सोचना पड़ा

*मैं वो भाषा हूं जो सबको समझ आ जाती हूं

मैं ना कुछ बोलती हूं ,ना कुछ कहती हूं

फिर भी लोगों के दिल में उतर जाती हूं *


*सोचना पड़ा

खुदा को भी सच्ची मोहब्बतों के कुछ चिरागों को नफरतों की आंधियों के आगे भी ना बुझते देख अपने चक्षुओं को अश्कों से भिगोना पड़ा सोचना पड़ा खुदा को भी मोहब्बत के नाम पर फ़ना होना पड़ा*


*भावनाएं भी क्या चीज हैं

जीवन का आधार ,जीवन का सार है

भावनाओं से रहित जीवन निराधार हैं

भावनाएं नदिया का बहता जल

लहरें उतार -चढ़ाव,

 फंसना यानी भंवर में फंसना

भावनाओं की लहरों संग सामंजस्य बिठा कर

जीवन नैय्या पार करना ही जीवन यात्रा की सफलता ....*

    

*हिंदी हिन्दुस्तान की आत्मा उसका गौरव*

🙏🙏🎊🌹हिंदी मेरी मात्रभाषा अन्नत है,शाश्वत है, सनातन है , हिंदी किसी विशेष दिवस की मोहताज नहीं जब तक धरती पर  अस्तित्व रहेगा तब तक हिंदी भाषा का अस्तित्व रहेगा 🙏🌹🌹🎊🌸🌺🙏

“ हिंदी  मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय ''       🙏🙏

  😊😃जिस भाषा को बोलकर  मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ   ,                            उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।

भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
 भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विश्व के साथ जनसम्पर्क को जोड़ रखा है जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही  भाषा आती है वह है,  भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है।  संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है।  अपनी मातृभाषा का प्रयोग  करते समय मुझे अपने  भारतीय होने का गर्व होता है।  मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं।   मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी  की  सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं  ,और भारतमाता    माँ  सी  ममता। 
आज का मानव स्वयं को  आधुनिक कहलाने की होड़ में  'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण  शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को  आधुनिक समझता  है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है।  किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं   अंग्रेजी  अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को  गौरवान्वित  महसूस करें।   मातृभाषा का सम्मान  माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से  विश्वस्तरीय  ज्ञान की  निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं।   भाषा ने ही ज्ञान  की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी  को मेरा  शत -शत  नमन  आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।
श्री राधे -राधे

श्री राधे नाम की रस धारा हो
और कृष्ण नाम का सहारा हो
 अमृत्मयी विचारधारा तो उसके
जीवन का अद्भुत ,अतुलनीय स्वर्ग सा नजारा हो

फ़िक्र का क्यों जिक्र करूं
जब श्री  कृष्ण मित्र हमारा हो
श्री राधे नाम के इत्र से महकने
लगी है मेरे जीवन की बगिया
अब मेरे संग मेरे अंतर्मन में रहने
लगे हैं कृष्ण कन्हैया

श्री राधे रानी,जब से मैंने तुम्हारे नाम
का सहारा लिया है ,कृष्ण नाम के अमृत
से पवित्र होने लगी है मन मन्दिर की बगिया
हे कन्हैया , मैं जानता हूं तेरे नाम की रसधारा
में डूबकर ही पार लगेगी जीवन की नैया
श्री राधे -राधे


**शिक्षकों का स्थान सर्वोच्च **



कभी सिर पर हाथ फेर कर
कभी डांट कर,
कभी दुत्कार कर
कभी मूर्ख, कभी मंदबुद्धि
कहकर , माना की मेरा दिल
बहुत जलाया ......
परंतु उसी आग ने मेरे अंदर
के स्वाभिमान को जगाया
उस चिंगारी से सर्वप्रथम
मैंने स्वयं को जगाया एक
बेहतर इंसान बनाया
फ़िर समाज के लिए कुछ
कर गुजरने के जनून ने
मुझे मेरे कर्म मार्ग में निरंतर
आगे की और बड़ने को प्रेरित किया
मैं आज जो कुछ भी हूं
मेरे शिक्षकों द्वारा दी गई शिक्षा के फलीभूत....
या यूं कहिए मेरे अंदर की
ज्ञान की चिंगारी को मशाल का
रूप देकर समाज को रोशन किया
धन्य -धन्य ऐसे शिक्षकों को
जिन्होंने मेरे और मेरे जैसे कई
मनुष्यों के जीवन को सही मार्ग दिखाने
के लिए स्वयं के जीवन को चिराग बनाया
उनका जीवन सफल बनाया..

 शिक्षकों के सम्मान में
एक अच्छा शिक्षक नदिया के
बेहते जल की तरह होता है
जिसके ज्ञान की निर्मल धारा में
कोई भी अपनी प्यास बुझा सकता है और
उसकी बेहती जल धारा, गन्दगी रूपी अज्ञान को
बाहर निकाल देती है ।



स्वागतम् गणपति महाराज जी आपका ....

 


माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ,
हे गणपति,हे गणेशा
मैं सदा ,सरल हृदय से
शुद्ध बुद्धि से तेरा नाम
गुणगान गवां ,तेरा नाम सिमरन
कर नित -नए भोग लगवां
हे गणपति मैं निश दिन प्रतिपल
तुझे ही मनावां
रिद्धि, सिद्धि
शुभ , लाभ
लक्ष्मी और सरस्वती
समस्त सिद्धियों के तुम स्वामी
तुम अन्तर्यामी ,
सब के मन की जानी
विश्व भ्रमण का सुख
माता -पिता के चरणों
में पाया, हे, लम्बोदर
बड़े-बड़े रहस्यों को
विशाल ललाट मस्तक में
सिद्धि विनायक ने
विवेक बुद्धि ,ज्ञान से
वेद, ग्रंथों ,आदि महाकाव्यों
की रचना कर जगत को
ज्ञान विवेक का पाठ सिखाया
हे ,विनायक हे लम्बोदर
तेरे नाम लेने से तर जाएं सातों समुन्दर



कीमती सामान

   बहुत दिन से मां कह रही थी ,आलमारी का सामान ठीक करना है ,सारा सामान उलट-पलट करके रखा है ।
 मैं भी बाल मन दस साल मेरी उम्र ....
एक दिन अपना समान ढूंढ़ते वक़्त बाकी सब सामान अस्त -व्यस्त अब अलमारी में रखे सामान की ऐसी स्थिति थीं की ढूंढने पर भी कोई सामान आसानी से नहीं मिलने वाला था।
 मां चिल्लाई ये क्या किया राघव कबाड़ी भी इससे अच्छी तरह रखते होंगे घर में सामान और तुमने क्या हाल कर दिया है ....
मां झ्ट से अाई और अलमारी का सारा सामान बा हर की तरफ निकाल दिया , अब ये सामान ऐसे ही रहेगा ठीक करना अपने आप ,फिर मां खुद ही सारा सामान समेटने लगी ....
मैं पलंग पर बैठा हुआ तिरछी निगाहों से मां को देख रहा था ,तभी मेरी नजर अलमारी के बाहर फैले सामान पर पड़ी ,मेरी जासूस निगाहें उस समान में से ना जाने क्या खोजने लगा कब मैं जाकर उस समान के पास बैठ गया मुझे भी नहीं पता चला। ,तभी मां चिल्लाई तू फिर आ गया तंग करने, मां एक मिनट कहते ही मेरी नज़र कपड़ों के नीचे पड़ी एक कीमती चीज पर पड़ी ,मैंने झट से उसे निकाल लिया और अपने पास रख लिया,और फिर मेरी जासूस निगाहें और कुछ ढूंढने लगी ,रंगों वाले पेन का पैकेट मैने मां से पूछा ये वही रंग हैं ना देखा आपने यहां छिपा कर रखे थे ,मां बोली तुम से कुछ नहीं छिपा राघव..
 मां ने धीरे- धीरे अलमारी का सारा सामान संभाल लिया ।
मां इधर-उधर देखने लगी कुछ छूटा तो नहीं ,तभी मेरा हाथ देखकर बोली ये क्या है तेरे हाथ में क्या है दिखा तो सही ...
तभी मैंने कहा नहीं मां यह मैं नहीं दूंगा ,यह बहुत कीमती चीज है ,मां बोली क्या है बेटा दिखा तो सही ,मैंने भी एक शर्त रखी की आप यह कीमती चीज मेरे पास ही रहने दोगी ,मां बोली अच्छा चल दिखा ....मैंने मां को मेरी कीमती चीज दिखाई ,मां ने मुझे देखा और बोली ये तेरे दोस्त हैं ना ,यह तस्वीर उस समय की है जब स्कूल में तुम्हारा जन्मदिन तुम्हारे स्कूल के दोस्तों के साथ  पहली बार मनाया था ...देखो सब कितने अच्छे  -अच्छे उपहार लाए थे ...
हां मां यह सब मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं
में इस फोटो इस कीमती सामान को हमेशा अपने पास संभाल कर रखूंगा ....
मां बोली रख बेटा अपना कीमती सामान अपने पास ।

*परियां और उनकी रहस्यमयी दुनियां *

अरे वाह!
    इतना सुन्दर क्या है यह किसी रथ सा प्रतीत होता है ,चार श्वेत मखमली अश्व जो रथ के आगे खड़े थे ,अरे वाह श्वेत मखमली हंस,कोई चमत्कारी रथ लगता है यह.....

   इतने में हवा के संग मीठी सुंगध की लहर सारे वातावरण को महका गई ,सब कुछ रहस्यमयी सा प्रतीत हो रहा था ,तभी मीठी आवाज में हंसने ,खिखिलाने की गूंज से वातावरण और भी मीठा हो गया ,उत्सुकतावश मैंने उस हंसने की आवाज का पीछा किया ...कुछ दूर चलने के बाद मैंने पेड़ों की ओट से देखा श्वेत मखमली वस्त्रों में जिनके कोमल-कोमल से श्वेत पंख भी हैं ,विहार कर रही हैं कुछ झरने के निर्मल जल में स्नान कर रही हैं कुछ पुष्पों को क्यारियों में तितलियों को भांति उड़ रही हैं ,बहुत ही सुंदर दृश्य था , मैं स्वप्न लोक की परियों को साक्षात देख पा रही थी , एक बार को सोचा जाकर उनसे मिली कुछ बातें करूं .... फिर लगा कहीं यह मेरी आहट सुनकर लुप्त ना हो जाए , अब तो मुझे
मुझे यकीन हो गया था यह परियां उसी रथ में बैठकर  आयी हैं । मैं रथ की समीप जाकर छुप गई और परियों के आने का इंतजार करने लगी , आसमान की तरफ देखा तो आसमान में तारे  टिमटिमा रहे थे ,चन्द्रमा भी सोलह कला संपूर्ण अपनी श्वेत मखमली चांदनी से संपूर्ण वातावरण को रहस्यमयी  बना रहा था ,समय था रात्रि के दो बजे पर मेरी आंखों में नींद कहां थी , मैं तो परियों के आने के इंतजार में बिना पलके झपकाए बस बैठी थी ।
  रात्रि का समय था कब आंख लग गयी पता भी नहीं चला ।
जब आंख खुली तब सब कुछ एक स्वप्न सा प्रतीत हुआ ...... तभी याद आया अरे मैं तो बगीचे में थी ,परियों का इंतजार कर रहा थी ,फिर सोचा क्या वो सच में परियां थीं ,या फ़िर मेरा भ्रम ,एक सुन्दर सपना ।
  अरे ये मैं कहां हूं ,ये मेरा घर जैसा तो नहीं ..... मैं कहां हूं ,मेरा दिल जोर -जोर से धड़कने लगा ,फिर इधर -उधर ताकने लगी ,यहां तो कोई भी नहीं , मैं कहां आ गई कहीं मैं रात में मर तो नहीं गई और मेरी आत्मा यहां आ गई ,मेरा शरीर घर पर मेरे पलंग पर पड़ा होगा जब मैं बहुत देर तक नहीं उठूंगी तो मेरे घर वाले मुझे उठाने का प्रयास करेंगे ,मेरे शरीर को देखकर मुझे मृत पड़ा सोच कर दुखी हो रहे होंगे ,चीखेंगे -चिल्लाएंगे ,फिर कुछ लोगों के कहने पर मेरे निर्जीव शरीर को जला दिया जाएगा ,नहीं ऐसा नहीं हो सकता मुझे जल्द से जल्द अपने घर जाना होगा अगर मेरा शरीर ही नहीं रहा तो मेरी आत्मा भटकेगी ,यह मैं कहां आ गई चलो घर जाने का रास्ता ढूंढ़ती हूं ।
   बहुत ही काल्पनिक , रहस्यमयी दुनियां में थी मैं ,सिर्फ श्वेत मखमली बादल ना वहां से आने का रास्ता ना जाने का मैं, जितना भी आगे बड़ने का प्रयास करती सव्यं को बादलों के बीच घिर हुआ ही पाती *****
   माना की सब कुछ बहुत मनमोहक था पर वहां करने के लिए कुछ भी नहीं था ,किस से बात करूं क्या करूं  समझ नहीं आ रहा था .....
तभी मैंने एक आवाज लगाई ,यहां कोई है ये मैं कहां हूं ......भगवान जी आप कहां रहते हो ...... हे भगवान धरती पर लोग कहते हैं की आप आसमान में कहीं रहते हो , पर कहां मैं जानती हूं कि आप सच्चे लोगों को दिखते हो ,जाने -अनजाने मैंने बहुत गलतियां की होगी पर मैंने किसी के साथ बुरा  नहीं किया कभी भी ,भगवान मुझे दर्शन दो ,और बताओ मुझे यहां क्या करना है ..... हे भगवान आपको आना ही होगा .....मेरा ऐसा कहते ही बादलों के बीच से चीरते हुए एक आभा आ गई ...प्रकाश ही प्रकाश उस आभा से दिव्य प्रकाश निकल रहा था .... मैं हाथ जोड़कर खड़ी हो गई क्योंकि मैंने जो सुना था भगवान दिव्य आलौकिक तेज प्रकाश का स्वरूप हैं ........... मैं ॐ नमो शिवाय का जाप करने लगी ....तभी उस दिव्य तेज में से निर्मल श्वेत वस्त्र श्वेत चांदनी से चमकते उसके पंख उसके हाथ में एक सुनहरी छड़ी थी उस छड़ी में से तेज प्रकाश निकल रहा था ......में स्तब्ध क्या करूं ,क्या कहूं ....
तभी वो जादू की छड़ी वाली परी बोली , तुम धरती से  आयि हो वैसे तो जीते जी और हम परियों के इच्छा के बिना कोई यहां नहीं आ सकता पर अब तुम आ गई हो तो अब तुम यहीं रहोगी हमारी मेहमान बनकर अब तुम धरती पर वापिस नहीं जा सकती ....तुम्हें कम से कम सौ वर्ष तक यहां रहना होगा ....फिर यहां रहते -रहते तुम हमारे जैसी हो जाओगी और हम तुम्हें सौ साल बाद अपनी तरह परी बना देंगे .....परी तक तो ठीक था,परंतु सौ साल का वक्त तो बहुत लम्बा होता है ,सोच कर दिल घबराया......धरती पर अपने घर की और घर वालों की याद आने लगी .........मां ,बाबा, बहन -भाई सब मुझे ढूंढ़ते होंगे परेशान होंगे मेरे लिये ....... मेरे वापिस लौटने पर मुझे कितना गुस्सा करेंगे ,उनके उस गुस्से में भी प्यार होगा , पर मैं वापिस कैसे जा पाऊंगी ।
  मैंने परी जी से कहा आप बहुत अच्छी हैं ,मुझे नहीं बनना परी ,मुझे माफ़ कर दो पता नहीं मैं यहां कैसे आ गई आप  मुझे धरती पर वापिस भेज दो ...
 परी जी बोलीं देखो अब धरती पर कभी नहीं जा सकती ,तुम्हारे लिए यही अच्छा रहेगा की तुम यहीं रहो और हमारे जैसा रहना सीखो इस काम के लिए तुम्हारे साथ एक परिचायका तुम्हारे साथ रहेगी .....
 मेरे बस में कुछ नहीं था आखिर मुझे उन परी जी की बात माननी पड़ी .....
  परियों की जिन्दगी ही अलग होती है वो तो खाना भी नहीं खाती पानी भी नहीं पीती ,उनका तो हर काम जादू से हो जाता था ।
 लेकिन एक परीचा यिका जो मेरे साथ के लिए थी उसने मुझे प्यार से अपने पास बिठाया और कहा मैं जानती हूं तुम धरती से अाई हो तुम्हें भूख -प्यास सब लग रही होगी लो कुछ खा लो पानी पी लो ...आज से कई सौ साल पहले भी तुम्हारे जैसी एक लड़की धरती से इसी तरह परीलोक में आ गई थी ,फिर वो भी वापिस ना जा सकी अब वो परी बन गई है ।
 मैंने पूछा तुम जानती हो मैं यहां कैसे पहुंची ,वो परी परिचायिका बोली हां मैं जानती हूं।
   मैंने पूछा कैसे वो,परी बोली हमारे रथ में तुम छुप कर बैठ गई थीं और तुम्हें नींद आ गई थीं
मुझे सब कुछ याद आ गया मैंने परी परीचायिका से कहा मुझे वापिस धरती पर अपने घर जाना है ...
परी ने बोला नहीं ये यहां के नियमों के खिलाफ है अगर तुम प्रयास भी करोगी तो तुम्हें ...सजा मिलेगी तुम्हें हवा में लटका दिया जाएगा और तुम झूलती रहना गिरती पड़ती हवा में .......अब कोई चारा भी नहीं था मुझे उसकी बात माननी पड़ी जैसा -जैसा वो परी परिचायक कहती मैं करने लगी ,कुछ बुरा भी नहीं था ,परंतु धरती जैसा भी नहीं था सब बहुत अच्छे थे ।
 जो बड़ी परियां थीं वो धरती पर कोई भोला -भाला मासूम अनाथ हो जाता था ,कभी -कभी उनके सपनों में जाती और उनकी मां बनकर उनसे बातें करती उन्हें सहलाती,यूं तो परियां बहुत प्यारी थीं फिर भी ....
कभी-कभी बड़ी परियों को धरती पर भी जाना पड़ता था ,किसी मासूम के लिए.....ऐसा ही किस्सा मेरे सामने भी हुआ जब मैं परीलोक में थीं ,अचानक एक परी अायी और बोली परी मां धरती पर एक मासूम बच्चा है जिसकी मां मर गई है और उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली है ,अब वो दूसरी मां उस बच्चे के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती है और उसकी पत्नी के कहने पर उसका पिता भी उस चार साल के बच्चे को मारने लगा है ,वो बच्चा बहुत ही मासूम है हरपल अपनी मां को याद करता रहता है...
परी मां आप को उस बच्चे के लिए एक बार धरती पर जाना होगा उसे मां के प्यार की बहुत आवयश्कता है ,परी मां ने कहा ,मेरा रथ तैयार करो मुझे धरती पर जाना है ।
मैं मन ही मन प्रसन्न हो गई मेरी परी परिचायक ने मेरी मदद की ,कहने लगी वैसे तो ये परीलोक के नियमों के ख़िलाफ़ है ,फिर भी हम परियां स्वभाव से सबकी मदद करती हैं ,अब जैसे तुम धरती से अाई थीं वैसे ही जाओगी ज्यादातर हम परियां रात में ही कहीं आती -जाती हैं ,जिससे हमें कोई निर्मल मन देख ना सके.. जैसे तुमने देखा ये तो यकीन है की तुम दिल की बहुत अच्छी हो ।
 आज रात को दो और तीन बजे के बीच परी मां का रथ धरती पर जाएगा जिसमें मैं भी होंगी ,तुम छुप कर नीचे वाले हिस्से में लेट जाना और जब धरती पर हमारा रथ रुकेगा ,तुम चुपके से निकलकर अपने घर चले जाना मैंने उस परी को धन्यवाद कहा .....
 धरती पर रथ रुकते ही मैं अपने घर पहुंची देखा मैं पलंग में लेटी हुई हूं मेरे आस-पास मेरे परिजन और डॉक्टर खड़े हैं ।
 इतने में मेरी आंख खुली घर के सभी सदस्य मुझे देखकर खुश हो गए ,सामने खड़ा डॉक्टर बोला ये तो चमत्कार हो गया ..मां भाई ,बहन सब ने मुझे प्यार से गले लगा लिया...

 तभी मुझे परी परिचाय का की छवि दिखाई दी ,वो दूर से देखकर मुझे मुस्करा रही थी मानों अपनों से मिलने की खुशी का एहसास था उसे भी।






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...