की
ज्ञान की चिंगारी को मशाल का
रूप देकर समाज को रोशन किया
धन्य -धन्य ऐसे शिक्षकों को
जिन्होंने मेरे और मेरे जैसे कई
मनुष्यों के जीवन को सही मार्ग दिखाने
के लिए स्वयं के जीवन को चिराग बनाया
उनका जीवन सफल बनाया..

 शिक्षकों के सम्मान में
एक अच्छा शिक्षक नदिया के
बेहते जल की तरह होता है
जिसके ज्ञान की निर्मल धारा में
कोई भी अपनी प्यास बुझा सकता है और
उसकी बेहती जल धारा, गन्दगी रूपी अज्ञान को
बाहर निकाल देती है ।



स्वागतम् गणपति महाराज जी आपका ....

 


माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ,
हे गणपति,हे गणेशा
मैं सदा ,सरल हृदय से
शुद्ध बुद्धि से तेरा नाम
गुणगान गवां ,तेरा नाम सिमरन
कर नित -नए भोग लगवां
हे गणपति मैं निश दिन प्रतिपल
तुझे ही मनावां
रिद्धि, सिद्धि
शुभ , लाभ
लक्ष्मी और सरस्वती
समस्त सिद्धियों के तुम स्वामी
तुम अन्तर्यामी ,
सब के मन की जानी
विश्व भ्रमण का सुख
माता -पिता के चरणों
में पाया, हे, लम्बोदर
बड़े-बड़े रहस्यों को
विशाल ललाट मस्तक में
सिद्धि विनायक ने
विवेक बुद्धि ,ज्ञान से
वेद, ग्रंथों ,आदि महाकाव्यों
की रचना कर जगत को
ज्ञान विवेक का पाठ सिखाया
हे ,विनायक हे लम्बोदर
तेरे नाम लेने से तर जाएं सातों समुन्दर



कीमती सामान

   बहुत दिन से मां कह रही थी ,आलमारी का सामान ठीक करना है ,सारा सामान उलट-पलट करके रखा है ।
 मैं भी बाल मन दस साल मेरी उम्र ....
एक दिन अपना समान ढूंढ़ते वक़्त बाकी सब सामान अस्त -व्यस्त अब अलमारी में रखे सामान की ऐसी स्थिति थीं की ढूंढने पर भी कोई सामान आसानी से नहीं मिलने वाला था।
 मां चिल्लाई ये क्या किया राघव कबाड़ी भी इससे अच्छी तरह रखते होंगे घर में सामान और तुमने क्या हाल कर दिया है ....
मां झ्ट से अाई और अलमारी का सारा सामान बा हर की तरफ निकाल दिया , अब ये सामान ऐसे ही रहेगा ठीक करना अपने आप ,फिर मां खुद ही सारा सामान समेटने लगी ....
मैं पलंग पर बैठा हुआ तिरछी निगाहों से मां को देख रहा था ,तभी मेरी नजर अलमारी के बाहर फैले सामान पर पड़ी ,मेरी जासूस निगाहें उस समान में से ना जाने क्या खोजने लगा कब मैं जाकर उस समान के पास बैठ गया मुझे भी नहीं पता चला। ,तभी मां चिल्लाई तू फिर आ गया तंग करने, मां एक मिनट कहते ही मेरी नज़र कपड़ों के नीचे पड़ी एक कीमती चीज पर पड़ी ,मैंने झट से उसे निकाल लिया और अपने पास रख लिया,और फिर मेरी जासूस निगाहें और कुछ ढूंढने लगी ,रंगों वाले पेन का पैकेट मैने मां से पूछा ये वही रंग हैं ना देखा आपने यहां छिपा कर रखे थे ,मां बोली तुम से कुछ नहीं छिपा राघव..
 मां ने धीरे- धीरे अलमारी का सारा सामान संभाल लिया ।
मां इधर-उधर देखने लगी कुछ छूटा तो नहीं ,तभी मेरा हाथ देखकर बोली ये क्या है तेरे हाथ में क्या है दिखा तो सही ...
तभी मैंने कहा नहीं मां यह मैं नहीं दूंगा ,यह बहुत कीमती चीज है ,मां बोली क्या है बेटा दिखा तो सही ,मैंने भी एक शर्त रखी की आप यह कीमती चीज मेरे पास ही रहने दोगी ,मां बोली अच्छा चल दिखा ....मैंने मां को मेरी कीमती चीज दिखाई ,मां ने मुझे देखा और बोली ये तेरे दोस्त हैं ना ,यह तस्वीर उस समय की है जब स्कूल में तुम्हारा जन्मदिन तुम्हारे स्कूल के दोस्तों के साथ  पहली बार मनाया था ...देखो सब कितने अच्छे  -अच्छे उपहार लाए थे ...
हां मां यह सब मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं
में इस फोटो इस कीमती सामान को हमेशा अपने पास संभाल कर रखूंगा ....
मां बोली रख बेटा अपना कीमती सामान अपने पास ।

*परियां और उनकी रहस्यमयी दुनियां *

अरे वाह!
    इतना सुन्दर क्या है यह किसी रथ सा प्रतीत होता है ,चार श्वेत मखमली अश्व जो रथ के आगे खड़े थे ,अरे वाह श्वेत मखमली हंस,कोई चमत्कारी रथ लगता है यह.....

   इतने में हवा के संग मीठी सुंगध की लहर सारे वातावरण को महका गई ,सब कुछ रहस्यमयी सा प्रतीत हो रहा था ,तभी मीठी आवाज में हंसने ,खिखिलाने की गूंज से वातावरण और भी मीठा हो गया ,उत्सुकतावश मैंने उस हंसने की आवाज का पीछा किया ...कुछ दूर चलने के बाद मैंने पेड़ों की ओट से देखा श्वेत मखमली वस्त्रों में जिनके कोमल-कोमल से श्वेत पंख भी हैं ,विहार कर रही हैं कुछ झरने के निर्मल जल में स्नान कर रही हैं कुछ पुष्पों को क्यारियों में तितलियों को भांति उड़ रही हैं ,बहुत ही सुंदर दृश्य था , मैं स्वप्न लोक की परियों को साक्षात देख पा रही थी , एक बार को सोचा जाकर उनसे मिली कुछ बातें करूं .... फिर लगा कहीं यह मेरी आहट सुनकर लुप्त ना हो जाए , अब तो मुझे
मुझे यकीन हो गया था यह परियां उसी रथ में बैठकर  आयी हैं । मैं रथ की समीप जाकर छुप गई और परियों के आने का इंतजार करने लगी , आसमान की तरफ देखा तो आसमान में तारे  टिमटिमा रहे थे ,चन्द्रमा भी सोलह कला संपूर्ण अपनी श्वेत मखमली चांदनी से संपूर्ण वातावरण को रहस्यमयी  बना रहा था ,समय था रात्रि के दो बजे पर मेरी आंखों में नींद कहां थी , मैं तो परियों के आने के इंतजार में बिना पलके झपकाए बस बैठी थी ।
  रात्रि का समय था कब आंख लग गयी पता भी नहीं चला ।
जब आंख खुली तब सब कुछ एक स्वप्न सा प्रतीत हुआ ...... तभी याद आया अरे मैं तो बगीचे में थी ,परियों का इंतजार कर रहा थी ,फिर सोचा क्या वो सच में परियां थीं ,या फ़िर मेरा भ्रम ,एक सुन्दर सपना ।
  अरे ये मैं कहां हूं ,ये मेरा घर जैसा तो नहीं ..... मैं कहां हूं ,मेरा दिल जोर -जोर से धड़कने लगा ,फिर इधर -उधर ताकने लगी ,यहां तो कोई भी नहीं , मैं कहां आ गई कहीं मैं रात में मर तो नहीं गई और मेरी आत्मा यहां आ गई ,मेरा शरीर घर पर मेरे पलंग पर पड़ा होगा जब मैं बहुत देर तक नहीं उठूंगी तो मेरे घर वाले मुझे उठाने का प्रयास करेंगे ,मेरे शरीर को देखकर मुझे मृत पड़ा सोच कर दुखी हो रहे होंगे ,चीखेंगे -चिल्लाएंगे ,फिर कुछ लोगों के कहने पर मेरे निर्जीव शरीर को जला दिया जाएगा ,नहीं ऐसा नहीं हो सकता मुझे जल्द से जल्द अपने घर जाना होगा अगर मेरा शरीर ही नहीं रहा तो मेरी आत्मा भटकेगी ,यह मैं कहां आ गई चलो घर जाने का रास्ता ढूंढ़ती हूं ।
   बहुत ही काल्पनिक , रहस्यमयी दुनियां में थी मैं ,सिर्फ श्वेत मखमली बादल ना वहां से आने का रास्ता ना जाने का मैं, जितना भी आगे बड़ने का प्रयास करती सव्यं को बादलों के बीच घिर हुआ ही पाती *****
   माना की सब कुछ बहुत मनमोहक था पर वहां करने के लिए कुछ भी नहीं था ,किस से बात करूं क्या करूं  समझ नहीं आ रहा था .....
तभी मैंने एक आवाज लगाई ,यहां कोई है ये मैं कहां हूं ......भगवान जी आप कहां रहते हो ...... हे भगवान धरती पर लोग कहते हैं की आप आसमान में कहीं रहते हो , पर कहां मैं जानती हूं कि आप सच्चे लोगों को दिखते हो ,जाने -अनजाने मैंने बहुत गलतियां की होगी पर मैंने किसी के साथ बुरा  नहीं किया कभी भी ,भगवान मुझे दर्शन दो ,और बताओ मुझे यहां क्या करना है ..... हे भगवान आपको आना ही होगा .....मेरा ऐसा कहते ही बादलों के बीच से चीरते हुए एक आभा आ गई ...प्रकाश ही प्रकाश उस आभा से दिव्य प्रकाश निकल रहा था .... मैं हाथ जोड़कर खड़ी हो गई क्योंकि मैंने जो सुना था भगवान दिव्य आलौकिक तेज प्रकाश का स्वरूप हैं ........... मैं ॐ नमो शिवाय का जाप करने लगी ....तभी उस दिव्य तेज में से निर्मल श्वेत वस्त्र श्वेत चांदनी से चमकते उसके पंख उसके हाथ में एक सुनहरी छड़ी थी उस छड़ी में से तेज प्रकाश निकल रहा था ......में स्तब्ध क्या करूं ,क्या कहूं ....
तभी वो जादू की छड़ी वाली परी बोली , तुम धरती से  आयि हो वैसे तो जीते जी और हम परियों के इच्छा के बिना कोई यहां नहीं आ सकता पर अब तुम आ गई हो तो अब तुम यहीं रहोगी हमारी मेहमान बनकर अब तुम धरती पर वापिस नहीं जा सकती ....तुम्हें कम से कम सौ वर्ष तक यहां रहना होगा ....फिर यहां रहते -रहते तुम हमारे जैसी हो जाओगी और हम तुम्हें सौ साल बाद अपनी तरह परी बना देंगे .....परी तक तो ठीक था,परंतु सौ साल का वक्त तो बहुत लम्बा होता है ,सोच कर दिल घबराया......धरती पर अपने घर की और घर वालों की याद आने लगी .........मां ,बाबा, बहन -भाई सब मुझे ढूंढ़ते होंगे परेशान होंगे मेरे लिये ....... मेरे वापिस लौटने पर मुझे कितना गुस्सा करेंगे ,उनके उस गुस्से में भी प्यार होगा , पर मैं वापिस कैसे जा पाऊंगी ।
  मैंने परी जी से कहा आप बहुत अच्छी हैं ,मुझे नहीं बनना परी ,मुझे माफ़ कर दो पता नहीं मैं यहां कैसे आ गई आप  मुझे धरती पर वापिस भेज दो ...
 परी जी बोलीं देखो अब धरती पर कभी नहीं जा सकती ,तुम्हारे लिए यही अच्छा रहेगा की तुम यहीं रहो और हमारे जैसा रहना सीखो इस काम के लिए तुम्हारे साथ एक परिचायका तुम्हारे साथ रहेगी .....
 मेरे बस में कुछ नहीं था आखिर मुझे उन परी जी की बात माननी पड़ी .....
  परियों की जिन्दगी ही अलग होती है वो तो खाना भी नहीं खाती पानी भी नहीं पीती ,उनका तो हर काम जादू से हो जाता था ।
 लेकिन एक परीचा यिका जो मेरे साथ के लिए थी उसने मुझे प्यार से अपने पास बिठाया और कहा मैं जानती हूं तुम धरती से अाई हो तुम्हें भूख -प्यास सब लग रही होगी लो कुछ खा लो पानी पी लो ...आज से कई सौ साल पहले भी तुम्हारे जैसी एक लड़की धरती से इसी तरह परीलोक में आ गई थी ,फिर वो भी वापिस ना जा सकी अब वो परी बन गई है ।
 मैंने पूछा तुम जानती हो मैं यहां कैसे पहुंची ,वो परी परिचायिका बोली हां मैं जानती हूं।
   मैंने पूछा कैसे वो,परी बोली हमारे रथ में तुम छुप कर बैठ गई थीं और तुम्हें नींद आ गई थीं
मुझे सब कुछ याद आ गया मैंने परी परीचायिका से कहा मुझे वापिस धरती पर अपने घर जाना है ...
परी ने बोला नहीं ये यहां के नियमों के खिलाफ है अगर तुम प्रयास भी करोगी तो तुम्हें ...सजा मिलेगी तुम्हें हवा में लटका दिया जाएगा और तुम झूलती रहना गिरती पड़ती हवा में .......अब कोई चारा भी नहीं था मुझे उसकी बात माननी पड़ी जैसा -जैसा वो परी परिचायक कहती मैं करने लगी ,कुछ बुरा भी नहीं था ,परंतु धरती जैसा भी नहीं था सब बहुत अच्छे थे ।
 जो बड़ी परियां थीं वो धरती पर कोई भोला -भाला मासूम अनाथ हो जाता था ,कभी -कभी उनके सपनों में जाती और उनकी मां बनकर उनसे बातें करती उन्हें सहलाती,यूं तो परियां बहुत प्यारी थीं फिर भी ....
कभी-कभी बड़ी परियों को धरती पर भी जाना पड़ता था ,किसी मासूम के लिए.....ऐसा ही किस्सा मेरे सामने भी हुआ जब मैं परीलोक में थीं ,अचानक एक परी अायी और बोली परी मां धरती पर एक मासूम बच्चा है जिसकी मां मर गई है और उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली है ,अब वो दूसरी मां उस बच्चे के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती है और उसकी पत्नी के कहने पर उसका पिता भी उस चार साल के बच्चे को मारने लगा है ,वो बच्चा बहुत ही मासूम है हरपल अपनी मां को याद करता रहता है...
परी मां आप को उस बच्चे के लिए एक बार धरती पर जाना होगा उसे मां के प्यार की बहुत आवयश्कता है ,परी मां ने कहा ,मेरा रथ तैयार करो मुझे धरती पर जाना है ।
मैं मन ही मन प्रसन्न हो गई मेरी परी परिचायक ने मेरी मदद की ,कहने लगी वैसे तो ये परीलोक के नियमों के ख़िलाफ़ है ,फिर भी हम परियां स्वभाव से सबकी मदद करती हैं ,अब जैसे तुम धरती से अाई थीं वैसे ही जाओगी ज्यादातर हम परियां रात में ही कहीं आती -जाती हैं ,जिससे हमें कोई निर्मल मन देख ना सके.. जैसे तुमने देखा ये तो यकीन है की तुम दिल की बहुत अच्छी हो ।
 आज रात को दो और तीन बजे के बीच परी मां का रथ धरती पर जाएगा जिसमें मैं भी होंगी ,तुम छुप कर नीचे वाले हिस्से में लेट जाना और जब धरती पर हमारा रथ रुकेगा ,तुम चुपके से निकलकर अपने घर चले जाना मैंने उस परी को धन्यवाद कहा .....
 धरती पर रथ रुकते ही मैं अपने घर पहुंची देखा मैं पलंग में लेटी हुई हूं मेरे आस-पास मेरे परिजन और डॉक्टर खड़े हैं ।
 इतने में मेरी आंख खुली घर के सभी सदस्य मुझे देखकर खुश हो गए ,सामने खड़ा डॉक्टर बोला ये तो चमत्कार हो गया ..मां भाई ,बहन सब ने मुझे प्यार से गले लगा लिया...

 तभी मुझे परी परिचाय का की छवि दिखाई दी ,वो दूर से देखकर मुझे मुस्करा रही थी मानों अपनों से मिलने की खुशी का एहसास था उसे भी।






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...