😊आज हवाओं में इत्र             की खुशबू🌹 आ रही है            लगता है मेरे मित्रों की मंडली मुस्करा😄😃 रही है ,गुनगुना रही है अपने मित्रों की खुशियों की फरियाद कर रही है🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌸🌸🌸
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*तीज का त्यौहार लेकर आता खुशियों की सौगात*

 पक्षियों के चहकने की आवाज
  खनकती चूड़ियों का आगाज
  सुहागनों के हाथों में रचती पवित्र
   मेहंदी की सौगात आओ सखियों
    झूमे नाचें गाएं आया है हरियाली तीज का त्यौहार
     **सावन का मौसम आया
संग अपने सुख-समृद्धि लाया
वर्षा की फुहारों से धरती का
जल अभिषेक जब होता है
प्रकृति प्रफुल्लित
हरी-भरी हो जाती है
वृक्षों की डालियां अपनी
बाहें फैलाती हैं
झूला झूलन को
सखियों को बुलाएं
प्रकृति संग सखियां भी
सोलह श्रृंगार करती हैं
वृक्षों की ओट में बैठ कोयल भी
मीठा राग सुनाती है
समस्त वातावरण संगीतमय हो जाता है
चूड़ियों की खनक मन को लुभाती है
हरियाली तीज को देवी पार्वती ने भी
सोलह श्रृंगार और कठिन उपवास कर
शिव को प्रसन्न किया था
उस दिन से हरियाली तीज की शुभ बेला पर
सुहागनें उपवास नियम करती हैं
वृक्षों पर झूलों की पींगे जब चड़ती हैं
आसमान की ऊंचाइयों में सखियां
झूल-झूल कर हंसती है
धरती झूमती है
प्रकृति निखरती है
पक्षीयों की सुमधुर ध्वनियों से
सावन में प्रकृति समृद्ध और संगीतमय हो जाती है**



*अनुभव*

 
  *मानव पहुंच गया आज चांद पर
 तुम खटिया पर बैठे दिन -भर 
 क्या बड़बड़ाती रहती

   इंटरनेट है ,हम सब का साथी
 उसके बिना ना हम सब को जिंदगी भाती

   तुम क्यों बेवजह अम्मा बड़बड़ाती 
 तेरी बात ना कोई समझना चाहता
 सारा ज्ञान इंटरनेट से मिल जाता

 अम्मा बोली हां मैं अनपढ़, ना अक्षर ज्ञानी
 उम्र की इस देहलीज पर आज पहुंची हूं
क्या दे सकती हूं मैं तुम सबको 
अपना काम भी ना ढंग से कर पाती

मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
जीवन के उतार-चाढाव के कुछ 
किस्से सुनाती कई बार गिरी ,गिर-गिर 
के संभली यही तो मैं कहना चाहती 
बेटा चलना थोड़ा संभलकर 
तुम ना करना मेरे जैसी नादानी

मैं तो सिर्फ अपने अनुभव बांटती
जो आता है जीवन जीने से देखो
तुम नाराज़ ना होना मेरे बच्चों 
आज जमाना इंटरनेट का
चन्द्रमा तक तुम पहुंच चुके हो
अंतरिक्ष में खोजें कर रहे हो 
आशियाना बनाओ चन्द्रमा पर अपना 
पूरा हो तुम सब के जीवन का सपना
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
ना मैं ज्ञानी ,ना अभिमानी।







कलम के सिपाही को कोटि-कोटि नमन



**कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी
 को शत -शत नमन **
   गबन, गोदान, नमक का दारोगा ,
कफ़न,ईदगाह ,आदि महान साहित्य
के राचियता की लेखनी
समाजिक विडंबनाओं और कुरीतियों
को देख तलवार की भांति चल पड़ती थी
जीवन का यथार्थ चित्रण कर
मानव जीवन का गहन दर्शन
उनकी गतिविधियों पर कठोर प्रहार
करती कलम के सिपाही जी की लेखनी
अपना इतिहास रच 
युगों -युगांतर तक लोगों के दिलों
में राज कर रही हैं और करती रहेंगी
समाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती
कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी की
कहानियां आज भी एक सजीव चित्रण
के रूप में समाज को आईना
दिखाने में सक्षम हैं
और अमर है जीवन के
अनुभव परिवेश का सत्य
मुंशी प्रेमचन्द जी का लेखन
सत्य की मशाल लिए
समाज को आज भी प्रेरित
कर मार्गदर्शन कर रहा है
मुंशी जी कलम के सिपाही
को कोटि -कोटि प्रणाम

*बदलो तो यूं बदलो की आपको देखकर जमाना स्वयं को बदलने लगे*

*नकल करना बहुत आसान है पर कहते हैं ना नकल के लिए भी अकल चाहिए होती है किसी की अच्छी नकल करना जहां अच्छी बात है नहीं किसी की बुरी नकल करके हम स्वयं का ही बुरा कर बैठते हैं।
  बात हैआज की युवा पीढ़ी की, पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ती आज की युवा पीढ़ी

*मेघों की पालकी *

*मौसम वर्षा का था

नील गगन में मेघों

का राज था

मेघों का समूह गगन

में उमड़-घुमड़ कर रहा था

विभिन्न आकृतियां बना-बना

कर मानों अठखेलियां

कर रहा था जी भर के

अपनी मनमर्जीयां कर रहा था

मेघों का राज था

श्वेत मखमली मेघों का टुकड़ा

आचनक धरती पर उतर आया

मुझे अपने संग

श्वेत मखमली पालकी में बिठाकर

सुन्दर सपनों की दुनियां में

विहार करने को ले गया

मेघों की गोद और मैं रोमांचित

हृदय की धड़कने प्रफुल्लित

स्वर्ग सी अनुभूति

जादुई एहसास सिर्फ

प्रसन्नता ही प्रसन्नता

अक्लपनिय ,अद्भुत दुनियां

क्षण भर की सही

बेहतरीन बस बेहतरीन

फरिश्तों से मिलन की

अतुलनीय अद्वितीय कहानियां *






*क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *

**क्यों अपने संग बेवजह का बोझ
लेकर चलूं क्यों ना हल्का हो जाऊँ और
बिना पंखों के भी ऊंचा उड़ूं
क्योंकि जो जितना हल्का होगा
उतना ऊंचा उड़ेगा

क्यों ना कुछ अच्छा सोचें
अच्छा ही बोले अच्छा ही सुने
और अच्छा ही करें
और फिर अच्छा करते-करते
जब सब और अच्छा ही हो जाए

अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है
ऐसा नहीं की की बुराई नहीं आती
मुश्किलें नहीं आती
आती तो है कठिनाइयां बहुत आती हैं
परंतुअच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है

इल्जाम भी लगते हैं
स्वार्थी घमंडी अहंकारी
होने की तोहमतें भी लगती हैं
पर जो अच्छा सोचता है
उसे आदत पड़ जाती
वो बुराई के नरक में जाने से
कतराता है झूठ के जाल में
फंसने से डरता है
जो सच्चा होता है वो
आजाद हो जाता है
झूठ के नकाब के मायाजाल से
फ़िर क्यों ना मैं भी उडूं
मदमस्त ,बेफिक्र आसमां की ऊंचाइयों में
और अच्छा बनने की कोशिश करूं ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...