**सच्चा मित्र **

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          **सच्चे मित्र से मिलने की खुशी और मन में
          कशमकश करते , कई प्रश्न ,कई बातें ,यूं ही             बयान हो जाती है ,जब लगता है ,कोई अपना मिल गया है ,अब कुछ कहना इतना जरूरी नहीं,क्योंकि वो मेरा मित्र है, वो मुझे देख कर ही मेरे  दिल में क्या चल रहा  है सब जान जाएगा ।
     
       ** हर बार सोचता हूं
            आज उसे दिल के सारे
            हाल बता दूंगा ,शब्द जुबान
            पर होते हैं ,मैं बोल भी नहीं पाता
            वो मुझे देखकर यूं मुस्कराता है
                *जैसे सब समझ गया *
            वो  मेरा मित्र, कुछ अलग है दुनियां से ।
            मेरा सहयोगी तो है ,पर जताता नहीं
            मैं जानता हूं,वो प्रेरणा बनकर मुझे
            प्रेरित करता रहता है, क्योंकि वो मुझे ही
            योग्य और समझदार बनना चाहता है ।

         **घंटों बैठ कर मैं उससे बातें करता रहा,ना जाने   क्या _ क्या.......
   आज पता नहीं  उससे बातें करने के लिए मेरे पास इतना समय कहां से आ गया था ।
वरना , मेरे कितने काम यूं ही रुके रहते थे कि आज समय नहीं है कल करूंगा, प्रतिदिन का यही बहाना, आज समय नहीं है कल करूंगा ।
मैं स्वयं हैरान था ,चार घंटे उसके साथ बैठकर ऐसे बीते जैसे चार पल ।
   परंतु आज दिल पर पढा सारा बोझ हल्का  हो गया था ,मैंने अपने दिल की सारी बातें उसको कह  सुनाई थी।  मैं सुनाता रहा वो सुनता रहा मैं हैरान था ,      मैंने कहा आज तक मेरी इतनी बातें किसी ने नहीं सुनी जितनी तुमने सुनी ,वो बोला मैं तो कब से इंतजार में था कि तुम मुझसे बातें करो ,तुम ही मेरे पास नहीं आए ,तुमने सोचा होगा कि मैं भी औरों की तरह हूं ।
 ऐसा ही होता है जिसे हम अपना समझते हैं वो अपना नहीं होता ,और जो अपना होता है उसे हम अपना नहीं समझ पाते ।
हमें जो मिलता है उससे हमें खुशी नहीं मिलती, और हमारे पास जो नहीं होता उसमें हम खुशी ढूंढ़ते हैं ,और पागलों की तरह अपना जीवन कष्टदाई करते रहते हैं ।
 जो मिला है ,वो पर्याप्त है ,और आवयश्कता से बहुत अधिक है ,यह हम जान के भी अनजान बने रहने का नाटक करते रहते हैं ,ना जाने क्या ढूंढ़ते रहते हैं हम मनुष्य अपने इस जीवन में .....
  सत्य भी है,जीवन आगे बड़ने का नाम है ।
   एक जगह एकत्र रुका हुआ जल भी कुछ समय बाद दुर्गन्ध देने लगता है । जीवन बड़ा हो अती उत्तम ,परंतु जीवन बड़ा होने के साथ ही साथ उपयोगी होना भी आवश्यक है ।
  सभी रिश्ते _नाते ,मित्र माना कि सब अपने हैं ,परंतु हर किसी की स्वयं की उलझनें हैं ,प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में उलझा हुआ है ,किस को अपनी उलझन बताएं ,जिसको बताओ ,वो अपना ही रोना लेकर बैठ जाता ।
आखिर समझ आया किसी को भी अपनी उलझन बता कर कोई फायदा नहीं  यहां सभी उलझे पड़े हैं    परन्तु इस बार मुझे जो मित्र मिला ,वो मेरा बड़ा सहयोगी निकला , उसे मैंने दिल के सारे हाल बताएं ,उसने बहुत अच्छे उपाय,और हल बताए ।
वास्तव में मेरी उलझन मेरे ही मन की उपज थी ,अब मैं उलझता नहीं ,उलझन भी मेरे पास आने से डरती है क्योंकि उलझन को मैं उलझनें ही नहीं देता ।
वो मेरा मित्र मेरे मन का सहयोगी हर पल मेरे साथ रहता है ।
बड़ी मुश्किल से पहचान पाया हूं ,मैं अपने मित्र को अब उसे अपने से दूर कभी नहीं जाने दूंगा ।
मेरा मित्र मेरी अंतरात्मा की आवाज ,मेरे परमपिता परमात्मा हैं । सच कहूं उससे बड़ा दुनियां में किसी का कोई मित्र नहीं ,अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनिए वही आप सब का सच्चा मित्र है ।





















आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...