**हरियाली तीज **


घर की बड़ी औरतें ,अपनी बहू ,बेटियों से कह रही थीं जल्दी करो कल 💐हरियाली तीज💐 है ।

 बाजार से श्रृंगार का सामान भी लाना है ,और नाश्ते का सामान घेवर ,सभी तो तैयार करना है ,और तुम सब तो अपने
ही कामों में व्यस्त हो ,चलो-चलो जल्दी करो ।
फिर घर आकर झूला भी तैयार करना है ।
घर की सभी औरतें तैयार होकर बाज़ार समान लेने चली गयी।

इधर घर पर बूढ़ी दादी ,और उनकी पाँच साल की पौती घर पर थे ,दादी पौती लाड़ लड़ा रहे थे ,दादी अपनी पौती से बोली कल तो मेरी गुड़िया चूड़ियां पहनेगी,मेहन्दी लगायेगी और अच्छे-अच्छे कपड़े पहनेगी ।  पौती बोली हाँजी दादी मैं झूला भी तो झूलूंगी ,दादी मुस्करा के बोली हाँ बेटा ,दादी आप भी मेरे साथ झूला झूलना मैं आपको पकड़ कर रखूंगी ,गिरने भी नहीं दूँगी ।
दादी मुस्करा कर बोली हाँ ,मेरी दादी तो गुड़िया है ।
  पौती ने दादी से पूछा कल आप कौन से रंग की साड़ी पहनोगे ,दादी बोली मैं तो हरे रंग की साड़ी पहनूँगी तुम भी हरे रंग का लहंगा पहनना ,मैंने तुम्हारी माँ से तुम्हारे लिये हरे रंग का लहंगा लाने को कहा है ।
पौती बोली पर दादी मुझे तो लाल और पीला रंग अच्छा लगता है ।
दादी बोली हाँ बेटा रंग तो सब अच्छे होते हैं ,पर कल *हरियाली तीज*है इस लिये हम सब भी हरे रंग के कपड़े पहनेगें ।
सावन का महीना है ,रिमझिम-रिमझिम बरसात से धरती देखो कितनी स्वच्छ और आकर्षक लग रही है।
चारो और देखो धरती माँ ने हरा -भरा श्रृंगार किया है ,कितनी फल-फूल रही है धरती चारों और सुख-समृद्धि और हरियाली ही हरियाली ,कितनी सुन्दर लग रही है ना धरती माँ ।
पौती बोली हाँ जी दादी चारों और हरियाली है ।
चलो अब हमें झूला भी झूलना है ,दादी हाँ चल थोड़ी देर झूला झूल ले फिर मेहन्दी भी लगानी है ,पौती खुश होकर बोली दादी मैं तो बहुत सुंदर फ्लावर बनवाऊंगी अपने हाथ में ।
इतने में दरवाजे की घंटी बजी ,घर की सभी औरतें बाज़ार से खरीददारी करके आ गयी थीं ,चूड़ियां कंगन,बिछुए, कपड़े ,मिठाइयां सभी ले आये थे ।
दादी और पौती सबसे पहले मेहन्दी लगाने बैठ गयीं थीं ,क्योंकि उन्हें सबसे ज्यादा जल्दी सज-धज कर झूला झूलने की थी .....
हरियाली तीज  का मौका था ,सबके हाथों में मेहन्दी लग रही थी ,दादी और पौती अपनी -अपनी मेहन्दी सूखने के इंतजार कर रही थीं ,खिड़की पर खड़ी दादी ने अपनी पौती को बाहर बुलाते हुए कहा......देखो गुड़िया आसमान से कैसे रिम-झिम बरखा की बूंदे गिर रही है वो देखो ऐसा लग रहा है,जैसे आसमान से मोती गिर के धरती का श्रृंगार कर रहें हों ,हरियाली की चुनरिया ओढे धरती कितनी सुशोभित हो रही है
तभी हवा का मीठा सा ठंडा सा झोंका  वृक्षों की लताओं को झूला झुला कर आने  जाने लगा  , सच में सावन के मौसम में आसमान से और धरती का रिश्ता बहुत गहरा हो जाता है ।
प्रकृति और हमारे तीज त्योहारों का एक दूसरे के साथ बहुत गहरा सम्बन्द्ध है ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...