🙏🌺श्री गणेश प्रियं भक्त हृदयेश विशेष 🌺🌺🎉🎉


   🙏🙏💐💐“गणेश चतुर्थी”का  पुण्य दिन था , सभी एक दूसरे को शुभकामनायें दे रहे थे ।
    शहर में जगह - जगह पंडाल सज गये थे , “विघ्न हरण ,मंगल करन , गजानन , लम्बोदर ,
     विनायक , गणेश महाराज की मूर्ति स्थापना की सुन्दर बेला , गणेश जी के भजनों से सारा परिवेश भक्तिमय हो रहा      था , सबके दिलों  में हर्षोल्लास की उमंग नज़र आ रही थी ,
गणेश जी की सुन्दर से सुन्दर विशालतम सुसज्जित प्रतिमाओं की स्थापना के वो पल ,
दिन , मन में बस सिद्धि विनायक गणेश जी का ही ध्यान , गणेश जी का श्रिंगार , सेवा , मोदक,प्रसाद , फल, फूल आदि

😊🙏🎉इस बार मेरा बेटा भी जिद्द पर अड़ गया कि वो भी इस “गणेश चथुर्ती”पर  गणेश जी को अपने घर लायेगा । मैं भी हर बार यही कह कर उसे समझाती बेटा “भगवान गणेश जी “तो हमेशा से हमारे साथ है  ।उनकी प्रतिमा भी है हमारे मंदिर में हमारे गणेश जी हमेशा हमारे घर पर ही रहते हैं ।
कहने लगा माँ तुम हर बार कहती हो अगले साल लायेंगे , तुम थोड़े और बड़े हो जाओ , माँ अब इस बार तो गणेश जी घर में आकर रहेंगे , मैं उनकी सेवा करूँगा , मोदक खिलाऊँगा , भोग लगाउँगा भोजन कराऊँगा , भजन गाऊँगा भी , आप देखना माँ मैं बहुत बड़ा भक्त हूँ ...अपने गणेशा का ....🌹🌹🌹🌹🌺🌺
🌸🌸 “गणेश चतुर्थी “ का शुभ अवसर , मेरा बेटा , जिसका नाम विनायक , अपने दोस्तों ,और परिवार संग बड़ी धूम - धाम से लेकर आया सिद्धि विनायक को घर ...गणेश जी प्रतिमा को विधिवत स्थापित किया गया , आरती ,  धूप ,दीप, 🌸🌺💐🌹💐फल ,फूल हर सामग्री जो पूजा विधि विधान के लिये चाहिये होती विनायक पूरी करता , संध्या आरती में तो ख़ूब धूम होती , सभी मित्र , पड़ोसी , आदि मीठे सुरीले भजनों से श्री गणेश जी को ख़ुश करते ।

       🎉⭐️🌟🌟🌸 उत्सव का माहौल था उन दिनों ... जिस तरह हमारे घर कोई हमारा सबसे प्यारा अथिति आता  है और हम ख़ुशी -ख़ुशी उसकी सेवा में व्यस्त हो जाते हैं , मेहमान की पसन्द के व्यंजन बनाना , मेहमान को कोई तकलीफ़ ना होने देना , हँसना , खेलना गीत , संगीत जिससे किसी का मनोरंजन हो वही करना बहुत ही हर्षोल्लास पूर्ण माहौल होता है ...

     💐💐 पर कहते हैं ना .... अथिति को एक दिन जाना होता है , तभी तो वो अथिति  होते हैं  ... दस दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला , अब “गणेश विसर्जन “ का दिन आ गया ... ऐसा लग रहा था मानो घर से कोई हम से हमारा सब कुछ छिन रहा हो ,दिल बहुत उदास हो रहा था ,आख़िर गणेश जी विसर्जन की तैयारी पूरी हुई , नदी किनारे गणेश जी की मूर्ति को लाया गया , मेरा बेटा विनायक तो दहाड़े मार के रोने लगा .. कहने लगा माँ मैं नहीं विसर्जित कर पाऊँगा अपने गणेश जी को .. अगर गणेश जी को विसर्जित करोगे तो ... मैं भी विसर्जित होने जाऊँगा उनके साथ ,किसने बनायीं ये रीत
आज से एक नयी रीत शुरू करते है मैं भी विसर्जित हो जाता हूँ गणेश जी के साथ अगले साल मेरी भी मूर्ति बना कर मेरी भी पूजा करना ...
      गणेश विसर्जन का दिन था नदी किनारे बहुत से ऐसे लोग थे जो गणेश विसर्जन  कर रहे थे बड़ा ही , भक्तिमय ,भाव विभोर कर देने वाला था  वो दृश्य .... विनायक की आँखों से अश्रु नहीं रूक रहे थे , विनायक ने गणेश जी का विसर्जन करने के लिये अपने क़दम आगे बड़ाये और स्वयं को भी नदी के जल में बहने के लिये ढीला छोड़ दिया , तभी साथ खड़े लोगों को समझ आया की अरे ये तो विनायक भी जल संग आगे की ओर बह रहा है , सब चिल्लाये अरे इस लड़के को पकड़ो , तब दो लोंगो ने जल्दी से आगे बड़कर विनायक को जल से बाहर निकला , विनायक कह रहा था  क्यों निकाला मुझे जल से बह जाने दिया होता गणेशा संग , अगले साल  मेरी प्रतिमा बनाते पूजा करते फिर जल में बहा देते , और फिर सालों -साल यही परम्परा चलाते रहते , नदियों का जल प्रदूषित होता रहता। तो क्या , बस अंधी श्रद्धा है ...सब लोग विनायक के दर्द को समझ रहे थे  पर क्या करते चुप थे ।
     वहीं नदी किनारे एक वृद्ध बैठा हुआ सब दृश्य देख रहा था , उससे रहा नहीं गया , और विनायक और उसके मित्रों आदि के पास आकर बोला यूँ तो यहाँ हर दिन परम्पराओं के नाम पर बहुत कुछ होता है , और मैं चुप-चाप देखता रहता हूँ , कौन किस की सुनता है यहाँ ... पर इस बच्चे की भावना देख कर मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ , तुम जानते हो इस पीछे का कारण ...



       “”प्राचीन काल में जब इतनी सुविधायें नहीं थी , तब पंडित , महात्मा लोग जब कभी भी किसी भी परमात्मा की पूजा , अर्चना आदि करते थे , तो उस समय नदी किनारे बैठ कर उसी नदी के किनारे की मिट्टी की आकर रूप में मूर्ति बनाते थे और पूजन , हवन , यज्ञ आदि विधियाँ करने के उपरान्त उन आकार रूप मूर्तियों को JL में हाई प्रवाह कर देते थे , क्योंकि वो मूर्ति कच्ची मिट्टी की होने के कारण जल्दी खण्डित  और नमी की कमी होने के कारण सूखने भी लगती  थीं ,इसलिए उस काल में मूर्तियों को जल प्रवाह कर दिया जाता था और नदी किनारे की मिट्टी नदियों में समाहित हो जाती थी कोई जल प्रदूषण भी नहीं होता था ।
बस आज के युग ने ये परम्परा तो पकड़ ली ,रसायनों से बनी मूर्तियों से नदियों का जल भी  प्रदूषित करते हैं ।
 विनायक को उस साधु की बात समझ आयी और सही भी लगी ,
विनायक ने तो सब प्रण लिया था कि वो इस वर्ष की तरह अगले वर्ष और हर वर्ष गणेश जी की पूजा का भव्य आयोजन करेगा  श्री गणेश  जी की भक्ति तो उसके रोम- रोम में बसी थी , अब अगले वर्ष वो जो गणेश जी की मूर्ति लायेगा वो उसके घर में सदैव - सदैव रहेगी वो उसे विसर्जित नहीं करेगा  । गणेश जी हमेशा उसके साथ उसके घर पर ही रहेंगें ।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/10/89.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  2. आभार राकेश जी मेरे द्वारा सृजित रचना को मित्र मंडली में सम्मिलित करने हेतु

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