*ए चाॅंद*
कुछ तो विषेश है तुममें
जिसने देखा अपना रब देखा तुममें
ए चाॅद तुम तो एक हो
तुम्हें चाहने वालों ने जाने क्यों
अलग-अलग किया खुद को
ए चाॅद तुम किस-किस के हो जिसने देखा जिधर से देखा
तुमको अपना मान लिया
नज़र भर के देखा, तुमने ना
कोई भेदभाव किया समस्त
संसार को अपना दीदार दिया तुमने
संसार में सभी को नज़र आते हो
पूर्णिमा का चांद हो
सुहागन का वरदान
यश कीर्ति सम्मान हो
करवाचौथ का अभिमान
भाईदूज का चांद हो
ईद का पैगाम हो
सौन्दर्य की उपमा हो
चाहने वालों का सपना हो
ए चाॅद तुम हर इंसान के हो
हिन्दुओं के भी हो मुस्लिमों के भी हो
ए चाॅद तुम जो भी हो विषेषताओं का भण्डार हो
किसी के भी सपनों का आधार हो ।
मैं चाहूं चांद पर अपना आशियाना बनाऊं
खूबसूरत परियों की दुनियां में आऊं-जाऊं
एक जादू की छड़ी ले आऊं ,उसे घूमाऊं
सबके सपने सच कर जाऊं परस्पर प्रेम
की पौध लगाऊं,ईर्ष्या,द्वेष,की कंटीली झाड़ियां
काट गिराऊं , सबको ज्ञान का पाठ पढाऊं
ऊंची सोच की राह दिखाऊं,आगे बढ़ने को प्रेरित
करती जाऊं , जातिवाद का भेद मिटाऊं
इंसानियत के रंग में सबको रंगती जाऊं ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें