अपना घर

दिखावे की दुनियां से दूर
मेरा घर शहर से बहुत दूर
लौट कर आए अपने वतन
मिला बड़ा सुकून
जैसा भी है
महल ना सही
छोटी सी झोपड़ी
में भी मिलता है
सुख-चैन भरपूर
तंग गलियां
कच्ची मिट्टी से बनी
उबड़- खाबड़ सड़कें
घर के आंगन में पड़ी
वो पुरानी चारपाई
पुराने जमाने की कुर्सी
सुकून तो वहीं बैठ गए
मिलता है ,ना खराब होने का
डर ना टूटने की चिंता
जैसे चाहो वैसे लुढ़क जाओ
घर में मां के हाथों से बने
भोजन का स्वाद,सच में भूख
तो मां के हाथों बने खाने से ही
मिटती है ,घर का खाना यानि पेट
भर के तृप्ति ।
दिखावे की दुनियां से दूर
मेरा घर शहर से बहुत दूर
परंतु फिर भी मुझे मेरे घर
पर है गुरूर ,पैसा ना सही
यहां खेतों में अन्न होता है
भरपूर ,मेरे घर में नहीं
सताती है किसी को भूख ।


1 टिप्पणी:

  1. ना खराब होने का
    डर ना टूटने की चिंता
    जैसे चाहो वैसे लुढ़क जाओ
    घर में मां के हाथों से बने
    भोजन का स्वाद,सच में भूख
    तो मां के हाथों बने खाने से ही
    मिटती है ,घर का खाना यानि पेट
    भर के तृप्ति ।
    सही कहा रितु जी अपने घर की और माँ के बनाए भोजन की बात ही अलग होती है....
    बहुत सुन्दर।

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