💐💐 ** माँ एक वटवृक्ष**💐💐

 
***** माँ* वो वटवृक्ष है, जिसकी ठंडी छाँव में हर
           कोई सुकून पाता है ।
           माँ की ममता सरिता की भाँति , जीवन को पवित्रता,
           शीतलता, और निर्मलता देकर निरन्तर आगे बढ़ते
           रहने की प्रेरणा देती रहती है ।
           
            मेरा तो मानना है,माँ एक कल्प वृक्ष है ,जहाँ उसके
            बच्चों को सबकुछ मिलता है ,सब इच्छाएं पूरी होती
            हैं ।
           * कभी-कभी माँ कड़वी नीम भी बन जाती है ,
             और रोगों से बचाती है *
           * माँ *दया का सागर ,*अमृत कलश है*
        **दुनियाँ की भीड़ में ,प्रतिस्पर्धा की दौड़ में
           जब स्वयं को आगे पाता हूँ ।
          ये माँ की ही दुआओं का असर है
          जान जाता हूँ ,मैं।*
          वास्तव में माँ एक विशाल वृक्ष ही तो है ,
          जिस तरह *वृक्ष *मौसम की हर मार को सह कर
          स्वयं -हरा भरा रहता है ,और *मीठे पौष्टिक फल* ही
          देता है, ठीक उसी तरह एक *माँ *भी बहुत कुछ
           सहन करके एक सुसंस्कृत,सभ्य ,समाज की स्थापना               को अपनी *संताने* देती है******
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**माँ मैं हूँ ना***

**माँ मैं हूँ ना***
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"मेरे हाथ पर गरम-गरम चाय गिर गयी थी , जिसकी वज़ह से काफ़ी तकलीफ़ थी ,डॉक्टर को दिखा के दवा भी ले ली थी ।

परन्तु एक बात की चिन्ता थी अगले ही दिन हमारे घर पर गुरु जी आने वाले थे , वो अहमदाबाद से आ रहे थे ,मेर हाथ तो जल हुआ था ,हाथ मे छाले थे ,डॉक्टर ने पानी मे डालने से मना किया था और हाथ मे जख्म भी बहुत था , और हमारी कामवाली भी एक हफ्ते छुट्टी पर थी गाँव गयी हुयी थी ,और कोई भी थोड़े दिन के लिए हमारे घर काम करने को तैयार नहीं थी सब बहुत व्यस्त थी ।

मैं यूँ ही चुपचाप अपने कमरे मे बैठी थी चिता थी कल का काम कैसे होगा ।
इतने में मेरा पन्द्रह साल का बेटा आया और बोला माँ क्या हुआ क्या हाथ में बहुत दर्द है ,मैंने सिर हिलाते हुए कहा नहीं बेटा मैंने दवा ले ली है । बेटा बोला तो फिर आराम कर लो , मैने कहा आराम कैसे करूँ बेटा ,कल अहमदाबाद से गुरु जी और उनके चार शिष्य आ रहें हैं ।,उन्हें भोजन करना होगा ,और मेरे हाथ से कुछ होने वाला नहीं है ,बहुत चिन्ता हो रही है बेटा, ।

थोड़ी देर रुक कर मेरा बेटा बोला चिन्ता मत करो ,माँ मैं हूँ ना
माँ बोली तुम क्या कर लोगे बेटा तुम थोड़ी रसोई का काम कर सकते हो, और कल तुम्हारा एग्जाम भी है,तुम मेरी मदद भी नहीं कर सकते । बेटा बोला माँ मैने कहा सब हो जायेगा , मेरी पढ़ाई भी ,
मैं रात को पढ़ लूँगा, सुबह मैं आपकी मदद से सारा खाना बनाऊंगा ,
अगला दिन था बेटा एग्जाम देकर सुबह दस बजे घर लौट आया था ,।मुझ से पूछ-पूछ कर उसने सारा खाना तैयार किया ।
गुरु जी और उनके चार शिष्यों की मेरे बेटे ने अच्छे से सेवा करी ,गुरु जी ने बहुत प्रस्सन होकर विदा ली मुझे और मेरे बेटे को बहुत आशीर्वाद भी दिये ।
जब गुरु जी चले गये तब मेरे बेटे ने कहा चलो माँ अब हम दोनों भी खाना खा लेते हैं ,खाना वाकई में बड़ा स्वादिष्ट बना था ।
जब सब निपट गया तब मेरा बेटा बोला माँ अब बताओ आप खुश हो ना ,मैंने भी उसके सिर पर हाथ गिरते हुए कहा हाँ बेटा हाँ ।
बेटा बोला माँ आज मदर्स डे है , मैने आपको बोला था ना कि मैं हूँ ना ,और माँ आप
हमारे लिए इतना करती हो क्या मैं आपके लिए इतना भी नही कर सकता क्या ?
माँ यूँ तो हम भारतीयों के लिए तो हर रोज मदर्स डे है । पर आज इस मदर्स डे पर आपका बेटा वादा करता है कि ,जब भी आपको मेरी आव्यशकता महसूस होगी मैं आपके पास होऊँगा ।

**मेरा मसीहा ***

*****  मैं जो भी करता हूँ, मेरे फ़रिश्ते के कहे ,अनुसार करता हूँ  क्या लाभ होगा, मैं नहीं सोचता "मैं" वो करता हूँ ,
 जो सबके हित में होता है ।,

 आसमान से कोई फ़रिश्ता आता है,
 जब में गहरी निंद्रा में होता हूँ ,मेरे सिर
 पर प्यार भरा हाथ रखता है ,मेरा माथा
 चूम कर मुझे दुआओं से भर जाता है ।

 जब मैं नींद से जागता हूँ ,तो अपने
 आस-पास किसी को भी नही पाता हूँ।

 पर उस फ़रिश्ते की महक ,
मेरा घर आँगन महका जाती है
मेंरे चेहरे पर बिन बात के मुस्कराहट
आ जाती है ।

मैं चल रहा होता हूँ अकेला ,परन्तु
कोई मेरे साथ चल रहा होता है ।
मैंने उसे देखा तो नहीं पर वो मेरा
मार्गदर्शन कर रहा होता है ,
मुझे अच्छे से अच्छा कार्य करने को
प्रेरित कर रहा होता है ।

मैं भी उसकी ही बात मानता हूँ
कोशिश करता हूँ जो भी करूँ ,
दूसरों की भलाई के लिऐ करूँ
कोई ऐसा काम ना करूँ जिससे दूसरों
को कष्ट पहुँचे ,वो फ़रिश्ता ,मेरा मसीहा ,
मेरी आत्मा में बैठा परमात्मा है ।
जो हर-पल मेरा मार्गदर्शन करता है ।।*****

**कविता**

 --------------क्या आप मेरी बात से सहमत है ?
** * * एक अनपढ़ भी कविता रच सकता है
क्योंकि कविता आत्मा की आवाज है **

** कविता आत्मा की आवाज है
समाजिक समावेश के सुन्दर भाव हैं ।
कविता विचारों की सुमधुर झंकार है
कविता मात्र शब्द नही ,कोई छन्द नही।

कविता कभी समाजिक कुरीतियों के
प्रति उठने वाली आवाज है ,तो कभी
वीर,हास्य,श्रृंगार रस में बंधे शब्दों का सार है ।

कविता अन्तर्मन में उठने वाले द्वन्दों की पुकार है
कविता किसी भी भावपूर्ण मन मे उठने वाले
भावों का सार है । कविता तारीफों की मोहताज नही
कविता स्वयं ही तारीफे अन्दाज है **

** हौंसले **


** अच्छा हुआ मेरी परवरिश
 तूफानों के बीच हुयी ।
 जब मेरी परवरिश हो रही थी
 बहुत तेज आँधियाँ चल रही थीं ,
तूफानों ने कई घर उजाड़ दिये थे ।

क्या कहूँ तूफ़ान ने मेरा घर भी उजाड़ा
मेरा सब कुछ ले लिया ,
मुझे अकेला कर दिया ,
ना जाने तूफ़ान की मुझसे क्या दुश्मनी थी
मुझे अपने संग नहीं ले गया ,
मुझे दुनियाँ की जंग लड़ने को अकेला छोड़ गया ।
बताओ ये भी कोई बात हुई ,मैं अकेला दुनियाँ की भीड़
मे बहुत अकेला ,कोई अपना न मिला
पर मेरी परवरिश तो आँधियों ने की थी
मैं कहाँ टूटने वाला था । जहाँ रास्ता मिला चलता रहा
धीमे थे कदम मेरे पर कभी रुके नहीं
पर मेरा हौंसला मेरे साथ था ,हमेशा से मेरा सच्चा साथी
मेरे हौंसलों ने कभी हार नहीं मानी ,
शूलों पर चलकर फूलों की राह थी पानी
आज बहुत खूबसूरत है ,मेरी जिन्दगानी
क्योंकि मेरे हौंसलों ने कभी हार नहीं मानी ।।*****



**अक्षय पात्र**

 
 गाँव में हर किसी को यह ख़बर थी ,कि, "राम सिंह " के घर मे *अक्षय पात्र*है ,जो उनके पास बहुत प्राचीन काल से है ।

लेकिन किसी ने भी उस "अक्षयपात्र" को देखा नही था ।

यहाँ तक कि राम सिंह के अपने परिवार के सदस्यों ने भी उस अक्षय पात्र को नही देखा था ।किसी को इजाज़त नही थी उस *अक्षयपात्र*को देखने की ।
राम सिंह का परिवार भरा पूरा था ,दो बेटे ,उनकी दो बहुयें ,दोनों बेटों के दो-दो बच्चे ।
रामसिंह ने अपने परिवार में यह घोषणा कर रखी थी ,कि मरने से पहले वह यह *अक्षयपात्र*उसे देगा जो उसकी कसौटी पर खरा उतरेगा ।
कौन नही चाहता कि, "अक्षयपात्र"उसे मिले ,इस कारण से परिवार में सबका व्यवहार परस्पर प्रेम के था ,सब एक दूसरे का यथायोग्य सम्मान करते थे ।
"रामसिंह"बहुत खुश था कि उसके परिवार के सभी सदस्य संस्कारी,और गुणवान हैं ।
घर मे हमेशा सुख-शांति का माहौल रहता सब ही बड़े धार्मिक स्वभाव वाले भी थे  ।
रामसिंह जी का सबसे छोटा बेटा थोड़ा चंचल था ,उसके बहुत मित्र थे जिनके साथ घूमना-फिरना खेलना लगभग लगा रहता था।
अपने पौते के इस व्यवहार से रामसिंह जी थोड़े चिंतित रहते ।
और दिन-रात अपने पौते को समझाते रहते ।एक दिन राम सिंह जी जब अपने पौते जिसका नाम अक्षय था ,समझा रहे थे, बेटा पड़ो लिखो कुछ बन जाओ । मैं चाहता तुम किसी ऊँचे पद के अधिकारी बनो ,पौते अक्षय के मन मे भी न जाने क्या आया बोला,दादा जी फिर आप मुझे जो आपके पास अक्षय पात्र पड़ा है देंगे ,दादाजी ने पौते के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ,*हाँ*पर ये बात किसी को नही बताना,पौते ने कहा जी दादा जी बिल्कुल । उस दिन से तो अक्षय मानो बिल्कुल बदल गया ,अपनी मेहनत और लगन से वह कलेक्टर बन गया । अब तो अक्षयपात्र की तरफ अक्षय का ध्यान भी नही था बस तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ना उसका लक्ष्य था ।
आखिर दादा जी यानि रामसिंह जी की भी उम्र हो चली थी ,
कमजोरी की वजह से उन्होंने खटिया पकड़ ली थी ।
एक दिन दादा जी ने परिवार के सभी सदस्यों को अपने पास बुलाया अपनी सम्पत्ति का बँटवारा सबमे बराबर कर दिया ।
लेकिन सबकी निगाहें तो* अक्षय पात्र*पर थी ,दादा जी का बड़ा बेटा बोला दादा जी "अक्षयपात्र"तो आप मुझे ही देंगे मैं आपका सबसे बड़ा बेटा हूँ और आपके खानदान की परम्परा भी यही रही है, दादा जी मुस्कराये बोले तुम्हे किसने कहा कि ये परम्परा है कि अक्षय पात्र सबसे बड़े बेटे को मिलेगा ।
ये *अक्षयपात्र उसे मिलेगा जो परिवार में सबसे होनहार होगा ,परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे को देखने लगे आखिर दादाजी की नजरों में कौन सबसे ज्यादा होनहार है ।
दादा जी ने अपने सबसे छोटे पौते को अपने पास बुलाया और कहा मैं "अक्षयपात्र* इसे सौंपूंगा ,सब हैरान !

अक्षय बोला नही दादा जी मैं क्या करूँगा अक्षय पात्र मेरे पास आपके आशीर्वाद का साथ है और क्या चाहिये ,इतने में परिवार के अन्य सदस्य बोले हाँ-हाँ ये क्या करेगा अक्षय पात्र इसके पास तो बहुत अच्छी नौकरी है ,अक्षय ने भी हां में हाँ मिलाते हुए कहा जी दादा जी आप किसी और को दे अक्षय पात्र ।

दादाजी बोले नही बेटा ,मैने दोनों बेटों से कहा खूब पड़ो कुछ बनो दूसरे पौतों से भी कहा किसी ने भी ढंग से पढ़ाई नही की किसी ने दसवीं करके किसी बीच में पढ़ाई छोड़ दी सबकी नजरें मेरी सम्पत्ति पर थीं ।
एक तुम ही हो जिसने जीवन मे वास्तविक सम्पत्ति पायी ,
अक्षय बेटा तुम्हारे पास विद्या धन है ,जिसका कभी क्षय नही होता ।तो फिर अक्षय पात्र भी तुम्हे ही मिलेगा ।
अक्षय बार-बार कह रहा था नही दादा जी मुझे नही चाहिएअक्षय पात्र आप इसे परिवार के अन्य सदस्यों में बाँट दो ।
दादा जी ने अक्षय पात्र अपने पौते को पकड़ाते हुए कहा ये लो आज से तुम इसे संभालोगे ।
चलो खोलेकर तो  देखो इसमें कितना धन है ।अक्षय ने अक्षय पात्र के ऊपर बंधा हुआ कपड़ा हटाया उसकी आँखों की चमक मानो बढ़ गयी ,दादा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कहते हुए अक्षय ने दादा के चरण स्पर्श किये ।

परिवार में सभी को उत्सुकता थी कि आखिर *अक्षय पात्र में कितना धन है ,सब कहने लगे दिखाओ अक्षय मुझे दिखाओ
सबने एक -एक करके *अक्षय पात्र*को देखा सबकी आँखे खुली की खुली रह गयीं ,फिर रामसिंह जी जा बड़ा बेटा बोला अक्षय वास्तव मे तुम ही इस *अक्षयपात्र*के हकदार हो ।
दादा जी ने एक-एक करके उस अक्षय पात्र में से सब कुछ निकाला सबसे पहले * रामायण*  फिर  *भगवतगीता*चारों वेद * अन्य कई धार्मिक पुस्तकें ,अन्त में दादा जी ने उस पात्र में से एक कागज़ निकाला जिस पर कुछ लिखा हुआ था ,दादा जी ने वह सबके सामने जोर-जोर से पढ़ा , उसमे लिखा था
 तुम सोच रहे होंगे इस पात्र में क्या है ?

 तुम जानते हो मैंने
 इसका नाम *अक्षय पात्र*क्यों रखा ?

इस पात्र मे तुम्हे कोई धन दौलत या सोने -चाँदी की अशर्फियाँ नही मिलेंगी ,फिर भी ये अक्षय पात्र है ।
हाँ बच्चों अक्षय धन है इस पात्र में ।
क्योंकि इस पात्र में विद्या धन है ।
जो कभी नष्ट नही होता विद्या धन के बल पर तुम कहीं पर कुछ भी पा सकते हो
विद्या धन एक ऐसा धन है ,जो अक्षय है जिसका कभी क्षय नही होता ।व्यवहारिक धन रुपया पैसा धन-दौलत सोना-चाँदी तो खर्च होने वाला धन है ।
इसलिए जीवन मे अग़र धन अर्जन करना है तो सर्वप्रथम विद्या धन ग्रहण करो जिसके द्वारा तुम संसार के समस्त धन प्राप्त कर सकते हो ।
 "विद्याधन ही वास्तव में जीवन का *"अक्षय पात्र"* है



**शुभ संकेत**

   * शुभ संकेत*

 पथरीली राहें,मिट्टी की गोद,

  कभी चिलचिलाती धूप ,

 कभी आँधी-तूफान में रहकर

 ही एक वृक्ष है फलता-फूलता

तभी तो कहते है ,धैर्य रख ऐ बन्दे

कठिनाइयों  को सहकर एक परिपक्व

मानव है बनता ।।

 सादगी से सौंदर्य निखरता है,
 
  व्यवहार में हो सरलता, विचारों
 
  में  हो निर्मलता ,तभी तो कोई
 
   सफलता की सीढ़ियाँ है चढ़ता ।

   हवाओं में आज मीठी सी महक है,
 
   शायद फिर से कोई नेकी की राह चला है ।

  किसी के मन मे सर्वजनहिताय का भाव जगा है ।
 
  तभी तो आज हर दिल को सुकून है

 स्वर्ग धरा पर बना देने का जनून है ।

क्या वो कोई जादूगर है , या तिलसमिया दुनियाँ से आया है ।

 वो तो बहुत शुभ संकेत लाया है ।

उसने निस्वार्थ भाव से सबको अपनाया है ।

   
   

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...