🌸🎉ख़ुशियाँ बाँटो 🎉🌺

     🌸🎉🌟🌟🌟🌟

         “अपनी ख़ुशियाँ  तो सब चाहते हैं
            परन्तु जो दूसरों। को ख़ुशी देकर ख़ुश होते हैं
          उनकी ख़ुशियाँ दिन - प्रतिदिन बढ़ती रहती हैं “
         
 गाँव में दशहरे के पर्व के उपलक्ष्य  में मेला लगा था  ।
   🌟🌟गाँव वालों में बहुत उत्साह था , मेला देखने जो जाना था , सभी अपने - अपने ढंग से तैयार होकर सज -धज कर कर मेले में जाने के लिये तैयार हो रहे थे ।
 बच्चों में भी उत्साह था , आख़िर गाँव में  कभी -कभार ही ऐसे मौक़े आते थे , की सब एक साथ मिलकर कहीं जायें।

    😊😃 वैदिक और बैभव भी मेले में घूमने जा रहे थे ,दादी का पंखा टूट गया था , दादी को अब मच्छर काटेंगे ,गर्मी भी लगेगी , वैदिक को बहुत चिंता हो रही थी .. दादी का पंखा मिल जाए मेले में वैदिक की दिली  इच्छा थी .....
   साथ में दोनो के माता -पिता भी थे , वैभव और वैदिक की माओं ने सिर पर बड़े-बड़े घूँघट ओड़ रखे थे , की अचानक आगे गड्ढा आया , और दोनो माताओं के पैर लड़खड़ाये और वो गड्ढे में जा गिरी , बच्चे ज़ोर -ज़ोर के हँसने लगे .... तभी दोनो माताओं के सिर से घूँघट हटे , और दोनो झट से उठ खड़े हुई , एक दूसरे को देखते हुए हँसने लगी , पिताजी बोले अरे भगवान अब मेले घूमने जा  रही हो घूँघट हटा दो .....,

 वैदिक और बैभव भी मस्ती में चले जा रहे थे दिल उमंग और उत्साह था ... मेले में क्या - क्या होगा ,
इतने में वैभव बोला वैदिक मैं तो सारे झूलों में झूलूँगा , और तुम वैदिक , तुम्हें तो बड़े झूलों से डर लगता है , तुम तो छोटे वाले  झूलों में ही झूलना ।  वैदिक स्वभाव से सरल और भावुक था , वह लड़ाई - झगड़े से कोसों दूर रहता था ।
जबकि वैभव चंचल स्वभाव का था , दोनों के स्वभाव बिल्कुल अलग थे । वैभव तेज़ हवा का झौंका और वैदिक शान्त , शीतल समीर .....
    🌟🌟 वैभव और वैदिक  मेले में पहुँच चुके थे , मेले में जगह - जगह खिलौनों और खाने -पीने की चीज़ों की दुकाने थी ,कभी पकोड़े , कभी जलेबी , कभी भेलपूरी , और सबसे बाद में 🍧🍨आइसक्रीम की बारी आयी , खाना - पीना तो बहुत हो गया था । अब जब तक बच्चे खिलौने ना लें तब तक सब अधूरा रहता है ।

बच्चे जाकर खिलौने की दुकान पर रुके , इधर वैदिक की नज़रें तो दादी माँ के लिये पंखा मिल जाये ,बस वही ढूँढ रही थी .....,...दशहरा का पर्व था दुकानों पर तीर -कमान ,तलवार आदि,
वैभव को  “सुनहरा तीर -कमान बहुत पसंद आ रहा था , उसने अपनी पसंद का तीर - कमान लिया कह रहा था मैं इस तीर - कमान से रावण के दस सिर काट दूँगा ... इतने में वैभव की माँ बोली अपनी छोटी बहन के लिये भी जो दादी के साथ घर पर है उसके लिये भी कुछ ले लेते हैं , वैभव की बहन के लिये गुड़िया , बाजा और खाने की चीज़ें ली गयी ।

   इधर वैदिक अपनी धुन में सरलता से दुकान दार से हर चीज़ का दाम पूछ रहा था , तभी वैदिक ने श्री राम जी की तस्वीर उठा ली और कहा भैय्या जी ये दे दो ,तभी वैदिक की नज़र आगे वाली दुकान पर पड़ी वहाँ उसे पंखा दिखायी दिया , दुकानदार को दो मिनट रुको कहकर वैदिक आगे वाली दुकान पर पंखा लेने चला गया , इतने में वैभव आया उसने दुकानदार से पूछा भाई वो लड़का जो यहाँ खड़ा था कहाँ  गया , दुकानदार ने आगे की और इशारा करते हुए कहा बच्चा है ओर कुछ पसंद आ गया होगा , तभी वैभव ने देखा वैदिक अपने हाथ में पंखा लिये आ रहा है ,वैभव बोला ये मेरा दोस्त सबको ख़ुशी देकर ख़ुश होता है .... ये देखा अपनी दादी के लिए पंखा लाया है ...
और अपनी बहन के लिये रंगों वाली पेन्सल और कापी ली वैदिक ने  , और अपनी दादी के लिये हाथ से चलाने वाला पंखा ......
संध्या का समय हो चला था सब अपने घर की और लौट रहे थे ... रास्ते में चलते-चलते वैभव , वैदिक से बोला , तुमने अपने खेलने के लिये तो कुछ लिया नहीं , वैदिक बोला , खेलने के लिये जब मैं अपनी बहन को ये रंगो वाली पेन्सल और कॉपी दूँगा तो वो इससे सुन्दर -सुन्दर चित्र बनायेगी , मैं वो देखकर ख़ुश हो जाऊँगा ,और मेरी दादी जब बाहर बरामदे में बैठती है ,तब उन्हें गर्मी लगती है , और उन्हें मच्छर भी काटते हैं ,अब पंखे से गर्मी और मच्छर दोनो भाग जायेंगे ,और राम जी हमारे सारे दुःख दूर कर देंगे .....

















“  ये धरती अपनी है , नीला आसमान भी अपना है “
  खेलने को खुला मैदान है ,आओ मित्रों खेल खेलें
  हम बन्द कमरों में नहीं रहते , हमारे खेल बड़े-बड़े हैं
  हमें रहने को खुला मैदान चाहिए , सपने देखने को
  चाँद , सितारों का जहाँ चाहिये ।

😊भीड़ 🌟

       
        😊भीड़ 🌟

     “भीड़ बहुत भीड़ है ,
       मैं जानता हूँ ,मैं भी
       भीड़ का ही हिस्सा हूँ
       पर मैं चाहता हूँ ,
       मैं भीड़ ,में रहूँ
       पर भीड़ मुझमें ना रहे
      भीड़ में “मैं” अपनी अलग
      पहचान बनाना चाहता हूँ ।
     भीड़ में अजनबी , अकेला बनकर
     रहना मुझे मंज़ूर नहीं ......
     मैं भीड़ संग भीड़ को अपनी पहचान बनाना चाहता हूँ
     मैं भीड़ में एक सितारा बनकर चमकना चाहता हूँ “
     
     
     

🙏🌺श्री गणेश प्रियं भक्त हृदयेश विशेष 🌺🌺🎉🎉


   🙏🙏💐💐“गणेश चतुर्थी”का  पुण्य दिन था , सभी एक दूसरे को शुभकामनायें दे रहे थे ।
    शहर में जगह - जगह पंडाल सज गये थे , “विघ्न हरण ,मंगल करन , गजानन , लम्बोदर ,
     विनायक , गणेश महाराज की मूर्ति स्थापना की सुन्दर बेला , गणेश जी के भजनों से सारा परिवेश भक्तिमय हो रहा      था , सबके दिलों  में हर्षोल्लास की उमंग नज़र आ रही थी ,
गणेश जी की सुन्दर से सुन्दर विशालतम सुसज्जित प्रतिमाओं की स्थापना के वो पल ,
दिन , मन में बस सिद्धि विनायक गणेश जी का ही ध्यान , गणेश जी का श्रिंगार , सेवा , मोदक,प्रसाद , फल, फूल आदि

😊🙏🎉इस बार मेरा बेटा भी जिद्द पर अड़ गया कि वो भी इस “गणेश चथुर्ती”पर  गणेश जी को अपने घर लायेगा । मैं भी हर बार यही कह कर उसे समझाती बेटा “भगवान गणेश जी “तो हमेशा से हमारे साथ है  ।उनकी प्रतिमा भी है हमारे मंदिर में हमारे गणेश जी हमेशा हमारे घर पर ही रहते हैं ।
कहने लगा माँ तुम हर बार कहती हो अगले साल लायेंगे , तुम थोड़े और बड़े हो जाओ , माँ अब इस बार तो गणेश जी घर में आकर रहेंगे , मैं उनकी सेवा करूँगा , मोदक खिलाऊँगा , भोग लगाउँगा भोजन कराऊँगा , भजन गाऊँगा भी , आप देखना माँ मैं बहुत बड़ा भक्त हूँ ...अपने गणेशा का ....🌹🌹🌹🌹🌺🌺
🌸🌸 “गणेश चतुर्थी “ का शुभ अवसर , मेरा बेटा , जिसका नाम विनायक , अपने दोस्तों ,और परिवार संग बड़ी धूम - धाम से लेकर आया सिद्धि विनायक को घर ...गणेश जी प्रतिमा को विधिवत स्थापित किया गया , आरती ,  धूप ,दीप, 🌸🌺💐🌹💐फल ,फूल हर सामग्री जो पूजा विधि विधान के लिये चाहिये होती विनायक पूरी करता , संध्या आरती में तो ख़ूब धूम होती , सभी मित्र , पड़ोसी , आदि मीठे सुरीले भजनों से श्री गणेश जी को ख़ुश करते ।

       🎉⭐️🌟🌟🌸 उत्सव का माहौल था उन दिनों ... जिस तरह हमारे घर कोई हमारा सबसे प्यारा अथिति आता  है और हम ख़ुशी -ख़ुशी उसकी सेवा में व्यस्त हो जाते हैं , मेहमान की पसन्द के व्यंजन बनाना , मेहमान को कोई तकलीफ़ ना होने देना , हँसना , खेलना गीत , संगीत जिससे किसी का मनोरंजन हो वही करना बहुत ही हर्षोल्लास पूर्ण माहौल होता है ...

     💐💐 पर कहते हैं ना .... अथिति को एक दिन जाना होता है , तभी तो वो अथिति  होते हैं  ... दस दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला , अब “गणेश विसर्जन “ का दिन आ गया ... ऐसा लग रहा था मानो घर से कोई हम से हमारा सब कुछ छिन रहा हो ,दिल बहुत उदास हो रहा था ,आख़िर गणेश जी विसर्जन की तैयारी पूरी हुई , नदी किनारे गणेश जी की मूर्ति को लाया गया , मेरा बेटा विनायक तो दहाड़े मार के रोने लगा .. कहने लगा माँ मैं नहीं विसर्जित कर पाऊँगा अपने गणेश जी को .. अगर गणेश जी को विसर्जित करोगे तो ... मैं भी विसर्जित होने जाऊँगा उनके साथ ,किसने बनायीं ये रीत
आज से एक नयी रीत शुरू करते है मैं भी विसर्जित हो जाता हूँ गणेश जी के साथ अगले साल मेरी भी मूर्ति बना कर मेरी भी पूजा करना ...
      गणेश विसर्जन का दिन था नदी किनारे बहुत से ऐसे लोग थे जो गणेश विसर्जन  कर रहे थे बड़ा ही , भक्तिमय ,भाव विभोर कर देने वाला था  वो दृश्य .... विनायक की आँखों से अश्रु नहीं रूक रहे थे , विनायक ने गणेश जी का विसर्जन करने के लिये अपने क़दम आगे बड़ाये और स्वयं को भी नदी के जल में बहने के लिये ढीला छोड़ दिया , तभी साथ खड़े लोगों को समझ आया की अरे ये तो विनायक भी जल संग आगे की ओर बह रहा है , सब चिल्लाये अरे इस लड़के को पकड़ो , तब दो लोंगो ने जल्दी से आगे बड़कर विनायक को जल से बाहर निकला , विनायक कह रहा था  क्यों निकाला मुझे जल से बह जाने दिया होता गणेशा संग , अगले साल  मेरी प्रतिमा बनाते पूजा करते फिर जल में बहा देते , और फिर सालों -साल यही परम्परा चलाते रहते , नदियों का जल प्रदूषित होता रहता। तो क्या , बस अंधी श्रद्धा है ...सब लोग विनायक के दर्द को समझ रहे थे  पर क्या करते चुप थे ।
     वहीं नदी किनारे एक वृद्ध बैठा हुआ सब दृश्य देख रहा था , उससे रहा नहीं गया , और विनायक और उसके मित्रों आदि के पास आकर बोला यूँ तो यहाँ हर दिन परम्पराओं के नाम पर बहुत कुछ होता है , और मैं चुप-चाप देखता रहता हूँ , कौन किस की सुनता है यहाँ ... पर इस बच्चे की भावना देख कर मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ , तुम जानते हो इस पीछे का कारण ...

🌺🌸लेखक केशव कुमार और पुष्प वाटिका 🌺💐🌹


🌺🌹🌺💐😊
       प्रकृति प्रेमी , घण्टों दरिया किनारे बैठना , आती - जाती लहरों से मानों बातें करना , कभी किसी पहाड़ की चोटी पर     चढ़ जाना , ऊँचाइयों से अपनी धरती माँ को निहारना ........वृक्षों और वनस्पतियों तो मानो , लेखक केशव कुमार की प्रेरणा थे ,उनका तो कहना था की भगवान अगले जन्म में उन्हें वृक्ष बनायें , क्योंकि वृक्ष हर हाल में उपयोगी होता है , कभी
छांव बनता है ,फल देकर किसी की भी भूख मिटाता है , प्राणवायु देता है वृक्ष , उसकी लकड़ी भी उपयोगी होती है , मानो वृक्ष पूर्ण रूपेण उपयोगी व समर्पित होते हैं

    हर दिन की तरह केशव कुमार ,आज भी अपने शहर की मशहूर पुष्पों की दुकान जिसका नाम “पुष्प वाटिका “था , जाकर रूक गये और , रंग-बिरंगे खिले - खिले पुष्पों को निहारने लगे ।  हर दिन की तरह उस फूलों की दुकान पर काम करने वाले एक लड़के ने आकर केशव कुमार को बैठने के लिये एक कुर्सी आगे बड़ा दी , केशव कुमार मुस्कुराते हुए उस लड़के “लम्बू “से से बोले तु अपना काम कभी नहीं भूलता जा दुकान पर , भाई जी का हाथ बँटा ,
वरना वो तुझे ग़ुस्सा करेंगे , हाँ बाबूजी आप सही कहते हैं , मैं जाता हूँ  , तभी एक ग्राहक आया , उसने सभी पुष्पों के दाम पूछे , और आगे बड़ गया , तभी दुकान मालिक ने अपने यहाँ काम करने वाले लड़के लम्बू को आवाज़ दी ,और बोले तेरे से एक भी ग्राहक तो पटता नहीं , बस बातें करा लो इधर- उधर की , लम्बू क्या करता वो तो मालिक का ग़ुलाम था ,उसे तो कड़वी बातें सुनने की आदत हो गयी थी ।
    अरे ओ “लम्बू” अन्दर आ , नाम का ही लम्बू है , बस ...अक़्ल छोटी रह गयी तेरी .....
 केशव बाबू बाहर बैठे सोच रहे थे , काम तो पुष्पों का ज़ुबान  में कड़वाहट भरी है ....कैसे बिकेंगे पुष्प इसके .....
 केशव बाबू थे प्रकृति प्रेमी , शिमला की हसीन वादियों में उन्हें स्वर्ग से नजारों का आनन्द आता था ,
प्रकृति को निहारना , पक्षियों संग उड़ने के सपने देखना , उनकी बोली समझने के कोशिश करना , उन्हें बहुत सुहाता था वृक्षों की लताएँ , उन पर फल, फूल , इत्यादि , पर्वत शृंखलायें, झरने ,झील , प्रकृति की सारी कारीगरी मानों  उन्हें हर पल प्रेरित करती रहती थी ,  और उनकी भावनायें कविता , कहानी, आदि का रूप ले लेती थीं , और उनमे छिपी लेखक प्रथिभा का प्रकट करती थी ।
 
     इतने में उस पुष्प वाटिका में एक ग्राहक आया , सामने केशव कुमार बैठे थे , उन्हें दुकानदार समझ वो ग्राहक पुष्पों के दाम पूछने लगा , केशव कुमार लगभग हर रोजही वहाँ बैठा करते थे तो , उन्हें लगभग सभी के दामों का अंदाज़ा रहता था , उन्होंने दाम बता दिया , ग्राहक ने रुपये निकाले केशव कुमार को पकड़ाये और अपने पुष्प लिये और चलता बना ,
इतने में दुकानदार की नज़र केशव कुमार पर पड़ी , केशव कुमार ने रुपये आगे बड़ाते हुए कहाँ लो तुम्हारे रूपय
तुम कहते हो मैं किसी काम का नहीं , देखो मैंने तुम्हारे पुष्प बिका दिये ... दुकानदार ख़ुश होते हुए .. पता है तुमने मेरे दस रुपये का नुक़सान कर दिया , नुक़सान वो कैसे पता है ,आज ये फूल महँगा आया है , चलो कुछ तो किया तुमने केशव कुमार , आगे से किसी ग्राहक को पुष्प देते समय दाम पूछ लिया करो...,,,
 
    इतने में पुष्प वाटिका दुकान का मालिक , केशव कुमार के पास आकार बैठ गया , केशव कुमार के काँधे पर हाथ रखते हुए बोला चलो आज तुमको चाय पिलाता हूँ , चल लम्बू दो चाय लेकर आजा ,और तू वहीं पी आना चाय .....
केशव कुमार तो हमेशा पुष्प वाटिका के पुष्पों को ही निहारता रहता था , दुकान मालिक भी हमेशा की तरह आज भी केशव कुमार को टोकने लगा , बोला तुम तो मेरे पुष्पों को नज़र लगा कर रहोगे ,
केशव कुमार बोला अरे भाई मैं क्या नज़र लगाऊँगा तुम्हारे पुष्पों को ....
चलो तुम्हें पुष्पों पर कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ ।
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“ मैं पुष्प हूँ “
 मैं जो खिलता हूँ ,
घर आँगन की शोभा बड़ाता हूँ
सारा आँगन महकाता हूँ ,
मेरी सुगन्ध समीर संग सारे वायुमंडल
को महकाती है , ख़ुशी हो या ग़म
मैं हर जगह काम आता हूँ , “मैं पुष्प “
अपने छोटे से जीवन को सार्थक कर जाता हूँ ।
बहुत अच्छी पंक्ति लेखक जी .... आपको और कोई काम है या नहीं तुम्हारे घर का ख़र्चा कैसे चलता है , केशव कुमार बोले , अरे तुम्हें तो पता है मेरी प्रिंटिंग प्रेस है , घर ख़र्च तो उसी से चल जाता है ।
परन्तु तुम तो जानते हो मुझे लिखने का शौंक है , मेरी एक किताब छप चुकी है दूसरी आने वाली है ।
इतने में चाय आ गयी , दोनो ने चाय पी ।

“🌺🎉पुष्प वाटिका के मालिक के मन में एक बात खटक रही थी ,बोला ये जो तुम अपना दिमाग़ लिखने में लगाते हो यही दिमाग़ किसी और काम में लगाओ तो जानते हो केशव कुमार ..तुम आसमान की ऊँचाइयाँ छू सकते हो ..... केशव कुमार  बोला भाई मैं जानता हूँ, तुम्हें क्या पता मैं आज भी आसमान की ऊँचाइयाँ ही छू रहा हूँ ।
पुष्प वाटिका वाला बोला तुम लेखकों से बातें करा लो बड़ी - बड़ी  “जेब में कोड़ी नहीं , चले विश्व भ्रमण पर”..........
केशव कुमार बोले , तुम लोगों को लेखकों के बारे में अपनी सोच बदलनी होगी .......


“जैसे तुम्हारी पुष्प वाटिका है , तुम सुन्दर -सुन्दर रंग -बिरंगे पुष्पों का कारोबार करते हो और उन पुष्पों से सुन्दर साज सज्जा कीजाती है ।       “वैसे ही हम लेखक ,विचारक ,कवि आदि , इस दुनियाँ को इस समाज को अपने सुन्दर विचारों से सजाने की इच्छा रखते हैं ,कुछ मनमोहक , प्रेरक और ज्ञानवर्धक लिखकर समाज को सुन्दर सभ्य ,विचारों से सजाना चाहते है और सजाते भी हैं ।
एक सच्चा लेखक , सुन्दर , सभ्य ,समाज  की कल्पना करता है , वहीं समाज को वर्तमान परिवेश का आइना भी दिखाता है , सही मायने में वो एक लेखक एक समाजसुधरक क़लम सिपाही होता  है ।
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दे

एर

“ मेरे मीठे सपने “

⭐️⭐️ “वो जो मेरे अपने थे ,
  “  मेरे सपने थे “⭐️⭐️
 वो जो मेरे सबसे अज़ीज़ थे
 कब से छुपा के रखा थे
दुनियाँ की नज़रों से
पलकों के दरवाज़ों में बंद करके ।
आज आँखो से छलक पड़े अश्रु बनकर
देख दुनिया का व्यभिचार , आतंकवाद का
घिनौना तांडव ...
मेरे सपने रुदन करने लगे
दर्द में कराहते हुए , कहने लगे
बस - बस करो ,
हमारे पूजनीय , गौतम , राम , रहीम , कबीर ,
विवेकानंद आदि महान विभूतियों ... की धरती पर
ये अहिंसक व्यवहार ....
मुझमें तो सिंचित थे , भारत भूमि के
महान विभूतियों ,दधिचि  ,ध्रुव ,
एकलव्य आदि के चरिथार्थ
मैं हूँ अपने पूर्वजों की , कृतार्थ

⭐️🌸“यूँ तो मेरे सपनों की किताब खुली थी
फिर भी दुनियाँ की नज़रें ना उन पर पड़ी थी ।
“मेरे सपनों का ज़हाँ बहुत ही  हसीन है 🌺🌺
सन्तुष्टता के धन से सब परिपूर्ण हैं
धर्म सबसे बड़ा इंसानियत है
भेदभाव की ना कोई जगह है
सभी सुसंस्कृत , सभ्य आचरण वाले ,
कभी किसी का दिल ना दुखाने वाले
सब सबके प्रिय , मुस्कुराते चेहरों वाले
ख़ुशियों के सौदागर
एक दूजे की त्रुटीयो को माफ़ करने वाले
सबको इंसानियत की राह दिखाने वाले
हिंसा और वैर ,विरोध की झड़ियाँ काटने वाले
अप्नत्व की फ़सल उगाने वाले
सतयुगी दुनियाँ की चाह रखने वाले
धरती पर स्वर्ग की दुनियाँ बसाने वाले हैं ।


“ चैन की तलाश “

        “  चैन की तलाश “

ज़िन्दगी भर भटकता रहा , चैन की तलाश में
ठहराव की चाह में , कुछ पल का चैन ,
फिर बैचेनी , ख़ुशियाँ अनगिनत ,
पर सब एक -एक कर
यादों के बक्से में बंद
कहने को सब कुछ
उसी पल का
सब नश्वर
ऐसी ज़िन्दगी
सिर्फ़ भटकाव
क्या करूँ ?
कहाँ से लाऊँ
शाश्वत सुख
कभी ना ख़त्म
होने वाला चैन
“मैं बेचैन “
तभी एक राह दिखायी दी
एक आवाज सुनायी दी
मेरा कनेक्शन परमात्मा से जुड़ा
वहाँ तो शान्ति का सागर था
अभी तो शुरुआत थी मेरी आत्मा
को असीम शान्ति का अनुभव होने लगा
अब वहाँ से आने को मन ना करा
अचानक मानो परमात्मा ने सन्देश दिया
जा औरों को भी ये राह दिखा
वो शान्ति का सागर है , दया का भण्डारहै
वहीं से तु आया है , वहीं से तुझको सब कुछ मिलेगा
तु दुनियाँ में ना भटक इस तरह
बस दुनियाँ  में जी इस तरह
तू बन जाये सबके मुस्कुराने की वजह ......  

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...