"अनमोल खजाना "


दौड़ रहा था ,मैं दौड़ रहा था
बहुत तेज रफ़्तार थी मेरी ,
आगे सबसे सबसे आगे बहुत आगे
बढ़ने की चाह मे मेरे क़दम थमने का
नाम ही नहीं ले रहे थे ।
यूँ तो बहुत आगे निकल आया था "मैं "
आधुनिकता के सारे साधन थे पास मेरे
दुनियाँ की चकाचौंध में मस्त,व्यस्त ।

आधुनिकता के सभी साधनों से परिपूर्ण
मैं प्रस्सन था ,पर सन्तुष्ट नहीं
जाने मुझे कौन सी कमी अखरती थी ।

एक दिन एक फकीर मुझे मिला
वो फ़कीर फिर भी सन्तुष्ट ,मैं अमीर
फिर भी असन्तुष्ट ।

फ़कीर ने मुझे एक बीज दिया,
मैंने उस बीज की पौध लगायी
दिन -रात पौध को सींचने लगा
अब तो बेल फैल गयी ।
अध्यात्म रूपी अनमोल ,रत्नों की मुझे प्राप्ति हुई
मुझे संतुष्टता का अनमोल खजाना मिला
ये अध्यात्म का बीज ऐसा पनपा कि
संसार की सारी आधुनिकता फीकी पड़ गयी
मैं मालामाल हो गया ,अब और कोई धन मुझे रास
नही आया ,अध्यात्म के रस में जब से मैंने परमानन्द पाया।
वास्तव में अध्यात्म से सन्तुष्टता का अनमोल खज़ाना मैंने  पाया

9 टिप्‍पणियां:

  1. आधुनिकता के सभी साधनों से परिपूर्ण
    मैं प्रस्सन था ,पर सन्तुष्ट नहीं
    जाने मुझे कौन सी कमी अखरती थी ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 14 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  3. धन्यवाद ध्रुव जी मेरी लिखी रचना को पाँच लिंकों के आनन्द में स्थान देने के लिये ।

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  4. आधुनिकता के सभी साधनों से परिपूर्ण
    मैं प्रस्सन था ,पर सन्तुष्ट नहीं
    जाने मुझे कौन सी कमी अखरती थी ।
    मन की बातें उकेरती यह कविता भा गई। बधाई और शुभकामना

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  5. परम संतुष्टि का भाव तो आध्यात्म के रास्ते से ही आता है ... हर आनद का भाव है इस तत्व में ... बहुत ही भावपूर्ण रचना है ...

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  6. परम संतुष्टि के लिए अध्यात्म से बड़ा रास्ता क्या हो सकता है ! बहुत सुंदर रचना ।

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  7. अध्यात्म ही जीवन का अनमोल खजाना है .....सुन्दर सीख....
    लाजवाब प्रस्तुति...

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