**मेरी नियति**

  **  ना जाने मेरी नियति
        मुझसे क्या -क्या करवाना
            चाहती है ।

       मैं संतुष्ट होती हूँ
       तो होने नहीं देती
       बेकरारी पैदा करती है ,
       जाने मुझसे कौन सा अद्भुत
       काम करवाना चाहती है ।

       मैं जानती हूँ ,मैं इस लायक नहीं हूँ
       फिर भी मेरी आत्मा की बेकरारी ,
       मुझे चैन से बैठने ही नहीं देती।
       समुन्दर में लहरों की तरह छलांगे
                  लगती रहती है।

      मुझमें इतनी औक़ात कहाँ की मैं
       कुछ अद्वितीय कर पाऊँ ,
          इतिहास रच पाऊँ
       पर मेरी नियति मुझसे कुछ
       तो बेहतर कराना चाहती है।

       तभी तो शान्त समुन्दर में
       विचारों का आना -जाना लगा रहता है ।
       और मेरे विचार स्वार्थ से ऊपर उठकर
        सर्वजनहिताय के लिये कुछ करने को
            सदा आतुर रहते हैं ।

        बस मेरी तो इतनी सी प्रार्थना है परमात्मा से
          की वो निरन्तर मेरा सहयोगी रहे ।
                 मेरा मार्गदर्शन करता रहे ।
       विचारों के तूफानों को सही दिशा देकर
      शब्दों के माध्यम से कागज़ पर उकेरते रहती हूँ।
               
   


"अनमोल नगीने "


        *हम सदियों से ऐसा ही जीवन जीते आये हैं ,हमें आदत है ,हमारा जीवन यूँ ही कट जाता है ।

 ये सवाल सुनने को मिला जब मैं बस्ती में गयी, जब हमारे घर काम करने वाली बाई कई दिनों तक काम  पर नहीं आयी थी ।
किसी दूसरे घर में काम करने वाली ने बताया कि वो बहुत बीमार है उसे बुखार आ रहे हैं ,और उसे पीलिया की शिकायत भी है ।

जब मैं अपनी बाई की झोपड़ी में पहुँची ,तो वो शरीर मे जान न होने पर भी यकायक उठ के बैठ गयी ।
वह बहुत कमजोर हो चुकी थी ,उसे देख मेरा हृदय द्रवित हो उठा ,मैंने उसे लेट जाने को कहा उसका शरीर बुखार से तप रहा था ,इतने मे कोई कुर्सी ले आया मेरे बैठने के लिये ।
मैंने उससे पूछा तुम्हारे घर में और कौन-कौन है ,बोली मेरे दो बच्चे हैं ,एक लड़का और एक लड़की।

लड़का पन्द्रह साल का है काम पर जाता है , उसे पढ़ने का भी बहुत शौंक है अभी दसवीं का पेपर दिया है ,पर क्या करेगा पढ़ कर ,हम ज्यादा खर्चा तो कर नहीं सकते ,  लड़की भी काम पर जाती है, मैंने पूछा लड़की कितने साल की है ,बोली दस साल की ।
मैं स्तब्ध थी ,दस साल की लड़की और काम ,कहने लगी हम लोगों के यहाँ ऐसा ही होता है, घर में बैठकर क्या करेंगें बच्चे ,बेकार में इधर-उधर भटकेंगे ,इससे अच्छा कुछ काम करेंगें ,दो पैसे कमाएंगे तो दो पैसे जोड़ पाएंगे, दो-चार साल में बच्चों की  शादी  भी करनी होगी ।

मैंने कहा ,और पढ़ाई ..... बोली पढ़ाई करके क्या करेंगें ,कौन सा इन्हें कोई सरकारी नौकरी मिलने वाली है ।
मेरे घर काम करने वाली बाई बोली, और दीदी हम सदियों से ऐसा ही जीवन जीते आये हैं ,हमारे नसीब में यही सब है ।
मैं उसकी बातें सुनकर सोचने लगी शायद यह अपनी जगह सही ही कह रही है, जितना इन्सान आगे बढ़ता है उतने ख़र्चे भी बढ़ते हैं ,शायद इतना आसान नहीं होता जितना बड़ा घर होगा उतना ही जरूरत्त का सामान भी बढ़ेगा ,शायद कहना आसान होता है ,पर जिस पर बीतती है उसे ही पता होता है ।
 मैंने अपनी काम वाली बाई को कुछ रुपए दिये ,और उसे अपना ख्याल रखने को कहा ।

इतने में उसका पन्द्रह साल का बेटा आया ,वो मेरे लिये चाय बना कर लाया था साथ में मिठाई भी लाया था ,मैंने कहा नहीं-नहीं मैं चाय नहीं पीती ,इतने में वो बोला आँटी मिठाई तो आपको खानी पढ़ेगी, पता है क्यों ?
इससे पहले मैं बोलती उसकी माँ बोली ऐसा कौन सा किला फतह किया है तूने जो मिठाई खिला रहा है,बेटा बोला माँ पहले मिठाई खाओ फिर बताऊंगा, हम दोनों ने जरा-जरा सी मिठाई खायी ,फिर बोला माँ ,आँटी जी , मैं दसवीं के एग्जाम में पास हो गया हूँ ,अब मैं और पडूंगा,और कम्प्यूटर कोर्स करूँगा ,माँ अब तुम्हें काम करने की जरूरत्त नहीं पढ़ेगी ,माँ अब हम अच्छे घर मे रहेंगे
अब हमें गरीबी का जीवन नही जीना पढ़ेगा ,अब हमारे दिन भी बदलेंगें , माँ की आँखों से अश्रु धारा बह रही थी ,लड़के ने मेरे पैर छूते हुए कहा आँटी जी आपका आना हमारे लिये बहुत शुभ हो गया ,आप आशीर्वाद दीजिये की मेरी बहन भी पढाई करे और अपने जीवन मे सफ़ल हो ।

सच मे आज दिल बहुत खुश था , की मेरी काम वाली बाई के बच्चों ने पढ़ाई के महत्व को समझ कर जीवन मे आगे बढ़ने का निर्णय लिया है ,मैंने भी उसके बेटे को आशीर्वाद देते हुए कहा ,हाँ बेटा ,जीवन मे आगे बढ़ो खूब पड़ो लिखो आगे पड़ो, और अपनी माँ पिताजी की ऐसी सोच को बदल डालो कि ,हमे तो सदियों से गरीबी का जीवन जीने का वरदान मिला है ।
बेटा खुश था, माँ के चेहरे पर खुशी थी ,पर आँखों से प्रेम की अश्रु धारा बह रही थी वह कुछ कह नहीं पा रही थी, पर उसके अश्रुओं ने बहुत कुछ के दिया था।
इतने मे काम वाली बाई का बेटा बोला आँटी जी आप देखना मैं पड़ लिखकर बहुत बड़ा इन्सान बनूँगा और अपनी बहन को भी पढ़ाऊंगा ,क्यों हम हमेशा गरीबी का जीवन जीयें ,हमारा भी हक़ है अमीर बनने का आगे बढ़ने का , उसके बेटे की बातों में आत्मविश्वास था ,आज दिल बहुत खुश था कि,हमारे समाज में आज भी अनमोल नगीने हैं।
सच में इंसान की मेहनत और आत्मविश्वास ही उसे जीवन मे आगे बढ़ने में सहायता करते हैं ।



"खुला आसमान"

**उपयोगिता और योग्यता**

          *योग्यता ही तो है ,जो
           अदृश्य में ,छुपी उपयोगिता को
           जन्म देती है।*

          * वास्तव में जो उपयोगी है वो शाश्वत है
           उपयोगी  को योग्यता ही तराशती है ।
          जो उपयोगी है, वो सवांरता है, निखरता है
          और समय आने पर अपना अस्तित्व दिखाता है
          योग्यता ही अविष्कारों की दात्री है।

           आवयशकता जब-जब स्वयं को तराशती है
           असम्भव को सम्भव कर देती है
           युगों-युगों तक अपने छाप छोड़ने में सफल होती है
   
       
           गहराइयों का शोध आवयशक है
           वायुमंडल में तरंगे शास्वत हैं।
           उन तरंगों पर शोध, योग्यता से सम्भव हुआ
           योग्यता ने तरंगों के माध्यम से
           वायुमंडल में एक खुला जहाँ बसा दिया ।

         
           वायु,ध्वनि,तरंगों का अद्भुत संयोग
          योग्यता ने तरंगों की रहस्यमयी शक्तियों का भेद बता             दिया ।
          तरंगों के अद्भुत सामंजस्य ने तरंगों से तरंगों  का मेल                 मिला दिया
          आधुनिक समाज की नींव ही तरंगों पर टिकी है
          शब्द हैं भी ,और नहीं भी ,
         तरंगों की नयी दुनियाँ ने सम्पूर्ण समाज मे हलचल सी            मचा दी
         है । तरंगों की तरंगों तक पहुँच ने नामुमकिन को                  मुमकिन  कर दिखाया  है।
                                                                               
        वास्तव में तरंगों ने खुले आसमान में एक दूसरा जहाँ              बसा दिया है।

          

"अनमोल खजाना "


दौड़ रहा था ,मैं दौड़ रहा था
बहुत तेज रफ़्तार थी मेरी ,
आगे सबसे सबसे आगे बहुत आगे
बढ़ने की चाह मे मेरे क़दम थमने का
नाम ही नहीं ले रहे थे ।
यूँ तो बहुत आगे निकल आया था "मैं "
आधुनिकता के सारे साधन थे पास मेरे
दुनियाँ की चकाचौंध में मस्त,व्यस्त ।

आधुनिकता के सभी साधनों से परिपूर्ण
मैं प्रस्सन था ,पर सन्तुष्ट नहीं
जाने मुझे कौन सी कमी अखरती थी ।

एक दिन एक फकीर मुझे मिला
वो फ़कीर फिर भी सन्तुष्ट ,मैं अमीर
फिर भी असन्तुष्ट ।

फ़कीर ने मुझे एक बीज दिया,
मैंने उस बीज की पौध लगायी
दिन -रात पौध को सींचने लगा
अब तो बेल फैल गयी ।
अध्यात्म रूपी अनमोल ,रत्नों की मुझे प्राप्ति हुई
मुझे संतुष्टता का अनमोल खजाना मिला
ये अध्यात्म का बीज ऐसा पनपा कि
संसार की सारी आधुनिकता फीकी पड़ गयी
मैं मालामाल हो गया ,अब और कोई धन मुझे रास
नही आया ,अध्यात्म के रस में जब से मैंने परमानन्द पाया।
वास्तव में अध्यात्म से सन्तुष्टता का अनमोल खज़ाना मैंने  पाया

**धरती और आकाश **

***आकाश ,और धरती का रिश्ता तो देखो
कितना प्यारा है ।
ज्येष्ठ में जब धरती तप रही थी
कराह रही थी ,सिसक रही थी
तब धरती माँ के अश्रु रूपी जल कण आकाश में एकत्रित हो रहे थे।।

💐💐वर्षा ऋतु मैं..........
आकाश से बरस रहा था पानी
लोग कहने लगे वर्षा हो रही है
पर न जाने मुझे क्यों लगा
आकाश धरती को तपता देख रो रहा है
अपने शीतल जल रूपी अश्रुओं से
धरती माँ का आँचल धो-धोकर भीगो रहा है
धरती माँ को शीतलता प्रदान कर रहा है।
धरती माँ भी प्रफुल्लित हो ,हरित श्रृंगार कर रही है
वृक्षों को जड़ें सिंचित हो रही हैं।
प्रसन्नता से प्रकृति हरियाली की चुनरिया ओढे
लहलहा रही हैं ।
फल फूलों से लदे वृक्षों की लतायें
रिम-झिम वर्षा के संग झूल रही हैं
विभिन्न  आकृतियों वाले मेघ भी
धरती पर अपना स्नेह लुटा रहे हैं।
धरती और आकाश का स्नेह बहुत ही रोमांचित कर देने वाला है ।

*मीठा ज़हर **


जख्मों पर मरहम लगाते-लगाते
कब हम सयाने हो गये पता ही नहीं चला ।

अब ना ज़ख्म है
 ना जख्मों के दर्द का एहसास है ।
किसी जमाने मे जो ज़ख्म दर्द बनकर चुभते थे
आज उन्हीं जख्मों का एहसास,जीवन में घोल देता है
एक मीठा सा ज़हर।


दर्द तो बहुत दिया जख्मों ने मगर
कयोंकि? बहुत लम्बे सफ़र तक रहे थे,ज़ख्म मेरे हमसफ़र
कैसे भूल जाऊँ मैं उन मीठे जख्मों की कसक।
माना कि जख्म आये थे जीवन मे बन के कहर ।
जीवन की कसौटी थी मग़र ,
पर इन्हीं से बुलन्द हुआ था, मेरे हौसलों का सफ़र
सीखे थे ,इन्हीं से जिन्दगी के कई सबक ।
 आज कोई जख्म  नहीं
 दर्द भी नहीं ।पर ना जाने क्यूँ
कुरेदता है ये दिल पुराने जख्मों
के निशान
तजुर्बा कहता है जब लम्बे समय तक रहे जो कोई
हमसफ़र , फिर चाहे वो
दर्द ही सही ,अपने से हो जाते हैं  ,मीठे से लगने लगते हैं ,
मीठे जख्मों के ज़हर ।।
माना कि दुखदायी था ,
फिर भीआज मीठा सा लगता है
मीठे जख्मों का जहर,








**हरियाली तीज **


घर की बड़ी औरतें ,अपनी बहू ,बेटियों से कह रही थीं जल्दी करो कल 💐हरियाली तीज💐 है ।

 बाजार से श्रृंगार का सामान भी लाना है ,और नाश्ते का सामान घेवर ,सभी तो तैयार करना है ,और तुम सब तो अपने
ही कामों में व्यस्त हो ,चलो-चलो जल्दी करो ।
फिर घर आकर झूला भी तैयार करना है ।
घर की सभी औरतें तैयार होकर बाज़ार समान लेने चली गयी।

इधर घर पर बूढ़ी दादी ,और उनकी पाँच साल की पौती घर पर थे ,दादी पौती लाड़ लड़ा रहे थे ,दादी अपनी पौती से बोली कल तो मेरी गुड़िया चूड़ियां पहनेगी,मेहन्दी लगायेगी और अच्छे-अच्छे कपड़े पहनेगी ।  पौती बोली हाँजी दादी मैं झूला भी तो झूलूंगी ,दादी मुस्करा के बोली हाँ बेटा ,दादी आप भी मेरे साथ झूला झूलना मैं आपको पकड़ कर रखूंगी ,गिरने भी नहीं दूँगी ।
दादी मुस्करा कर बोली हाँ ,मेरी दादी तो गुड़िया है ।
  पौती ने दादी से पूछा कल आप कौन से रंग की साड़ी पहनोगे ,दादी बोली मैं तो हरे रंग की साड़ी पहनूँगी तुम भी हरे रंग का लहंगा पहनना ,मैंने तुम्हारी माँ से तुम्हारे लिये हरे रंग का लहंगा लाने को कहा है ।
पौती बोली पर दादी मुझे तो लाल और पीला रंग अच्छा लगता है ।
दादी बोली हाँ बेटा रंग तो सब अच्छे होते हैं ,पर कल *हरियाली तीज*है इस लिये हम सब भी हरे रंग के कपड़े पहनेगें ।
सावन का महीना है ,रिमझिम-रिमझिम बरसात से धरती देखो कितनी स्वच्छ और आकर्षक लग रही है।
चारो और देखो धरती माँ ने हरा -भरा श्रृंगार किया है ,कितनी फल-फूल रही है धरती चारों और सुख-समृद्धि और हरियाली ही हरियाली ,कितनी सुन्दर लग रही है ना धरती माँ ।
पौती बोली हाँ जी दादी चारों और हरियाली है ।
चलो अब हमें झूला भी झूलना है ,दादी हाँ चल थोड़ी देर झूला झूल ले फिर मेहन्दी भी लगानी है ,पौती खुश होकर बोली दादी मैं तो बहुत सुंदर फ्लावर बनवाऊंगी अपने हाथ में ।
इतने में दरवाजे की घंटी बजी ,घर की सभी औरतें बाज़ार से खरीददारी करके आ गयी थीं ,चूड़ियां कंगन,बिछुए, कपड़े ,मिठाइयां सभी ले आये थे ।
दादी और पौती सबसे पहले मेहन्दी लगाने बैठ गयीं थीं ,क्योंकि उन्हें सबसे ज्यादा जल्दी सज-धज कर झूला झूलने की थी .....
हरियाली तीज  का मौका था ,सबके हाथों में मेहन्दी लग रही थी ,दादी और पौती अपनी -अपनी मेहन्दी सूखने के इंतजार कर रही थीं ,खिड़की पर खड़ी दादी ने अपनी पौती को बाहर बुलाते हुए कहा......देखो गुड़िया आसमान से कैसे रिम-झिम बरखा की बूंदे गिर रही है वो देखो ऐसा लग रहा है,जैसे आसमान से मोती गिर के धरती का श्रृंगार कर रहें हों ,हरियाली की चुनरिया ओढे धरती कितनी सुशोभित हो रही है
तभी हवा का मीठा सा ठंडा सा झोंका  वृक्षों की लताओं को झूला झुला कर आने  जाने लगा  , सच में सावन के मौसम में आसमान से और धरती का रिश्ता बहुत गहरा हो जाता है ।
प्रकृति और हमारे तीज त्योहारों का एक दूसरे के साथ बहुत गहरा सम्बन्द्ध है ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...