“ कन्या दान ,अभिमान ,सम्मान “


 🎉💫घर में शादी का माहौल था , चार दिन बाद बहन की शादी है ,भाई को चिंता हो रही थी कहीं कोई कमी ना रह जाये ,
जबकि भाई अपनी बहन से दो साल छोटा था ,लेकिन बहन की शादी के समय था ,इसलिये शायद थोड़ा ज़्यादा समझदारी की बातें करने लगा था ।

  🎉🎉  घर पर दिन  भर मेहमानों का आना जाना लगा रहता था,कभी कोई चाचा ,मौसा ,ताऊजी सभी को अलग -अलग ज़िम्मेदारी सौंप दी गयी थी  ,सभी पूरी तन्मयता से बेटी की शादी की तैयारियों में लगे हुए थे ।
रात्रि का भोजन हुआ था ,सभी बैठे थे , कौन क्या पहनेगा सभी अपनी -अपनी पसन्द बता थे ।
तभी पापा जी बोले ,तुम सबको अपनी -अपनी पड़ी है ,और भी बहुत काम हैं , कितने लोगों को बुलाना है ,फ़ाइनल लिस्ट तैयार करो ,किसको क्या देना है सब लिखो , तभी भाई बोला किसको क्या दोगे बस देते रहो।
पापा जी बोले बेटा बात देने की नहीं होती ,बात तो शगुन की है ,ये सब रीत -रीवाज हैं इन्हें निभाना ही पड़ता है ।
भाई थोड़ा भावुक हो गया ,बोला पापा नहीं पापा  हम अपने जीवन की अनमोल चीज़ अपने दिल का टुकड़ा दे रहे हैं
,मैं अपनी बहन आप और मम्मी अपनी बेटी दे रहे हैं ,अपना सब कुछ तो दे रहे हैं ,अपना सब कुछ अपने कलेजे का टुकड़ा  दे दिया ,पापा  जी बोले बेटा कन्यादान बहुत पुण्य का काम हैं ।
बेटा बोला वाह पापा वाह बेटी पैदा करो फिर उन्हें दान दे दो ..,.
हमेशा कन्यादान ही क्यों ?

      अब ये रीत बदल दो ,हम तो वर दान करावाएँगे ...पापा जी बोले तुम चुप हो जाओ अभी छोटे होतुम ....
 भाई बोला नही -नहीं पापा जी और आप सब देखना मैं ये रीत बदल दूँगा  , माँ बोली क्या करोगे तुम ........
 मैं वर -दान  कराऊँगा  मैं आप देखना हम लोग अपने होने वाले जीजू को अपने घर में ही रखेंगें  ....
सब लोग समझ रहे थे कि भाई बहन की विदाई के बारे में सोच कर उदास हो रहा है , तभी घर पर आयी हुयी मौसी बोली
चलो -चलो अब इसकी भी शादी कर दो ,पर ये तो अपने ससुराल जायेगा क्योंकि इसका तो वर-दान होगा ...
सब लोग ठहाका लगाकर हँसने लगे .....

   👍“कन्या दान का नहीं
अभिमान का युग है “🎉🎉🎉🎉🎉
कन्यायें समाज की नींव होती हैं
कन्याओं को शिक्षित करें जिससे वह📖

समाज को सुसंस्कृत कर
सभ्य पीड़ी सौंप सके
कन्यायें समाज की नीव हैं
क्योंकि कन्यायें वो विशाखा हैं
जो एक साथ दो -दो घरों को सवाँरती हैं ।👍🎉




8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कहानी। सोच बदलनी तो जरुरी है। पर कुछ सामाजिक प्रथाएँ यथावत रहती है यही तो सामाजिक जीवन के रंग है।
    साथ में लिखी कविता की पंक्तियाँ सुंदर है।

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    1. आप सही कह रही है श्वेता जी
      आपने कहानी यथायोग्य टिप्पणी दी इसके लिये धन्यवाद

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  2. सार्थक विषय को उकेरती हल्की फुलकी कहानी सुंदर संदेश दे रही है | ------

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  3. बहुत ख़ूब ...
    सच है कि ये प्रथा है उर शायद किसी समय कन्यादान का महत्व रहा होगा पर अब ये दान किस बात का ...
    कन्या जीवन लगा देती है दोनों परिवारों के लिए आज ... अच्छा संदेश इस कहानी के ज़रिए ...

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  4. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11अप्रैल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. धन्यवाद पम्मी जी बहतरीन मेरी लिखी रचना को भी halchlawith5link .blogpost me शामिल करने के लिये aabhar

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