* फितरत*

**इंसान की फितरत ही ऐसी है
चाहता भी उसे ही है जो उसे
नसीब नहीं होता
चांद की दूरियां उसकी और अपनी
मजबूरियां सब जानता है फ़िर भी रब से
दुआओं में उसको को ही मांगता है
दिल में आस का दीपक जलाए
जिन्दगी भर जलता सिर्फ जलता और
सुलगता ही रहता है **

 *अक्सर देर हो जाती है
कुछ मिनटों का रास्ता
घंटों में तय होता है
नहीं चाहता कहीं रुकना
फिर भी ना जाने क्यों घंटों रुक जाता हूं
उलझ जाता हूं भटक जाता हूं
शुक्र है देर से ही सही लौट कर
घर पहुंच ही जाता हूं **

2 टिप्‍पणियां:

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