**धरती और आकाश **

***आकाश ,और धरती का रिश्ता तो देखो
कितना प्यारा है ।
ज्येष्ठ में जब धरती तप रही थी
कराह रही थी ,सिसक रही थी
तब धरती माँ के अश्रु रूपी जल कण आकाश में एकत्रित हो रहे थे।।

💐💐वर्षा ऋतु मैं..........
आकाश से बरस रहा था पानी
लोग कहने लगे वर्षा हो रही है
पर न जाने मुझे क्यों लगा
आकाश धरती को तपता देख रो रहा है
अपने शीतल जल रूपी अश्रुओं से
धरती माँ का आँचल धो-धोकर भीगो रहा है
धरती माँ को शीतलता प्रदान कर रहा है।
धरती माँ भी प्रफुल्लित हो ,हरित श्रृंगार कर रही है
वृक्षों को जड़ें सिंचित हो रही हैं।
प्रसन्नता से प्रकृति हरियाली की चुनरिया ओढे
लहलहा रही हैं ।
फल फूलों से लदे वृक्षों की लतायें
रिम-झिम वर्षा के संग झूल रही हैं
विभिन्न  आकृतियों वाले मेघ भी
धरती पर अपना स्नेह लुटा रहे हैं।
धरती और आकाश का स्नेह बहुत ही रोमांचित कर देने वाला है ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...