दीपक तो हम जलाएंगे ही


*दीपक तो हम जलाएंगे ही
अंधेरा भी दूर भी भगाएंगें ही
 विरासत में जो हमें उच्च
 नैतिक संस्कारो की सम्पदा
 की वसीयत मिली है *

*हम विचारों को उच्चतम स्तर पर
पहुंचाकर मन के अन्धकार को दूर
करने को उच्च संस्कारों के बीज बोते हैं
आने वाले समाज को प्रकशित करने की
जो हमने ठानी है।

परस्पर प्रेम की ज्योति से
उच्च संस्कारों की तरलता से
अमन ,शांति के दीपक से
धरती को हम स्वर्ग बनाएं ।

भारतीयों की विरासत में
रामायण ,भागवतगीता ,वेद,उपनिषद्
आदि ग्रंथ प्रदान किए जाते है
भारतीय परम्परा लेने में नहीं देने में विश्वास करती है
और देता वही है जो स्वयं में बड़ा हो वृक्ष हो
जिसे अपनी जड़ों पर सम्पूर्ण विश्वास हो
ध्रुव,प्रहलाद की दृढ़ इच्छाशक्ति
विवेकानंद जैसी आत्मशक्ति
घर घर प्रेम की ज्योत जलेगी
वसुंधरा तब स्वर्ग बनेगी





अपना घर

दिखावे की दुनियां से दूर
मेरा घर शहर से बहुत दूर
लौट कर आए अपने वतन
मिला बड़ा सुकून
जैसा भी है
महल ना सही
छोटी सी झोपड़ी
में भी मिलता है
सुख-चैन भरपूर
तंग गलियां
कच्ची मिट्टी से बनी
उबड़- खाबड़ सड़कें
घर के आंगन में पड़ी
वो पुरानी चारपाई
पुराने जमाने की कुर्सी
सुकून तो वहीं बैठ गए
मिलता है ,ना खराब होने का
डर ना टूटने की चिंता
जैसे चाहो वैसे लुढ़क जाओ
घर में मां के हाथों से बने
भोजन का स्वाद,सच में भूख
तो मां के हाथों बने खाने से ही
मिटती है ,घर का खाना यानि पेट
भर के तृप्ति ।
दिखावे की दुनियां से दूर
मेरा घर शहर से बहुत दूर
परंतु फिर भी मुझे मेरे घर
पर है गुरूर ,पैसा ना सही
यहां खेतों में अन्न होता है
भरपूर ,मेरे घर में नहीं
सताती है किसी को भूख ।


क्षितिज एक चित्रकला

 अरुणोदय क्षितिज दृश्य
  प्रकृति निपुण चित्रकार
 सौम्य अलौकिक दिव्यता
 संग समर्पण और विश्वास

 मन दर्पण पनपते प्रश्न
 रंगों के अद्भुत सामंजस्य का संगम
 इंद्रधनुषी रंगों की कतार
 स्वर्णिम सपनों का सुन्दर संसार

कैनवास में कूची का विस्तार
नयनों के छाया चित्र का आधार
सटीक, चित्र पर रंग बिखेरता चित्रकार

क्षितिज के उस पार
मधुर मिलन की संपूर्णता
का एहसास ,सत्यता पर
पूर्ण विश्वास .....

दो किनारों का मिलन 
मानों नभ करता धरा का वंदन 
अद्भुत आभास 
दूर होकर भी निकट
विस्तृत ,विराट 
आकार ,गोलाकार कहीं तो
संभव होगा मिलन  
दोनों ही अस्तित्व का आधार.....
  

मौन की भी भाषा होती है .....

मौन की भी भाषा होती है 
सत्य,सटीक और निर्भीक 
मौन की भी भाषा होती है
आंखे भी बोलती है
शब्दों की भी जुबान होती 
किन्तु जो शब्द बोलते नहीं 
वो बहुत कुछ कह जाते हैं
कभी कोई वाक्य बनकर 
जब गीत ,कभी गजल,
या कभी कोई कविता या कहानी 
बनकर दिलों दिमाग़ पर अपनी 
अमिट छाप छोड़ अमर हो जाते
हैं ,कागज पर अंकित शब्द ......

मौन भी बोलता है ,सत्य ही तो है
कभी कोई सजीव सा चित्र भी बहुत कुछ कह 
जाता है, एक अनकही कहानी 
कभी कोई संदेश 
कभी किसी का दर्द, 
प्रेम,सुंदरता,भाव,बंगीमा सब क
जाता है एक सजीव चित्र भी
अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा बन उभरता है
जब किसी चित्रकार का चित्र 
तब कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ जाता है एक चित्र। मौन रहकर भी बोलती है प्रकृति 
कभी पतझड, बसंत , सावन, और समृद्धि के रूप में
हरियाली बनकर ,रंग-बिरंगे पुष्पों की सौगात बनकर ........


करोना योद्धा


वारियर्स यानि योद्धा
योद्धा के भी कई रूप होते हैं
क्योंकि जीवन में कई
पड़ाव ऐसे आते हैं
जब हमें उन परिस्थितियों का सामना
एक योद्धा की तरह करना पड़ता है
यानि ऐसी परिस्थिति जिससे
हमें बहुत क्षति हो सकती है
हमें जीवन और मृत्यु के
बीच की जंग लड़नी होती है
जंग में क्या होता है ,की हमें
स्वयं को सुरक्षित रखकर
अपने दुश्मन से या  फिर यूं कहिए
उस विषम परिस्थिति से बचकर
उस शत्रु को सबक सिखाते हुए
अपने मार्ग से हटाना होता है।

अमृत रस


नए युग का नया सवेरा
स्वर्णिम सपनों का
अद्भुत मेला
मन अलबेला
देखे स्वर्णिम युग का
नित्य नूतन सवेरा।

मन में भावनाओं
का गहरा समुंदर
जिसमे विचारों का
अद्वितीय खजाना
जीवन का तराना
सरगम की धुन पर
जीवन के उतार-चढ़ाव का
आना जाना ।

जीवन के हर राग
पर मधुर संगीत बजाना
अनुभूतियों के प्रवाह मध्य
बहती नदिया बीच मझधार
विवेक ज्ञान ही जिसका आधार

विचारों की कश्मकश का सागर
सागर में लहरों का उठना
कुछ अनकहा उछाल जाना।

गागर में जो सागर
छलक-छलक जाए
कभी गद्य कभी पद्य
विचारों के मंथन का अमृत रस
काव्य रस का अद्वितीय खजाना
मेरे सपनों में
स्वर्ग से सुन्दर
समाज का सपना
सत्यता की मशाल
लिए विचारों के द्वंद
से नित -प्रतिदिन युद्ध करना
हे परमात्मा मुझमें मेरी प्रतिज्ञा को
बुद्ध करना ,विचारों को नित्य शुद्ध करना ।








*दोहे संस्कृति और सभ्यता*

*भारतीय संस्कृति
का घोर पतन
देवालय बंद
मदिरालय खुले *

*लोभ का प्रचण्ड
तांडव नशे में
धुत मानव*

*चूल्हा ठंडा
बाल नयन अश्रु
भोजन ताकते चक्षु*

*उच्च संस्कारों की
धरती पर नग्न नृत्य
हाय! निंदनीय
संस्कृति का चीरहरण*

 *आधुनिकता के नाम पर
सभ्यता का ढोंग
मनुष्यता को लगाते
भद्दा दाग  *

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...