कीमती सामान

   बहुत दिन से मां कह रही थी ,आलमारी का सामान ठीक करना है ,सारा सामान उलट-पलट करके रखा है ।
 मैं भी बाल मन दस साल मेरी उम्र ....
एक दिन अपना समान ढूंढ़ते वक़्त बाकी सब सामान अस्त -व्यस्त अब अलमारी में रखे सामान की ऐसी स्थिति थीं की ढूंढने पर भी कोई सामान आसानी से नहीं मिलने वाला था।
 मां चिल्लाई ये क्या किया राघव कबाड़ी भी इससे अच्छी तरह रखते होंगे घर में सामान और तुमने क्या हाल कर दिया है ....
मां झ्ट से अाई और अलमारी का सारा सामान बा हर की तरफ निकाल दिया , अब ये सामान ऐसे ही रहेगा ठीक करना अपने आप ,फिर मां खुद ही सारा सामान समेटने लगी ....
मैं पलंग पर बैठा हुआ तिरछी निगाहों से मां को देख रहा था ,तभी मेरी नजर अलमारी के बाहर फैले सामान पर पड़ी ,मेरी जासूस निगाहें उस समान में से ना जाने क्या खोजने लगा कब मैं जाकर उस समान के पास बैठ गया मुझे भी नहीं पता चला। ,तभी मां चिल्लाई तू फिर आ गया तंग करने, मां एक मिनट कहते ही मेरी नज़र कपड़ों के नीचे पड़ी एक कीमती चीज पर पड़ी ,मैंने झट से उसे निकाल लिया और अपने पास रख लिया,और फिर मेरी जासूस निगाहें और कुछ ढूंढने लगी ,रंगों वाले पेन का पैकेट मैने मां से पूछा ये वही रंग हैं ना देखा आपने यहां छिपा कर रखे थे ,मां बोली तुम से कुछ नहीं छिपा राघव..
 मां ने धीरे- धीरे अलमारी का सारा सामान संभाल लिया ।
मां इधर-उधर देखने लगी कुछ छूटा तो नहीं ,तभी मेरा हाथ देखकर बोली ये क्या है तेरे हाथ में क्या है दिखा तो सही ...
तभी मैंने कहा नहीं मां यह मैं नहीं दूंगा ,यह बहुत कीमती चीज है ,मां बोली क्या है बेटा दिखा तो सही ,मैंने भी एक शर्त रखी की आप यह कीमती चीज मेरे पास ही रहने दोगी ,मां बोली अच्छा चल दिखा ....मैंने मां को मेरी कीमती चीज दिखाई ,मां ने मुझे देखा और बोली ये तेरे दोस्त हैं ना ,यह तस्वीर उस समय की है जब स्कूल में तुम्हारा जन्मदिन तुम्हारे स्कूल के दोस्तों के साथ  पहली बार मनाया था ...देखो सब कितने अच्छे  -अच्छे उपहार लाए थे ...
हां मां यह सब मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं
में इस फोटो इस कीमती सामान को हमेशा अपने पास संभाल कर रखूंगा ....
मां बोली रख बेटा अपना कीमती सामान अपने पास ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. काश ऐसे कीमती सामान हर कोई संजो के रखे ... हर समय के लिए ...
    जीवन बचपन में ही बीतेगा ... जीवन संवर जाएगा ...

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  2. सामान की कीमत, रखने वाले की नज़र और मन में ही होती है ...

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