*हम सदियों से ऐसा ही जीवन जीते आये हैं ,हमें आदत है ,हमारा जीवन यूँ ही कट जाता है ।
ये सवाल सुनने को मिला जब मैं बस्ती में गयी, जब हमारे घर काम करने वाली बाई कई दिनों तक काम पर नहीं आयी थी ।
किसी दूसरे घर में काम करने वाली ने बताया कि वो बहुत बीमार है उसे बुखार आ रहे हैं ,और उसे पीलिया की शिकायत भी है ।
जब मैं अपनी बाई की झोपड़ी में पहुँची ,तो वो शरीर मे जान न होने पर भी यकायक उठ के बैठ गयी ।
वह बहुत कमजोर हो चुकी थी ,उसे देख मेरा हृदय द्रवित हो उठा ,मैंने उसे लेट जाने को कहा उसका शरीर बुखार से तप रहा था ,इतने मे कोई कुर्सी ले आया मेरे बैठने के लिये ।
मैंने उससे पूछा तुम्हारे घर में और कौन-कौन है ,बोली मेरे दो बच्चे हैं ,एक लड़का और एक लड़की।
लड़का पन्द्रह साल का है काम पर जाता है , उसे पढ़ने का भी बहुत शौंक है अभी दसवीं का पेपर दिया है ,पर क्या करेगा पढ़ कर ,हम ज्यादा खर्चा तो कर नहीं सकते , लड़की भी काम पर जाती है, मैंने पूछा लड़की कितने साल की है ,बोली दस साल की ।
मैं स्तब्ध थी ,दस साल की लड़की और काम ,कहने लगी हम लोगों के यहाँ ऐसा ही होता है, घर में बैठकर क्या करेंगें बच्चे ,बेकार में इधर-उधर भटकेंगे ,इससे अच्छा कुछ काम करेंगें ,दो पैसे कमाएंगे तो दो पैसे जोड़ पाएंगे, दो-चार साल में बच्चों की शादी भी करनी होगी ।
मैंने कहा ,और पढ़ाई ..... बोली पढ़ाई करके क्या करेंगें ,कौन सा इन्हें कोई सरकारी नौकरी मिलने वाली है ।
मेरे घर काम करने वाली बाई बोली, और दीदी हम सदियों से ऐसा ही जीवन जीते आये हैं ,हमारे नसीब में यही सब है ।
मैं उसकी बातें सुनकर सोचने लगी शायद यह अपनी जगह सही ही कह रही है, जितना इन्सान आगे बढ़ता है उतने ख़र्चे भी बढ़ते हैं ,शायद इतना आसान नहीं होता जितना बड़ा घर होगा उतना ही जरूरत्त का सामान भी बढ़ेगा ,शायद कहना आसान होता है ,पर जिस पर बीतती है उसे ही पता होता है ।
मैंने अपनी काम वाली बाई को कुछ रुपए दिये ,और उसे अपना ख्याल रखने को कहा ।
इतने में उसका पन्द्रह साल का बेटा आया ,वो मेरे लिये चाय बना कर लाया था साथ में मिठाई भी लाया था ,मैंने कहा नहीं-नहीं मैं चाय नहीं पीती ,इतने में वो बोला आँटी मिठाई तो आपको खानी पढ़ेगी, पता है क्यों ?
इससे पहले मैं बोलती उसकी माँ बोली ऐसा कौन सा किला फतह किया है तूने जो मिठाई खिला रहा है,बेटा बोला माँ पहले मिठाई खाओ फिर बताऊंगा, हम दोनों ने जरा-जरा सी मिठाई खायी ,फिर बोला माँ ,आँटी जी , मैं दसवीं के एग्जाम में पास हो गया हूँ ,अब मैं और पडूंगा,और कम्प्यूटर कोर्स करूँगा ,माँ अब तुम्हें काम करने की जरूरत्त नहीं पढ़ेगी ,माँ अब हम अच्छे घर मे रहेंगे
अब हमें गरीबी का जीवन नही जीना पढ़ेगा ,अब हमारे दिन भी बदलेंगें , माँ की आँखों से अश्रु धारा बह रही थी ,लड़के ने मेरे पैर छूते हुए कहा आँटी जी आपका आना हमारे लिये बहुत शुभ हो गया ,आप आशीर्वाद दीजिये की मेरी बहन भी पढाई करे और अपने जीवन मे सफ़ल हो ।
सच मे आज दिल बहुत खुश था , की मेरी काम वाली बाई के बच्चों ने पढ़ाई के महत्व को समझ कर जीवन मे आगे बढ़ने का निर्णय लिया है ,मैंने भी उसके बेटे को आशीर्वाद देते हुए कहा ,हाँ बेटा ,जीवन मे आगे बढ़ो खूब पड़ो लिखो आगे पड़ो, और अपनी माँ पिताजी की ऐसी सोच को बदल डालो कि ,हमे तो सदियों से गरीबी का जीवन जीने का वरदान मिला है ।
बेटा खुश था, माँ के चेहरे पर खुशी थी ,पर आँखों से प्रेम की अश्रु धारा बह रही थी वह कुछ कह नहीं पा रही थी, पर उसके अश्रुओं ने बहुत कुछ के दिया था।
इतने मे काम वाली बाई का बेटा बोला आँटी जी आप देखना मैं पड़ लिखकर बहुत बड़ा इन्सान बनूँगा और अपनी बहन को भी पढ़ाऊंगा ,क्यों हम हमेशा गरीबी का जीवन जीयें ,हमारा भी हक़ है अमीर बनने का आगे बढ़ने का , उसके बेटे की बातों में आत्मविश्वास था ,आज दिल बहुत खुश था कि,हमारे समाज में आज भी अनमोल नगीने हैं।
सच में इंसान की मेहनत और आत्मविश्वास ही उसे जीवन मे आगे बढ़ने में सहायता करते हैं ।
रितु, मेहनत और आत्मविश्वास से हर किसी के अच्छे दिन आ सकते हैं। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंजी ज्योति जी ,बिल्कुल सही मेहनत,और आत्मविश्वास ही सफलता की कुंजी है ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय आभार
सुन्दर और प्रेरक
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 21 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ध्रुव एकलव्या जी
हटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंशानदार अलक
सादर
धन्यवाद ,आभार यशोदा जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश से लबरेज़! ....... बधाई!
जवाब देंहटाएंआभार धन्यवाद विश्व मोहन जी
हटाएंसुंदर प्रेरक कहानी रितु जी।
जवाब देंहटाएंकर्म की बदौलत भाग्य बदले.जा.सकते है.
आभार श्वेता जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं प्रेरक कहानी । बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंआभार राजेश कुमार राय जी धन्यवाद
हटाएंआदरणीय रितु जी ---- बहुत ही द्रवित कर देने वाला प्रसंग है | --सचमुच हालात की अग्न में तपकर इन्सान बनता है ----- और सफलता के नये शिखर छूता है | इसे बच्चे समाज के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा बनते हैं |
जवाब देंहटाएंजी रेणु बाला जी एक शानदार टिप्पणी देने और हतोत्साहित करने के लिये धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक रचना.........
जवाब देंहटाएंसभी को शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो...।
जी सुधा जी आप सही कह रही हैं शिक्षा पर सभी का अधिकार है । परन्तु यह बात भी सत्य है जो मैंने लिखी है कि कुछ मजदूरी करने वाले लोग अगर उनके बच्चे पढ़ना भी चाहें तो पढने नही देते की ज्यादा पड़कर क्या करेंगें उसके बाद भी कौन सा नौकरी मिल जाएगी ?
हटाएंप्रेरक ...
जवाब देंहटाएंछोटा सा आत्मविश्वास कई बार बड़े बड़े काम करवा जाता है ...
जी दिगाम्बर जी धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक कथा !
जवाब देंहटाएंआदरणीय साधना जी आपका आभार धन्यवाद ।
हटाएं