* श्री कृषण जन्माष्टमी की बधाई *

भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी
           हर्षित मन ,चहुँ ओर सब प्ररफुल्लित**
     
           * *   *दिव्य आलौकिक
              "श्री कृष्ण " जन्माष्टमी की
                  बधाई हो, बधाई
       
             सवागत में कृष्णा के , घर ,मंन्दिर और
             बाज़ारों की साज सज्जा तो निहारो
             मानो धरती पर स्वर्ग ही ले आई।
         
            यशोदानन्द का लाला सारे जग का
           रखवाला , बन नन्द गाँव का ग्वाला
                माखनचोर वो नंदकिशोर
         
           गोपियों का प्यारा ,दिव्य आलौकिक
                  प्रेम की भाषा सिखा गया ।

     धर्म की रक्षा हेतु गीता का ज्ञान भी दे गया।
     धरती को अंहकार के अन्धकार से पाप मुक्त किया
 
  कृष्ण ,गोपाल , कान्हा ,माखन चोर नंदकिशोर ,केशव ,मुरारी
  ना जाने कितने नामों से सबका लाडला ,बन सबके दिलों में
  राज कर अपना दीवाना कर गया कृष्ण।
 जन्म दिवस के शुभ बेला ,मेरा कृष्ण सबका चेला
वो अलबेला सखा ,सहेला ।
जन्म दिवस पर स्वयं आकर देखो कन्हैया
धरती वासियों ने तुम्हारे जन्म दिवस पर
 स्वागत में धरती को स्वर्ग सा किया अलबेला
सुवगतम् सुस्वागतम्  राधे संग कृष्णा ।
पधारो पधारो ........

" मेरी जड़ों ने मुझे सम्भाल रखा है "

            "मेरी जड़ों ने मुझे सम्भाल रखा है "
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     मेरी जड़ों से मेरी खूबसूरती है
     मेरे माली का ,शुक्रिया जिसनें
     मेरे बीजों को पौष्टिक खाद दी,
     मुझे जल से सींचा, सूर्य ने मेरे तेज
     को बढ़ाया ।
   
     मैं जो आज बाग़ बगीचों में
     कहीं किसी की क्यारियोँ में
     घरों के आँगन की खूबसूरती
     बड़ा रहा हूँ ,कि मेरी जड़ों ने मुझे
     सम्भाल रखा है ।वरना  मैं तो
     कब का बिखर गया होता ।
     
   

     मेरे स्वभाव में एक आकर्षण है
     जो सभी को अपनी और आकर्षित
     कर लेता हूँ । मेरी कई प्रजातियाँ हैं
     मेरा हर रंग ,हर रूप सहज ही
     आकर्षक है ।

     मेरी महक पवन संग-मिल कर
     वातावरण महकाती है,मुझसे
     प्राण वायु भी है ।
     मुझसे इत्र भी बनाई जाती है
     मैं प्रेम प्यार का  प्रतीक हूँ ।
     मित्रता आपसी भाईचारे में भी
     प्रेम की डोर बाँधने के लिये
     मैं सम्मानित होता हूँ ।

     ख़ुशी हो या ग़म मैं हर स्थान पर
     उपयोग होता हूँ ।

     अपनी छोटी सी जिन्दगी में
     मैं किसी ना किसी काम आ जाता हूँ
     सार्थक है जीवन मेरा , जो मैं
     किसी रूप मे काम तो आ जाता हूँ ।
     मैं प्रकृति की अनमोल देन ...

         " मै पुष्प हूँ ,   "

     अपनी छोटी सी पर
     सार्थक जिंदगी से मैं खुश हूँ ।
   
     



" कुदरत के नियम "

 तूफानों का आना भी
कुदरत का नियम है   ।

क्योंकि तूफ़ान भी तब
आते हैं ,जब वातावरण
में दूषित वायू का दबाब
बढ जाता है।

ठीक इसी तरह मनुष्यों
के जीवन में भी तूफ़ान आतें हैं।
तूफानों का आना भी स्वभाविक है ।

जिस तरह कुछअन्तराल के बाद
विष का असर नज़र आने ही लगता है ।

फिर इल्जाम लगाना
जब सीमायें ही नहीं बाँधी
तो बाँध के टूट जाने का
कैसा डर?

कभी नहीं हुआ कि
काली घनी अँधेरी रात के
बाद दिनकर से प्रकाशित
सुनहरी ,चमकीली ,तेजोमयी
सुप्रभात ना आयी हो।

प्रकृति अपने नियम
कभी नहीं तोड़ती
         
मनुष्य ही अपनी हदें पार
कर जाता है ,और इल्जाम
दूसरों पर लगता है ।

आखिर कब तक सहे कोई
विष चाहे कैसा भी हो
असर तो दिखायेगा ही ।

कहते भी हैं ना ,बोये पेड़ बबूल
का तो आम कहाँ से आये ।
फिर सोचिये जैसा बोएँगे
वैसा फल मिलेगा ।

" अमर प्रेम की पवित्र डोर "

रक्षा बंधन का पर्व

भाई बहन का गर्व ,

निश्छल पवित्र प्रेम का अमर रिश्ता

बहन भाई की कलाई में राखी.बांधते हुए कहती है,

भाई ये जो राखी है ,ये कोई साधारण सूत्र नही

इस राखी में मैंने स्वच्छ पवित्र प्रेम के मोती पिरोये हैं ,

सुनहरी चमकीली इस रेशम की डोर में ,

भैय्या तुम्हारे  उज्जवल भविष्य की मंगल कामनाएं पिरोयी है ।

रोली ,चावल ,मीठा ,लड़कपन की वो शरारतें ,

हँसते खेलते बीतती थी दिन और रातें

सबसे प्यारा सबसे मीठा तेरा मेरा रिश्ता

भाई बहन के प्रेम का अमर रिश्ता कुछ खट्टा कुछ मीठा ,

सबसे अनमोल मेरा भैय्या,

कभी तुम बन जाते हो मेरे सखा ,

और कभी बड़े  भैय्या ,  भैय्या मै जानती हूँ ,तुम बनते हो अनजान

पर मेरे सुखी जीवन की हर पल करते हो प्रार्थना।

 भैय्या मै न चाहूँ ,तुम  मुझको दो सोना ,चांदी ,और रुपया

दिन रात तरक्की करे मेरा भैय्या ,

ऊँचाइयों के शिखर को छुए मेरा भैय्या

रक्षा बंधन  की सुनहरी चमकीली राख़ियाँ

सूरज ,चाँद सितारे भी मानो उतारें है आरतियाँ

मानो कहतें हों ,काश कभी हम भी किसी के भाई बने,    और कोई बहन हमें भी बांधे राखियाँ

थोड़ा इतरा कर हम भी दिखाएँ कलाई   और कहेँ देखो इन हाथों में भी है राखियाँ ।



** स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला **

        **"स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला "**
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        स्वतन्त्रता दिवस की शुभ बेला
        मन में उत्साह हृदय परफुल्लित
     
        आजादी की सतरवीं वर्षगाँठ
        पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैतालिस।
     
         हमारा देश भारत अंग्रेजों की गुलामी
         की जंजीरो से आजाद हुआ था।
     
         आजादी का प्रतीक झण्डा हमारे देश
         की मान शान अभिमान तिरंगा
         आत्मसम्मान तिरंगा ,न कुछ ऐसा
         करें  की अपमानित हो तिरंगा।
     
         हाँ आज हम स्वतन्त्र हैं ।
         सतंत्रता है,हम कुछ भी करें
         विचारों की व्यवहारों की ,
         अपना लक्ष्य चुनने की स्वतन्त्रता
         आज हम किसी भी तरह परतन्त्र नहीं
         यहां तक की मतदान द्वारा देश का नेता
         चुनने की स्वतन्त्रता।
       
         भव्य आलिशान मकान
         बनाने की स्वतन्त्रता
       
        पर इस स्वतन्त्रता का अनुचित
        लाभ उठाना उचित नहीं ।
     
         देश आपका है, फिर क्यों आपके
         देश की सड़कों पर जगह जगह
         कूड़े का ढेर पड़ा मिलता है ,
         भारत वासी कहते हैं आज हम
         स्वतन्त्र हैं ,क्या स्वतंत्रता सिर्फ अपने
         निजी स्वार्थ के लिये है, अपने घरों का
         कूड़ा बहार देश की सड़कों पर फैकने की है
          अजी आप लोग तो स्वार्थी हो गये ।
     
         अजी स्वतन्त्रता सिर्फ आपकी निजी नहीं ,
         देश की स्वतन्त्रता के लिये निस्वार्थ बलिदान
         को भारत माँ भूल नहीं सकती ।
 
        आज स्वतन्त्रता दिवस के दिन प्रण हैं लेते
        निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने देश को
        स्वच्छ ,रामरणीय ,व् समृद्ध बनाये ।।।।।
       
   
     






       
   
     
        

"मौन"

     "मौन"

    सुनी सुनायी बातों को तो
   अक्सर लोग सुनते हैं
कुछ याद रखते हैं कुछ
भूल जाते हैं।
पर मौन की भाषा जो समझ
जाते है।वो ख़ास होते हैं ।
क्योंकि ?
खामोशियों में ही अक्सर
गहरे राज होते है ।
जुबाँ से ज्यादा मौन की भाषा
में कशिश होती है ।

जब तक मैं बोलता रहा
किसी ने नहीं सुना ।
कई प्रयत्न किये ,
अपनी बात समझाने
की कोशिश करता रहा
चीखा चिल्लाया गिड़ गिड़ा या
प्यार से समझाया, हँस के रो के
सारे प्रयत्न किये पर कोई समझ
न पाया ।

पर अब मै मौन हूँ ।
किसी से कुछ नहीं कहता
ना कोई शिकवा ना शिकायत ।

पर अब बिन कहे सब मेरी
बात समझ जाते जाते हैं
लोग कहते हैं,कि मेरी खानोशी
बोलती है।
अब सोचता हूँ व्यर्थ बोलता रहा
मौन में तो बोलने से भी ज्यादा
आवाज होती है।


"सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हामारा "

      "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा"


    मेरे  देश का तिरंगा
आकाश की ऊँचाइयओं
में बड़ी शान से लहरा रहा है ।

सुख समृधि और शांति के गीत
गुनगुना रहा है ।

अज्ञान का अन्धकार अब छंट गया है
ज्ञान के प्रकाश का उजियारा अब प्रकाश
फैला रहा है ।

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
की बातें अब सच हो रही हैं ।

प्रेम की मीठी भाषा से हमने सबके दिलों
में जगह बना ली है ।

विश्व कौटूमबकम "अनेकता में एकता" की
नींव मजबूत कर डाली है ।

अपनी सबसे मित्रता नहीं किसी से वैर
स्वर्णिम युग की स्थापना
सतयुग फिर से आ रहा
धरा फिर से बन रही स्वर्ग
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा
तिरंगा लहरा रहा हर्षित
प्रफुल्लित सहर्ष ।।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...