“एक आवाज़”

  “जब से मैंने अन्तरात्मा की आवाज सुनी 
  उसके बाद ज़माने में किसी की नहीं सुनी “

“सभ्य, सुसंस्कृत -संस्कारों”से रहित 
  ज़िन्दगी कुछ भी नहीं —-“सभ्य संस्कारों “
  के बीज जब पड़ते हैं , तभी जीवन में नये-नये 
  इतिहास रचे जाते हैं ।

“आगे बहुत आगे निकल आया हूँ “मैं”
ज़िन्दगी के सफ़र में चलते-चलते “

“डरा-सहमा ,घबराराया ,
थका -हारा ,निराश 
सब कोशिशें, बेकार 
मैं असाहाय ,बस अब 
और नहीं , अंत अब निश्चित था 
जीवन के कई पल ऐसे गुज़रें “
“ज़िन्दगी की जंग इतनी भी आसान ना थी 
जब तक मैंने अन्तरात्मा की आवाज़ ना सुनी थी 
         “तब तक “
जब से अन्तरात्मा की आवाज़ सुनी 
उसके बाद ज़माने में किसी की नहीं सुनी “

“कर्मों में जिनके शाश्वत की मशाल हो 
उस पर परमात्मा भी निहाल हो “
“नयी मंज़िल है ,नया कारवाँ है 
नये ज़माने की , सुसंस्कृत तस्वीर 
बनाने को ,’नया भव्य , सुसंस्कृत 
खुला आसमान है “
                       
“एक आवाज़ जो मुझे हर -पल
दस्तक देती रहती है , कहती है
जा दुनियाँ को सुन्दर विचारों के
सपनों से सजा , पर ध्यान रखना
कभी किसी का दिल ना दुखे
संभल कर ज़रा .......
सँभल कर ज़रा..,.,



13 टिप्‍पणियां:

  1. आभार यादव जी मेरे द्वारा सृजित रचना को हलचल with5 links.com me सम्मिलित करने हेतु
    सादर धन्यवाद

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  2. इस अंतरात्मा की आवाज़ में सच होता है ... और सत्य से दुनिया सुंदर बनती है ..।
    सुंदर रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  3. आशा विश्वार और सकारात्मक भाव लिए लाजवाब रचना है ...
    सच है की सब की सुन के अंतरात्म किआवाज़ पे जाना उचित होता है ... स्वयं पर विश्वास रहता है ... नई दिशा मिलती है ...

    जवाब देंहटाएं
  4. कभी किसी का दिल ना दुखे
    संभल कर ज़रा .......
    सँभल कर ज़रा..,.,
    शुभकामनाएं .....

    जवाब देंहटाएं

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