💐💐दिव्य प्रकाशमय दीपावली💐💐


त्यौहार:-
        त्यौहार यानि,हर्षोल्लास, उमंग,उत्साह,
दीपावली का त्यौहार,दिल में नया उत्साह,नयी उमंग
सबसे बड़ा काम घर की साफ़-सफाई ।
माँ पास आकर बोली,कल शनिवार है,परसों रविवार, कल और परसों तेरी,आफ़िस की छुट्टी है, ये नहीं की देर तक सोती रहे,कल जल्दी उठ जाना चार दिन बाद दीवाली है,अभी तक ढंग से साफ़-सफाई भी नहीं हुई ,कल सुबह काम वाली बाई के
साथ मिलकर अच्छे से सफाई करवा लेना ।
बेटी मीता बोली हाँ माँ ,मैं भी यही सोच रही थी, फिर सजावट भी तो करनी होगी ,
माँ पता है,बाज़ार में बहुत सूंदर-सूंदर सजावट का सामान आ रखा है।
इतने में दो पड़ोसी बच्चे आ गये ,कहने लगे बुआ जी आपने कहा था ,जब अगले साल हम आठ साल के हो जायेंगे ,तब आप हमें पटाखे दिलायेंगी ।
मीता बोली पटाखे ?
बच्चे बोले बुआ आपने बोला था अगले साल तुम और बड़े हो जाओगे तब तुम्हें बहुत सारे पटाखे दिलाऊंगी ।
मीता बुआ कहती है, पटाखे तो मैं तुम्हें दिल दूँगी ,लेकिन बताओ,पटाखे जला कर तुम्हें फायदा क्या मिलेगा?
बच्चे बोले बुआ जी, बता है ,बजार में कितने अच्छे-अच्छे पटाखे आ रखे हैं।
दीदी बोली मुझे सब पता है, पर ये बताओ पटाखे जलाकर तुम्हे फायदा क्या मिलेगा ?
बच्चे बोले ,बुआ पटाखे जलाकर बहुत अच्छा लगेगा ,मेरा एक दोस्त है,ना उसके पापा तो उसके लिये बहुत सारे पैसों के पटाखे ले भी आये हैं।
बुआ मीता बोली अच्छा ,फिर तो उन्होंने पटाखे लाकर अपने पैसे तो बर्बाद करे ही ,साथ मे वातावरण को दूषित करने का सामान भी ले लिया ।
तुम जानते हो बच्चों पटाखों में अनगिनत जहरीली रसायन होते हैं , और जब हम उन्हें जलाते हैं तो उनमें से जहरीले रसायनों का धुआँ हमारे आस-पास के वातावरण को दूषित करता है,और जब हम साँस लेते हैं तब हमारी साँसों के साथ हमारे शरीर में जाकर हमे भी बीमार करता है, इन पटाखों से बहुत ही जहरीले रसायन निकलते हैं बच्चों ।
बच्चे :-बुआ जी आप हमें पटाखे नहीं दिलाना चाहती तो साफ-साफ मना कर दो।
बुआ को लगा बच्चे अब तो नाराज़ ही हो रहे हैं,
बुआ बोली सुनो बच्चों मैं तुम्हें पटाखे दिलाऊंगी ,जिसमें थोड़ी सी फुलझड़ियां,होंगी चरखी होगी ।
इस बार की दीवाली को हम बहुत शानदार और अलग ढंग से मनायेंगे ,बहुत मजा आयेगा ,आज मुझे घर की साफ-सफाई करने दो । दीपावाली का त्यौहार  हम एक साथ मनायेंगे।
  दिपावली का दिन था, घर आँगन स्वच्छ ,थे घरों में यथासम्भव सजावट कर ली गयी थी ,
मिट्टी की सौंधी महक वाले दियों से आँगन में प्रवेश करते ही सौंधी-सौंधी खुशबू आ रही थी ।
आस-पड़ोसी और सगे-संबधियों का दीपावली की बधाई का सिलसिला चल रहा था ।
इतने में बच्चे भी आ गये ,हैप्पी दीपावली कहकर बुआ जी को घर की सजावट देखने लगे ।
   बुआ जी आपको अपना वादा याद है ना, हमें पटाखे दिलाने है । बुआ बोली हाँ-हाँ सब याद है ,चलो आ जाओ पहले कुछ नाश्ता कर लो । नाश्ता भी हो गया था ,बुआ जी अपने काम मे लगी हुयी थी ,इधर बच्चे परेशान की बुआ जी कब हमें पटाखे दिलायेंगी ।
बच्चे इतने बैचैन थे की बुआ को किसी से बात भी ढंग से नहीं करने दे रहे थे । आखिर बुआ जी बोली बच्चों आज दीपावली हम कुछ अलग ढंग से मनायेंगे ,चलो पहले बाजार चलते हैं, कुछ सामान खरीदते हैं ।
बच्चे और बुआ जी निकल पढ़े दीपावली की खरीदारी करने ।
सबसे पहले तो बुआ जी सड़क के किनारे बैठे मिट्टी के दिए लगाये बच्चे के पास रुकी सोचा कुछ दिये ले लूँ ,बुआ ने पैसे दिये दिये भी ले लिये ,फिर न जाने बुआ को क्या सूझी उस बच्चे से पूछ बैठी, बेटा तुम दीवाली कैसे मनाओगे ,पटाखे नहीं जलाओगे ,तुम्हारा मन नहीं करता पटाखे जलाने का बच्चा बोला ,नहीं मैडम जी हमारे पास कहाँ इतना समय की हम सोचे की हम पटाखे कब जलायेगें ,हम तो बस खुश हैं ,दो वक्त की रोटी के जुगाड़ मे ।
पिताजी हमारे हैं नहीं ,हमें पता नहीं कहाँ रहते हैं , माँ हैं, दो छोटी बहने हैं ,बहने घर पर हैं,माँ भी किसी के घर पर काम करती है । रात को थके हारे घर जायेंगे कुछ खायेंगे और सो जायेंगे।
   थोड़ी आगे चलकर एक पटाखों की दुकान आयी ,बुआ जी ने थोड़े पटाखे लिये ,जिसमे ,फुलझड़ियाँ और ,फिरकी साधारण पटाखे थे ,फिर मिठाई वाले की दुकान से मिठाई और बहुत सारा जरूरत का सामान खरीदा ।
बच्चे एक बार को बोले बुआ जी आपने पटाखे तो भुत कम लिये ,बुआ बोली पटाखे तो सब धुंआ हो जायेंगे ,तुम्हारी ख़ुशी के लिये थोड़े पटाखे ले लिये हैं ।
 बच्चों और बुआजी ने जो-जो खरीददारी करी थी ,वह सारा सामान उन्होंने गाड़ी में रखा ,और उत्सुकतावश गाड़ी में बैठ गये ,बच्चे खुश थे कि ,घर जाकर मिठाई खायेंगे पटाखे जलायेंगे। गाड़ी चल रही थी इतने में एक बच्चा बोला बुआजी यह रास्ता हमारे घर को तो नहीं जा रहा ,हम कहाँ जा रहे हैं ,बुआजी बोली देखते जाओ हम कहाँ जाते हैं ।
थोड़ी आगे जाकर बुआ जी ने गाड़ी रुकवायी ,फिर बच्चों को भी नीचे उतरने को कहा ,बच्चे गाड़ी से बाहर आ गये ,
दीदी ने सारा सामान बाहर निकाला ,बच्चे बोले बुआजी यहां कौन रहता है ,आपका जानकार ,बुआ बोली तो क्या हुआ जो हम किसी को नहीं जानते ,हम जान पहचान कर लेंगें ।
 इतने में नीची सी छत जिस पर बहुत सा पुराना समान पीडीए था ,कच्चे से कमरे के दरवाजे पर टंगे आधे-अधूरे पर्दे से एक बच्चा झाँकता हुआ दिखायी दिया,उस बच्चे की आँखे बड़ी उत्सुकता से हमें देख रही थी, इतने में अन्दर से दो बच्चे और दरवाजे पर खड़े हो गये ,ऐसा लग रहा था जैसे वो पूछना चाह रहे हों ,आप लोग यहाँ क्यों आये हैं ।
देखते-देखते कुछ बच्चे और कुछ बच्चों की मायें नन्हें मुन्नों को गोद में उठाये बाहर आ गयी ,उनमें से एक बोली क्या चाहते हैं आप लोग यहाँ क्यों आये हैं ,मैंने उन्हें बताया की हम उनके साथ दीवाली की खुशियां बांटना चाहते है ,महिला बोली अरे भेजी कहाँ आप कहाँ हम ।
हमारी दीवाली तो मिट्टी के दियों,खील पतासों ,और ये जो बच्चे फुलझड़ियां जला रहे है ना ,वहीं तक सीमित है ,आप जाइये हमारे बच्चों को ऐसे सपने मत दिखाईये बेकार में इन्हें गलत आदत लग जायेगी।
बाच्चों ने और बुआ जी ने मिठाइयां और पटाखे बच्चों में बाँटने शुरू किये बच्चे बहुत खुश थे ,सारे बच्चे एक दूसरे के साथ खेलने लगे पटाखे जलाने लगे ,बुआ जी ने बच्चों की माँ ओं को कुछ पैसे दिये अच्छे कपड़े बच्चों को दिलाने के लिये ।
सब बहुत खुश थे ,सभी बच्चे ऐसे मस्त हो गये थे काफी देर हो गयी थी ,बुआ जी ने बच्चों को आवाज लगायी ,सभी बहुत खुश थे जाते-जाते सबने एक दूसरे को happy Deepawali भी कहा सब खुश थे।
बुआ जी बच्चे गाड़ी में बैठकर घर जा रहे थे, बुआ जी ने बच्चों से पूछा बच्चों चिंता मत करो घर जाकर और पटाखे जलायेंगे मस्ती केरेंगे । बच्चे बोले बुआ जी आज तो मजा आ गया आज की दीपावली हम कभी नहीं भूलेंगे । अभी तक तो हम सोचते थे की मिठाई खाओ,पटाखे जलाओ हो गयी दीपावली ,आज पता चला कि असली दीपावली तो सबके साथ खुशियों की मिठाइयां बाँटने में और सबको खुश करने में होती है ।



**खूँटी पर बँधी है रस्सी**

खूँटी पर बँधी है रस्सी
एक डोर भवसागर की ओर
दूजी डोर धर्मराज की हाथ ।

धरती पर आया है ,
मुसाफ़िर बन कर
तू यूँ डाले है, धरती
पर डेरा ,जैसे की वापिसी
का टिकट ही न हो तेरा
हर एक का है,वापिसी का टिकट
 जीवन की डोर पहुँच रही है,ना जाने
किस-किस की धर्मराज के ,ओर
मौत की खूँटी पर लटकी है,गर्दन
पैर लटक रहे हैं कब्र पर
उस पर असीमित जिज्ञासाओं का मेला
दुनियाँ का मेला, मेले में हर शख्स अकेला
फिर काहे का तू पाले है,जिज्ञासाओं का झमेला,
क्यों करता है, तेरा-मेरा
दुनियाँ है,एक हसीन मेला
इस मेले से नहीं कुछ ले जा पायेगा
आ हम सब मिलकर अपनत्व के बीज डालें
परस्पर प्रेम की पौध उगा लें
भाईचारे संग प्रेम का वृक्ष जब पनप जायेगा
हमारे इस दुनिया से चले जाने के बाद भी
हमारा नाम रह जायेगा ।
मेले का आकर्षण बढ़ जायेगा
हर कोई परस्पर प्रेम का पाठ पड़ जायेगा ।।💐💐💐💐💐




**💐चाँद का दीदार**


💐* करने को चाँद का दीदार 
 मैंने आकाश की और निगाहें
जो डालीं,  निगाहें वहीं थम गयीं💐*

*आकाश में तो झिलमिलाते तारों** की 
बारात थी ,सितारों* का सुंदर संसार 
असँख्य सितारे** झिलमिला रहे थे।
मानों कोई जशन हो रहा हो *****
झिलमिलाते सितारों के बीच 
चाँदनी बिखेरते चाँद की चमकीली 
किरणें सलौनी और सुहानी।

दिव्य, अलौकिक किसी दूजे जहाँ
की परिकल्पना लिये ,मैं कुछ पल को
वहीं खो गया।
आकाश था,मैं था,सितारों* की बारात थी** 
चाँद की चाँदनी थी ,मानों आकाश के 
माथे पर सरल, निर्मल,सादगी, के श्रृंगार 
की बिंदिया ...
चाँद सी लगा के बिंदिया आकाश
अपने सादगी भरे श्रृंगार से सबको 
आकर्षित कर रहा था ।
सबको अपनी चाँदनी से आकर्षित
करते चाँद कुछ तो खास है तुझमें
जो तेरे दीदार से लोगों के दिलों के फैसले लिये
जाते हैं ।

"महत्वकांशाये"

 * महत्वकांशाएँ*   आकांक्षाएं तो बहुत होती हैं,
   परन्तु जो "महत्व" की "आकांशाएँ" होती हैं
   वो "महत्वकांशाएँ "होती हैं ।

* मैं जानता हूँ, कि तू बहुत महत्वकांशी
 है, ए मानव,तेरी काबलियत पर मुझे
 यकीन है *
"अभी तो तू कदम,दो क़दम चला है,
मैं नहीं चाहता तेरे क़दम रुक जायें।
तू जीत का जशन मनाना चाहता है ,
बहुत प्रसन्न हो रहा है, अभी तो तू एक
पड़ाव पर ही पहुंचा है ,मंजिल पर नहीं।


यही तेरी मंजिल है, ऐसा हो नहीं सकता
अभी तो तुझे बहुत ऊंची उड़ाने भरनी हैं "

उड़ान अभी बाकी है, अभी तो पंख फडफ़ड़ाएं हैं,
मैं जानता हूँ ,तेरी काबलियत,तेरी सोच से भी ऊँची है ।
अपनी छोटी सी जीत पर यूँ ना इतरा।
नहीं तो पाँव वहीं रुक जाएंगे।

"अहंकार का नशा चढ़ जायेगा
अंहकार के नशे मे तू सब कुछ भूल जायेगा"
जीत अभी बाकी है ,उड़ान अभी बाकी है ,
मंजिलें मिसाल अभी बाकी है ।
तेरे करिश्मों से अन्जान ,पर कद्रदान
अभी बाकी हैं ।



** धरती माँ**

 मैं धरती माँ का अपकारी हूँ,
ये धरती न तेरी है, ना मेरी है
ना धरती माँ के लिये कत्ले आम करो
ना धरती माँ का अपमान करो ।
जख्मो से धरती छलनी है ,मत अपने विनाश का
सामान करो ,धरती का सीना जब फट  जायेगा
विनाश ही विनाश हो जायेगा ।

भगवान ने धरती हम मनुष्यों के लिये
बनायी ,धरती का भार मनुष्यों को दिया।

तुम चाहो तो धरती को स्वर्ग बना लो या नरक
मनुष्यों को तो देखो ,अपने बुरे कर्मों
द्वारा धरती को युद्ध भूमि ही बना डाला ।

अरे ये धरती हम मनुष्यों की है ,ये इस धरा का
उपकार है कि उसने हमें रहने के लिये स्थान दिया
जानते तो अग़र धरती ना होती तो हम
*बिन पैंदी के लौटे* की तरह लुढ़कते रहते
प्रकृति के रूप में हमें जो विरासत मिली है
उसका संरक्षण करो , मत इसका भक्षण करो।
अपने हक में तो सब दुआ करते हैं
 काश की सब सबके हित में दुआ
करने लग जाये तो धरती पर स्वर्ग आ जाये ।।



"इस वर्ष विजयदशमी पर, कलयुगी रावणों का अंत करने का निर्णय लें।


*विजय दशमी*
" सच्चाई की बुराई पर जीत का पर्व"
 सतयुग में जब अहंकारी रावण का अत्याचार बढ़ता जा रहा था ,रावण जो परम् ज्ञानी था ,परन्तु अपने अहंकार के मद के नशे में चूर रावण दुष्टता की चरम सीमा को पार करता जा रहा था ,धरती पर साधु,सन्यासी,सरल ग्रहस्थी लोग रावण के अत्याचारों से हा-हा कार करने लगे ,तब धरती को राक्षस रूपी रावण से  पापमुक्त करने के लिये, परमात्मा रामचन्द्र को लीला करनी पढ़ी ,और श्री राम ने लीला करते हुए ,अपनी भार्या सीता को रावण की कैद से आजाद कराने के लिये ,भाई लक्ष्मण ,हनुमान, सुग्रीव,जाववंत, आदि वानर सेना के सहयोग से ,रावण रूपी राक्षस से धरती को पाप मुक्त कराया ।
तभी से आज तक रावण, कुंभकर्ण,और मेघनाद के पुतलों को जला कर गर्वान्वित महसूस किया जाता है ।
 
आज कलयुग में में भी इस विजय दशमी की बहुत महिमा है ,अच्छी बात है । परन्तु कब तक ?
सतयुगी रावण तो कब का मारा गया । प्रत्येक वर्ष रावण के पुतले को जला कर हम मानवीय जाति शायद यह साबित करना चाहती कि रावण तो बस एक ही था ,और तब से अब तक रावण का पुतला जला कर हम बहुत श्रेष्ठ काम कर रहे हैं ,अजी कुछ भी श्रेष्ठ नहीं कर रहे हैं आप लोग , अगर हिम्मत है तो कलयुगी रावणों से धरती को पाप मुक्त करके दिखाओ।
आज कलयुग में मानव रूपी मन में कई रावण पल रहे हैं ।आज भाई-भाई का दुश्मन है ,परस्पर प्रेम के नाम पर सिर्फ लालच ही भरा पड़ा है । कोई किसी को आगे बढ़ते देख खुश नहीं है ,हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में एक दूसरे को कुचल रहे हैं ।
आज कलयुग में एक नहीं अनगिनत रावण धरती पर विचरण कर रहे हैं ,अगर करना है तो इन रावणों का अंत करो
आज के युग मे सिर्फ रावण के पुतले फूँकने से कोई लाभ नहीं होगा।
और कोई भगवान नाराज़ नहीं होंगे ,अगर इस वर्ष हजारों रुपये के रावण, कुंभकर्ण,और मेघनाद, के पुतले आप नही फूंकेंगे ,तो भगवान प्रसन्न होंगे।
 अगर उन्हीं रुपयों से आप किन्हीं जरूरतमंदों की सहायता करेंगे। किसी परिवार में सच्ची शिक्षा का बीज बोयेंगे किसी को जीवन में आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करेंगे ।
*विजयदशमी का पर्व *मनाईये  अवश्य मनाईये पर  सर्वप्रथम दिलों में परस्पर प्रेम को दीप जलाइए ।
*अपनत्व की फ़सल उगाओ ,वैर ईर्ष्या, निन्दा, हठ, क्रोध आदि राक्षसी वृत्तियों के पुतले हर वर्ष जलायें ।
बंद करें अब ये पुतले फूंकने का खेल आज से प्रत्येक वर्ष "विजयदशमी" पर अमानवीयता ,और अहंकारी रावणों रूपी विचारधाराओं का अंत कर उनके पुतले फुंकिये ।
  

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...