** ना जाने मेरी नियति
मुझसे क्या -क्या करवाना
चाहती है ।
मैं संतुष्ट होती हूँ
तो होने नहीं देती
बेकरारी पैदा करती है ,
जाने मुझसे कौन सा अद्भुत
काम करवाना चाहती है ।
मैं जानती हूँ ,मैं इस लायक नहीं हूँ
फिर भी मेरी आत्मा की बेकरारी ,
मुझे चैन से बैठने ही नहीं देती।
समुन्दर में लहरों की तरह छलांगे
लगती रहती है।
मुझमें इतनी औक़ात कहाँ की मैं
कुछ अद्वितीय कर पाऊँ ,
इतिहास रच पाऊँ
पर मेरी नियति मुझसे कुछ
तो बेहतर कराना चाहती है।
तभी तो शान्त समुन्दर में
विचारों का आना -जाना लगा रहता है ।
और मेरे विचार स्वार्थ से ऊपर उठकर
सर्वजनहिताय के लिये कुछ करने को
सदा आतुर रहते हैं ।
बस मेरी तो इतनी सी प्रार्थना है परमात्मा से
की वो निरन्तर मेरा सहयोगी रहे ।
मेरा मार्गदर्शन करता रहे ।
विचारों के तूफानों को सही दिशा देकर
शब्दों के माध्यम से कागज़ पर उकेरते रहती हूँ।
मुझसे क्या -क्या करवाना
चाहती है ।
मैं संतुष्ट होती हूँ
तो होने नहीं देती
बेकरारी पैदा करती है ,
जाने मुझसे कौन सा अद्भुत
काम करवाना चाहती है ।
मैं जानती हूँ ,मैं इस लायक नहीं हूँ
फिर भी मेरी आत्मा की बेकरारी ,
मुझे चैन से बैठने ही नहीं देती।
समुन्दर में लहरों की तरह छलांगे
लगती रहती है।
मुझमें इतनी औक़ात कहाँ की मैं
कुछ अद्वितीय कर पाऊँ ,
इतिहास रच पाऊँ
पर मेरी नियति मुझसे कुछ
तो बेहतर कराना चाहती है।
तभी तो शान्त समुन्दर में
विचारों का आना -जाना लगा रहता है ।
और मेरे विचार स्वार्थ से ऊपर उठकर
सर्वजनहिताय के लिये कुछ करने को
सदा आतुर रहते हैं ।
बस मेरी तो इतनी सी प्रार्थना है परमात्मा से
की वो निरन्तर मेरा सहयोगी रहे ।
मेरा मार्गदर्शन करता रहे ।
विचारों के तूफानों को सही दिशा देकर
शब्दों के माध्यम से कागज़ पर उकेरते रहती हूँ।
रितु, नियति हम से करवाना चाहती है यह उसे ही पता। बहुत सुंदर अभव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंगलती से चौथी लाइन में 'होती हूं' कि जगह 'होता हूँ' हो गया है।
ज्योति जी आप सब की टिप्पणियाँ हमे हतोत्साहित तो करती हैं और हमारा सही मार्गदर्शन भी होता है
जवाब देंहटाएंकशमकश को उभारती आपकी प्रस्तुति विचारणीय है। बधाई।
जवाब देंहटाएंरविन्द्र जी आपकी टिप्पणी उत्त्साह वर्जन के लिये महत्वपूर्ण है ।
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