*परियां और उनकी रहस्यमयी दुनियां *

अरे वाह!
    इतना सुन्दर क्या है यह किसी रथ सा प्रतीत होता है ,चार श्वेत मखमली अश्व जो रथ के आगे खड़े थे ,अरे वाह श्वेत मखमली हंस,कोई चमत्कारी रथ लगता है यह.....

   इतने में हवा के संग मीठी सुंगध की लहर सारे वातावरण को महका गई ,सब कुछ रहस्यमयी सा प्रतीत हो रहा था ,तभी मीठी आवाज में हंसने ,खिखिलाने की गूंज से वातावरण और भी मीठा हो गया ,उत्सुकतावश मैंने उस हंसने की आवाज का पीछा किया ...कुछ दूर चलने के बाद मैंने पेड़ों की ओट से देखा श्वेत मखमली वस्त्रों में जिनके कोमल-कोमल से श्वेत पंख भी हैं ,विहार कर रही हैं कुछ झरने के निर्मल जल में स्नान कर रही हैं कुछ पुष्पों को क्यारियों में तितलियों को भांति उड़ रही हैं ,बहुत ही सुंदर दृश्य था , मैं स्वप्न लोक की परियों को साक्षात देख पा रही थी , एक बार को सोचा जाकर उनसे मिली कुछ बातें करूं .... फिर लगा कहीं यह मेरी आहट सुनकर लुप्त ना हो जाए , अब तो मुझे
मुझे यकीन हो गया था यह परियां उसी रथ में बैठकर  आयी हैं । मैं रथ की समीप जाकर छुप गई और परियों के आने का इंतजार करने लगी , आसमान की तरफ देखा तो आसमान में तारे  टिमटिमा रहे थे ,चन्द्रमा भी सोलह कला संपूर्ण अपनी श्वेत मखमली चांदनी से संपूर्ण वातावरण को रहस्यमयी  बना रहा था ,समय था रात्रि के दो बजे पर मेरी आंखों में नींद कहां थी , मैं तो परियों के आने के इंतजार में बिना पलके झपकाए बस बैठी थी ।
  रात्रि का समय था कब आंख लग गयी पता भी नहीं चला ।
जब आंख खुली तब सब कुछ एक स्वप्न सा प्रतीत हुआ ...... तभी याद आया अरे मैं तो बगीचे में थी ,परियों का इंतजार कर रहा थी ,फिर सोचा क्या वो सच में परियां थीं ,या फ़िर मेरा भ्रम ,एक सुन्दर सपना ।
  अरे ये मैं कहां हूं ,ये मेरा घर जैसा तो नहीं ..... मैं कहां हूं ,मेरा दिल जोर -जोर से धड़कने लगा ,फिर इधर -उधर ताकने लगी ,यहां तो कोई भी नहीं , मैं कहां आ गई कहीं मैं रात में मर तो नहीं गई और मेरी आत्मा यहां आ गई ,मेरा शरीर घर पर मेरे पलंग पर पड़ा होगा जब मैं बहुत देर तक नहीं उठूंगी तो मेरे घर वाले मुझे उठाने का प्रयास करेंगे ,मेरे शरीर को देखकर मुझे मृत पड़ा सोच कर दुखी हो रहे होंगे ,चीखेंगे -चिल्लाएंगे ,फिर कुछ लोगों के कहने पर मेरे निर्जीव शरीर को जला दिया जाएगा ,नहीं ऐसा नहीं हो सकता मुझे जल्द से जल्द अपने घर जाना होगा अगर मेरा शरीर ही नहीं रहा तो मेरी आत्मा भटकेगी ,यह मैं कहां आ गई चलो घर जाने का रास्ता ढूंढ़ती हूं ।
   बहुत ही काल्पनिक , रहस्यमयी दुनियां में थी मैं ,सिर्फ श्वेत मखमली बादल ना वहां से आने का रास्ता ना जाने का मैं, जितना भी आगे बड़ने का प्रयास करती सव्यं को बादलों के बीच घिर हुआ ही पाती *****
   माना की सब कुछ बहुत मनमोहक था पर वहां करने के लिए कुछ भी नहीं था ,किस से बात करूं क्या करूं  समझ नहीं आ रहा था .....
तभी मैंने एक आवाज लगाई ,यहां कोई है ये मैं कहां हूं ......भगवान जी आप कहां रहते हो ...... हे भगवान धरती पर लोग कहते हैं की आप आसमान में कहीं रहते हो , पर कहां मैं जानती हूं कि आप सच्चे लोगों को दिखते हो ,जाने -अनजाने मैंने बहुत गलतियां की होगी पर मैंने किसी के साथ बुरा  नहीं किया कभी भी ,भगवान मुझे दर्शन दो ,और बताओ मुझे यहां क्या करना है ..... हे भगवान आपको आना ही होगा .....मेरा ऐसा कहते ही बादलों के बीच से चीरते हुए एक आभा आ गई ...प्रकाश ही प्रकाश उस आभा से दिव्य प्रकाश निकल रहा था .... मैं हाथ जोड़कर खड़ी हो गई क्योंकि मैंने जो सुना था भगवान दिव्य आलौकिक तेज प्रकाश का स्वरूप हैं ........... मैं ॐ नमो शिवाय का जाप करने लगी ....तभी उस दिव्य तेज में से निर्मल श्वेत वस्त्र श्वेत चांदनी से चमकते उसके पंख उसके हाथ में एक सुनहरी छड़ी थी उस छड़ी में से तेज प्रकाश निकल रहा था ......में स्तब्ध क्या करूं ,क्या कहूं ....
तभी वो जादू की छड़ी वाली परी बोली , तुम धरती से  आयि हो वैसे तो जीते जी और हम परियों के इच्छा के बिना कोई यहां नहीं आ सकता पर अब तुम आ गई हो तो अब तुम यहीं रहोगी हमारी मेहमान बनकर अब तुम धरती पर वापिस नहीं जा सकती ....तुम्हें कम से कम सौ वर्ष तक यहां रहना होगा ....फिर यहां रहते -रहते तुम हमारे जैसी हो जाओगी और हम तुम्हें सौ साल बाद अपनी तरह परी बना देंगे .....परी तक तो ठीक था,परंतु सौ साल का वक्त तो बहुत लम्बा होता है ,सोच कर दिल घबराया......धरती पर अपने घर की और घर वालों की याद आने लगी .........मां ,बाबा, बहन -भाई सब मुझे ढूंढ़ते होंगे परेशान होंगे मेरे लिये ....... मेरे वापिस लौटने पर मुझे कितना गुस्सा करेंगे ,उनके उस गुस्से में भी प्यार होगा , पर मैं वापिस कैसे जा पाऊंगी ।
  मैंने परी जी से कहा आप बहुत अच्छी हैं ,मुझे नहीं बनना परी ,मुझे माफ़ कर दो पता नहीं मैं यहां कैसे आ गई आप  मुझे धरती पर वापिस भेज दो ...
 परी जी बोलीं देखो अब धरती पर कभी नहीं जा सकती ,तुम्हारे लिए यही अच्छा रहेगा की तुम यहीं रहो और हमारे जैसा रहना सीखो इस काम के लिए तुम्हारे साथ एक परिचायका तुम्हारे साथ रहेगी .....
 मेरे बस में कुछ नहीं था आखिर मुझे उन परी जी की बात माननी पड़ी .....
  परियों की जिन्दगी ही अलग होती है वो तो खाना भी नहीं खाती पानी भी नहीं पीती ,उनका तो हर काम जादू से हो जाता था ।
 लेकिन एक परीचा यिका जो मेरे साथ के लिए थी उसने मुझे प्यार से अपने पास बिठाया और कहा मैं जानती हूं तुम धरती से अाई हो तुम्हें भूख -प्यास सब लग रही होगी लो कुछ खा लो पानी पी लो ...आज से कई सौ साल पहले भी तुम्हारे जैसी एक लड़की धरती से इसी तरह परीलोक में आ गई थी ,फिर वो भी वापिस ना जा सकी अब वो परी बन गई है ।
 मैंने पूछा तुम जानती हो मैं यहां कैसे पहुंची ,वो परी परिचायिका बोली हां मैं जानती हूं।
   मैंने पूछा कैसे वो,परी बोली हमारे रथ में तुम छुप कर बैठ गई थीं और तुम्हें नींद आ गई थीं
मुझे सब कुछ याद आ गया मैंने परी परीचायिका से कहा मुझे वापिस धरती पर अपने घर जाना है ...
परी ने बोला नहीं ये यहां के नियमों के खिलाफ है अगर तुम प्रयास भी करोगी तो तुम्हें ...सजा मिलेगी तुम्हें हवा में लटका दिया जाएगा और तुम झूलती रहना गिरती पड़ती हवा में .......अब कोई चारा भी नहीं था मुझे उसकी बात माननी पड़ी जैसा -जैसा वो परी परिचायक कहती मैं करने लगी ,कुछ बुरा भी नहीं था ,परंतु धरती जैसा भी नहीं था सब बहुत अच्छे थे ।
 जो बड़ी परियां थीं वो धरती पर कोई भोला -भाला मासूम अनाथ हो जाता था ,कभी -कभी उनके सपनों में जाती और उनकी मां बनकर उनसे बातें करती उन्हें सहलाती,यूं तो परियां बहुत प्यारी थीं फिर भी ....
कभी-कभी बड़ी परियों को धरती पर भी जाना पड़ता था ,किसी मासूम के लिए.....ऐसा ही किस्सा मेरे सामने भी हुआ जब मैं परीलोक में थीं ,अचानक एक परी अायी और बोली परी मां धरती पर एक मासूम बच्चा है जिसकी मां मर गई है और उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली है ,अब वो दूसरी मां उस बच्चे के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती है और उसकी पत्नी के कहने पर उसका पिता भी उस चार साल के बच्चे को मारने लगा है ,वो बच्चा बहुत ही मासूम है हरपल अपनी मां को याद करता रहता है...
परी मां आप को उस बच्चे के लिए एक बार धरती पर जाना होगा उसे मां के प्यार की बहुत आवयश्कता है ,परी मां ने कहा ,मेरा रथ तैयार करो मुझे धरती पर जाना है ।
मैं मन ही मन प्रसन्न हो गई मेरी परी परिचायक ने मेरी मदद की ,कहने लगी वैसे तो ये परीलोक के नियमों के ख़िलाफ़ है ,फिर भी हम परियां स्वभाव से सबकी मदद करती हैं ,अब जैसे तुम धरती से अाई थीं वैसे ही जाओगी ज्यादातर हम परियां रात में ही कहीं आती -जाती हैं ,जिससे हमें कोई निर्मल मन देख ना सके.. जैसे तुमने देखा ये तो यकीन है की तुम दिल की बहुत अच्छी हो ।
 आज रात को दो और तीन बजे के बीच परी मां का रथ धरती पर जाएगा जिसमें मैं भी होंगी ,तुम छुप कर नीचे वाले हिस्से में लेट जाना और जब धरती पर हमारा रथ रुकेगा ,तुम चुपके से निकलकर अपने घर चले जाना मैंने उस परी को धन्यवाद कहा .....
 धरती पर रथ रुकते ही मैं अपने घर पहुंची देखा मैं पलंग में लेटी हुई हूं मेरे आस-पास मेरे परिजन और डॉक्टर खड़े हैं ।
 इतने में मेरी आंख खुली घर के सभी सदस्य मुझे देखकर खुश हो गए ,सामने खड़ा डॉक्टर बोला ये तो चमत्कार हो गया ..मां भाई ,बहन सब ने मुझे प्यार से गले लगा लिया...

 तभी मुझे परी परिचाय का की छवि दिखाई दी ,वो दूर से देखकर मुझे मुस्करा रही थी मानों अपनों से मिलने की खुशी का एहसास था उसे भी।






*सवाल *


सवाल क्या है
सवाल होना भी इक सवाल है
सवाल कुछ भी नहीं
और सवालों के सिवाय
जिन्दगी भी कुछ नहीं
सवालों से जन्मा हर
 एक नया सवाल है
हर एक नए सवाल 
का उत्तर ही सवाल का
जवाब है ।

*सोच *


*ये सोचना की
मृत्यु के बाद शांति मिलेगी मृगतृष्णा सा है
मृत्यु के बाद की किसने जानी
जीवन एहसासों और भावनाओं का बड़ा समुंदर है ,सुख-दुख शांति -अशांति सब मनुष्य मन के भीतर     ही है  *

**खुद को बदलो **


* खुद को बदलो
दूसरों को बदलने की
कोशिश में अपना वक़्त जाया ना करें
स्वयं को बदल कर तो
देखो ,क्या पता आप में सकारात्मक
 बदलाव देखकर जमाना स्वयं में
 बदलाव शुरू कर दे**

*श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव*

यशोदा के लला
गपियों के गोपाल
मुरलीधर , छलिया
भक्तों के केशव,मनमोहन
श्यामसुंदर ,माधव जिसने
जिस -जिस नाम से पुकारा
कृष्ण दामोदर हो गए उसके प्यारे
अनन्त,अद्वितीय
अलौकिक,निरांकर
मुझमें ही समस्त
सृष्टि का सार
सुव्यवस्थित करने को
सृष्टि पर आचरण और व्यवहार
मुझ अद्वितीय शक्ति को
पड़ता है ,धरती पर अवतार
श्री राम -सीता ,राधे-कृष्ण
नामों का आधार धरती पर
सकारात्मक ऊर्जा का संचार
भादों की कृष्ण जन्माष्टमी पर
पर श्रद्धा ,विश्वास ,और प्रेम से
मनाया जाता है , का हो उद्धार

भाद्र पद की कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है 

कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार

 मुबारक हो सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार........





*****श्री कृष्ण जन्मोत्सव की शुभकामनाएं

 श्री कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व ......
मंदिरों में जगह -जगह श्री कृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियां पूरी जोरों पर थीं।
बाल गोपाल श्री कृष्ण जन्म के पर्व के लिए बाजारों में सुन्दर -सुन्दर लड्डू गोपाल उनके झूलने के लिए सुन्दर झूले, आकर्षक वस्त्र ,बांसुरीयां मोर पंख आदि सज -सज्जा के सामान सजे हुए थे ,मन तो करता था सब ले लो ,परंतु हमने अपनी आव्यशकता अनुसार सुन्दर-सुन्दर सामान ले लिया था ।
  इसी दौरान हमारा हमारे घर के समीप वाले श्री कृष्ण भगवान के मंदिर जाना हुआ... मंदिरों में भी श्री कृष्ण जी के जन्म उत्सव की खूब तैयारियां चल रही थी कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर चर्चा चल रही थी ,हम भी थोड़ी देर के लिए उस चर्चा को सुनने लगे ।
 तभी एक महिला अपना दुखड़ा रोने लगी ,कहने लगी पंडित जी मैं बहुत परेशान हूं ,मेरी सास को मेरा कोई काम पसंद नहीं आता बस टोकती रहती है ,मेरा पति भी बहुत गुस्से वाले स्वभाव के हैं ।
पंडित जी कुछ उपाय बताईए जिससे मेरी परेशानी दूर हो।
 पंडित जी मुस्कराए और बोले ,बेटी तुम क्या दुःखी होगी तुमसे ज्यादा दुखी और लोग भी  है इस दुनियां में ...
हमेशा दुख का रोना रोने से दुख कम नहीं होता ,तुम्हारी परेशानी का कारण ढूंढों और थोड़ी समझदारी और स हन शीलता से काम लो सब ठीक हो जाएगा
  कल कृष्ण लाला का जन्म दिवस है ,तैयारी करो .... और सुनो तुम कहती हो परेशानी श्री कृष्ण जन्म की कहानी किसको नहीं पता श्री कृष्ण भगवान ने तो जन्म से ही परेशानियां देखी
श्री कृष्ण का जन्म हुआ करावास में...
 रात्रि के बारह बजे घोर अन्धकार वर्षा जमुना जी का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर .....
मां यशोदा की गोद मिली .... नंदलाला के यहां भी कंस द्वारा कई तरह से और कई प्रकार से कृष्ण को मारने के प्रयास किए गए.... जिसका जीवन ही  खतरे में हो उसका क्या कम परेशानियों से घिरा होगा ,परंतु कृष्ण ने कभी शिकायत नहीं की हर चुनौती का अपनी आत्मशक्ति बल, बुद्धि कौशल से हल निकाला ..... बेटी सुख- दुख तो जीवन का हिस्सा है ,इनसे बचा नहीं जा सकता ,बल्कि जो विवेक पूर्वक चलता है ,उसका जीवन सफल होता है । वो महिला बोली पंडित जी धन्यवाद आपने मेरी आंखें खोल दी ,मुझे घर जाकर तैयारियां भी करनी है *****कृष्नलाला का जन्म दिवस भी है बहुत काम है ।आप सबको श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई एवम् शुभ कामनाएं ......**********


**फकीरी बनाम अमीरी**

 दुनियां का सबसे मालामाल बंदा
होता है एक फ़कीर
जो मज़ा नहीं अमीरी में
वो मज़ा है फकीरी में
अमीरी चिंता में डालती है
फकीरी चिंताओं से मुक्त करती है
   नहीं चाहिए दुनियां
की शान- ओ- शौकत ए मेरे मालिक
तेरी बंदगी तेरा गुणगान
करूं वही काम जिससे बड़े तेरा मान
 बस ऐसा हुनर देना मेरे मालिक हम
जिएं तो शान से और मरे तो शान से
दुनियां वाले जब भी हमें याद करें
तो कहें शान से हम भी उनके ख़ास थे
शान से .......


**वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता**

 वक़्त की क़दर करना सीखो
 माना कि वक़्त बहुत कुछ दोहराता है
  परंतु लौटता नहीं ,जिन्दगी की सांसों की
गिनती भी वक़्त के साथ कम होती जाती है
 इसलिए वक़्त जाया ना करें .... ये बीता वक़्त है साहब  लौट कर नहीं आता है.....

 **जन्म उत्सव
धरती पर मनुष्य जीवन के
 सफ़र का प्रारम्भ
सफ़र को यादगार बनाईए
जन्म है,सफ़र है,तो लौटना भी होगा ***

**वक़्त रहते जो कर लिया जाए
अच्छा होता है , क्योंकि
कभी -कभी वक़्त ऐसा आता है कि
वक़्त नहीं होता ,और वक़्त आने पर
वक़्त साथ नहीं देता ***

*अक़्स*



एक तस्वीर खींचनी है मुझे 

जो समाज का आईना हो

जो कोई भी उस तस्वीर को

देखे उसे अपना अक्स नज़र आए

हर कोई आईने में देख अक्स अपना

स्वयं को सुधारना चाहे निखारना चाहे 

       **विचारों की सम्पदा **
 **नैन से नैन कुछ इस तरह मिले
दिल के सारे हाल बयां हो गए
ना उनके लब हिले ना मेरे लब हिले
फिर भी नैनों ने दिल के सारे
 राज खोल दिए
 उनके नैनों में कुछ ऐसा जादू था
की हम उनके नैनों के समुंदर में
तैरते रह गए ,नैनों के समुंदर में
जस्बातों का सैलाब था
 दिल का हाल सब नैनों में छिपा था
बिन बोले ही नैनों ने बयां कर दिया**

*उम्मीद की पगडंडी
यूं तो इस पगडंडी ने मेरा बहुत
साथ निभाया ,आखिर थी तो कच्ची पगडंडी ही ना, पगडंडी टूट गई साथ छूट गया
वो कब से मुझे इशारों से समझता था
मैं ही नासमझ था समझ नहीं पाता था
कहता था अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन
उम्मीद करनी है तो अपने आप से कर....
मैं तेरे साथ में हूं मगर, मुझ पर विश्वास तो कर**


*स्वतंत्रता दिवस की शुकामनाएं *





आज"स्वतंत्रता दिवस" के
 शुभ अवसर पर फिजाओं
 में खुशियों की लहर है
वातावरण में मनमोहक सी महक है
अम्बर में आजाद परिंदों की चहक है
प्रतीत होता सब और सहज है
आज वादियों में केसर की महक है
प्रतीत होता सब और माहौल
सुन्दर ,सरस,सरल,और सुगम है
सकारात्मक सोच और निस्वार्थ मोहब्बत
से फिजाओं में चुहुं और सब शुभ मंगलकारी है
बगीचों में गुलमोहर से  खिला-खिला चमन है
आकाश की ऊंचाइयों में भारत माता की शान में  विजय पताका फहराता तिरंगा गर्व से गुन-गुना रहा
भारत मेरी माता मेरा देश मेरा अभिमान है ।


*देश के प्रति सम्मान*

*सरहद पर तैनात वीर जांबाज
** सैनिकों को मेरा शत शत नमन *
यह मेरा मेरे देश के प्रति सम्मान है
मैं कोई बहुत बड़ी देश भक्त नहीं
फिर भी यह तो एक श्रद्धा है
एक भाव है ,देश के प्रति अपनत्व
की भावना है ,चन्द पंक्तियां
लिखकर स्वयं को देश भक्त
कहलाने का दावा कदापि
नहीं किया जा सकता किन्तु
कहीं ना कहीं ये आग सब में है
देश प्रेम की आग
माना कि हम सिर्फ
चन्द बातें कहकर
स्वयं में जागृत
देशभक्ति की भावना
की मशाल तो जलाए हुए हैं
स्वयं को देश भक्त समझ लेना का भ्रम ही सही
हमारी सोच सकारात्मक तो है
फिर भी एक आग तो है हममें भी
जो हमें अपने देश के बारे में सोचने
लिखने और कुछ कहने को विवश करती है  ।


*अस्तित्व मेरा समुंदर*

**पूर्ण से शून्य की यात्रा
शून्य से फिर पूर्णता की
यात्रा ,शून्य का शून्य हो जाना ही
पूर्णता की यात्रा है...

कोयले की खान से
हीरे चुन कर लाने हैं
ये जिन्दगी बारूदी
सुरंग है, संभलकर चलना ज़रा ....

बहुत भटका बूंद बनकर
अस्तित्व मेरा समुंदर था
मैं अनभिज्ञ था समुंदर ही
मुझमें था ....

भटकता फिरता हूं दुनियां
 के मेले में,स्वयं की खोज में और
स्वयं का ही अस्तित्व मिटा बैठता हूं....

आया था दुनियां के
मेले में मौज -मस्ती करने को
मेले के आकर्षण में कुछ इस
कदर खोया की घर वापिसी
 का रास्ता ही भूल गया....



*हमारी प्यारी कश्मीरा*

      आज कई वर्षों बाद दो बहनें  

बिना किसी आतंक के डर से एक दूजे के घर जाकर मिली।

काल्पनिक नाम  एक का जमुना दूसरी का *कश्मीरा* यूं तो यह सिर्फ दो ही बहने नहीं और भी कई भाई बहन हैं भरा-पूरा कुटुम्ब है  ,परंतु आज कई वर्षों के बाद जमुना अपनी बहन कश्मीरा के लिए खुश थी ।

क्योंकि जमुना और कश्मीरा आस -पास ही रहती थीं ।

 काफी समय बाद जमुना का कश्मीरा के घर जाना हुआ.....

 कश्मीरा खुश थी कि आज उसे कोई बंदिश नहीं वो अपनी बहन जमुना का अच्छे से स्वागत करेगी ,उसकी आव भगत में कोई कमी नहीं छोड़ेगी।

   जमुना:-  कश्मीरा मेरी बहन तू कैसी है कितनी सुन्दर कितनी प्यारी होती थी तुम किसी जमाने में,  क्या हालत हो गई है तुम्हारी ,मुरझा गई हो ,चलो कोई बात नहीं *देर आए दुरुस्त आए* आज तक मैं तेरे घर एक बहन होकर भी ढंग से नहीं आ पाती थी कश्मीरा आज मैं बहुत खुश हूं तेरे लिए कश्मीरा अब हम संग-संग रहेंगे एक दूसरे के दुख-सुख बांट लेंगे ,  कश्मीरा मैं जानती हूं तूने बहुत दुख सहे हैं ,ना कहीं आना ना जाना बंदिशें ही बंदिशें अब सब ठीक हो जाएगा जमुना ने कश्मीरा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा...

    कश्मीरा:-   हां बहन जमुना आज कई वर्षों के बाद मैं खुली हवाओं में सांस ले पा रही हूं ,आज मेरे पास उड़ने को खुला आसमान है ,कल तक मैं अपने ही घर में कैद थी। 

  जमुना :-  कश्मीरा अब तो तुम खुश हो ना.....

   कश्मीरा :-   हां बहन जमुना क्यों नहीं मैं बहुत और बहुत खुश हूं ,अब मैं अपनी मर्जी से कहीं भी घूमने का सकती हूं ,और पता है बहन जमुना जब मुझ पर बंदिशें थीं ,मेरा आना -जाना तो बंद था ही... और भी कोई मेरे घर आता था तो उसके साथ बुरा व्यवहार होता था, बहुत आतंक था अभी तक मेरे घर में .....

   कश्मीरा--   लेकिन अब मुझ पर से सब बंदिशें हट चुकी हैं ,कोई भी मेरे घर आएगा तो हम सब मिलकर उसका बहुत स्वागत करेंगे ।

  जमुना :-   कश्मीरा  बातें  ही करती रहोगी ,या मुझे कुछ खिलाओगी -पिलाओगी भी...

     कश्मीरा:-   हां बहन जमुना मैं तुम्हारे लिए अभी केसर वाली बिरयानी बनाती हूं .. तब तक तुम ये  कहवा पियो ये लो आज ठंड बहुत है ये कांगड़ी भी रख लो अपने पास जमुना कांगड़ी लेते हुए कश्मीरा ज़रा ध्यान से कोयला गरम है ,ध्यान रखना 

  कश्मीरा :-   बिरयानी की तैयारी भी कर रही है ,और जमुना से बातें भी ,अच्छा जमुना ये बताओ हमारे और भाई बहन कैसे हैं ?

 जमुना:-   हां कश्मीरा सब ठीक हैं ,खूब तरक्की कर रहे हैं ,डोली ,मोली ,कोली सब आसमान की बुलंदियों को छू रहे हैं ,सब तुम्हारे बारे में बहुत चिंतित रहते थे ।

 कश्मीरा :-  हां बहन मैं समझ सकती हूं तुम मेरे इतने पास थी फिर भी हम मिल नहीं पाते थे ,तुम्हारी 

    मेरी तुम्हारी कहानी एक सी  है जमुना , पर अब हम आजाद हैं, अब हम दोनों मिलकर बहुत अच्छे -अच्छे काम करेंगे।

    कश्मीरा अपनी बहन जमुना से कह रही थी उन दोनों बहनों की आंखे नम थीं         बहन हमारी      *भारत माता* कैसी है आज वो बहुत खुश होंगी ना हां बहन बहुत खुश बहन कौन मां नहीं चाहती की उसके बच्चे आगे बड़ें ,खुश रहें ...... इतने में बहन ललिता का भी आना हो गया तीनों मिलकर बहुत खुश हुईं कहने लगीं ,कितने महान होंगे वो लोग जिन्होंने हमें आजाद किया हमें इतनी बड़ी खुशी दी  .... पता है उन महान लोगों ने हमारी मां भारत मां के सम्मान में तिरंगा भी फहराया .......

  बहन आओ हम सब मिलकर अपनी मां*भारत मां* के साथ अपनी खुशियां बांटे ,और खुशियां मनाएं ....

*भारत माता की जय* हमारी मात्रभूमि की जय जय के नारों से सारा माहौल गूंज उठा *****


* शुभ दिन *


 बहुत घायल हुआ कश्मीर अभी तक कश्मीर की सत्ता प्यादों के हाथों में थी  कश्मीर को दर्दनीय लहूलुहान स्थिति  से छुटकारा...  

जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा ....... आज कश्मीर राजनीति की बेड़ियों से आजाद हुआ .....
यूं तो भारत एक लोकतंत्र देश है ....और अभी तक जम्मू कश्मीर को लोकतंत्र के चुने नेता ही चला रहे थे ,जम्मू कश्मीर की अभी तक की स्थिति से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है .....

बहुत घायल हुआ अभी तक कश्मीर तकलीफों से बचाने के लिए असंख्य सैनिकों ने कुर्बानियां देते आ रहे हैं आखिर कब तक होता ये सब शुक्र है देश के राजनीतिज्ञों का.... जिन्होंने समस्या को तह से ख़तम करने  के लिए बेहतरीन कदम उठाया .....

 अभी तक कश्मीर की सत्ता प्यादों के हाथों में थी

लेकिन कश्मीर को  दर्द में करहाते देख .....प्रधानमंत्री ने बेहतरीन और कश्मीर के हित का फैसला लिया  
😊आज हवाओं में इत्र             की खुशबू🌹 आ रही है            लगता है मेरे मित्रों की मंडली मुस्करा😄😃 रही है ,गुनगुना रही है अपने मित्रों की खुशियों की फरियाद कर रही है🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌸🌸🌸
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*तीज का त्यौहार लेकर आता खुशियों की सौगात*

 पक्षियों के चहकने की आवाज
  खनकती चूड़ियों का आगाज
  सुहागनों के हाथों में रचती पवित्र
   मेहंदी की सौगात आओ सखियों
    झूमे नाचें गाएं आया है हरियाली तीज का त्यौहार
     **सावन का मौसम आया
संग अपने सुख-समृद्धि लाया
वर्षा की फुहारों से धरती का
जल अभिषेक जब होता है
प्रकृति प्रफुल्लित
हरी-भरी हो जाती है
वृक्षों की डालियां अपनी
बाहें फैलाती हैं
झूला झूलन को
सखियों को बुलाएं
प्रकृति संग सखियां भी
सोलह श्रृंगार करती हैं
वृक्षों की ओट में बैठ कोयल भी
मीठा राग सुनाती है
समस्त वातावरण संगीतमय हो जाता है
चूड़ियों की खनक मन को लुभाती है
हरियाली तीज को देवी पार्वती ने भी
सोलह श्रृंगार और कठिन उपवास कर
शिव को प्रसन्न किया था
उस दिन से हरियाली तीज की शुभ बेला पर
सुहागनें उपवास नियम करती हैं
वृक्षों पर झूलों की पींगे जब चड़ती हैं
आसमान की ऊंचाइयों में सखियां
झूल-झूल कर हंसती है
धरती झूमती है
प्रकृति निखरती है
पक्षीयों की सुमधुर ध्वनियों से
सावन में प्रकृति समृद्ध और संगीतमय हो जाती है**



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...